Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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शुद्धनिर्विकल्पपरमात्मतत्त्वभावनाबलेन द्रष्टश्रुतानुभूतभोगाकांक्षास्मरणरूपाणामतीतरागादिदोषाणां
निराकरणं निश्चयप्रतिक्रमणं भवति, वीतरागचिदानन्दैकानुभूतिभावनाबलेन भाविभोगाकांक्षा-
रूपाणां रागादिनां त्यजनं निश्चयप्रत्याख्यानं भण्यते, निजशुद्धात्मोपलम्भबलेन वर्तमानोदयागत-
शुभाशुभनिमित्तानां हर्षविषादादिपरिणामानां निजशुद्धात्मद्रव्यात् पृथक्करणं निश्चयालोचनमिति
इत्थंभूते निश्चयप्रतिक्रमणप्रत्याख्यानालोचनत्रये स्थित्वा योऽसौ व्यवहारप्रतिक्रमणप्रत्याख्याना-
लोचनत्रयं तन्त्रयानुकूलं वन्दननिन्दनादिशुभोपयोगं च त्यजन् स ज्ञानी भण्यते न चान्य इति
भावार्थः
।।६४।।
अथ
३२६ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-६४
अनुभूतिकी भावनाके बलसे होनेवाले भोगोंकी वाँछारूप रागादिकका त्याग वह
निश्चयप्रत्याख्यान,
और निज शुद्धात्माकी प्राप्तिके बलसे वर्तमान उदयमें आये जो शुभ-अशुभके
कारण हर्ष-विषादादि अशुद्ध परिणाम उनको निज शुद्धात्मद्रव्यसे जुदा करना वह
निश्चयआलोचन
; इस तरह निश्चयप्रतिक्रमण प्रत्याख्यान और आलोचनामें ठहरकर जो कोई
व्यवहारप्रतिक्रमण, व्यवहारप्रत्याख्यान, व्यवहारआलोचना, इन तीनोंके अनुकूल वन्दना, निंदा
आदि शुभोपयोग है, उनको छोड़ता है वही ज्ञानी कहा जाता है, अन्य नहीं
सारांश यह है
कि ज्ञानी जीव पहले तो अशुभको त्यागकर शुभमें प्रवृत्त होता है, बाद शुभको भी छोड़के
शुद्धमें लग जाता है
पहले किये हुए अशुभ कर्मोंकी निवृत्ति वह व्यवहारप्रतिक्रमण,
अशुभपरिणाम होनेवाले हैं, उनका रोकना वह व्यवहारप्रत्याख्यान, और वर्तमानकालमें शुभकी
प्रवृत्ति अशुभकी निवृत्ति वह व्यवहारआलोचन है
व्यवहारमें तो अशुभका त्याग शुभका
अंगीकार होता है, और निश्चयमें शुभ-अशुभ दोनोंका ही त्याग होता है ।।६४।।
आगे इसी कथनको दृढ़ करते हैं
भविष्यकाळना भोगोनी आकांक्षारूप रागादिनो त्याग करवो ते निश्चयप्रत्याख्यान छे अने
निजशुद्धात्मानी प्राप्तिना बळथी वर्तमान उदयमां आवेलां शुभाशुभ कर्मो जेमना निमित्त होय
छे, एवा हर्षविषाद आदि परिणामोने निजशुद्धआत्मद्रव्यथी जुदा करवा ते निश्चय आलोचना
छे.
आवा निश्चयप्रतिक्रमण, निश्चयप्रत्याख्यान अने निश्चयआलोचना ए त्रणेमां स्थिर थईने
जे व्यवहारप्रतिक्रमण, व्यवहारप्रत्याख्यान अने व्यवहार आलोचना ए त्रणेय तथा ए त्रणने
अनुकूळ एवा वंदना, निंदा आदि शुभोपयोगने छोडे छे ते ज्ञानी छे, पण बीजो कोई ज्ञानी
नथी, एवो भावार्थ छे. ६४.
हवे, आ कथनने द्रढ करे छेः