Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-67 (Adhikar 1) Aatamanu Parvastuthi Bhinna Hovanu Kathan.

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
அதிகார-௧ : தோஹா-௬௭ ]பரமாத்மப்ரகாஶ: [ ௧௧௯
कहे इससे आगे भेदाभेदरत्नत्रयकी भावनाकी मुख्यतासे जुदे जुदे स्वतन्त्र नौ सूत्र कहते हैं
गाथा६७
अन्वयार्थ :[आत्मा ] निजवस्तु [आत्मा एव ] आत्मा ही है, [परः ] देहादि पदार्थ
[परः एव ] पर ही हैं, [आत्मा ] आत्मा तो [परः न एव ] परद्रव्य नहीं [भवति ] होता, [पर
एव ] और परद्रव्य भी [कदाचिदपि ] कभी [आत्मा नैव ] आत्मा नहीं होता, ऐसा [नियमेन ]
निश्चयकर [योगिनः ] योगीश्वर [प्रभणन्ति ] कहते हैं
भावार्थ :शुद्धात्मा तो केवलज्ञानादि स्वभाव है, जड़रूप नहीं है, उपाधिरूप नहीं
है, शुद्धात्मस्वरूप ही है पर जो काम-क्रोधादि पर वस्तु भावकर्म द्रव्यकर्म नोकर्म हैं, वे
पर ही हैं, अपने नहीं है, जो यह आत्मा संसार-अवस्थामें यद्यपि अशुद्धनिश्चयनयकर काम
क्रोधादिरूप हो गया है, तो भी परमभावके ग्राहक शुद्धनिश्चयनयकर अपने ज्ञानादि निजभावको
छोड़कर काम क्रोधादिरूप नहीं होता, अर्थात् निजभावरूप ही है
ये रागादि विभावपरिणाम
த்யார பசீ பேதாபேத பாவநாநீ முக்யதாதீ ப்ருதக் ப்ருதக் ஸ்வதஂத்ர நவ காதா ஸூத்ரோ கஹே
சே :
பாவார்த :கேவளஜ்ஞாநாதி ஜேநோ ஸ்வபாவ சே ஏவோ ஶுத்தாத்மா தே ஶுத்த ஆத்மா ஜ சே,
காமக்ரோதாதி ஜேநோ ஸ்வபாவ சே ஏவோ பர தே பர ஜ சே. பூர்வோக்த பரமாத்மா நாமநோ ஶுத்தாத்மா தேநா
ஏக (கேவள) ஸ்வபாவநே சோடீநே காமக்ரோதாதிரூப ததோ நதீ, காமக்ரோதாதி பர கோஈ பண ஸமயே
अत ऊर्ध्वं भेदाभेदभावनामुख्यतया पृथक् पृथक् स्वतन्त्रसूत्रनवकं कथयति
६७) अप्पा अप्पु जि परु जि परु अप्पा परु जि ण होइ
परु जि कयाइ वि अप्पु णवि णियमेँ पभणहिं जोई ।।६७।।
आत्मा आत्मा एव परः एव परः आत्मा परः एव न भवति
पर एव कदाचिदपि आत्मा नैव नियमेन प्रभणन्ति योगिनः ।।६७।।
अप्पा अप्पु जि परु जि परु अप्पा परु जि ण होइ आत्मात्मैव पर एव
परः आत्मा पर एव न भवति परु जि कयाइ वि अप्पु णवि णियमें पभणहिं जोइ
पर एव कदाचिदप्यात्मा नैव भवति नियमेन निश्चयेन भणन्ति कथयन्ति के कथयन्ति
परमयोगिन इति तथाहि शुद्धात्मा केवलज्ञानादिस्वभावः शुद्धात्मात्मैव परः कामक्रोधादि-
स्वभावः पर एव पूर्वोक्त : परमात्माभिधानं तदैकस्वस्वभावं त्यक्त्वा कामक्रोधादिरूपो न