Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 63 (Adhikar 2).

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साक्षात्पुण्यबन्धहेतुभूतानां परंपरया मुक्ति कारणभूतानां च योऽसौ विद्वेषं करोति तस्य किं
भवति णियमें पाउ हवेइ तसु नियमेन पापं भवति तस्य येन पापबन्धेन किं भवति
जें संसारु भमेइ येन पापेन संसारं भ्रमतीति तद्यथा निजपरमात्मपदार्थोपलम्भरुचिरूपं
निश्चयसम्यक्त्वकारणस्य तत्त्वार्थश्रद्धानरूपव्यवहारसम्यक्त्वस्य विषयभूतानां देवशास्त्रयतीनां
योऽसौ निन्दां करोति स मिथ्या
द्रष्टिर्भवति मिथ्यात्वेन पापं बध्नाति, पापेन चतुर्गतिसंसारं
भ्रमतीति भावार्थः ।।६२।।
अथ पूर्वसूत्र द्वयोक्तं पुण्यपापफलं दर्शयति
१९०) पावेँ णारउ तिरिउ जिउ पुएणेँ अमरु वियाणु
मिस्सेँ माणुस-गइ लहइ दोहि वि खइ णिव्वाणु ।।६३।।
पापेन नारकः तिर्यग् जीवः पुण्येनामरो विजानीहि
मिश्रेण मनुष्यगतिं लभते द्वयोरपि क्षये निर्वाणम् ।।६३।।
पावें इत्यादि पावें पापेन णारउ तिरिउ नारको भवति तिर्यग्भवति कोऽसौ जिउ
अधिकार-२ः दोहा-६३ ]परमात्मप्रकाशः [ ३२३
तत्त्वार्थश्रद्धानरूप व्यवहारसम्यक्त्व, उसके मूल अरहंत देव, निर्ग्रन्थ गुरु, और दयामयी धर्म,
इन तीनोंकी जो निंदा करता है, वह मिथ्यादृष्टि होता है
वह मिथ्यात्वका महान् पाप बाँधता
है उस पापसे चतुर्गति संसारमें भ्रमता है ।।६२।।
आगे पहले दो सूत्रोंमें कहे गये पुण्य और पाप फल हैं, उनको दिखाते हैं
गाथा६३
अन्वयार्थ :[जीवः ] यह जीव [पापेन ] पापके उदयसे [नारकः तिर्यग् ]
नरकगति और तिर्यंचगति पाता है, [पुण्येन ] पुण्यसे [अमरः ] देव होता है, [मिश्रेण ] पुण्य
और पाप दोनोंके मेलसे [मनुष्यगतिं ] मनुष्यगतिको [लभते ] पाता है, और [द्वयोरपि क्षये ]
पुण्य-पाप दोनोंके ही नाश होनेसे [निर्वाणम् ] मोक्षको पाता है, ऐसा [विजानीहि ] जानो
भावार्थ :सहज शुद्ध ज्ञानानंद स्वभाव जो परमात्मा है, उससे विपरीत जो पापकर्म
तत्त्वार्थ श्रद्धानरूप व्यवहारसम्यक्त्वना विषयभूत देव, शास्त्र अने यतिनी जे निंदा करे छे ते
मिथ्याद्रष्टि छे. मिथ्यात्वथी ते पाप बांधे छे. पापथी ते चारगतिरूप संसारमां भमे छे. ६२.
हवे, पूर्वना बे सूत्रोमां कहेला पुण्य अने पापनुं फळ दर्शावे छेः
भावार्थःसहज शुद्ध ज्ञानानंद ज जेनो एक स्वभाव छे एवा परमात्माथी विपरीत