Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
௧௨௦ ]யோகீந்துதேவவிரசித: [ அதிகார-௧ : தோஹா-௬௮
उपाधिक हैं, परके संबंधसे हैं, निजभाव नहीं हैं, इसलिये आत्मा कभी इन रागादिरूप नहीं
होता, ऐसा योगीश्वर कहते हैं । यहाँ उपादेयरूप मोक्ष-सुख (अतीन्द्रिय सुख) से तन्मय और
काम-क्रोधादिकसे भिन्न जो शुद्धात्मा है, वही उपादेय है, ऐसा अभिप्राय है ।।६७।।
आगे शुद्धनिश्चयनयकर आत्मा जन्म, मरण, बन्ध और मोक्षको नहीं करता है, जैसा
है वैसा ही है, ऐसा निरूपण करते हैं —
गाथा – ६८
अन्वयार्थ : — [योगिन् ] हे योगीश्वर, [परमार्थेन ] निश्चयनयकर विचारा जावे, तो
[जीवः ] यह जीव [नापि उत्पद्यते ] न तो उत्पन्न होता है, [नापि म्रियते ] न मरता है [च ]
और [न बन्धं मोक्षं ] न बंध मोक्षको [करोति ] करता है, अर्थात् शुद्धनिश्चयनयसे बन्ध-
मोक्षसे रहित है, [एवं ] ऐसा [जिनवरः ] जिनेन्द्रदेव [भणति ] कहते हैं ।
भावार्थ : — यद्यपि यह आत्मा शुद्धात्मानुभूतिके अभावके होने पर शुभ-अशुभ
ஶுத்தஆத்மாரூப ததாஂ நதீ, ஏம பரமயோகீஓ கஹே சே.
அஹீஂ, உபாதேயபூத மோக்ஷஸுகதீ அபிந்ந அநே காமக்ரோதாதிதீ பிந்ந ஜே ஶுத்தாத்மா சே தே
ஜ உபாதேய சே, ஏவோ தாத்பர்யார்த சே. ௬௭.
ஹவே, ஶுத்தநிஶ்சயநயதீ ஆத்மா ஜந்ம, மரண, பஂத அநே மோக்ஷநே கரதோ நதீ, ஏம கஹே
சே : —
பாவார்த : — ஜோ கே ஆத்மா ஶுத்த ஆத்மாநீ அநுபூதிநோ அபாவ ஹோதாஂ, ஶுபாஶுப
भवति । कामक्रोधादिरूपः परः क्वापि काले शुद्धात्मा न भवतीति परमयोगिनः कथयन्ति ।
अत्र मोक्षसुखादुपादेयभूतादभिन्नः कामक्रोधादिभ्यो भिन्नो यः शुद्धात्मा स एवोपादेय इति
तात्पर्यार्थः ।।६७।।
अथ शुद्धनिश्चयेननोत्पत्तिं मरणं बन्धमोक्षौ च न करोत्यात्मेति प्रतिपादयति —
६८) ण वि उप्पज्जइ ण वि मरइ बंधु ण मोक्खु करेइ ।
जिउ परमत्थेँ जोइया जिणवरु एउँ भणेइ ।।६८।।
नापि उत्पद्यते नापि म्रियते बन्धं न मोक्षं करोति ।
जीवः परमार्थेन योगिन् जिनवरः एवं भणति ।।६८।।
नाप्युत्पद्यते नापि म्रियते बन्धं मोक्षं च न करोति । कोऽसौ कर्ता । जीवः । केन