Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 73 (Adhikar 2).

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अधिकार-२ः दोहा-७२ ]परमात्मप्रकाशः [ ३४१
एवेति अत्राह प्रभाकरभट्टः हे भगवान् यदि विज्ञानमात्रेण मोक्षो भवति तर्हि सांख्यादयो
वदन्ति ज्ञानमात्रादेव मोक्षः तेषां किमिति दूषणं दीयते भवद्भिरिति भगवानाह अत्र
वीतरागनिर्विकल्पस्वसंवेदनसम्यग्ज्ञानमिति भणितं तिष्ठति तेन वीतरागविशेषणेन चारित्रं
लभ्यते सम्यग्विशेषणेन सम्यक्त्वमपि लभ्यते पानकवदेकस्यापि मध्ये त्रयमस्ति
तेषां मते
तु वीतरागविशेषणं नास्ति सम्यग्विशेषणं च नास्ति ज्ञानमात्रमेव तेन दूषणं भवतीति
भावार्थः ।।७२।।
अथ तमेवार्थं विपक्षदूषणद्वारेण द्रढयति
२००) देउ णिरंजणु इउँ भणइ णाणिं मुक्खु ण भंति
णाण-विहीणा जीवडा चिरु संसारु भमंति ।।७३।।
अहीं, प्रभाकर भट्ट पूछे छे के हे भगवान! जो ज्ञानमात्रथी मोक्ष थाय छे तो पछी
सांख्यादि पण कहे छे केज्ञानमात्रथी ज मोक्ष थाय छे. ‘तेमने’ आप शा माटे दूषण आपो
छो?
भगवान श्रीयोगीन्द्रदेव कहे छे केअहीं ‘वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदनरूप
सम्यग्ज्ञान’ एम कहेल छे; तेथी त्यां ‘वीतराग’ विशेषणथी चारित्र पण आवी जाय छे,
‘सम्यग्’ विशेषणथी सम्यक्त्व आवी जाय छे. जेवी रीते एक पानकमां (पीणामां) अनेक
पदार्थो आवी जाय छे तेवी रीते (वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदनरूप ज्ञान कहेवाथी) एकनी
अंदर त्रणेय आवी जाय छे. पण तेमना मतमां ‘वीतराग’ विशेषण नथी अने सम्यक्
विशेषण नथी’ ‘ज्ञानमात्र’ ज छे (‘ज्ञानमात्र’ ज एटलुं ज कहे छे) तेथी तेमां दूषण
आवे छे, एवो भावार्थ छे. ७२.
हवे, विपक्षीने दूषण आपीने ते ज अर्थने द्रढ करे छेः
सम्यग्ज्ञान कहा गया है, सो वीतराग कहनेसे वीतरागचारित्र भी आ जाता है, और सम्यक् पदके
कहनेसे सम्यक्त्व भी आ जाता है
जैसे एक चूर्णमें अथवा पाकमें अनेक औषधियाँ आ जाती
हैं, परन्तु वस्तु एक ही कहलाती है, उसी तरह वीतरागनिर्विकल्प स्वसंवेदनज्ञानके कहनेसे
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र ये तीनों आ जाते हैं
सांख्यादिकके मतमें वीतराग विशेषण नहीं है,
और सम्यक् विशेषण नहीं है, केवल ज्ञानमात्र ही कहते हैं, सो वह मिथ्याज्ञान है, इसलिये
दूषण देते हैं, यह जानना
।।७२।।
आगे इसी अर्थको, विपक्षीको दूषण देकर दृढ़ करते हैं