Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-98 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
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380 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-98
शुद्धात्मनः स्वरूपं तदेवोपादेयमिति तात्पर्यम् ।।९७।।
अथ जीवानां ज्ञानदर्शनलक्षणं प्रतिपादयति
२२५) जीवहँ लक्खणु जिणवरहि भासिउ दंसण-णाणु
तेण ण किज्जइ भेउ तहँ जइ मणि जाउ विहाणु ।।९८।।
जीवानां लक्षणं जिनवरैः भाषितं दर्शनं ज्ञानं
तेन न क्रियते भेदः तेषां यदि मनसि जातो विभातः ।।९८।।
जीवहं इत्यादि जीवहं लक्खणु जिणवरहिं भासिउ दंसण-णाणु यद्यपि व्यवहारेण
संसारावस्थायां मत्यादिज्ञानं चक्षुरादिदर्शनं जीवानां लक्षणं भवति तथापि निश्चयेन केवलदर्शनं
केवलज्ञानं च लक्षणं भाषितम्
कैः जिनवरैः तेण ण किञ्जइ भेउ तहँ तेन कारणेन
व्यवहारेण देहभेदेऽपि केवलज्ञानदर्शनरूपनिश्चयलक्षणेन तेषां न क्रियते भेदः यदि किम् जइ
ahI.n, shuddhAtmAnu.n je svarUp kahyu.n Che te ja upAdey Che, evu.n tAtparya Che. 97.
have, j~nAnadarshan jIvonu.n lakShaN Che, em kahe Che :
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जीव गुणोंकर समान हैं ऐसा जो शुद्ध आत्माका स्वरूप है, वही ध्यान करने योग्य है ।।९७।।
आगे जीवोंका ज्ञानदर्शन लक्षण कहते हैं
गाथा९८
अन्वयार्थ :[जीवानां लक्षणं ] जीवोंका लक्षण [जिनवरैः ] जिनेंद्रदेवने [दर्शनं
ज्ञानं ] दर्शन और ज्ञान [भाषितं ] कहा है, [तेन ] इसलिए [तेषां ] उन जीवोंमें [भेदः ] भेद
[न क्रियते ] मत कर, [यदि ] अगर [मनसि ] तेरे मनमें [विभातः जातः ] ज्ञानरूपी सूर्यका
उदय हो गया है, अर्थात् हे शिष्य, तू सबको समान जान
भावार्थ :यद्यपि व्यवहारनयसे संसारीअवस्थामें मत्यादि ज्ञान, और चक्षुरादि दर्शन
जीवके लक्षण कहे हैं, तो भी निश्चयनयकरकेवलदर्शन केवलज्ञान ये ही लक्षण हैं, ऐसा
जिनेंद्रदेवने वर्णन किया है इसलिये व्यवहारनयकर देहभेदसे भी भेद नहीं है,
केवलज्ञानदर्शनरूप निजलक्षणकर सब समान हैं, कोई भी बड़ा-छोटा नहीं है जो तेरे मनमें