अधिकार-२ः दोहा-६९ ]परमात्मप्रकाशः [ ३३५
परिणाम ही कर्तव्य है, वही धर्म है ।।६८।।
आगे शुद्ध भाव ही मोक्षका मार्ग है, ऐसा दिखलाते हैं —
गाथा – ६९
अन्वयार्थ : — [सिद्धेः संबंधी ] मुक्तिका [पंथाः ] मार्ग [एकः विशुद्धः भावः ] एक
शुद्ध भाव ही है । [यः मुनिः ] जो मुनि [तस्मात् भावात् ] उस शुद्ध भावसे [चलति ]
चलायमान हो जावे, तो [सः ] वह [कथं ] कैसे [विमुक्तः ] मुक्त [भवति ] हो सकता है ?
किसी प्रकार नहीं हो सकता ।
भावार्थ : — जो समस्त शुभाशुभ संकल्प-विकल्पोंसे रहित जीवका शुद्ध भाव है, वही
निश्चयरत्नत्रयस्वरूप मोक्षका मार्ग है । जो मुनि शुद्धात्म परिणामसे च्युत हो जावे, वह किस
तरह मोक्षको पा सकता है ? नहीं पा सकता । मोक्षका मार्ग एक शुद्ध भाव ही है, इसलिये
अथ विशुद्धभाव एव मोक्षमार्ग इति दर्शयति —
१९६) सिद्धिहिँ केरा पंथडा भाउ विसुद्धउ एक्कु ।
जो तसु भावहँ मुणि चलइ सो किम होइ विमुक्कु ।।६९।।
सिद्वेः संबन्धो पन्थाः भावो विशुद्ध एकः ।
यः तस्माद्भावात् मुनिश्चलति स कथं भवति विमुक्त : ।।६९।।
सिद्धिहिं इत्यादि । सिद्धिहिं केरा सिद्धेर्मुक्तेः संबन्धी पंथडा पन्था मार्गः । कोऽसौ ।
भाउ भावः परिणामः कथंभूतः । विसुद्धउ विशुद्धः एक्कु एक एवाद्वितीयः । जो तसु भावहं
मुणि चलइ यस्तस्माद्भावान्मुनिश्चलति । सो किम् होइ विमुक्कु स मुनिः कथं मुक्तो भवति
न कथमपीति । तद्यथा । योऽसौ समस्तशुभाशुभसंकल्पविकल्परहितो जीवस्य शुद्धभावः स एव
निश्चयरत्नत्रयात्मको मोक्षमार्गः । यस्तस्मात् शुद्धात्मपरिणामान्मुनिश्च्युतो भवति स कथं मोक्षं
ज छे) तेथी सर्व प्रकारे शुद्ध परिणाम ज कर्तव्य छे. एवो भावार्थ छे. ६८.
हवे, विशुद्ध भाव ज मोक्षमार्ग छे, एम दर्शावे छेः —
भावार्थः — जीवनो जे समस्त शुभाशुभ संकल्पविकल्परहित शुद्धभाव छे ते ज
निश्चयरत्नत्रयात्मक मोक्षमार्ग छे. तेथी शुद्धआत्मपरिणामथी जे मुनि च्युत थाय छे ते केवी रीते
मोक्ष पामे? अर्थात् न ज पामे.