Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 17 (Adhikar 1) Paramatmanu Swaroop.

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हवे नित्य, निरंजन, ज्ञानमय, परमानंद स्वभावरूप शांत शिवस्वरूपने दर्शावतां कहे
छेः
भावार्थःद्रव्यार्थिकनयथी अविनश्वर, रागादिकर्ममळरूप अंजनथी रहित होवाथी
निरंजन, केवळज्ञानथी रचायेल होवाथी ज्ञानमय, शुद्ध आत्मभावनाथी उत्पन्न वीतराग
आनंदरूपे परिणमेला होवाथी परमानंदस्वभावी
एवा जे छे ते शांत अने शिव छे. हे
प्रभाकरभट्ट! जे वीतराग होवाथी शांत छे अने परमानंदरूप सुखमय होवाथी शिवस्वरूप
छे. तेवा एक (केवळ) शुद्धबुद्ध स्वभावने तुं जाण अर्थात् शुद्धबुद्ध स्वभावने जाण ए
अभिप्राय छे. १७.
अथ नित्यनिरञ्जनज्ञानमयपरमानन्दस्वभावशान्तशिवस्वरूपं दर्शयन्नाह
१७) णिच्चु णिरंजणु णाणमउ परमाणंदसहाउ
जो एहउ सो संतु सिउ तासु मुणिज्जहि भाउ ।।१७।।
नित्यो निरञ्जनो ज्ञानमयः परमानन्दस्वभावः
य ईद्रशः स शान्तः शिवः तस्य मन्यस्व भावम् ।।१७।।
णिच्चु णिरंजणु णाणमउ परमाणंदसहाउ द्रव्यार्थिकनयेन नित्योऽविनश्वरः, रागादिकर्म-
मलरूपाञ्जनरहितत्वान्निरञ्जनः, केवलज्ञानेन निर्वृत्तत्वात् ज्ञानमयः, शुद्धात्मभावनोत्थ-
वीतरागानन्दपरिणतत्वात्परमानन्दस्वभावः
जो एहउ सो संतु सिउ य इत्थंभूतः स शान्तः शिवो
भवति हे प्रभाकरभट्ट तासु मुणिज्जहि भाउ तस्य वीतरागत्वात् शान्तस्य परमानन्दसुखमयत्वात्
शिवस्वरूपस्य त्वं जानीहि भावय
कं भावय शुद्धबुद्धैकस्वभावमित्यभिप्रायः ।।१७।।
४२ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-१ः दोहा-१७
आगे नित्य निरंजन ज्ञानमयी परमानंदस्वभाव शांत और शिवस्वरूपका वर्णन करते हैं
गाथा१७
अन्वयार्थ :[नित्यः ] द्रव्यार्थिकनयकर अविनाशी [निरञ्जनः ] रागादिक उपाधिसे
रहित अथवा कर्ममलरूपी अंजनसे रहित [ज्ञानमयः ] केवलज्ञानसे परिपूर्ण और
[परमानंदस्वभावः ] शुद्धात्म भावना कर उत्पन्न हुए वीतराग परमानंदकर परिणत है, [यः
द्रशः ] जो ऐसा है, [सः ] वही [शान्तः शिवः ] शांतरूप और शिवस्वरूप है, [तस्य ] उसी
परमात्माका [भावं ] शुद्ध बुद्ध स्वभाव [जानीहि ] हे प्रभाकरभट्ट, तू जान अर्थात् ध्यान
कर
।।१७।।