Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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विवेकमूढत्वं भवति मइ-मोहेण य पावं मतिमूढत्वेन पापं भवति, ता पुण्णं अम्ह मा होउ
तस्मादित्थंभूतं पुण्यं अस्माकं मा भूदिति तथा च इदं पूर्वोक्तं पुण्यं भेदाभेदरत्नत्रया-
राधनारहितेन द्रष्टश्रुतानुभूतभोगाकांक्षारूपनिदानबन्धपरिणामसहितेन जीवेन यदुपार्जितं पूर्वभवे
तदेव मदमहंकारं जनयति बुद्धिविनाशं च करोति न च पुनः सम्यक्त्वादिगुणसहितं भरत-
सगररामपाण्डवादिपुण्यबन्धवत् यदि पुनः सर्वेषां मदं जनयति तर्हि ते कथं पुण्यभाजनाः
सन्तो मदाहंकारादिविकल्पं त्यक्त्वा मोक्षं गताः इति भावार्थः तथा चोक्तं चिरन्तनानां
निरहंकारत्वम्‘‘सत्यं वाचि मतौ श्रुतं हृदि दया शौर्यं भुजे विक्रमे लक्ष्मीर्दान-
मनूनमर्थिनिचये मार्गे गतिर्निवृत्तेः येषां प्रागजनीह तेऽपि निरहंकाराः श्रुतेर्गोचराश्चित्रं संप्रति
अधिकार-२ः दोहा-६० ]परमात्मप्रकाशः [ ३१९
उपार्जन किये भोगोंकी वाँछारूप पुण्य उसके फलसे प्राप्त हुई घरमें सम्पदा होनेसे अभिमान
(घमंड) होता है, अभिमानसे बुद्धि भ्रष्ट होती है, बुद्धि भ्रष्टकर पाप कमाता है, और पापसे
भव भवमें अनंत दुःख पाता है
इसलिये मिथ्यादृष्टियोंका पुण्य-पापका ही कारण है जो
सम्यक्त्वादि गुण सहित भरत, सगर, राम पांडवादिक विवेकी जीव हैं, उनको पुण्यबंध
अभिमान नहीं उत्पन्न करता, परम्पराय मोक्षका कारण है
जैसे अज्ञानीयोंके पुण्यका फल
विभूति गर्वका कारण है, वैसे सम्यग्दृष्टियोंके नहीं है वे सम्यग्दृष्टि पुण्यके पात्र हुए चक्रवर्ती
आदिकी विभूति पाकर मद अहंकारादि विकल्पोंको छोड़कर मोक्षको गये अर्थात् सम्यग्दृष्टिजीव
चक्रवर्ती बलभद्र
पदमें भी निरहंकार रहे ऐसा ही कथन आत्मानुशासन ग्रंथमें
श्रीगुणभद्राचार्यने किया है, कि पहले समयमें ऐसे सत्पुरुष हो गये हैं, कि जिनके वचनमें सत्य,
बुद्धिमें शास्त्र, मनमें दया, पराक्रमरूप भुजाओंमें शूरवीरता, याचकोंमें पूर्ण लक्ष्मीका दान, और
मोक्षमार्गमें गमन है, वे निरभिमानी हुए, जिनके किसी गुणका अहंकार नहीं हुआ
उनके नाम
शास्त्रोंमें प्रसिद्ध हैं, परंतु अब बड़ा अचंभा है, कि इस पंचमकालमें लेशमात्र भी गुण नहीं
पूर्वोक्त पुण्य उपार्ज्युं छे ते ज पुण्य अहंकार उत्पन्न करे छे अने बुद्धिनो विनाश करे छे,
पण भरत, सगर, राम, पांडवादिना पुण्यबंधनी माफक सम्यक्त्वादि गुण सहित पुण्यबंध मद
उत्पन्न करतो नथी. वळी जो पुण्य सर्वने मद उत्पन्न करे तो तेओ केवी रीते पुण्यना भाजन
थतां मदअहंकारादि विकल्पने छोडीने मोक्षे गया? एवो भावार्थ छे.
पहेलांना समयमां थई गयेला सत्पुरुषोने निरहंकारपणुं पण आ प्रमाणे कह्युं छे
केः‘‘सत्यं वाचि मतौ श्रुतं हृदि दया शौर्यं भुजे विक्रमे लक्ष्मीर्दानमनूनमर्थिनिचये मार्गे
गतिर्निवृत्तेः येषां प्रागजनीह तेऽपि निरहंकाराः श्रुतेर्गोचराश्चित्रं संप्रति लेशतोऽपि न गुणास्तेषां
तथाप्युद्धताः ।।’’ (आत्मानुशासन २१८) (अर्थपहेलाना समयमां एवा सत्पुरुषो थई
गया छे के वाणीमां सत्य, बुद्धिमां आगम, हृदयमां दया, शौर्य, भुजाओमां पराक्रम