Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 53 (Adhikar 2) Nishyathi Punya-Papani Aekata.

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१८०) बंधहँ मोक्खहँ हेउ णिउ जो णवि जाणइ कोइ
सो पर मोहिं करइ जिय पुण्णु वि पाउ वि दोइ ।।५३।।
बन्धस्य मोक्षस्य हेतुः निजः यः नैव जानाति कश्चित्
स परं मोहेन करोति जीव पुण्यमपि पापमपि द्वे अपि ।।५३।।
बंधहं इत्यादि बंधहं बन्धस्य मोक्खहं मोक्षस्य हेउ हेतुः कारणम् कथंभूतम् णिउ
निजविभावस्वभावहेतुस्वरूपम् जो णवि जाणइ कोइ यो नैव जानाति कश्चित् सो पर
एव मोहिं मोहेन करइ करोति जिय हे जीव पुण्णु वि पाउ वि पुण्यमपि पापमपि
कतिसंख्योपेते अपि दो द्वे अपीति तथाहि निजशुद्धात्मानुभूतिरुचिविपरीतं मिथ्यादर्शनं
स्वशुद्धात्म-प्रतीतिविपरीतं मिथ्याज्ञानं निजशुद्धात्मद्रव्यनिश्चलस्थितिविपरीतं मिथ्याचारित्रमित्येतत्रयं
कारणं, तस्मात् त्रयाद्विपरीतं भेदाभेदरत्नत्रयस्वरूपम् मोक्षस्य कारणमिति योऽसौ न जानाति
जे कोई निश्चयनयथी विभावपरिणाम बंधनो हेतु छे अने स्वभावपरिणाम मोक्षनो
हेतु छे, एम जाणतो नथी, ते ज पुण्य अने पाप बन्नेने करे छे पण बीजो नहि. (पण
जे कोई निश्चयनयथी विभावपरिणाम बंधनो हेतु छे अने स्वभावपरिणाम मोक्षनो हेतु छे,
एम जाणे छे ते पुण्य, पाप बन्नेने करतो नथी) एम मनमां राखीने आ सूत्र कहे छेः
भावार्थनिजशुद्धात्मानी अनुभूतिरूप रुचिथी विपरीत मिथ्यादर्शन, स्व-शुद्धात्मानी
प्रतीतिथी विपरीत मिथ्याज्ञान अने निजशुद्धात्मद्रव्यमां निश्चल स्थितिथी विपरीत मिथ्याचारित्र
ए त्रण बंधनुं कारण छे अने त्रणेयथी विपरीत एवुं भेदाभेद रत्नत्रयस्वरूप मोक्षनुं कारण
छे, एम जे कोई जाणतो नथी ते जजो के पुण्य अने पाप बन्नेय निश्चयनयथी हेय छे
अधिकार-२ः दोहा-५३ ]परमात्मप्रकाशः [ ३०७
गाथा५३
अन्वयार्थ :[यः कश्चित् ] जो कोई जीव [बंधस्य मोक्षस्य हेतुः ] बंध और
मोक्षका कारण [निजः ] अपना विभाव और स्वभाव परिणाम है, ऐसा भेद [नैव जानाति ]
नहीं जानता है, [स एव ] वही [पुण्यमपि पापमपि ] पुण्य और पाप [द्वे अपि ] दोनोंको ही
[मोहेन ] मोहसे [करोति ] करता है
भावार्थ :निज शुद्धात्माकी अनुभूतिकी रुचिसे विपरीत जो मिथ्यादर्शन, निज
शुद्धात्माके ज्ञानसे विपरीत मिथ्याज्ञान, और निज शुद्धात्मद्रव्यमें निश्चल स्थिरतासे उल्टा जो
मिथ्याचारित्र इन तीनोंको बंधका कारण और इन तीनोंसे रहित भेदाभेद रत्नत्रयस्वरूप मोक्षका