भावार्थः — हरि, हर, हिरण्यगर्भ वगेरे संकल्परूप चित्तने वीतराग निर्विकल्प
नित्यानंद जेनो एक स्वभाव छे एवा परमात्मारूपे राखीने, परिषह, उपसर्गथी अक्षुभित राखीने
त्रण लोकथी वंदित अने केवळज्ञानादि व्यक्तिरूप सिद्धपणाने प्राप्त जे परमात्माने ध्यावे छे ते
परमात्माने हे प्रभाकरभट्ट! तुं परमात्मा जाण अर्थात् भाव.
अहीं केवळज्ञानादि व्यक्तिरूप मुक्तिगत परमात्मा जेवो रागादिथी रहित स्वशुद्ध आत्मा
साक्षात् उपादेय छे एवो भावार्थ छे. १६.
संकल्पविकल्पनुं स्वरूप कहेवामां आवे छे. ते आ प्रमाणेः — पुत्र, स्त्री, आदि चेतन अने
(सोनुं, चांदी आदि) अचेतन बाह्य द्रव्यो ‘आ मारां छे’ एवा स्वरूपवाळो (एवा ममत्वरूप
परिणाम ते) संकल्प छे, ‘हुं सुखी, हुं दुःखी,’ इत्यादि चित्तगत हर्षविषाद आदि परिणाम ते
विकल्प छे. ए प्रमाणे संकल्पविकल्पनुं स्वरूप सर्वत्र जाणवुं.
तिहुयणवंदिउ सिद्धिगउ हरिहर झायहिं जो जि त्रिभुवनवन्दितं सिद्धिगतं यं
केवलज्ञानादिव्यक्ति रूपं परमात्मानं हरिहरहिरण्यगर्भादयो ध्यायन्ति । किं कृत्वा पूर्वम् । लक्खु
अलक्खें धरिवि थिरु लक्ष्यं संकल्परूपं चित्तम् । अलक्ष्येण वीतरागनिर्विकल्पनित्यानन्दैक-
स्वभावपरमात्मरूपेण धृत्वा । कथंभूतम् । स्थिरं परीषहोपसर्गैरक्षुभितं मुणि परमप्पउ सो जि
तमित्थंभूतं परमात्मानं हे प्रभाकरभट्ट मन्यस्व जानीहि भावयेत्यर्थः । अत्र केवलज्ञानादि-
व्यक्ति रूपमुक्ति गतपरमात्मसद्रशो रागादिरहितः स्वशुद्धात्मा साक्षादुपादेय इति भावार्थः ।।१६।।
संकल्पविकल्पस्वरूपं कथयते । तद्यथा — बहिर्द्रव्यविषये पुत्रकलत्रादिचेतनाचेतनरूपे ममेदमिति
स्वरूपः संकल्पः, अहं सुखी दुःखीत्यादिचित्तगतो हर्ष- विषादादिपरिणामो विकल्प इति । एवं
संक ल्पविकल्पलक्षणं सर्वत्र ज्ञातव्यम् ।
अधिकार-१ः दोहा-१६ ]परमात्मप्रकाशः [ ४१
अपने मनको [अलक्ष्ये ] वीतराग निर्विकल्प नित्यानंद स्वभाव परमात्मामें [स्थिरं धृत्वा ] स्थिर
करके [तमेव ] उसीको हे प्रभाकरभट्ट, तू [परमात्मानं ] परमात्मा [मन्यस्व ] जान कर
चिंतवन कर ।
भावार्थ : — केवलज्ञानादिरूप उस परमात्माके समान रागादि रहित अपने शुद्धात्माको
पहचान, वही साक्षात् उपादेय है, अन्य सब संकल्प विकल्प त्यागने योग्य हैं । अब संकल्प
विकल्पका स्वरूप कहते हैं, कि जो बाह्यवस्तु पुत्र, स्त्री, कुटुंब, बांधव, आदि सचेतन पदार्थ,
तथा चांदी, सोना, रत्न, मणिके आभूषण आदि अचेतन पदार्थ हैं, इन सबको अपने समझे, कि
ये मेरे हैं, ऐसे ममत्व परिणामको संकल्प जानना । तथा मैं सुखी, मैं दुःखी, इत्यादि हर्ष-विषादरूप
परिणाम होना वह विकल्प है । इस प्रकार संकल्प-विकल्पका स्वरूप जानना चाहिए ।।१६।।