Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
adhikAr-2 : dohA-130 ]paramAtmaprakAsh: [ 433
mithyAtIrthasamUh, nirdoSh paramAtmAe upadeshelA evA vedashabdathI vAchya siddhA.nto paN ane
parakalpit vedo, shuddha jIvAdi padArthonu.n gadya-padyAkAre varNan karanAru.n kAvya ane lokaprasiddha
vichitra kathAkAvya, paramAtmabhAvanAthI rahit jIve je vanaspatinAmakarma upArjyu.n Che tenA udayathI
thayelA.n vR^ikSho ke je phUlovALu.n dekhAy Che e badhu.ny kALarUpI agninu.n indhan thaI jashe
nAsh
pAmashe.
ahI, (sarva sa.nsAr kShaNabha.ngur Che em jANIne) pratham to pA.nch indriyonA viShayomA.n
moh na karavo. prAthamikone dharmatIrthAdi pravartananA nimitto je devAlay ane devapratimAdi Che
परमात्मभावनारहितेन जीवेन यदुपार्जितं वनस्पतिनामकर्म तदुदयजनितंवृक्षकदम्बकं जो दीसइ
कुसुमियउ यद्
द्रश्यते कुसुमितं पुष्पितं इंधणु होसइ सव्वु तत्सर्वं कालाग्नेरिन्धनं भविष्यति
विनाशं यास्तीत्यर्थः अत्र तथा तावत् पञ्चेन्द्रियविषये मोहो न कर्तव्यः प्राथमिकानां यानि
समान जिनके वचनरूपी किरणोंसे मोहांधकार दूर हो गया है, ऐसे महामुनि गुरु हैं, वे भी
विनश्वर हैं, और उसके आचरणसे विपरीत जो अज्ञान तापस मिथ्यागुरु वे भी क्षणभंगुर हैं
संसार - समुद्रके तरनेका कारण जो निज शुद्धात्मतत्त्व उसकी भावनारूप जो निश्चयतीर्थ उसमें
लीन परमतपोधनका निवासस्थान, सम्मेदशिखर, गिरनार आदि तीर्थ वे भी विनश्वर हैं, और
जिनतीर्थके सिवाय जो पर यतियोंका निवास वे परतीर्थ वे भी विनाशीक हैं
निर्दोष परमात्मा
जो सर्वज्ञ वीतरागदेव उनकर उपदेश किया गया जो द्वादशांग सिद्धांत वह वेद है, वह यद्यपि
सदा सनातन है, तो भी क्षेत्रकी अपेक्षा विनश्वर है, किसी समय है, किसी क्षेत्रमें पाया जाता
है, किसी समय नहीं पाया जाता, भरतक्षेत्र ऐरावत क्षेत्रमें कभी प्रगट हो जाता है, कभी विलय
हो जाता है, और महाविदेहक्षेत्रमें यद्यपि प्रवाहकर सदा शाश्वता है, तो भी वक्ता
श्रोताव्याख्यानकी अपेक्षा विनश्वर है, वे ही वक्ता-श्रोता हमेशा नहीं पाये जाते, इसलिए
विनश्वर है, और पर मतियोंकर कहा गया जो हिंसारूप वेद वह भी विनश्वर है
शुद्ध जीवादि
पदार्थोंका वर्णन करनेवाली संस्कृत प्राकृत छटारूप गद्य व छंदबंधरूप पद्य उस स्वरूप और
जिसमें विचित्र कथायें हैं, ऐसे सुन्दर काव्य कहे जाते हैं, वे भी विनश्वर हैं
इत्यादि जो
जो वस्तु सुन्दर और खोटे कवियोंकर प्रकाशित खोटे काव्य भी विनश्वर हैं इत्यादि जो
जो वस्तु सुन्दर और असुन्दर दिखती हैं, वे सब कालरूपी अग्निका ईंधन हो जावेंगी तात्पर्य
यह है, कि सब भस्म हो जावेंगी, और परमात्माकी भावनासे रहित जो जीव उसने उपार्जन
किया जो वनस्पतिनामकर्म उसके उदयसे वृक्ष हुआ, सो वृक्षोंके समूह जो फू ले
फ ाले दिखते
हैं, वे सब ईंधन हो जावेंगे संसारका सब ठाठ क्षणभंगुर है, ऐसा जानकर पंचेंद्रियोंके विषयोंमें
मोह नहीं करना, विषय का राग सर्वथा त्यागना योग्य है प्रथम अवस्थामें यद्यपि धर्मतीर्थकी