Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-99 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
adhikAr-2 : dohA-98 ]paramAtmaprakAsh: [ 381
मणि जाउ विहाणु यदि चेन्मनसि वीतरागनिर्विकल्पस्वसंवेदनज्ञानादित्योदयेन जातः कोऽसौ
प्रभातसमय इति अत्र यद्यपि षोडशवर्णिकालक्षणं बहूनां सुवर्णानां मध्ये समानं
तथाप्येकस्मिन् सुवर्णे गृहीते शेषसुवर्णानि सहैव नायान्ति कस्मात् भिन्नभिन्नप्रदेशत्वात् तथा
यद्यपि केवलज्ञानदर्शनलक्षणं समानं सर्वजीवानां तथाप्येकस्मिन् विवक्षितजीवे पृथक्कृते शेषजीवा
सहैव नायान्ति
कस्मात् भिन्नभिन्नप्रदेशत्वात् तेन कारणेन ज्ञायते यद्यपि
केवलज्ञानदर्शनलक्षणं समानं तथापि प्रदेशभेदोऽस्तीति भावार्थः ।।९८।।
अथ शुद्धात्मनां जीवजातिरूपेणैकत्वं दर्शयति
२२६) बंभहँ भुवणि वसंताहँ जे णवि भेउ करंति
ते परमप्पपयासयर जोइय विमलु मुणंति ।।९९।।
prabhAtano samay thayo hoy to vyavahAranayathI dehabhed hovA ChatA.n kevaLadarshanarUp nishchayalakShaNathI
temanAmA.n bhed karavAmA.n Avato nathI.
ahI.n, joke sarva suvarNanu.n soLavalu.n lakShaN samAn Che topaN temA.nthI koI ek suvarNane
grahaN karatA.n, bAkInu.n suvarNa ek sAthe AvI jatu.n nathI tenu.n kAraN e Che ke sarva suvarNanA pradesho
bhinna-bhinna Che. tevI rIte joke jIvonu.n j~nAnadarshanalakShaN samAn Che topaN vivakShit jIv judo
grahaN karatA.n, bAkInA jIvo ek sAthe ja AvI jatA nathI tenu.n kAraN e Che ke sarva jIvanA
pradesho bhinna-bhinna Che. te kAraNe em jaNAy Che ke kevaLaj~nAn ane kevaLadarshananu.n lakShaN sarakhu.n
Che topaN pradeshabhed Che, evo bhAvArtha Che. 98.
वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञानरूप सूर्यका उदय हुआ है, और मोहनिद्राके अभावसे
आत्म - बोधरूप प्रभात हुआ है, तो तू सबोंको समान देख जैसे यद्यपि सोलहवानीके सोने सब
समान वृत्त हैं, तो भी उन सुवर्णराशियोंमें से एक सुवर्णको ग्रहण किया, तो उसके ग्रहण
करनेसे सब सुवर्ण साथ नहीं आते, क्योंकि सबके प्रदेश भिन्न हैं, उसी प्रकार यद्यपि केवलज्ञान
दर्शन लक्षण सब जीव समान हैं, तो भी एक जीवका ग्रहण करनेसे सबका ग्रहण नहीं होता
क्योंकि प्रदेश सबके भिन्न-भिन्न हैं, इससे यह निश्चय हुआ, कि यद्यपि केवलज्ञान दर्शन
लक्षणसे सब जीव समान हैं, तो भी प्रदेश सबके जुदे-जुदे हैं, यह तात्पर्य जानना
।।९८।।
आगे जातिके कथनसे सब जीवोंकी एक जाति है, परन्तु द्रव्य अनन्त हैं, ऐसा दिखलाते
हैं
1 pAThAntar : षोडशवर्णिकालक्षणं बहूनां सुवर्णानां मध्ये समानं = षोडशवर्णिका समानानां बहूनां सुवर्णानां
मध्ये