Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 84 (Adhikar 2).

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अधिकार-२ः दोहा-८४ ]परमात्मप्रकाशः [ ३५७
अथ बोधार्थं शास्त्रं पठन्नपि यस्य विशुद्धात्मप्रतीतिलक्षणो बोधो नास्ति स मूढो भवतीति
प्रतिपादयति
२११) बोह-णिमित्तेँ सत्थु किल लोइ पढिज्जइ इत्थु
तेण वि बोहु ण जासु वरु सो किं मूढु ण तत्थु ।।८४।।
बोधनिमित्तेन शास्त्रं किल लोके पठयते अत्र
तेनापि बोधो न यस्य वरः स किं मूढो न तथ्यम् ।।८४।।
बोह इत्यादि बोधनिमित्तेन किल शास्त्रं लोके पठयते अत्र तेनैव कारणेन
बोधो न यस्य कथंभूतः वरो विशिष्टः स किं मूढो न भवति किंतु भवत्येव
तथ्यमिति तद्यथा अत्र यद्यपि लोकव्यवहारेण कविगमकवादित्ववाग्मित्वादिलक्षणशास्त्र-
जनितो बोधो भण्यते तथापि निश्चयेन परमात्मप्रकाशकाध्यात्मशास्त्रोत्पन्नो वीतरागस्व-
हवे, बोधार्थे....(ज्ञान माटे) शास्त्र भणीने पण जेने विशुद्ध आत्मानी प्रतीतिस्वरूप
बोध थतो नथी ते मूढ छे, एम कहे छेः
भावार्थअहीं जो के लोकव्यवहारथी (नवीन कविताना करनार) कवि, (प्राचीन
काव्योनी टीकाना करनार) गमक, (जेने वादमां कोई न जीती शके एवुं) वादित्व, अने
(श्रोताओना मनने रंजक करनार एवा शास्त्रवक्ता होवा रूप) वाग्मित्व, इत्यादि लक्षणवाळुं
शास्त्रजनित ज्ञान कहेवाय छे तोपण निश्चयनयथी परमात्मस्वरूपना प्रकाशक अध्यात्मशास्त्रथी
आगे ज्ञानके लिए शास्त्रको पढ़ते हुए भी जिसके आत्म - ज्ञान नहीं, वह मूर्ख है, ऐसा
कथन करते हैं
गाथा८४
अन्वयार्थ :[अत्र लोके ] इस लोकमें [किल ] नियमसे [बोधनिमित्तेन ] ज्ञानके
निमित्त [शास्त्रं ] शास्त्र [पठ्यते ] पढ़े जाते हैं, [तेनापि ] परंतु शास्त्रके पढ़नेसे भी [यस्य ]
जिसको [वरः बोधः न ] उत्तम ज्ञान नहीं हुआ, [स ] वह [किं ] क्या [मूढः न ] मूर्ख नहीं
है ? [तथ्यम् ] मूर्ख ही है, इसमें संदेह नहीं
भावार्थ :इस लोकमें यद्यपि लोक व्यवहारसे नवीन कविताका कर्ता कवि,
प्राचीन काव्योंकी टीकाके कर्त्ताको गमक, जिससे वादमें कोई न जीत सके ऐसा वादित्व,
और श्रोताओं के मनको अनुरागी करनेवाला शास्त्रका वक्ता होनेरूप वाग्मित्व, इत्यादि
लक्षणोंवाला शास्त्रजनित ज्ञान होता है, तो भी निश्चयनयसे वीतरागस्वसंवेदनरूप ही ज्ञानकी