Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 349-355 ; Kalash: 211-214.

< Previous Page   Next Page >


Combined PDF/HTML Page 167 of 210

 

PDF/HTML Page 3321 of 4199
single page version

वशे कर्तानो अने भोक्तानो भेद हो के न हो, अथवा कर्ता अने भोक्ता बन्ने न हो; वस्तुने ज अनुभवो. एम के शुद्ध चैतन्यमूर्ति प्रभु आत्माने ज चेतवाथी-अनुभववाथी धर्म थाय छे. अहाहा...! कर्ता-भोक्ताना सर्व विकल्प छोडीने, कहे छे, स्वाभिमुख थई एक स्वने-शुद्ध चैतन्यमय आत्माने ज अनुभवो. ल्यो, आनुं नाम धर्म छे. छे ने अंदर? छे के नहि? के ‘वस्तु एव सञ्चिन्त्यताम्’ अहाहा....! वस्तुने ज अनुभवो; अंतर्मुख थई स्वद्रव्यने ज अनुभवो. आवो अनुभव-स्वानुभव करवो एनुं नाम जैनधर्म छे. बाकी बधुं (व्रत, भक्ति आदि) थोथां छे. समजाणुं कांई....?

हवे कहे छे– ‘निपुणैः सूत्रे इव इह आत्मनि प्रोता चित्–चिंतामणि–मालिका

क्वचित् भेत्तुं न शक्या’ जेम चतुर पुरुषोए दोरामां परोवेली मणिओनी माळा भेदी शकाती नथी, तेम आत्मामां परोवेली चैतन्यरूप चिंतामणिनी माळा पण कदी कोईथी भेदी शकाती नथी.

अहाहा....! शुं कहे छे? जेम चतुर पुरुषोए दोरो परोवीने गूंथेली मणिरत्ननी माळा भेदी शकाती नथी तेम नित्य चैतन्यस्वभावरूप दोराथी परोवेली सहज अकृत्रिम चैतन्यचिंतामणिरूप माळा भगवान आत्मा छे तेने भेदी शकाती नथी. एटले शुं? के चैतन्यचिंतामणि प्रभु आत्मा नित्य ध्रुव रहेनारी चीज छे, तेनी नित्यताने कोई भेदी शकतुं नथी. वळी पर्यायमां भले राग हो, पण त्रिकाळी शुद्ध चैतन्यवस्तुने रागमय करी शकाती नथी. आ शरीर आदि तो कयांय दूर रही गयां. समजाय छे कांई.....?

भाई! आ शरीर तो मृतक-कलेवर-मडदुं छे. अत्यारे पण मडदुं छे. एमां क्यां चैतन्य छे? चैतन्य तो एनाथी तद्न भिन्न चीज छे. पण अरे! मृतक कलेवरमां चैतन्यमहाप्रभु-अमृतनो नाथ मूर्छाई गयो छे; जाणे एमांथी सुख आवे छे एम मूढ थई ए मूर्छाई गयो छे; पण ए तो आपदा छे, दुःख छे. अहीं कहे छे-अंदर शुद्ध चैतन्यचिंतामणि प्रभु आत्मा नित्य अभेद एक चैतन्यस्वभावथी भरेलो भगवान छे तेनो ज अनुभव करो. भाई! दुनियामां वर्तमान चालती पद्धतिथी आ तद्न जुदी वात छे, पण आ सत्यार्थ छे, प्रयोजनवान छे.

जेम मणिरत्ननी माळामां धारावाही सळंग दोरो परोवाएल छे, तेने तोडी शकाय नहि; तेम भगवान आत्मा चैतन्यचिंतामणिरूप माळा छे, तेमां नित्य चैतन्यस्वभावमय दोरो परोवाएल छे, तेने भेदी शकाय नहि. अहीं कहे छे-अहाहा....! ‘इयम् एका’ एवी आ आत्मारूपी माळा एक ज, ‘नः अभितः अपि चकास्तु एव’


PDF/HTML Page 3322 of 4199
single page version

अमने समस्तपणे प्रकाशमान हो (अर्थात् नित्यत्व, अनित्यत्व आदिना विकल्पो छूटी आत्मानो निर्विकल्प अनुभव अमने हो).

अहा! कर्ता-भोक्ताना विकल्प उठे ए कांई (-प्रयोजनभूत) वस्तु नथी; ए विकल्प तो राग छे, दुःख छे. आचार्य महाराज आदेश करीने कहे छे- ‘वस्तुने ज अनुभवो.’ जो तमारे धर्मनुं प्रयोजन छे तो शुद्ध चैतन्यस्वरूप वस्तु अंदर नित्य शाश्वत छे तेने ज अनुभवो. वळी पोताना माटे कहे छे- अमने समस्तपणे आत्मा एक ज प्रकाशमान हो. अहाहा...! चैतन्य... चैतन्य.... चैतन्यना ध्रुव नित्य प्रवाहरूप एवो जे एक ज्ञायकभाव ते एक ज अमने प्रकाशमान हो-एम भावना भावे छे.

जेम दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादिना विकल्पो आवे ते राग छे तेम कर्ता- भोक्ताना जे विकल्प छे ते राग छे; अने राग छे ते हिंसा छे (जुओ, पुरुषार्थ- सिद्धयुपाय छंद ४४), ते रागमां आत्मानुं मृत्यु थाय छे, राग छे ते आत्मानो घातक छे. तेथी कहे छे-कर्ता-भोक्ता आत्मा हो के न हो; ते विकल्पोनुं अमारे शुं काम छे? अमने तो अंदर अनंत गुण-स्वभावना रसथी भरेलो चैतन्यचिंतामणि भगवान आत्मा छे ते एकनो ज अनुभव हो. ते एक ज अमने प्रकाशमान हो; केमके जन्ममरणना अंतनो आ एक ज उपाय छे, बाकी कोई उपाय नथी.

अहाहा...! प्रचुर अतीन्द्रिय आनंदमां झूलता आचार्य भगवान कहे छे- अमने ‘अभितः’ एटले समस्तपणे एक चैतन्यचिंतामणि प्रभु एक आत्मा ज प्रकाशमान हो. जुओ, आ भावना!

हवे अत्यारे तो केटलाक कहे छे- अत्यारे मोक्ष तो छे नहि, तो मोक्षनां कारण सेववां एना करतां पुण्य उपजावीए तो पुण्य करतां करतां वळी धर्म-प्राप्ति थई जाय. एम के पुण्य उपजावीने स्वर्गमां जवाय अने पछी त्यांथी साक्षात् भगवाननी पासे जवाय इत्यादि.

अरे भगवान! तुं शुं कहे छे आ! अंदर चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा छे तेनो अनुभव करतां शुद्धोपयोग थाय छे. जेम चिंतामणि रत्न जे चिंतवो ते आपे तेम चैतन्यचिंतामणि प्रभु आत्मा पोते छे तेमां एकाग्र थतां ज ते अतीन्द्रिय आनंद आपे छे. चित्चमत्कारमय वस्तु तो आवी छे नाथ! ते एकनी ज भावना कर; अमने ते एकनी ज भावना छे. कह्युं ने के-अमने समस्तपणे एक आत्मा ज प्रकाशमान हो.

कोई बीजा गमे ते कहे, पुण्यनी भावना छे ते मिथ्यात्व छे अने ते वडे


PDF/HTML Page 3323 of 4199
single page version

जीवने संसार ने दुःख ज प्राप्त थाय छे. अहीं आनंदना बागमां केलि करनार भगवान आचार्य अमृतचंद्र कहे छे-भगवान! तुं चैतन्यचिंतामणि रत्न छो; तेमां ज एकाग्र था, तेमां ज लीन था अने तेमां ज ठरीने निवास कर; तेथी तने आनंद थशे.

-आत्मा वस्तु छे ते द्रव्य छे. (चैतन्यचिंतामणि माळा)

-तेना चैतन्यस्वभावमय गुणो छे ते दोरा समान कायम नित्य छे.

-ते गुणोना धरनारगुणी एवा आत्मानो, बधा विकल्पोने मटाडी दई, अंतर्मुख

थई अनुभव करवो ते पर्याय छे, ते निर्मळ पर्यायने मोक्षनो मार्ग कहीए छीए.

बाकी वर्तमानमां थता पुण्य-पापना अनुभवनी भावना ते मिथ्यात्व छे. हवे द्रव्य शुं? गुण शुं? पर्याय शुं? -कांई खबर न मळे अने कहे- अमे जैन. पण बापु! वाडाना जैन ते जैन नहि, जैन तो द्रव्यद्रष्टि वडे समकित प्रगटतां थवाय छे. आवी वातु छे. समजाणुं कांई...?

* कळश २०९ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘आत्मा वस्तु होवाथी द्रव्यपर्यायात्मक छे; तेथी तेमां चैतन्यना परिणमनरूप पर्यायना भेदोनी अपेक्षाए तो कर्ता-भोक्तानो भेद छे अने चिन्मात्र द्रव्यनी अपेक्षाए भेद नथी; एम भेद-अभेद हो. अथवा चिन्मात्र अनुभवनमां भेद-अभेद शा माटे कहेवो? (आत्माने) कर्ता-भोक्ता ज न कहेवो, वस्तुमात्र अनुभव करवो.’

आत्मा द्रव्य-पर्यायनुं जोडकुं छे. शुं कीधुं? द्रव्य अने पर्याय-बे मळीने आखी वस्तु आत्मा छे. त्रिकाळ नित्य रहेनारी चीजने द्रव्य कहे छे, अने तेनी पलटती अवस्थाने पर्याय कहे छे. आवी द्रव्यपर्यायस्वरूप वस्तु आत्मा छे. द्रव्यरूपे नित्य रहेवुं अने पर्यायरूपे पलटवुं -ए बन्ने तेनुं स्वरूप छे. तेथी तेमां चैतन्यना परिणमनरूप पर्यायना भेदोनी अपेक्षाए कर्ता-भोक्तानो भेद छे. जे पर्याय करे छे ते भोगवती नथी, अन्य भोगवे छे-एम भेद छे. अने चिन्मात्र द्रव्यनी अपेक्षाए भेद नथी, अभेद छे. द्रव्य जे एक पर्यायमां करे छे ते ज बीजी पर्यायमां भोगवे छे-एम अभेद छे.

अहीं कहे छे-आम भेद-अभेद हो; चिन्मात्र अनुभवनमां भेद-अभेद क्यां छे? त्यां तो वस्तुनो अनुभव छे. ए ज कहे छे-आत्माने कर्ता-भोक्ता ज न कहेवो, वस्तुमात्र अनुभव करवो. समयसार गाथा १४३ मां आवी गयुं के-आत्मा अबद्ध


PDF/HTML Page 3324 of 4199
single page version

छे, शुद्ध छे, एक छे, ध्रुव छे इत्यादि नयपक्षना विकल्पथी शुं साध्य छे? द्रव्यस्वभाव जे नित्य त्रिकाळी एक ध्रुवभाव छे तेनो ज आश्रय करवो; केमके ते वडे साध्यनी सिद्धि छे. ल्यो, आवी वात.

भाई! व्यवहार नय छे, एनो विषय पण छे. व्यवहारनय श्रुतज्ञाननो एक अंश-भेद छे. परंतु ते पर्याय अने रागने विषय करनारो नय छे, तेथी ते नय जाणीने तेने हेय करी देवो; अने त्रिकाळी भूतार्थ भगवान आत्माने जाणीने तेने उपादेय करवो, तेनो आश्रय करवो. अहाहा.....! आत्मा सच्चिदानंद प्रभु शाश्वत ज्ञान अने आनंदनुं दळ छे. तेनी सन्मुख थई, तेमां एकाग्र थई, तेनो अनुभव करवो ते सम्यग्दर्शन अने धर्म छे.

आ देह छे ए तो माटी-धूळ जगतनी (बीजी) चीज छे; ए कांई तारी चीज नथी. आ साडात्रण मणनी काया छे ते छूटी जशे एटले बळशे मसाणमां, अने एनो राखनो ढगलो थशे अने पवनथी फू थईने उडी जशे. बापु! ए तारी चीज कयां छे? अने तारे लईने ए कयां रही छे? तारामां थती पर्याय पण क्षणभंगुर छे ने! एक त्रिकाळी आनंदनो नाथ नित्यानंद प्रभु ध्रुव छे. अहीं कहे छे-तेनो आश्रय कर तो तारा भवना दुःखनो अंत आवशे.

अहा! तुं जन्म्यो त्यारे माताना गर्भमां नव मास ऊंधे माथे रह्यो. वळी कोई कोई वार तो बार वर्ष गर्भमां रहीने मरीने फरी पाछो त्यां ज बार वर्ष गर्भमां रह्यो. आ प्रमाणे गर्भनी स्थिति भगवानना आगममां २४ वर्षनी वर्णवी छे. अहा! त्यां गर्भमां अंधारिया बंध मलिन स्थानमां रह्यो! माताए खाधुं तेनो एंठो रस त्यां खाईने रह्यो. आवा आवा तो भगवान! तें अनंता भव कर्या. गर्भमांथी बहार आव्यो त्यां बधुं भूली गयो, पण भाई! तारा दुःखनी कथनी शुं कहीए? तारे जो ए दुःखथी छूटवुं होय तो आचार्यदेव अहीं कहे छे-अंदर भगवान सच्चिदानंद प्रभु आनंदनुं दळ पडयुं छे तेनी समीप जई तेनो अनुभव कर, तने अतीन्द्रिय आनंदनी प्राप्ति सहित चैतन्यनो प्रकाश प्रगट थशे.

‘जेम मणिओनी माळामां मणिओनी अने दोरानी विवक्षाथी भेद-अभेद छे परंतु माळामात्र ग्रहण करतां भेदाभेद-विकल्प नथी, तेम आत्मामां पर्यायोनी अने द्रव्यनी विवक्षाथी भेद-अभेद छे परंतु आत्मवस्तु मात्र अनुभव करतां विकल्प नथी. आचार्य महाराज कहे छे के-एवो निर्विकल्प आत्मानो अनुभव अमने प्रकाशमान हो.’

जुओ, आचार्य महाराज कहे छे के-केवळ निर्विकल्प आत्मानो अनुभव


PDF/HTML Page 3325 of 4199
single page version

अमने प्रकाशमान हो. एम के वच्चे जरी आ समयसार शास्त्रनी टीका करवानो विकल्प थई आव्यो छे, पण ए अमने पोसातो नथी. बंधनुं कारण छे ने? तेथी कहे छे -ए विकल्पथी रहित निर्विकल्प शुद्ध चैतन्यघनस्वरूपनो ज अनुभव अमने प्रकाशमान हो. अहो! धर्मात्मा पुरुषोनी आवी कोई अलौकिक भावना होय छे. अमे स्वर्गमां जईए अने त्यांना वैभव भोगवीए एवी भावना तेमने होती नथी.

*

हवे आगळनी गाथाओनी सूचनारूप काव्य कहे छेः-

* कळश २१०ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘केवलं व्यवहारिकदशा एव कर्तृ च कर्म विभिन्नम् इष्यते’ केवळ व्यवहारिक द्रष्टिथी ज कर्ता अने कर्म भिन्न गणवामां आवे छे; ‘निश्चयेन यदि वस्तु चिन्त्यते’ निश्चयथी जो वस्तुने विचारवामां आवे, ‘कर्तृ च कर्म सदा एकम् इष्यते’ तो कर्ता अने कर्म सदा एक गणवामां आवे छे.

जुओ, आ शुं कीधुं? के व्यवहारिक द्रष्टिथी ज एटले के असत् द्रष्टिथी ज कर्ता अने कर्म भिन्न कहेवामां आवे छे. आत्मा कर्ता अने शरीरमां काम थाय ते एनुं कर्म - एम भिन्न कर्ता-कर्म असत्यार्थ नाम जूठी द्रष्टिथी ज कहेवामां आवे छे. आ बधा एडवोकेट दलील करे ने कोर्टमां? अहीं कहे छे (एडवोकेटनो) आत्मा कर्ता ने दलील एनुं कार्य -एम असत् द्रष्टिथी ज कहेवामां आवे छे, एटले शुं? के एम छे नहि, भिन्न कर्ता- कर्म वास्तविक छे नहि, पण निमित्तनी मुख्यताथी एम कहेवामां आवे छे. भाई! में बीजाने समजावी दीधा के दुकाननी व्यवस्था में करी इत्यादि कहेवुं ते व्यवहारिक द्रष्टिथी- असद्भूत व्यवहारथी छे.

निश्चयथी एटले परमार्थ द्रष्टिथी जो वस्तुने विचारवामां आवे तो कर्ता अने कर्म सदा एक गणवामां आवे छे. आत्मा कर्ता अने एना जे परिणाम थाय ते एनुं कर्म एम निश्चये अभिन्न कर्ता-कर्म छे. भाई! आ सर्वज्ञ परमात्मानी दिव्यध्वनिमां आवेली वात अहीं संतोए जाहेर करी छे.

अहाहा....! इच्छा विना ज भगवान केवळीने वाणी छूटे छे. ते सांभळी भगवान गणधरदेव बार अंगनी रचना करे छे. ते वाणी अनुसार आ शास्त्र रचायुं छे. अधुरी दशामां आचार्यवरने विकल्प उठयो के जगतना दुःखी जीवो आवो (सत्यार्थ) धर्म पामीने सुखी थाय, अने आ शास्त्र रचाई गयुं छे. तेमां आ कहे छे के-निश्चयथी अर्थात् सत्यार्थ द्रष्टिथी कर्ता-कर्म सदा एक गणवामां आवे छे, आत्मा कर्ता ने तेनुं परिणाम ते एनुं कर्म छे- आ सत्यार्थ छे. पण आत्मा कर्ता


PDF/HTML Page 3326 of 4199
single page version

ने जे वाणी नीकळे ते एनुं कर्म -ए असत्यार्थ छे. भगवाननी वाणी-एम व्यवहारिक द्रष्टिथी कहीए, पण वस्तुस्थिति एम नथी. समजाय छे कांई....?

* कळश २१०ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘केवळ व्यवहारद्रष्टिथी ज भिन्न द्रव्योमां कर्ता-कर्मपणुं गणवामां आवे छे; निश्चय-द्रष्टिथी तो एक ज द्रव्यमां कर्ता-कर्मपणुं घटे छे.’

आत्माने शरीर, मन, वाणी इत्यादि परना कार्यनो कर्ता कहेवो ए केवळ व्यवहारद्रष्टिथी ज छे. एने रागनो कर्ता कहीए ए पण व्यवहारनयथी छे. अज्ञानभावे आत्मा रागनो कर्ता तो छे, पण परनो कर्ता तो अज्ञानभावेय जीव नथी. तथापि जेने शुद्ध एक ज्ञायकस्वभावनी अंतर्द्रष्टि थई नथी ते परनां कार्य करे-एम व्यवहारिक द्रष्टिथी कहेवामां आवे छे. परनां कार्य जीव करे छे- करी शके छे एम नहि, पण ते काळे ते पर्यायमां ‘आ हुं करुं’ - एम रागने करे छे तेथी असत्द्रष्टिथी तेने कर्ता कहेवामां आवे छे. बाकी सम्यग्द्रष्टि धर्मी जीव तो रागनोय कर्ता नथी ने परनोय कर्ता नथी; ए तो एने जे शुभाशुभ राग थाय तेनो ज्ञाता-द्रष्टापणे जाणनारमात्र छे. झीणी वात छे भाई! जेने शुद्ध एक चैतन्यस्वभावनी द्रष्टि थई ते विकारने केम करे? न करे; अने तो पछी परनां कार्य करवानो व्यवहार पण एने केम होय? न होय. धर्मी तो बधानो ज्ञाता-द्रष्टापणे जाणनार ज छे. आवी वात!

निश्चयद्रष्टिथी तो एक ज द्रव्यमां कर्ताकर्मपणुं घटे छे. निश्चयथी आत्मा कर्ता अने तेना निर्मळ चैतन्यना परिणाम थाय ते एनुं कर्म-एम कर्ताकर्मपणुं घटे छे; पण परनी दया पळाय त्यां आत्मा कर्ता ने परनी दया थई ते एनुं कार्य-एम कर्ताकर्मपणुं वास्तविक छे नहि; व्यवहारद्रष्टिथी कहेवामां आवे छे. आवुं झीणुं छे बधुं. समजाणुं कांई....?

(प्रवचन नं. ३८९ (शेष) थी ४०१ * दिनांक २६-७-७७ थी २९-७-७७)

PDF/HTML Page 3327 of 4199
single page version

जह सिप्पिओ दु कम्मं कुव्वदि ण य सो दु तम्मओ होदि।
तह जीवो वि य कम्मं कुव्वदि ण य तम्मओ होदि।। ३४९।।
जह सिप्पिओ दु करणेहिं कुव्वदि ण सो दु तम्मओ होदि।
तह जीवो करणेहिं कुव्वदि ण य तम्मओ होदि।।
३५०।।
जह सिप्पिओ दु करणाणि गिण्हदि ण सो दु तम्मओ होदि।
तह जीवो करणाणि दु गिण्हदि ण य तम्मओ होदि।। ३५१।।
जह सिप्पि दु कम्मफलं भुंजदि ण य सो दु तम्मओ होदि।
तह जीवो कम्मफलं भुंजदि ण य तम्मओ होदि।। ३५२।।
एवं ववहारस्स दु वत्तव्वं दरिसणं समासेण।
सुणु णिच्छयस्स वयणं परिणामकदं तु जं होदि।।
३५३।।

हवे आ कथनने द्रष्टांत द्वारा गाथामां कहे छेः-

ज्यम शिल्पी कर्म करे परंतु ते नहीं तन्मय बने,
त्यम जीव पण कर्मो करे पण ते नहीं तन्मय बने. ३४९.
ज्यम शिल्पी करण वडे करे पण ते नहीं तन्मय बने,
त्यम जीव करण वडे करे पण ते नहीं तन्यम बने. ३प०.
ज्यम शिल्पी करण ग्रहे परंतु ते नहीं तन्मय बने,
त्यम जीव पण करणो ग्रहे पण ते नहीं तन्मय बने. ३प१.
शिल्पी करमफळ भोगवे पण ते नहीं तन्मय बने,
त्यम जीव करमफळ भोगवे पण ते नहीं तन्मय बने. ३प२.
–ए रीत मत व्यवहारनो संक्षेपथी वक्तव्य छे;
सांभळ वचन निश्चय तणुं परिणामविषयक जेह छे. ३प३.

PDF/HTML Page 3328 of 4199
single page version

जह सिप्पिओ दु चेट्ठं कुव्वदि हवदि य तहा अणण्णो से।
तह जीवो वि य कम्मं कुवदि हवदि य अणण्णो से।। ३५४।।
जह चेट्ठं कुव्वंतो दु सिप्पिओ णिच्चदुक्खिओ होदि।
तत्तो सिया अणण्णो तह चेट्ठतो दुही जीवो।।
३५५।।
यथा शिल्पिकस्तु कर्म करोति न च स तु तन्मयो भवति।
तथा जीवोऽपि च कर्म करोति न च तन्मयो भवति।।३४९।।
यथा शिल्पिकस्तु करणैः करोति न च स तु तन्मयो भवति।
तथा जीवः करणैः करोति न च तन्मयो भवति।।३५०।।
यथा शिल्पिकस्तु करणानि गृह्णाति न च स तु तन्मयो भवति।
तथा जीवः करणानि तु गृह्णाति न च तन्मयो भवति।।३५१।।

गाथार्थः– [यथा] जेम [शिल्पिकः तु] शिल्पी (-सोनी आदि कारीगर) [कर्म] कुंडळ आदि कर्म [करोति] करे छे [सः तु] परंतु ते [तन्मयः न च भवति] तन्मय (ते-मय, कुंडळादिमय) थतो नथी, [तथा] तेम [जीवः अपि च] जीव पण [कर्म] पुण्यपाप आदि पुद्गलकर्म [करोति] करे छे [न च तन्मयः भवति] परंतु तन्मय (पुद्गलकर्ममय) थतो नथी. [यथा] जेम [शिल्पिकः तु] शिल्पी [करणैः] हथोडा आदि करणो वडे [करोति] (कर्म) करे छे [सः तु] परंतु ते [तन्मयः न च भवति] तन्मय (हथोडा आदि करणोमय) थतो नथी, [तथा] तेम [जीवः] जीव [करणैः] (मन-वचन-कायरूप) करणो वडे [करोति] (कर्म) करे छे [न च तन्मयः भवति] परंतु तन्मय (मन-वचन-कायरूप करणोमय) थतो नथी. [यथा] जेम [शिल्पिकः तु] शिल्पी [करणानि] करणोने [गृह्णाति] ग्रहण करे छे [सः तु] परंतु ते [तन्मयः न च भवति] तन्मय थतो नथी, [तथा] तेम [जीवः] जीव [करणानि तु] करणोने [गृह्णाति] ग्रहण करे छे [न च तन्मयः भवति] परंतु तन्मय (करणोमय) थतो नथी. [यथा] जेम [शिल्पी तु] शिल्पी [कर्मफलं] कुंडळ आदि

शिल्पी करे चेष्टा अने तेनाथी तेह अनन्य छे,
त्यम जीव कर्म करे अने तेनाथी तेह अनन्य छे. ३प४.
चेष्टा करंतो शिल्पी जेम दुखित थाय निरंतरे.
ने दुखथी तेह अनन्य, त्यम जीव चेष्टमान दुखी बने. ३पप.

PDF/HTML Page 3329 of 4199
single page version

यथा शिल्पी तु कर्मफलं भुंक्ते न च स तु तन्मयो भवति।
तथा जीवः कर्मफलं भुंक्त न च तन्मयो भवति।।
३५२।।
एवं व्यवहारस्य तु वक्तव्यं दर्शनं समासेन।
शृणु निश्चयस्य वचनं परिणामकृतं तु यद्भवति।।
३५३।।
यथा शिल्पिकस्तु चेष्टां करोति भवति च तथानन्यस्तस्याः।
तथा जीवोऽपि च कर्म करोति भवति चानन्यस्तस्मात्।। ३५४।।
यथा चेष्टां कुर्वाणस्तु शिल्पिको नित्यदुःखितो भवति।
तस्माच्च स्यादनन्यस्तथा चेष्टमानो दुःखी जीवः।।
३५५।।

कर्मना फळने (खानपान आदिने) [भुंक्ते] भोगवे छे [सः तु] परंतु ते [तन्मयः न च भवति] तन्मय (खानपानादिमय) थतो नथी, [तथा] तेम [जीवः] जीव [कर्मफलं] पुण्यपापादि पुद्गलकर्मना फळने (पुद्गलपरिणामरूप सुखदुःखादिने) [भुंक्ते] भोगवे छे [न च तन्मयः भवति] परंतु तन्मय (पुद्गलपरिणामरूप सुखदुःखादिमय) थतो नथी.

[एवं तु] ए रीते तो [व्यवहारस्य दर्शनं] व्यवहारनो मत [समासेन] संक्षेपथी [वक्तव्यम्] कहेवायोग्य छे. [निश्चयस्य वचनं] (हवे) निश्चयनुं वचन [शृण] सांभळ [यत्] के जे [परिणामकृतं तु भवति] परिणामविषयक छे.

[यथा] जेम [शिल्पिकः तु] शिल्पी [चेष्टां करोति] चेष्टारूप कर्मने (पोताना परिणामरूप कर्मने) करे छे [तथा च] अने [तस्याः अनन्यः भवति] तेनाथी अनन्य छे, [तथा] तेम [जीवः अपि च] जीव पण [कर्म करोति] (पोताना परिणामरूप) कर्मने करे छे [च] अने [तस्मात् अनन्यः भवति] तेनाथी अनन्य छे. [यथा] जेम [चेष्टां कुर्वाणः] चेष्टारूप कर्म करतो [शिल्पिकः तु] शिल्पी [नित्यदुःखितः भवति] नित्य दुःखी थाय छे [तस्मात् च] अने तेनाथी (दुःखथी) [अनन्यः स्यात्] अनन्य छे, [तथा] तेम [चेष्टमानः] चेष्टा करतो (पोताना परिणामरूप कर्मने करतो) [जीवः] जीव [दुःखी] दुःखी थाय छे (अने दुःखथी अनन्य छे).

टीकाः– जेवी रीते-शिल्पी अर्थात् सोनी आदि कारीगर कुंडळ आदि जे परद्रव्यपरिणामात्मक (-परद्रव्यना परिणामस्वरूप) कर्म तेने करे छे, हथोडा आदि जे परद्रव्यपरिणामात्मक करणो तेमना वडे करे छे, हथोडा आदि जे परद्रव्यपरिणामात्मक करणो तेमने ग्रहण करे छे अने कुंडळ आदि कर्मनुं जे गाम आदि परद्रव्यपरिणामा-


PDF/HTML Page 3330 of 4199
single page version

(नर्दटक)
ननु परिणाम एव किल कर्म विनिश्चयतः
स भवति नापरस्य परिणामिन एव भवेत्।
न भवति कर्तृशून्यमिह कर्म न चैकतया
स्थितिरिह वस्तुनो भवतु कर्तृ तदेव ततः।। २११।।

त्मक फळ तेने भोगवे छे, परंतु अनेकद्रव्यपणाने लीधे तेमनाथी (कर्म, करण आदिथी) अन्य होवाथी तन्मय (कर्मकरणादिमय) थतो नथी; माटे निमित्तनैमित्तिकभावमात्रथी ज त्यां कर्ता-कर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो व्यवहार छे; तेवी रीते-आत्मा पण पुण्यपाप आदि जे पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मक (-पुद्गलद्रव्यना परिणामस्वरूप) कर्म तेने करे छे, काय-वचन-मन एवां जे पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मक करणो तेमना वडे करे छे, काय-वचन-मन एवां जे पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मक करणो तेमने ग्रहण करे छे अने पुण्यपाप आदि कर्मनुं जे सुखदुःख आदि पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मक फळ तेने भोगवे छे, परंतु अनेकद्रव्यपणाने लीधे तेमनाथी अन्य होवाथी तन्मय (ते-मय) थतो नथी; माटे निमित्त-नैमित्तिकभावमात्रथी ज त्यां कर्ता-कर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो व्यवहार छे.

वळी जेवी रीते-ते ज शिल्पी, करवानो इच्छक वर्ततो थको, चेष्टारूप (अर्थात् कुंडळ आदि करवाना पोताना परिणामरूप अने हस्त आदिना व्यापाररूप) एवुं जे स्वपरिणामात्मक कर्म तेने करे छे तथा दुःखस्वरूप एवुं जे चेष्टारूप कर्मनुं स्वपरिणामात्मक फळ तेने भोगवे छे, अने एकद्रव्यपणाने लीधे तेमनाथी (कर्म अने कर्मफळथी) अनन्य होवाथी तन्मय (कर्ममय ने कर्मफळमय) छे; माटे परिणाम- परिणामीभावथी त्यां ज कर्ता-कर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो निश्चय छे; तेवी रीते-आत्मा पण, करवानो इच्छक वर्ततो थको, चेष्टारूप (-रागादिपरिणामरूप अने प्रदेशोना व्यापाररूप) एवुं जे आत्मपरिणामात्मक कर्म तेने करे छे तथा दुःखस्वरूप एवुं जे चेष्टारूप कर्मनुं आत्मपरिणामात्मक फळ तेने भोगवे छे, अने एकद्रव्यपणाने लीधे तेमनाथी अनन्य होवाथी तन्मय (ते-मय) छे; माटे परिणाम-परिणामीभावथी त्यां ज कर्ता-कर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो निश्चय छे.

हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः- श्लोकार्थः– [ननु परिणामः एव किल विनिश्चयतः कर्म] खरेखर परिणाम छे ते ज निश्चयथी कर्म छे, अने [सः परिणामिनः एव भवेत्, अपरस्य न भवति] परिणाम पोताना आश्रयभूत परिणामीनुं ज होय छे, अन्यनुं नहि (कारण के परिणामो पोतपोताना द्रव्यना आश्रये छे, अन्यना परिणामनो अन्य आश्रय नथी


PDF/HTML Page 3331 of 4199
single page version

(पृथ्वी)
बहिर्लुठति यद्यपि स्फुटदनन्तशक्तिः स्वयं
तथाप्यपरवस्तुनो विशति नान्यवस्त्वन्तरम्।
स्वभावनियतं यतः सकलमेव वस्त्विष्यते
स्वभावचलनाकुलः किमिह मोहितः किॢश्यते।। २१२।।
(रथोद्धता)
वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनो
येन तेन खलु वस्तु वस्तु तत्।
निश्चयोऽयमपरोऽपरस्य कः
किं करोति हि बहिर्लुठन्नपि ।। २१३।।

होतो); [इह कर्म कर्तृशून्यम् न भवति] वळी कर्म कर्ता विना होतुं नथी, [च वस्तुनः एकतया स्थितिः इह न] तेम ज वस्तुनी एकरूपे स्थिति (अर्थात् कूटस्थ स्थिति) होती नथी (कारण के वस्तु द्रव्यपर्यायस्वरूप होवाथी सर्वथा नित्यपणुं बाधासहित छे); [ततः तद् एव कर्तृ भवतु] माटे वस्तु पोते ज पोताना परिणामरूप कर्मनी कर्ता छे (-ए निश्चय-सिद्धांत छे). २११.

हवे आगळनी गाथाओनी सूचनारूपे काव्य कहे छेः- श्लोकार्थः– [स्वयं स्फुटत्–अनंत–शक्तिः] जेने पोताने अनंत शक्ति प्रकाशमान छे एवी वस्तु [बहिः यद्यपि लुठति] अन्य वस्तुनी बहार जोके लोटे छे [तथापि अन्य–वस्तु अपरवस्तुनः अन्तरम् न विशति] तोपण अन्य वस्तु अन्य वस्तुनी अंदर प्रवेशती नथी, [यतः सकलम् एव वस्तु स्वभाव–नियतम् इष्यते] कारण के समस्त वस्तुओ पोतपोताना स्वभावमां निश्चित छे एम मानवामां आवे छे. (आचार्यदेव कहे छे के-) [इह] आम होवा छतां, [मोहितः] मोहित जीव, [स्वभाव–चलन–आकुलः] पोताना स्वभावथी चलित थईने आकुळ थतो थको, [किम् क्लिश्यते] शा माटे कलेश पामे छे?

भावार्थः– वस्तुस्वभाव तो नियमरूपे एवो छे के कोई वस्तुमां कोई वस्तु मळे नहि. आम होवा छतां, आ मोही प्राणी, ‘परज्ञेयो साथे पोताने पारमार्थिक संबंध छे’ एम मानीने, कलेश पामे छे, ते मोटुं अज्ञान छे. २१२.

फरी आगळनी गाथाओनी सूचनारूपे बीजुं काव्य कहे छेः- श्लोकार्थः– [इह च] आ लोकमां [येन एकम् वस्तु अन्यवस्तुनः न] एक


PDF/HTML Page 3332 of 4199
single page version

(रथोद्धता)
यत्तु वस्तु कुरुतेऽन्यवस्तुनः
किञ्चनापि परिणामिनः स्वयम् ।
व्यावहारिकद्रशैव तन्मतं
नान्यदस्ति किमपीह निश्चयात् ।। २१४।।

वस्तु अन्य वस्तुनी नथी, [तेन खलु वस्तु तत् वस्तु] तेथी खरेखर वस्तु छे ते वस्तु ज छे- [अयम् निश्चयः] ए निश्चय छे. [कः अपरः] आम होवाथी कोई अन्य वस्तु [अपरस्य बहिः लुठन् अपि हि] अन्य वस्तुनी बहार लोटतां छतां [किं करोति] तेने शुं करी शके?

भावार्थः– वस्तुनो स्वभाव तो एवो छे के एक वस्तु अन्य वस्तुने पलटावी न शके. जो एम न होय तो वस्तुनुं वस्तुपणुं ज न ठरे. आम ज्यां एक वस्तु अन्यने परिणमावी शक्ती नथी त्यां एक वस्तुए अन्यने शुं कर्युं? कांई न कर्युं. चेतन-वस्तु साथे एकक्षेत्रावगाहरूपे पुद्गलो रहेलां छे तोपण चेतनने जड करीने पोतारूपे तो परिणमावी शक्यां नहि; तो पछी पुद्गले चेतनने शुं कर्यंुं? कांई न कर्युं.

आ उपरथी एम समजवुं के-व्यवहारे परद्रव्योने अने आत्माने ज्ञेयज्ञायक संबंध होवा छतां परद्रव्यो ज्ञायकने कांई करतां नथी अने ज्ञायक परद्रव्योने कांई करतो नथी. २१३.

हवे, ए ज अर्थने द्रढ करतुं त्रीजुं काव्य कहे छेः-

श्लोकार्थः– [वस्तु] एक वस्तु [स्वयम् परिणामिनः अन्य–वस्तुनः] स्वयं परिणमती अन्य वस्तुने [किञ्चन अपि कुरुते] कांई पण करी शके छे- [यत् तु] एम जे मानवामां आवे छे, [तत् व्यावहारिक–द्रशा एव मतम्] ते व्यवहारद्रष्टिथी ज मानवामां आवे छे. [निश्चयात्] निश्चयथी [इह अन्यत् किम् अपि न अस्ति] लोकमां अन्य वस्तुने अन्य वस्तु कांई पण नथी (अर्थात् एक वस्तुने अन्य वस्तु साथे कांई पण संबंध नथी).

भावार्थः– एक द्रव्यना परिणमनमां अन्य द्रव्य निमित्त देखीने एम कहेवुं के ‘अन्य द्रव्ये आ कर्युं’ , ते व्यवहारनयनी द्रष्टिथी ज छे; निश्चयथी तो ते द्रव्यमां अन्य द्रव्ये कांई कर्युं नथी. वस्तुना पर्यायस्वभावने लीधे वस्तुनुं पोतानुं ज एक अवस्थाथी बीजी अवस्थारूप परिणमन थाय छे; तेमां अन्य वस्तु पोतानुं कांई भेळवी शक्ती नथी.


PDF/HTML Page 3333 of 4199
single page version

आ उपरथी एम समजवुं के-परद्रव्यरूप ज्ञेय पदार्थो तेमना भावे परिणमे छे अने ज्ञायक आत्मा पोताना भावे परिणमे छे; तेओ एकबीजाने परस्पर कांई करी शक्ता नथी. माटे ‘ज्ञायक परद्रव्योने जाणे छे’ एम व्यवहारथी ज मानवामां आवे छे; निश्चयथी ज्ञायक तो बस ज्ञायक ज छे. २१४.

*
समयसार गाथा ३४९ थी ३पपः मथाळुं

हवे आ कथनने द्रष्टांत द्वारा गाथामां कहे छेः-

* गाथा ३४९ थी ३पपः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘जेवी रीते-शिल्पी अर्थात् सोनी आदि कारीगर कुंडळ आदि जे परद्रव्य- परिणामात्मक (परद्रव्यना परिणामस्वरूप) कर्म तेने करे छे, हथोडा आदि जे परद्रव्यपरिणामात्मक करणो तेमना वडे करे छे, हथोडा आदि जे परद्रव्यपरिणामात्मक करणो तेमने ग्रहण करे छे अने कुंडळ आदि कर्मनुं जे गाम आदि परद्रव्य-परिणामात्मक फळ तेने भोगवे छे, परंतु अनेकद्रव्यपणाने लीधे तेमनाथी (कर्म, करण आदिथी) अन्य होवाथी तन्मय (कर्मकरणादिमय) थतो नथी; माटे निमित्त-नैमित्तिकभावमात्रथी ज त्यां कर्ता-कर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो व्यवहार छे.’

‘जेवी रीते शिल्पी अर्थात् सोनी आदि कारीगर कुंडळ आदि जे परद्रव्या- परिणामात्मक कर्म तेने करे छे,....’ अहाहा.....! जोयुं? कुंडळ आदि जे कर्म नाम कार्य छे ते परद्रव्य परिणामात्मक छे. हवे आमां बधा वांधाः एम के शिल्पी-सोनी आदि करे छे एम कह्युं छे ने?

बापु! ‘करे छे’ -एम कह्युं ए तो व्यवहार दर्शाव्यो छे, बाकी सोनी आदि क्यां एमां तन्मय छे?

पण करी शके तो ‘करे छे’ -एम कहे ने?

एम नथी भाई! करी शकतो नथी, पण निमित्तनी मुख्यताथी ‘करे छे’ -एम कहेवानो व्यवहार छे एम अहीं कहेवुं छे. समजाणुं कांई.....? सोनी कुंडळने करी शके छे एम नहि, पण ते कुंडळने करे छे एम व्यवहारथी कहेवाय छे, बोलाय छे. ल्यो, हवे आवी झीणी वात!

आत्मा परनी दया पाळी शके, शरीरने हलावी-चलावी शके, वाणी बोली शके,


PDF/HTML Page 3334 of 4199
single page version

खान-पान आदि काम करी शके -एम त्रणकाळमां नथी; पण निमित्तनी मुख्यता करीने ते (-आत्मा) करे छे एम व्यवहारथी कहेवामां आवे छे; सत्यार्थपणे ते परद्रव्यनां कार्यनो कर्ता नथी. जुओ, अहीं कह्युं ने आ के-शिल्पी एटले सोनी आदि कारीगर कुंडळ आदि जे परद्रव्यना परिणामस्वरूप कर्म तेने करे छे पण अनेकद्रव्यपणाने लीधे तेमनाथी अन्य होवाथी तन्मय थतो नथी तेथी निमित्तनैमित्तिकभावमात्रथी ज त्यां कर्ता-कर्मपणानो व्यवहार छे. भाई! आ तो भगवानना घरनी प्रसादी -एकलुं अमृत छे बापा!

सोनीए कुंडळ कर्युं, सुथारे गाडुं बनाव्युं, रंगरेजे रंगनुं चितरामण काढयुं, गुमास्ताए नामुं लख्युं ने भगवाने उपदेश दीधो इत्यादि बधुं व्यवहारथी कहेवाय भले, पण एम छे नहि. भारे गजबनी वात छे भाई! दुनियाथी साव जुदी छे ने? एम कहेवाय ए तो बधां निमित्तनां कथन बापा! बाकी जीव परद्रव्यनां कार्य (-परिणाम) करे ए त्रणकाळमां संभवित नथी, केम के परद्रव्यमां ए तन्मय थतो नथी. अन्य द्रव्यमां अन्य द्रव्य तन्मय थतुं ज नथी, थई शकतुं ज नथी-आ नियम छे, सिद्धांत छे.

आ रोटली थाय, सेव, पापड ने वडीओ थाय, भरत-गुंथणनुं काम थाय ए बधां परद्रव्यना परिणामस्वरूप कर्म छे; तेने बाईयुं करी शकती नथी. आ काचना आभला सरखा गोठवीने टांके छे ने? अहीं कहे छे-ए बधुं बाईयुं करी शकती नथी; करे छे एम कहेवुं ए व्यवहारनुं निमित्तनुं कथन छे, बस; करे छे एम नहि; केमके तेमां ते तन्मय नथी. आवुं गंभीर तत्त्व छे.

कहे छे- आत्मा परना कार्यमां तन्मय थतो नथी. एटले शुं? के तेमां प्रवेश करतो नथी, तेने स्पर्श सुद्धां करतो नथी. हवे आवुं छे ज्यां त्यां ए परनां कार्योनो कर्ता केम थई शके? जे अडेय नहि ए परनुं शुं करे? कांई नहि. भाई! परनां-जडनां कार्यनो कर्ता पर-जड छे; तथापि ते (जडनुं कार्य) जीवे कर्युं एम कहेवुं ए व्यवहारनुं कथन छे.

अहाहा....! परद्रव्यना परिणाम हुं करुं -एवी जे इच्छा थाय ते इच्छानो जीव कर्ता अने ते इच्छा एनुं कर्म -एम तो कोई प्रकारे छे. पण परद्रव्यना परिणाम जे थाय तेनो कर्ता तो जीव कोई प्रकारे नथी, कदीय नथी. अहा! निज ज्ञानानंदस्वरूपथी भ्रष्ट एवो पर्यायबुद्धिवाळो जीव, परने हुं करुं एवी इच्छानो कर्ता तो छे, पण परनो ते कदीय कर्ता नथी केमके परमां ते तन्मय थतो नथी.

आ खटारानो अकस्मात थतां कईकना देह छूटी जाय छे ने! त्यां आयुना


PDF/HTML Page 3335 of 4199
single page version

परमाणु कर्ता अने देह छूटी जाय ते एनुं कर्म एम छे नहि. ए तो देहमां जीवने तेटलो ज काळ रहेवानी योग्यता छे एम यथार्थ समजवुं; जे समये देह छूटवायोग्य होय ते ज समये देह छूटी जाय छे, खटाराना परमाणु अने आयुकर्मना पुद्गलो तो एमां निमित्तमात्र छे. आयुना कारणे जीव देहमां रह्यो छे एम कहेवुं ए निमित्तनुं कथन छे, बाकी आयु कर्म के खटाराना परमाणु क्यां एमां (-जीवमां) तन्मय छे? नथी ज. तेओ जीव साथे कदीय तन्मय-एकमेक थतां नथी.

सोनी हथोडां आदि साधन वडे कुंडळनो घाट घडे छे एम कहेवुं ए व्यवहार छे अने तेथी असत्यार्थ छे. भाई! आम हथोडो ऊंचो थाय ते कार्यनो कर्ता आत्मा नथी. अहाहा....! हथोडो ग्रहे ते आत्मा नहि, आम हथोडो ऊंचो थाय ते कार्य आत्मानुं नहि अने कुंडळादिनो घाट बने तेय आत्मानुं कार्य नहि. बहु झीणी वात! आत्मा परद्रव्यने ग्रहे-पकडे ज नहि त्यां पछी एने करण नाम साधन बनावी ते वडे कुंडळ आदि करे ए वात क्यां रहे छे?

पण लोको एम कहे छे ने? ए तो व्यवहार-असद्भूत व्यवहार छे ने एम कोई माने तो ए एनुं अज्ञान छे. वास्तवमां जीव अज्ञानपणे पोताना रागादि परिणामने करे ने एने भोगवे बस एटलुं छे, पण परद्रव्यने ते ग्रहे के तेने साधन बनावी परद्रव्यनी क्रिया ते करे एम त्रणकाळमां सत्यार्थ नथी. समजाणुं कांई....?

अहाहा....! अंदर आत्मा सच्चिदानंद प्रभु सदा एक ज्ञायकस्वभावे बिराजे छे. अहाहा...! तेनुं जेने अंतरमां भान थयुं ते ज्ञानी पुरुष धर्मात्मा छे. अहा! ते धर्मी पुरुष, परनो कर्ता छे ए तो दूर रहो, ते परना कार्यकाळे पर्यायमां जे राग थाय तेनोय कर्ता नथी. कोई सोनी धर्मात्मा होय ते, हथोडा आदि करणो वडे कुंडळ करे छे एम तो नहि, पण कुंडळ थवाना काळे तेनी पर्यायमां जे राग थाय तेनोय ते कर्ता नथी. आवी सूक्ष्म वात! समजाय छे कांई...? बापु! हथोडो ग्रहे ने हथोडो ऊेचो करे ने आम कुंडळ घडे इत्यादि बधुं उपचरित असद्भूत व्यवहारनयनुं कथन छे. अहीं तो अज्ञानी जीव पण परद्रव्यनुं कांई (-परिणाम) न करे एम सिद्ध करवुं छे.

धर्मी जीव कदाचित् लडाईमां ऊभो होय तो त्यां हथियारने हुं आम ग्रही शकुं छुं ने ते वडे दुश्मनने हुं ठार करी शकुं छुं -एम कदीय मानतो नथी. अहा! ते काळे तेने जे अस्थिरताना राग-द्वेष थाय तेनो पण ते कर्ता नथी; ते तो ते काळे थई आवता विकल्पनोय ज्ञाता ज छे. परंतु अज्ञानीनी चाल जुदी छे.


PDF/HTML Page 3336 of 4199
single page version

ए तो परद्रव्यने हुं करुं-एम मानीने रागादि विकारनो कर्ता थाय छे; परद्रव्यनी क्रिया तो जेम थवी होय तेम जे ते काळे थाय छे, अज्ञानी पण ते करी शकतो नथी, पण ते मफतमां हुं करुं एवो अहंकार करी रागादि विकारनो कर्ता थाय छे.

अहीं कहे छे-शिल्पी-सोनी आदि कुंडळ आदि करे छे अने कुंडळ आदि कर्मनुं जे गाम आदि परद्रव्य परिणामस्वरूप फळ तेने भोगवे छे एम कहेवुं ते असद्भूत व्यवहारनय छे शुं कीधुं? के सोनीए राणी साहेबा माटे घरेणां बनाव्यां होय तेथी प्रसन्न थई तेनी खुशालीमां तेने राजा दशहजारनी उपजवाळुं गाम सोनीने भेट आपे तो सोनी एने भोगवे छे एम कहेवुं ए व्यवहार छे; एटले के एम छे नहि. परद्रव्यनी अवस्थाने आत्मा करे ने भोगवे एम त्रणकाळमां छे नहि. आ लांबो कुटुंब-परिवार ने धन-संपत्ति आदि वैभवने आत्मा भोगवे एम छे नहि; एम माने तो ते मिथ्यात्व छे. भाई! अन्य-अन्य द्रव्योमां निमित्तनैमित्तिकभावमात्रथी ज कर्ता-कर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो व्यवहार छे.

संवत ७२नी सालनी वात छे. लोको बहु मागणी करे के कानजीस्वामी वांचो. त्यारे गुरुए कह्युं, भाई! आ लोको बहु कहे छे अने हवे तने वांचतां सारुं आवडे छे, एम के तें घणुं बधुं वांच्युं छे ने तने वांचतां सारुं आवडे छे तो तारे वांचवुं जोईए. त्यारे बहु विनयथी कह्युं -महाराज! हुं वांचवा नीकळ्‌यो नथी हों... हुं तो मारुं काम (- आत्मज्ञान) करवा नीकळ्‌यो छुं. वांचवानुं ए कांई मारुं काम नहि, आ तो ए वखते आम कहेलुं हों. अहीं कहे छे-परद्रव्यना परिणामने आत्मा करे के भोगवे एम कहेवुं ए व्यवहारनयनुं एटले असत्यार्थनयनुं कथन छे. हवे आवी वात लोकोने बहु आकरी पडे पण शुं थाय? आ तो वस्तुस्थिति छे.

आ लोकमां अनंत द्रव्यो छेः अनंत जीव, अनंता अनंत पुद्गल, असंख्यात कालाणु ने धर्म, अधर्म अने आकाश एकेक एम अनंत द्रव्यो छे.’ हवे ते अनंत क्यारे रहे? के प्रत्येक पोतानुं कार्य करे पण परनुं कार्य न करे त्यारे. जो एक द्रव्य बीजानुं कार्य करे तो बन्ने एक थई जाय, एम अनंता द्रव्यो बधां एक थई जाय अने अनंत द्रव्यो अनंतपणे स्वतंत्र न रहे. आम न्यायथी सिद्ध थाय छे के कोई द्रव्य बीजानुं कर्ता नथी. एकने बीजानो कर्ता कहेवो ए तो मात्र निमित्तनुं कथन छे. आ दाखलो कीधो; हवे कहे छे-

‘तेवी रीते-आत्मा पण पुण्य-पाप आदि जे पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मक (- पुद्गलद्रव्यना परिणामस्वरूप) कर्म तेने करे छे, काय-वचन-मन एवां जे पुद्गलद्रव्यपरिणात्मक करणो तेमने ग्रहण करे छे अने पुण्यपाप आदि कर्मनुं जे


PDF/HTML Page 3337 of 4199
single page version

सुखदुःख आदि पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मक फळ तेने भोगवे छे, परंतु अनेकद्रव्यपणाने लीधे तेमनाथी अन्य होवाथी तन्मय (ते-मय) थतो नथी; माटे निमित्त-नैमित्तिकभावमात्रथी ज त्यां कर्ताकर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो व्यवहार छे.’

शुं कीधुं? आने (-जीवने-) जे शुभाशुभभाव थाय तेना निमित्ते पुण्य-पापरूप पुद्गलद्रव्यना परिणामरूप जड कर्म बंधाय छे; आ (-जीव) दया, दान, आदिनो शुभराग करे त्यारे पुण्यकर्म बंधाय छे. त्यां जीवना परिणाम निमित्त छे तो जीव पुण्य- पाप आदि कर्म करे छे एम व्यवहारथी कहेवाय छे. एम छे नहि हों; जीव कर्ता ने पुण्य- पापरूप जड कर्म एनुं कार्य एम छे नहि, आ तो निमित्त-नैमित्तिकभावमात्रथी ज तेमने कर्ता-कर्मपणानो व्यवहार छे. आवी झीणी वात छे. जेम सोनी कुंडळादि करे छे एम कहेवानो व्यवहार छे तेम जीव जड कर्मने करे छे एम कथनमात्र व्यवहार छे.

त्यारे कोई पंडित वळी कहे छे-जीव परद्रव्यने करतो नथी एम जे माने ते दिगंबर नथी.

अरे प्रभु! तुं शुं कहे छे आ? अहीं दिगंबराचार्य संत मुनिवर शुं कहे छे ए तो जो. अहाहा.....! आत्मा परद्रव्यरूप जडकर्मने करे छे एम कहेवुं ए कथनमात्र व्यवहार छे; केमके आत्मा जडकर्ममां तन्मय थतो नथी, जडकर्मने स्पर्शतो नथी. तेथी जडकर्मनो ए वास्तविक कर्ता नथी. आवी वात! समजाणुं कांई....?

काय-वचन-मन एवां जे पुद्गलपरिणामस्वरूप करणो ते वडे ते कर्मने करे छे एम कहीए तेय व्यवहार छे. भाई! मन-वचन-काय ए तो परद्रव्यना-पुद्गलना परिणाम छे. तेने आत्मा क्यां ग्रहे छे? जेने अडे पण नहि तेने (मन-वचन-कायने) आत्मा केवी रीते ग्रहे? अने ग्रहे नहि तो ते वडे जडकर्मने करे छे ए वात क्यां रहे छे? (रहेती नथी). आ तो बाह्य निमित्त छे तो निमित्तनी मुख्यताथी उपचारथी कहेवाय छे के मन-वचन-कायरूप करणो वडे आत्मा कर्मने करे छे. बाकी आत्मा मन-वचन-कायने ग्रहेय नहि ने ते वडे जडकर्मने करेय नहि. आवी वस्तुस्थिति छे.

वळी पुण्य-पाप आदि कर्मनुं सुखदुःख आदि पुद्गलद्रव्यना परिणामस्वरूप जे फळ तेने जीव वास्तवमां भोगवतो नथी. जुओ, अहीं जडकर्मनुं फळ जे बहारना संयोगो छे तेने जीव भोगवतो नथी-एम कहेवुं छे; छतां भोगवे छे एम कहेवामां आवे ते व्यवहारनुं कथन छे. भाई! कर्मनुं फळ तो आ शरीर, मन, वाणी, ईन्द्रियो ने धनादि बहारनी संपत्ति छे. ए तो बधां जड माटी-धूळ छे. एने शुं जीव


PDF/HTML Page 3338 of 4199
single page version

भोगवे? आ शरीर-हाड, मांस ने चामडां-एने शुं जीव भोगवे? कदीय न भोगवे. परद्रव्यने हुं भोगवुं छुं एम माने ए तो मिथ्याद्रष्टि छे. आवुं बधुं (मिथ्या) मानेलुं बहु फेरववुं पडे भाई! जीव परद्रव्यने भोगवतो नथी-भोगवी शकतो नथी केमके परद्रव्यमां ते तन्मय थतो नथी. माटे निमित्त-नैमित्तिकभावमात्रथी ज एने परद्रव्य साथे कर्ताकर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो व्यवहार छे.

आ व्यवहार कह्यो; हवे निश्चय कहे छेः-

‘वळी जेवी रीते-ते ज शिल्पी, करवानो ईच्छक वर्ततो थको, चेष्टारूप

(अर्थात् कुंडळ आदि करवाना पोताना परिणामरूप अने हस्त आदिना व्यापाररूप) एवुं जे स्वपरिणामात्मक कर्म तेने करे छे तथा दुःखस्वरूप एवुं जे चेष्टारूप कर्मनुं स्वपरिणामात्मक फळ तेने भोगवे छे, अने एकद्रव्यपणाने लीधे तेमनाथी (कर्म अने कर्मफळथी) अनन्य होवाथी तन्मय (कर्ममय अने कर्मफळमय) छे; माटे परिणाम- परिणामीभावथी त्यां ज कर्ता-कर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो निश्चय छे;.....’

जोयुं? ‘हुं कुंडळादि करुं’ एवी शिल्पी-सोनी आदिनी इच्छारूप चेष्टाने-राग आदि भावने-अहीं स्वपरिणामात्मक कर्म कह्युं छे. अहीं जीव परथी भिन्न छे अने परद्रव्यनुं कार्य करी शके नहि, एम सिद्ध करवुं छे; तेथी जीवे जे राग कर्यो ते एनुं स्वपरिणामरूपी कार्य छे एम कह्युं छे. अहीं रागना परिणाम ते एनुं कर्तव्य-करवायोग्य कर्म छे ए वात नथी लेवी. अत्यारे तो जे सोनी आदिने कुंडळादि करवाना राग आदि भाव थया ते एनुं-स्वभावथी जे भ्रष्ट छे एवा अज्ञानीनुं स्वपरिणामरूप कर्म छे एम लेवुं छे. समजाय छे कांई...? अहा! जेने पोताना चैतन्यस्वभावनुं भान नथी, जेने सम्यक्त्वादि निर्मळ रत्नत्रयनी प्राप्ति थई नथी एवो अज्ञानी जीव स्वपरिणामस्वरूप राग-द्वेष आदि परिणामने करे छे-ए निश्चय छे एम अहीं कहे छे.

में आटला मंदिर कराव्यां ने आटलां पुस्तक छपाव्यां ने आटला शिष्य कर्या-एम बहारनां काम कर्यानुं अज्ञानी अभिमान करे छे ने? अहीं कहे छे-भाई! जरा सांभळ. ए परिणाम जे जडमां ने परद्रव्यमां थाय छे तेमां तुं तन्मय नथी. एने (-मंदिरादिने) तुं शुं करे? तन्मय थया विना केवी रीते करे? परंतु एना थवाना काळे तने जे इच्छा थई तेनो भगवान! तुं अज्ञानभावे कर्ता छे. जडनो ने परनो कर्ता नथी. , पण रागादिरूप स्वपरिणामात्मक जे कर्म तेनो तुं अज्ञानपणे अवश्य कर्ता छे. आवी वात!

अज्ञानी जीव स्वपरिणामात्मक कर्मने करे छे अने दुःखस्वरूप एवुं जे चेष्टारूप


PDF/HTML Page 3339 of 4199
single page version

कर्मनुं स्वपरिणामात्मक फळ तेने भोगवे छे. शुं कीधुं? अज्ञानी जीव रागनो कर्ता अने रागनुं फळ जे दुःख तेनो ते भोक्ता छे. एम तो छे पण संयोगी चीज जे पैसा, बायडी- छोकरां आबरू इत्यादिने ते भोगवतो नथी. अहीं पोताना रागादि कर्मने अज्ञानी करे अने तेनुं फळ जे हरख आदि तेने भोगवे, पण पैसा, मकान, स्त्री, इत्यादि परद्रव्यने त्रणकाळमां भोगवी शके नहि-ए मूळ वात सिद्ध करवी छे.

जीव क्यांसुधी रागने करे छे अने एना फळने भोगवे छे? के ज्यांसुधी ‘हुं एक ज्ञानानंदस्वभावी आत्मा छुं’ -एवी द्रष्टिनो अभाव छे त्यांसुधी ते रागादिनो कर्ता अने तेना फळ-दुःखनो भोक्ता छे. निज चिदानंदस्वरूपनी अंतरमां द्रष्टि थतां ते रागादिनो अकर्ता छे अने अभोक्ता छे. आमां त्रण प्रकारे वात छे.

१. अज्ञानी जीव परमां जे हरख-शोकना भाव करे छे तेने भोगवे छे, पण

परद्रव्यने-स्त्री, धन, मकान इत्यादिने भोगवतो नथी.

२. ज्ञानी जीवने अंतरंगमां स्वभावनुं-शुद्ध एक ज्ञायकभावनुं भान थयुं छे तेथी

ते स्वभावद्रष्टिए रागादिनुं कर्ता नथी अने तेनुं फळ जे दुःख तेनो भोक्ता
नथी.

३. तोपण ज्ञानीने जेटलुं रागनुं परिणमन छे तेटलुं परिणमननी अपेक्षाए

कर्तापणुं छे अने भोक्तापणुंय छे. आवुं बधुं झीणुं छे. ज्ञानी स्वभावनी
द्रष्टिनी अपेक्षाए रागने करतो नथी, दुःखने भोगवतो नथी. पण एथी कोई
एकांत पकडीने माने के ज्ञानीने सर्वथा दुःख ज नथी तो एम वात नथी.
ज्ञानीने यत्किंचित् जे राग छे तेटलुं ते वखते दुःख छे अने तेटलो ते भोक्ता
पण छे.

अहीं अत्यारे अज्ञानीनी वात चाले छे के जीव स्वपरिणामात्मक रागना परिणामनो कर्ता छे अने तेना फळरूपे जे हरख-शोकना परिणाम थाय तेनो ते भोक्ता छे; पण परद्रव्यनो कर्ता-भोक्ता नथी.

पण पुण्य-पाप आदि भावने पुद्गलस्वभाव कह्या छे ने? समाधानः– हा, कह्या छे. स्वभावद्रष्टिवंत पुरुष द्रष्टिनी प्रधानतामां तेने (- पुण्य-पाप आदि भावोने) पुद्गलस्वभाव जाणे छे केमके तेओ स्वभावमां नथी अने स्वभावनी द्रष्टिमां-स्वानुभूतिमां समाता नथी, भिन्न ज रही जाय छे. वळी तेओ पुद्गलना-कर्मना उदयना लक्षे पर्यायमां थाय छे अने स्वभावनुं लक्ष करतां नीकळी जाय छे माटे तेमने पुद्गलस्वभाव कह्या छे. पण अहीं बीजी वात छे. अहीं तो अज्ञानी जीव पोते रागना परिणामने करे छे अने तेनुं फळ जे दुःख तेने भोगवे छे केमके अज्ञानी जीव पोताना परिणामथी तन्मय छे. परंतु परद्रव्यनी जे पर्याय


PDF/HTML Page 3340 of 4199
single page version

थाय तेनो ते कर्ता-भोक्ता नथी केमके तेमां ए तन्मय नथी. भाई! आ शरीर, मन, वाणी, कर्म, धन्य-धान्य, झवेरात, मकान, लाडु, गुलाबजांबु इत्यादि जे बधा परद्रव्यना परिणाम छे तेने जीव करेय नहि ने भोगवेय नहि.

अहाहा....! आने पर्यायमां जे शुभाशुभभाव थाय ते परिणाम छे अने पोतानुं द्रव्य ते परिणामी छे. ते परिणाम परिणामीथी अनन्य छे एम अहीं कहेल छे. आ स्वरूपथी च्युत एवा अज्ञानी जीवनी वात छे. शुभाशुभभावथी जीव अनन्य छे, तन्मय छे. माटे, कहे छे, परिणाम-परिणामी भावथी त्यां कर्ता-कर्मपणुं छे अने भोक्ता- भोग्यपणुं छे एम निश्चय छे.

अहा! शुभाशुभ रागना परिणाम थाय ते परिणामी एवा जीवना परिणाम छे, पण परद्रव्यना परिणाम थाय ते स्वपरिणामीना (-जीवना) परिणाम नथी, परना परिणाम थाय तेनुं परद्रव्य परिणामी छे. भाई! लोजीकथी-न्यायथी वात छे. जेम पोताना परिणामथी तन्मय छे तेम परना परिणाम साथे आत्मा तन्मय नथी. माटे आत्मा पोताना परिणामनो कर्ता-भोक्ता हो, पण परना परिणामनो कदीय कर्ता-भोक्ता नथी. कुंभार, ‘हुं घडो करुं’ -एवा पोताना रागनो कर्ता हो, पण घडानो कदीय कर्ता नथी. आवी वात, बहु झीणी! अहीं तो अज्ञानी जीव परना परिणामनो कर्ता थईने ऊभो छे तेनी ते मिथ्या मान्यताने छोडावे छे. समजाणुं कांई....?

आखुं जगत माने छे एनाथी आ जुदी वात छे. सोनाना हार वगेरे घाट घडाईने तैयार थाय ते, कहे छे, सोनीनुं कार्य नथी, कापडमांथी कोट, पहेरण वगेरे सीवाईने तैयार थाय ते दरजीनुं कार्य नथी, माटीनो घडो थाय ते कुंभारनुं कार्य नथी. गजबनी वात छे भाई! सोनी, दरजी, कुंभार आदि कारीगर स्वपरिणामना-रागना कर्ता छे पण तेओ परद्रव्यना परिणामना कर्ता नथी; केमके परिणाम परिणामीथी अभिन्न एक होय छे अने त्यां ज कर्ता-कर्मपणुं संभवे छे.

प्रश्नः– पण दागीना, कपडां, घडो वगेरे कार्यो कर्ता विना तो होई शके नहि? (एम के सोनी आदि न करे तो केम होय?).

समाधानः– अरे भाई! द्रव्यमां जे प्रतिसमय पर्याय-कार्य थाय ते परिणाम छे अने तेनो कर्ता परिणामी एवुं ते द्रव्य छे. जेम जीव द्रव्य छे तेम पुद्गल एक द्रव्य छे अने तेना प्रत्येक समये थता परिणामनो कर्ता परिणामी पुद्गल द्रव्य छे पण बीजुं नथी. आ दागीना आदि कार्य छे ते परिणाम छे अने तेनो कर्ता परिणामी ते ते (सुवर्ण आदिना) पुद्गल परमाणु छे पण सोनी आदि (जीव) नथी. सोनी आदि तो तेने ते काळे जे राग थाय तेनो कर्ता छे, पण दागीना आदिनो ते कर्ता नथी.