Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 109 (Adhikar 2).

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अधिकार-२ः दोहा-१०९ ]परमात्मप्रकाशः [ ३९९
अथ तमेव परद्रव्यसंसर्गं त्यागं कथयति
२३६) जो समभावहँ बाहिरउ तिं सहुं मं करि संगु
चिंता-सायरि पडहि पर अण्णु वि डज्झइ अंगु ।।१०९।।
यः समभावाद् बाह्यः तेन सह मा कुरु संगम्
चिंतासागरे पतसि परं अन्यदपि दह्यते अङ्गः ।।१०९।।
यो इत्यादि जो यः कोऽपि सम-भावहं बाहिरउ जीवितमरणलाभालाभादि
समभावानुकूलविशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावज्ञानपरमात्मद्रव्यसम्यक्श्रद्धानज्ञाननुष्ठानरूपसमभावबाह्यः
तिं सहुं मं करि संगु तेन सह संसर्गं मा कुरु हे आत्मन् यतः किम् चिंता-सायरि पडहि
रागद्वेषादिकल्लोलरूपे चिन्तासमुद्रे पतसि पर परं नियमेन अण्णु वि अन्यदपि दूषणं
भवति किम् डज्झइ दह्यते व्याकुलं भवति किं दह्यते अंगु शरीरं इति अयमत्र
हवे, ते ज परद्रव्यना संसर्गने छोडवानुं कहे छेः
भावार्थजे कोई जीवित-मरण, लाभ-अलाभ आदिमां समभावने अनुकूळ
विशुद्धज्ञान अने विशुद्धदर्शन जेनो स्वभाव छे एवा परमात्मद्रव्यनां सम्यक्श्रद्धान, सम्यग्ज्ञान
अने सम्यग्-अनुष्ठानरूप समभावथी बाह्य (रहित) छे तेनी साथे हे आत्मा! तुं संसर्ग न कर;
कारण के तेनी साथे संसर्ग करवाथी तुं रागद्वेषादिना कल्लोलरूप चिंतासमुद्रमां पडीश. वळी, बीजुं
दूषण ए आवशे के शरीर पण नियमथी बळशे-व्याकुळ थशे.
आगे उन्हीं परद्रव्योंके संबंधको फि र छुड़ानेका कथन करते हैं
गाथा१०९
अन्वयार्थ :[यः ] जो कोई [समभावात् ] समभाव अर्थात् निजभावसे [बाह्य ]
बाह्य पदार्थ हैं, [तेन सह ] उनके साथ [संगम् ] संग [मा कुरु ] मत कर क्योंकि उनके
साथ संग करनेसे [चिंतासागरे ] चिंतारूपी समुद्रमें [पतसि ] पड़ेगा, [परं ] केवल
[अन्यदपि ] और भी [अंगः ] शरीर [दह्यते ] दाहको प्राप्त होगा, अर्थात् अंदरसे जलता रहेगा
भावार्थ :जो कोई जीवित, मरण, लाभ, अलाभादिमें तुल्यभाव उसके संमुख जो
निर्मल ज्ञान दर्शन स्वभाव परमात्म द्रव्य उसका सम्यक् श्रद्धान ज्ञान आचरणरूप निजभाव
उसरूप समभावसे जो जुदे पदार्थ हैं, उनका संग छोड़ दे
क्योंकि उनके संगसे चिंतारूपी
समुद्रमें गिर पड़ेगा जो समुद्र राग-द्वेषरूपी कल्लोलोंसे व्याकुल है उनके संगसे मनमें चिंता