Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 48 (Adhikar 2).

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अधिकार-२ः दोहा-४८ ]परमात्मप्रकाशः [ २९७
१७५) भणइ भणावह णवि थुणइ णिदह णाणि ण कोइ
सिद्धिहिँ कारणु भाउ समु जाणंतउ पर सोइ ।।४८।।
भणति भाणयति नैव स्तौति निन्दति ज्ञानी न कमपि
सिद्धेः कारणं भावं समं जानन् परं तमेव ।।४८।।
भणइ इत्यादि भणइ भणति नैव भणावह नैवान्यं भाणयति न भणन्ते प्रेरयति णवि
थुणइ नैव स्तौति णिदह णाणि ण कोइ निन्दति ज्ञानी न कमपि किं कुर्वन् सन् सिद्धिहिं
कारणु भाउ समु जाणंतउ पर सोइ जानन् कम् परं भावं परिणामम् कथंभूतम् समु
समं रागद्वेषरहितम् पुनरपि कथंभूतं कारणम् कस्याः सिद्धेः परं नियमेन सोइ तमेव
सिद्धिकारणं परिणाममिति इदमत्र तात्पर्यम् परमोपेक्षासंयमभावनारूपं विशुद्धज्ञानदर्शननिज-
शुद्धात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुभूतिलक्षणं साक्षात्सिद्धिकारणं कारणसमयसारं जानन् त्रिगुप्ताव-
स्थायां अनुभवन् सन् भेदज्ञानी पुरुषः परं प्राणिनं न भणति न प्रेरयति न स्तौति न च
निन्दतीति
।।४८।।
भावार्थपरम उपेक्षासंयमनी भावनारूप विशुद्धज्ञानदर्शनवाळा निजशुद्धात्म-
तत्त्वनां सम्यक्श्रद्धान, सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्अनुभूति जेनुं स्वरूप छे एवा साक्षात् मोक्षना
कारणरूप कारणसमयसारने जाणतो थको, त्रण गुप्तिथी गुप्त अवस्थामां अनुभवतो भेदज्ञानी
पुरुष बीजा प्राणी पासेथी भणतो नथी अने बीजा प्राणीने प्रेरतो नथी (अर्थात् भणावतो नथी),
कोईनी स्तुति करतो नथी के कोईनी निंदा करतो नथी. ४८.
गाथा४८
अन्वयार्थ :[ज्ञानी ] निर्विकल्प ध्यानी पुरुष [कमपि न ] न किसीका [भणति ]
शिष्य होकर पढ़ता है, न गुरु होकर किसीको [भाणयति ] पढ़ाता है, [नैव स्तौति निंदति ]
न किसीकी स्तुति करता है, न किसीकी निंदा करता है, [सिद्धेः कारणं ] मोक्षका कारण [समं
भावं ] एक समभावको [परं ] निश्चयसे [जानन् ] जानता हुआ [तमेव ] केवल
आत्मस्वरूपमें अचल हो रहा है, अन्य कुछ भी शुभ-अशुभ कार्य नहीं करता
भावार्थ :परमोपेक्षा संयम अर्थात् तीन गुप्तिमें स्थिर परम समाधि उसमें आरूढ जो
परमसंयम उसकी भावनारूप निर्मल यथार्थ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र वही जिसका
लक्षण है, ऐसा मोक्षका कारण जो समयसार उसे जानता हुआ, अनुभवता हुआ, अनुभवी पुरुष
न किसी प्राणीको सिखाता है, न किसीसे सीखता है, न स्तुति करता है, न निंदा करता है
जिसके शत्रु, मित्र, सुख, दुःख, सब एक समान हैं ।।४८।।