३३४ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-२ः दोहा-६८
ज्ञान, चारित्र इन तीनोंको धर्म कहा है । जिस धर्मके ये ऊ पर कहे गये लक्षण हैं, वह राग,
द्वेष, मोह रहित परिणाम – धर्म है, वह जीवका स्वभाव ही है, क्योंकि वस्तुका स्वभाव ही धर्म
है । ऐसा दूसरी जगह भी ‘‘धम्मो’’ इत्यादि गाथासे कहा है, कि जो आत्म – वस्तुका स्वभाव
है, वह धर्म है, उत्तम क्षमादि भावरूप दस प्रकारका धर्म है, रत्नत्रय धर्म है, और जीवोंकी
रक्षा यह धर्म है । यह जिनभाषित धर्म चतुर्गतिके दुःखोंमें पड़ते हुए जीवोंको उद्धारता है । यहाँ
शिष्यने प्रश्न किया, कि जो पहले दोहेमें तो तुमने शुद्धोपयोगमें संयमादि सब गुण कहे, और
यहाँ आत्माका शुद्ध परिणाम ही धर्म कहा है, उसमें धर्म पाये जाते हैं, तो पहले दोहेमें और
इसमें क्या भेद है ? उसका समाधान — पहले दोहेमें तो शुद्धोपयोग मुख्य कहा था, और इस
दोहेमें धर्म मुख्य कहा है । शुद्धोपयोगका ही नाम धर्म है, तथा धर्मका नाम ही शुद्धोपयोग
है । शब्दका भेद है, अर्थका भेद नहीं है । दोनोंका तात्पर्य एक है । इसलिए सब तरह शुद्ध
परिणामो धर्मः सोऽपि जीवशुद्धस्वभाव एव । वस्तुस्वभावो धर्मः । सोऽपि तथैव । तथा
चोक्त म् — ‘‘धम्मो वत्थुसहावो’’ इत्यादि । एवंगुणविशिष्टो धर्मश्चतुर्गतिदुःखेषु पतन्तं जीवं
धरतीति धर्मः । अत्राह शिष्यः । पूर्वसूत्रे भणितं शुद्धोपयोगमध्ये संयमादयः सर्वे गुणा
लभ्यन्ते । अत्र तु भणितमात्मनः शुद्धपरिणाम एव धर्मः, तत्र सर्वे धर्माश्च लभ्यन्ते ।
को विशेषः । परिहारमाह । तत्र शुद्धोपयोगसंज्ञा मुख्या, अत्र तु धर्मसंज्ञा मुख्या एतावान्
विशेषः । तात्पर्यं तदेव । तेन कारणेन सर्वप्रकारेण शुद्धपरिणाम एव कर्तव्य इति
भावार्थः ।।६८।।
(रत्नकरंड श्रावकाचार गाथा ३) अर्थः — जिनेन्द्रदेव सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने
सम्यग्चारित्रने धर्म कहे छे ए रीते जे धर्मनुं स्वरूप कहेवामां आव्युं ते पण ते प्रमाणे
(जीवनो शुद्ध भाव) रागद्वेषमोहरहित परिणाम धर्म छे ते पण जीवनो शुद्ध स्वभाव ज
छे. वस्तुनो स्वभाव ते धर्म छे ते पण ते प्रमाणे (जीवनो शुद्ध भाव) छे. कह्युं पण छे.
‘‘धम्मो वत्थुसहावो’’ इत्यादि (कार्तिकेयानुप्रेक्षा ४७६) वस्तुनो स्वभाव ते धर्म
छे वगेरे आवा गुणोथी विशिष्ट एवो जे धर्म चारगतिना दुःखोमां पडता जीवोने धारी राखे
छे, ते धर्म छे.
अहीं, शिष्य प्रश्न करे छे के आपे पूर्वसूत्रमां एम कह्युं के शुद्धोपयोगनी अंदर
संयमादि बधा गुणो आवी जाय छे अने अहीं आपे एम कह्युं के आत्मानो शुद्ध
परिणाम ज धर्म छे अने तेमां सर्व धर्मो आवी जाय छे तो बन्नेमां शी विशेषता छे?
तेनुं समाधाान कहे छेः — त्यां शुद्धोपयोगसंज्ञा मुख्य छे अने अहीं धर्मसंज्ञा
मुख्य छे, एटली ज विशेषता छे. बन्नेनुं तात्पर्य ते ज छे (बन्नेनुं तात्पर्य एक सरखुं