Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 64 (Adhikar 2).

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लोचनां त्यजन्तीति त्रिकलेन कथयति
१९१) वंदणु णिंदणु पडिकमणु पुण्णहँ कारणु जेण
करइ करावइ अणमणइ एक्कु वि णाणिण तेण ।।६४।।
वन्दनं निन्दनं प्रतिक्रमणं पुण्यस्य कारणं येन
करोति कारयति अनुमन्यते एकमपि ज्ञानी न तेन ।।६४।।
वंदणु इत्यादि वंदणु णिंदणु पडिकमणु वन्दननिन्दनप्रतिक्रमणत्रयम् किं विशिष्टम्
पुण्णहं कारणु पुण्यस्य कारणं जेण येन कारणेन करइ करावइ अणुमणइ करोति कारयति
अनुमोदयति,
एक्कु वि एकमपि, णाणि ण तेण ज्ञानी पुरुषो न तेन कारणेनेति
तथाहि
अधिकार-२ः दोहा-६४ ]परमात्मप्रकाशः [ ३२५
उसमें ठहरकर व्यवहारप्रतिक्रमण, व्यवहारप्रत्याख्यान और व्यवहार आलोचनारूप शुभोपयोगको
छोड़े, ऐसा कहते हैं
गाथा६४
अन्वयार्थ :[वंदनं ] पंचपरमेष्ठीकी वंदना, [निंदनं ] अपने अशुभ कर्मकी निंदा,
और [प्रतिक्रमणं ] अपराधोंकी प्रायश्चित्तादि विधिसे निवृत्ति, ये सब [येन पुण्यस्य कारणं ]
जो पुण्यके कारण हैं, मोक्षके कारण नहीं हैं, [तेन ] इसीलिये पहली अवस्थामें पापके दूर
करनेके लिये ज्ञानी पुरुष इनको करता है, कराता है, और करते हुएको भला जानता है तो
भी निर्विकल्प शुद्धोपयोग अवस्थामें [ज्ञानी ] ज्ञानी जीव [एकमपि ] इन तीनोंमेंसे एक भी
[न करोति ] न तो करता है, [कारयति ] न कराता है, और न [अनुमन्यते ] करते हुए को
भला जानता है
भावार्थ :केवल शुद्ध स्वरूपमें जिसका चित्त लगा हुआ है, ऐसा निर्विकल्प
परमात्मतत्त्वकी भावनाके बलसे देखे, सुने और अनुभव किये भोगोंकी वाँछारूप जो
भूतकालके रागादि दोष उनका दूर करना वह निश्चयप्रतिक्रमण; वीतराग चिदानन्द शुद्धात्माकी
थईने व्यवहारप्रतिक्रमण, व्यवहारप्रत्याख्यान अने व्यवहारआलोचनाने छोडे छे, एम त्रण गाथा
द्वारा कहे छेः
भावार्थशुद्ध निर्विकल्प परमात्मतत्त्वनी भावनाना बळथी देखेला, सांभळेला अने
अनुभवेला भोगोनी आकांक्षाना स्मरणरूप अतीतकाळना रागादिदोषोनुं निराकरण करवुं ते
निश्चय प्रतिक्रमण छे, एक (केवळ) वीतराग चिदानंदनी अनुभूतिनी भावनाना बळथी