Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
420 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-124
shuddhachetanasvabhAvavALA, amUrta paramAtmAthI vilakShaN je karma Che tenA udayathI rachAyelA.n hovAthI
karmAdhIn Che ane akR^itrim-Ta.nkotkIrNa-j~nAyak jeno ek svabhAv Che evA shuddha AtmadravyathI
viparIt hovAthI kR^itrim – vinashvarChe, evu.n paramaj~nAnasa.npanna divya yogIoe vItarAgasarvaj~napraNIt
paramAgamamA.n joyu.n Che.
ahI.n A, adhruvapaNAnu.n vyAkhyAn jANIne dhruv evA svashuddhAtmasvabhAvamA.n sthit thaIne
gR^ihAdi paradravyamA.n mamatva na karavu.n joie, evo bhAvArtha Che. 123.
have, ghar-parivAr AdinI chi.ntAthI mokSha maLato nathI, em nakkI kare Che : —
शुद्धचेतनास्वभावादमूर्तात्परमात्मनः सकाशाद्विलक्षणं यत्कर्म तदुदयेन निर्मितत्वात् कर्मायत्तम् ।
पुनरपि कथंभूतम् । कारिमउ अकृत्रिमात् टङ्कोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभावात् शुद्धात्मद्रव्याद्विपरीत-
त्वात् कृत्रिमं विनश्वरम् । इत्थंभूतं दिट्ठु द्रष्टम् । कैः । जोइहिं परमज्ञानसंपन्नदिव्ययोगिभिः ।
क्व द्रष्टम् । आगमि वीतरागसर्वज्ञप्रणीतपरमागमे इति । अत्रेदमध्रुवव्याख्यानं ज्ञात्वा ध्रुवे
स्वशुद्धात्मस्वभावे स्थित्वा गृहादिपरद्रव्ये ममत्वं न कर्तव्यमिति भावार्थः ।।१२३।।
अथ गृहपरिवारादिचिन्तया मोक्षो न लभ्यत इति निश्चिनोति —
२५४) मुक्खु ण पावहि जीव तुहुँ घरु परियणु चिंतंतु ।
तो वरि चिंतहि तउ जि तउ पावहि मोक्खु महंत्तु ।।१२४।।
मोक्षं न प्राप्नोषि जीव त्वं गृहे परिजनं चिन्तयन् ।
ततः वरं चिन्तय तपः एव तपः प्राप्नोषि मोक्षं महान्तम् ।।१२४।।
विपरीत हैं । शुद्धात्मद्रव्य किसीका बनाया हुआ नहीं है, इसलिये अकृत्रिम है, अनादिसिद्ध है,
टंकोत्कीर्ण ज्ञायक स्वभाव है । जो टाँकीसे गढ़ा हुआ न हो बिना ही गढ़ी पुरुषाकार
अमूर्तीकमूर्ति है । ऐसे आत्मस्वरूपसे ये देहादिक भिन्न हैं, ऐसा सर्वज्ञकथित परमागममें
परमज्ञानके धारी योगीश्वरोंने देखा है । यहाँ पर पुत्र, मित्र, स्त्री, शरीर आदि सबको अनित्य
जानकर नित्यानंदरूप निज शुद्धात्म स्वभावमें ठहरकर गृहादिक परद्रव्यमें ममता नहीं
करना ।।१२३।।
आगे घर परिवारादिककी चिंतासे मोक्ष नहीं मिलती, ऐसा निश्चय करते हैं —
गाथा – १२४
अन्वयार्थ : — [जीव ] हे जीव, [त्वं ] तू [गृहं परिजनं ] घर, परिवार वगैरहकी