Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-131 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
434 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-131
temanA pratye paN shuddhAtmabhAvanAnA kALe moh kartavya nathI, evo sa.nba.ndh Che. 130.
have, ‘shuddha AtmadravyathI je anya Che te badhu.ny adhruv Che’, em pragaT kare Che :
bhAvArtha:jevI rIte anek vR^ikShanA bhedathI bhinna hovA ChatA.n jAti-apekShAe (ek)
van kahevAy Che tevI rIte shuddhasa.ngrahanayathI jAti-apekShAe (ek) shuddha jIvadravyathI kahevAy
धर्मतीर्थवर्तनादिनिमित्तानि देवकुलप्रतिमादीनि तत्रापि शुद्धात्मभावना काले मोहो न कर्तव्येति
संबंधः
।।१३०।।
अथ शुद्धात्मद्रव्यादन्यत्सर्वमध्रुवमिति प्रकटयति
२६१) एक्कु जि मेल्लिवि बंभु परु भुवणु वि एहु असेसु
पुहविहिँ णिम्मउ भंगुरउ एहउ बुज्झि विसेसु ।।१३१।।
एकं मेव मुक्त्वा ब्रह्म परं भुवनमपि एतद् अशेषम्
पृथिव्यां निर्मापितं भंगुरं एतद् बुध्यस्व विशेषम् ।।१३१।।
एक्कु जि इत्यादि एक्कु जि एकमेव मेल्लिवि मुक्त्वा किम् बंभु परु
परमब्रह्मशब्दवाच्यं नानावृक्षभेदभिन्नवनमिव नानाजीवजातिभेदभिन्नं शुद्धसंग्रहनयेन शुद्ध-
प्रवृत्तिका निमित्त जिनमंदिर, जिनप्रतिमा, जिनधर्म तथा जैनधर्मी इनमें प्रेम करना योग्य है, तो
भी शुद्धात्माकी भावनाके समय वह धर्मानुराग भी नीचे दरजेका गिना जाता है, वहाँ पर केवल
वीतरागभाव ही है
।।१३०।।
आगे शुद्धात्मस्वरूपसे अन्य जो सामग्री है, वह सभी विनश्वर हैं, ऐसा व्याख्यान करते
हैं
गाथा१३१
अन्वयार्थ :[एकं परं ब्रह्म एव ] एक शुद्ध जीवद्रव्यरूप परब्रह्मको [मुक्त्वा ]
छोड़कर [पृथिव्यां ] इस लोकमें [इदं अशेषम् भुवनमपि निर्मापितं ] इस समस्त लोकके
पदार्थोंकी रचना है, वह सब [भंगुरं ] विनाशीक है, [एतद् विशेषम् ] इस विशेष बातको तू
[बुध्यस्व ] जान
भावार्थ :शुद्धसंग्रहनयकर समस्त जीवराशि एक है जैसे नाना प्रकारके वृक्षोंकर
भरा हुआ वन एक कहा जाता है, उसी तरह नाना प्रकारके जीवजाति करके एक कहे जाते