Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-136 (Adhikar 2) Pancha Indriyone Jeetavee.

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
442 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-136
bhAvArtha:he mUDh jIv! Indriyone atIndriy sukhanA AsvAdarUp svashuddhAtma-
bhAvanAthI utpanna, vItarAg paramAna.nd jenu.n ek rUp Che evA sukhathI parA~N.hmukh thaIne
svechChAe charavA na de (vashamA.n rAkh), kAraN ke teo pahelA.n pA.nch indriyanA viShayarUpI vananu.n
bhakShaN karIne paChI jIvane niHsa.nsAr evA shuddha AtmAthI pratipakShabhUt pA.nch prakAranA sa.nsAramA.n
pADe Che, e abhiprAy Che. 136.
२६६) ए पंचिंदिय-करहडा जिय मोक्कला म चारि
चरिवि असेसु वि विसय-वणु पुणु पाडहिँ संसारि ।।१३६।।
एते पञ्चेन्द्रियकरभकाः जीव मुक्त ान् मा चारय
चरित्वा अशेषं अपि विषयवनं पुनः पातयन्ति संसारे ।।१३६।।
ए इत्यादि एते प्रत्यक्षीभूताः पंचिंदिय-करहडा अतीन्द्रियसुखास्वादरूपात्परमात्मनः
सकाशात् प्रतिपक्षभूताः पञ्चेन्द्रियकरहटा उष्ट्राः जिय हे मूढजीव मोक्कला म चारि
स्वशुद्धात्मभावनोत्थवीतरागपरमानन्दैकरूपसुखपराङ्मुखो भूत्वा स्वेच्छया मा चारय व्याघुट्टय
यतः किं कुर्वन्ति पाडहिं पातयन्ति कम् जीवम् क्व संसारे निःसंसारशुद्धात्मप्रतिपक्षभूते
पञ्चप्रकारसंसारे पुणु पश्चात् किं कृत्वा पूर्वम् चरिवि चरित्वा भक्षणं कृत्वा किम्
विसय-वणु पञ्चेन्द्रियविषयवनमित्यभिप्रायः ।।१३६।।
गाथा१३६
अन्वयार्थ :[एते ] ये प्रत्यक्ष [पंचेन्द्रियकरभकाः ] पाँच इंद्रियरूपी ऊ ँट हैं, उनको
[स्वेच्छया ] अपनी इच्छासे [मा चारय ] मत चरने दे, क्योंकि [अशेषं ] सम्पूर्ण [विषयवनं ]
विषय
वनको [चारयित्वा ] चरके [पुनः ] फि र ये [संसारे ] संसारमें ही [पातयंति ] पटक
देंगे
भावार्थ :ये पाँचों इंद्री अतींद्रियसुखके आस्वादनरूप परमात्मामें पराङ्मुख हैं,
उनको हे मूढ़जीव, तू शुद्धात्मा की भावना से पराङ्मुख होकर इनको स्वच्छंद मतकर, अपने
वशमें रख, ये तुझे संसारमें पटक देंगे, इसलिये इनको विषयोंसे पीछे लौटा
संसारसे रहित
जो शुद्ध आत्मा उससे उलटा जो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भावरूप पाँच प्रकारका संसार उसमें
ये पंचेन्द्रीरूपी ऊ ँट स्वच्छंद हुए विषय
वनको चरके जगतके जीवोंको जगतमें ही पटक देंगे,
यह तात्पर्य जानना ।।१३६।।