Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
गउ संसारि वसंताहं सामिय कालु अणंतु गतः संसारे वसतां तिष्ठतां हे स्वामिन्
कोऽसौ कालः कियान् अनन्तः पर मइं किं पि ण पत्तु सुहु दुक्खु जि पत्तु महंतु
परं किंतु मया किमपि न प्राप्तं सुखं दुःखमेव प्राप्तं महदिति इतो विस्तरः तथाहिस्वशुद्धात्म-
भावनासमुत्पन्नवीतरागपरमानन्दसमरसीभावरूपसुखामृतविपरीतनारकादिदुःखरूपेण क्षारनीरेण पूर्णे
अजरामरपदविपरीतजातिजरामरणरूपेण मकरादिजलचरसमूहेन संकीर्णे अनाकुलत्वलक्षण-
पारमार्थिकसुखविपरीतनानामानसादिदुःखरूपवडवानलशिखासंदीपिताभ्यन्तरे वीतरागनिर्विकल्प-
समाधिविपरीतसंकल्पविकल्पजालरूपेण कल्लोलमालासमूहेन विराजिते संसारसागरे वसतां तिष्ठतां
हे स्वामिन्ननन्तकालो गतः
कस्मात् एकेन्द्रियविकलेन्द्रियपञ्चेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्त-
मनुष्यत्वदेशकुलरूपेन्द्रियपटुत्वनिर्व्याध्यायुष्कवरबुद्धिसद्धर्मश्रवणग्रहणधारणश्रद्धानसंयमविषयसुख-
28 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-1 : dohA-9
भावार्थ :निज शुद्धात्माकी भावनासे उत्पन्न हुआ जो वीतराग परम आनंद
समरसीभाव है, उस रूप जो आनंदामृत उससे विपरीत नरकादिदुःखरूप क्षार (खारो)
जलसे पूर्ण (भरा हुआ), अजर अमर पदसे उलटा जन्म जरा (बुढ़ापा) मरणरूपी
जलचरोंके समूहसे भरा हुआ, अनाकुलता स्वरूप निश्चय सुखसे विपरीत, अनेक प्रकार
आधि व्याधि दुःखरूपी बड़वानलकी शिखाकर प्रज्वलित, वीतराग निर्विकल्पसमाधिकर
रहित, महान संकल्प विकल्पोंके जालरूपी कल्लोलोंकी मालाओंकर विराजमान, ऐसे
संसाररूपी समुद्रमें रहते हुए मुझे हे स्वामी, अनंतकाल बीत गया
इस संसारमें एकेन्द्रीसे
दोइन्द्री, तेइन्द्री, चौइन्द्री स्वरूप विकलत्रय पर्याय पाना दुर्लभ (कठिन) है, विकलत्रयसे
पंचेन्द्री, सैनी, छह पर्याप्तियोंकी संपूर्णता होना दुर्लभ है, उसमें भी मनुष्य होना अत्यंत
दुर्लभ, उसमें आर्यक्षेत्र दुर्लभ, उसमेंसे उत्तम कुल ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य वर्ण पाना कठिन
है, उसमें भी सुन्दर रूप, समस्त पाँचों इन्द्रियोंकी प्रवीणता, दीर्घ आयु, बल, शरीर
bhAvArtha :svashuddhAtma bhAvanAthI utpanna vItarAg paramAna.ndamay samarasIbhAvarUp
sukhAmR^itathI viparIt nArakAdinA duHkharUp kShArajaLathI (khArA jaLathI) pUrNa (bharapUr) ajar,
amar padathI viparIt janma, jarA, maraNarUp magarAdi jaLacharasamUhathI sa.nkIrNa anAkulatva
jenu.n lakShaN Che evA pAramArthik sukhathI viparIt anek prakAranA mAnasAdi duHkharUp
vaDavAnaLashikhAthI a.ndaramA.n prajvalit, vItarAg nirvikalpa samAdhithI viparIt
sa.nkalpavikalpajALarUp kallolonA pa.nktisamUhathI virAjit evA sa.nsArasAgaramA.n vasatA.n rahetA.n
he svAmI! ana.ntakAL gayo, kAraN ke ekendriy, vikalendriy, pa.nchendriy, sa.nj~nI, paryApta,
manuShyatva, AryakShetra, uttamakuL, su.ndararUp, indriyapaTutA, nirvyAdhi AyuShya, uttamabuddhi,