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आ प्रमाणे जडमां जे (दागीना वगेरे) कार्य थाय तेनो कर्ता परिणामी एवा ते ते जड पुद्गल परमाणुओ छे; ते कार्यो कर्ता विना थयां छे एम नथी. तेम ज सोनी आदि जीव तेनो कर्ता छे एम पण नथी. आवी वात छे! कोई (-सोनी आदि) एम माने के ते जडनां कार्यो माराथी (-पोताथी) थयां छे तो ते मूढ अज्ञानी छे केमके तेनी मान्यता मिथ्या छे. समजाणुं कांई.....?
आ सोनी हथोडा वगेरे साधनने ग्रहे छे एम कहीए ते व्यवहार छे. हथोडो आम ऊंचो थाय ते परिणाम छे अने हथोडाना परमाणु तेनुं परिणामी द्रव्य छे. माटे हथोडाना परमाणु कर्ता ने हथोडानुं ऊंचा थवुं ते ते परमाणुओनुं कार्य छे. परंतु हथोडो ऊंचो थाय ते सोनीनुं कार्य नथी, सोनी तेनो कर्ता नथी, केमके ते सोनीना (-जीवना) परिणाम नथी. आ प्रमाणे समये समये परमाणुमां जे परिणाम थाय ते तेना काळे तेनाथी थाय छे, ते परिणाम एनी जन्मक्षण छे, बीजो कोई तेनो कर्ता नथी. आवो ज वस्तुनो स्वतंत्र परिणमन-स्वभाव छे.
अहा! आवी प्रथम वस्तुना परिणामनी स्वतंत्रता बेसवी जोईए. वस्तुना परिणामनी स्वतंत्रता बेसे तो ते परना कर्तापणाथी खसी हुं शुद्ध एक ज्ञानस्वभावी आत्मा छुं एम द्रष्टि करे; अने एम ज्ञायकस्वरूपनी द्रष्टि थाय त्यारे हुं ज्ञानभावनो कर्ता छुं पण रागना-विकारना जे परिणाम थाय तेनो हुं कर्ता नथी एम यथार्थ भान थाय छे. अहा! धर्मी पुरुष तो राग थाय तेनेय मात्र जाणे ज छे, तेने करतो नथी. ‘जाणवुं’ ए एना परिणाम छे, परंतु राग थाय ते एना परिणाम नथी.
अहो! जेम शशीनो-चंद्रनो सफेद उज्ज्वळ प्रकाश छे तेम भगवान आत्मानो परम शुद्ध एक ज्ञानप्रकाश छे. बस जाणवुं ए एनुं कार्य छे. पण परनुं करवुं के तत्संबंधी राग करवो ते एनुं कार्य नथी. परनां कार्य हुं करुं एवी मान्यता ते मिथ्यात्व छे; अने रागनो कर्ता पण अज्ञानी जीव ज थाय छे. अहीं कहे छे-अज्ञानभावे जीव रागनो कर्ता अने राग एनुं कार्य-एम भले हो; पण परनां कार्य जीव करे ए त्रणकाळमां सत्य नथी. आ बधा कार्यकरो फूटी नीकळे छे ने? भूख्याने अनाज देवुं, तरस्याने पाणी पावुं, रोगीने औषध देवुं इत्यादि परनां कार्य अमे करीए छीए एम ए कार्यकरो माने छे ने? अहीं कहे छे-बापु! तारी ए मान्यता मिथ्या छे केमके परनां कार्य तुं (-आत्मा) करी शकतो ज नथी.
भाई! एकेक परमाणु ते ते काळे थता पोतपोताना परिणामना कर्ता छे अने ते ते परिणाम तेनुं कर्म छे. आकाशमां आ प्लेन उडे छे ने? ते तेना चालकने लईने उडे छे एम नथी, तथा पेट्रोल आदि बळतणने लईने उडे छे एमेय नथी. खूब गंभीर वात छे भाई! गति करे एवी परमाणुमां स्वतंत्र (क्रियावती) शक्ति छे. परमाणुमां गति
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थाय ते आ शक्तिनुं कार्य छे. परमाणु पोते ज पोतानी शक्तिथी गतिनो कर्ता छे. प्लेननी गतिनो कर्ता पण प्लेनना जे ते परमाणुओ छे, पण प्लेननो चालक ते गतिनो कर्ता नथी. अहो! आ तो आचार्यदेवे भव्य जीवो माटे परमामृत घोळ्यां छे. कोई आ परमामृतनुं पान करे नहि अने अज्ञानपूर्वकनां व्रत, तप आदि करवा मंडी पडे तो ए तो रणमां पोक मूकवा जेवुं छे; अर्थात् एथी कांई लाभ नथी; केमके तेने तत्त्वद्रष्टि नथी.
वळी जे परिणाम जीवने थाय तेनो ते कर्ता अने तेनो ते भोक्ता छे; पण आहार-पाणी के औषधादि अन्य वस्तुनो ते भोक्ता नथी. शिल्पी-सोनी आदि पोताना कर्मनुं फळ जे सुखदुःख तेने ते भोगवे छे केमके ते ते परिणामथी ते अनन्य छे; अने तेथी त्यां परिणाम-परिणामीभावथी भोक्ता-भोग्यपणानो निश्चय छे. आ तो शिल्पीनो दाखलो कीधो. हवे कहे छे-
‘तेवी रीते-आत्मा पण, करवानो ईच्छक वर्ततो थको, चेष्टारूप (-रागादि- परिणामरूप अने प्रदेशोना व्यापाररूप) एवुं जे आत्मपरिणामात्मक कर्म तेने करे छे तथा दुःखस्वरूप एवुं जे चेष्टारूप कर्मनुं आत्मपरिणामात्मक फळ तेने भोगवे छे, अने एकद्रव्यपणाने लीधे तेमनाथी अनन्य होवाथी तन्मय (ते-मय) छे; माटे परिणाम- परिणामीभावथी त्यां ज कर्ता-कर्मपणानो अने भोक्ता-भोग्यपणानो निश्चय छे.’
अज्ञानी जीव, हुं मकान बनावुं ने आ करुं ने ते करुं-एम इच्छा सहित वर्ततो थको, इच्छाना-रागना परिणामनो कर्ता थाय छे अने ते परिणाम तेनुं कर्म बने छे, तथा ते इच्छानुं-रागनुं फळ जे दुःख तेनो ते भोक्ता छे, पण मकान-महेल इत्यादिनो ते कर्ताय नथी ने भोक्ताय नथी. अहीं परद्रव्यथी पोताना परिणाम भिन्न छे एम सिद्ध करवुं छे. जडनी क्रियानो कर्ता ने भोक्ता जे आत्माने माने ते मूढ मिथ्याद्रष्टि छे. तेम जीवना शुभाशुभ परिणाम थाय तेने परद्रव्य करे छे एम माने तेय मूढ मिथ्याद्रष्टि छे.
भगवाननां दर्शन करतां जीवने शुभ परिणाम थाय छे त्यां भगवाननी प्रतिमाने कारणे ए परिणाम थाय छे एम नथी. भगवाननी प्रतिमा कर्ता ने एना शुभपरिणाम कार्य-एम नथी. ते शुभपरिणामनो जीव ज कर्ता छे अने ते परिणाम जीवनुं कर्म छे. साक्षात् भगवान समोसरणमां बिराजता होय त्यां आने जे भक्ति-स्तुतिना परिणाम थाय ते स्वतंत्र पोताथी थाय छे, भगवाननुं एमां कांई कार्य नथी. भाई! आवुं वस्तुनुं स्वरूप कई रीते छे ते जाण्या विना धर्म केवी रीते थाय?
शुभरागना फळमां जीव पुण्य बांधीने स्वर्गमां जाय तो त्यां सामग्रीनो पार
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नथी, पण सतृष्ण रागी जीवो त्यां बधा दुःखी ज छे. त्यां जीवने राग थाय ते कांई सामग्रीने लईने नथी पण पोताना कारणे थाय छे. बहारमां सामग्री प्रतिकूळ होय तो जे दुःख थाय ते सामग्रीने लईने नथी पण पोताना राग-द्वेषना परिणामनुं फळ जे दुःख ते पोताने पोताथी थाय छे अने तेनो भोक्ता जीव पोते छे.
जीवने जे रागना परिणाम थाय एमां जीव अनन्य छे केमके रागना परिणाम अने आत्माने एकद्रव्यपणुं छे. तेवी रीते तेने रागनुं फळ जे दुःख आवे तेनाथी पण जीव अनन्य छे, तन्मय छे, केमके दुःख-परिणामने अने आत्माने एकद्रव्यपणुं छे. माटे, कहे छे, परिणाम-परिणामीभावथी त्यां ज कर्ताकर्मपणुं अने भोक्ता-भोग्यपणुं होवानो निश्चय छे.
एक बाजु कहे के-शुभराग छे ते जीवना परिणाम जीवथी अनन्य छे अने वळी बीजी बाजु कहे के-शुभराग छे ते पुद्गलना परिणाम छे, जीवथी अन्य छे. हवे आमां समजवुं शुं?
समाधानः– भाई! ज्यां जे अपेक्षाए वात होय तेने ते रीते यथार्थ समजवी जोईए. शुद्ध स्वभावनी द्रष्टिनी अपेक्षाए रागना परिणामने अन्य कह्या छे, केमके स्वभाव ने स्वभावनी द्रष्टिमां राग नथी; वळी पुद्गलकर्मना निमित्ते राग उत्पन्न थाय छे तेथी तेने पुद्गलना परिणाम कह्या छे.
परंतु अज्ञानी जीवने अनादिथी स्वभावनुं भान नथी, ने पर्यायमां जे राग थाय छे तेने कर्मजन्य माने छे. तेने कह्युं के राग छे ते तारी पर्यायमां थाय छे अने ते पर्याय ताराथी अनन्य छे माटे तुं एनो कर्ता छो, कोई पर एनो कर्ता नथी. पर्यायमां अज्ञानीने जे मिथ्यात्वादि परिणाम थाय ते तेनाथी अनन्य छे, जुदा नथी. परद्रव्यना परिणाम जेम जीवथी अत्यंत भिन्न छे तेम रागादि परिणाम जीवथी भिन्न नथी. तेथी जीव पोताना (अज्ञानमय) भावनो कर्ता ने पोताना भावनो भोक्ता छे ए निश्चय छे. आवी वात छे. समजाणुं कांई....? अहा! आम समजीने जीव ज्यारे अंतःस्वभावनी सन्मुख थाय त्यारे तेने सम्यग्दर्शन प्रगट थाय छे.
हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः-
‘ननु परिणामः एव किल विनिश्चयतः कर्म’ खरेखर परिणाम छे ते ज निश्चयथी कर्म छे, अने ‘सः परिणामिनः एव भवेत्, अपरस्य न भवति’ परिणाम पोताना
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आश्रयभूत परिणामीनुं ज होय छे, अन्यनुं नहि (कारण के परिणामो पोतपोताना द्रव्यना आश्रये छे, अन्यना परिणामनो अन्य आश्रय नथी होतो);...........
आ शुं कीधुं? के राग-द्वेष-मोहना परिणाम छे ते निश्चयथी जीवनुं कर्म छे कारण के परिणाम पोताना आश्रयभूत परिणामीनुं ज होय छे, अन्यनुं नहि. आ शरीरनुं हालवुं-चालवुं थाय, भाषा बोलाय-ते परिणाम छे अने ते निश्चयथी पुद्गल परमाणुओनुं कर्म छे; ते जीवनुं कार्य नथी, जीवथी थयेलुं नथी.
जो एम छे तो मडदुं केम बोलतुं नथी? अरे भाई! तुं पूछे छे के मडदुं केम बोलतुं नथी? तो अमे पूछीए छीए के जीव क्यां बोले छे? जीव बोलतो नथी, मडदुं पण बोलतुं नथी. तो आ भाषा केवी रीते थाय छे? आ भाषा बोलाय छे ए तो बापु! जड भाषावर्गणानुं कार्य छे. भाषावर्गणा भाषारूपे परिणमी जाय छे; तेमां शरीरनां होठ, जीभ आदि तथा जीवनो विकल्प निमित्त हो, पण ते जीवनुं के शरीरनुं कार्य नथी; भाषा बोलाय ए भाषावर्गणानुं ज कार्य छे. मडदाना प्रसंगमां भाषा बोलाय एवी भाषावर्गणानी त्यां योग्यता ज होती नथी अने तेथी भाषा पण बोलाती नथी. भाषा बोलाय के न बोलाय, मडदुं हले के न हले-ते ते कार्यनो कर्ता ते ते पुद्गलो छे, बीजो (-जीव) तेनो कर्ता नथी. आवी वात! समजाय छे कांई...?
अहीं कहे छे-खरेखर परिणाम एटले जे पर्याय छे ते ज निश्चयथी कर्म छे. जीवने जे विकारना परिणाम थाय ते ज जीवनुं कर्म छे. अहीं अज्ञानीनी वात छे. परना परिणाम थाय ते जीवनुं कर्म नथी एम परथी भिन्न पाडी परनुं कर्तापणुं जे मान्युं छे ते मटाडवानी आ वात छे.
अहाहा...! कहे छे-परिणाम पोताना आश्रयभूत परिणामीनुं ज होय छे, अन्यनुं नहि. रागद्वेष आदि परिणाम जे थाय ते तेना आश्रयभूत परिणामी द्रव्य आत्माना ज परिणाम छे, अन्यना नहि. विकारना परिणाम थाय ते पोताना ज आश्रयभूत परिणाम छे. ल्यो आवुं!
एक बाजु एम कहे के परना आश्रये ज (स्वना आश्रये नहि) जीवने विकार थाय छे; गाथा २७२ मां आवे छे के-पराश्रितो व्यवहार;, स्वाश्रितो निश्चयः’; अने वळी अहीं कहे छे-विकार थाय ते आश्रयभूत परिणामी आत्माना ज परिणाम छे. आ ते केवी वात!
भाई! ए तो राग थवाना काळे जीवनुं लक्ष पर उपर जाय छे अर्थात् तेने परसन्मुखता होय छे एटले (सन्मुखताना अर्थमां) परना आश्रये राग-विकार
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थाय छे एम त्यां कह्युं छे; राग थवाना काळे स्वसन्मुखता नथी; बाकी रागना परिणाम जे थाय छे ते तो परिणामी जीवना आश्रये थाय छे अर्थात् ते परिणाम जीवनी (पर्यायनी) सत्तामां थाय छे, परनी सत्तामां थता नथी एम अहीं कहेवुं छे. विकार परने आश्रये थाय छे एम कह्युं त्यां ‘परनो आश्रय’ एटले परसन्मुखता समजवी; अने विकार परिणामी एवा आत्माना आश्रयभूत छे एम कह्युं त्यां विकार आत्मानी सत्तामां थाय छे, परनी सत्तामां नहि एम समजवुं. अहीं कह्युं ने के–‘सः परिणामिनः एव भवेत्, अपरस्य न भवति’ पुण्य-पाप आदि भाव परिणामी एवा जीवना आश्रये अर्थात् जीवनी सत्तामां थाय छे, ते परिणाम परथी वा परनी सत्तामां थता नथी.
अहीं तो परिणाम आत्मामां आत्माथी ज थाय छे एम सिद्ध करवुं छे. परिणाम कहेतां वर्तमान पर्याय ते परिणामी वस्तु-द्रव्यना आश्रये ज थाय छे. परिणामनो आश्रय परिणामी ज छे, अन्य नहि; परिणामने अन्यद्रव्य करे एम नहि. आवी वात! अहो! केवळीना केडायतीओ एवा दिगंबर संतोए केवळीना मारगने यथातथ्य प्रसिद्ध करीने जगतने न्याल करी दीधुं छे. आ दुकाने बेठो होय ने हुं खूब पैसा कमाउं एम वेपारी तृष्णा करे ने? ए तृष्णाना परिणाम, अहीं कहे छे, परिणामी जीवना (वेपारीना) आश्रयभूत छे अर्थात् जीव ज एनो कर्ता छे, अन्य (कर्म) नहि; तथा ते काळमां पैसा- धूळ जे आवे ते, ते ते पुद्गल-रजकणोनुं कार्य छे, जीवनुं (वेपारीनुं) नहि. अहो! परनुं हुं करी शकुं छुं एवो अज्ञानीनो मिथ्या अभिप्राय मटाडनारो आ गजबनो सिद्धांत संतोए जाहेर कर्यो छे.
कहे छे-खरेखर परिणाम छे ते ज निश्चयथी कर्म छे, अने परिणाम पोताना आश्रयभूत परिणामीनुं ज होय छे, अन्यनुं नहि. गजब वात छे भाई! अहीं तो कहे छे-कोई द्रव्य कोई बीजा द्रव्यमां प्रवेश करतुं ज नथी तो ते बीजानुं कर्म कई रीते करे? माटे परिणामीनुं ज परिणाम छे. एम तो परिणाम परिणामनुं छे, परिणामीनुं नहि. खरेखर तो परिणामनो कर्ता परिणाम पोते छे, द्रव्य तेनुं कर्ता नथी. पण अहीं तो परद्रव्यथी भिन्न लेवुं छे ने? तो कह्युं के-परिणाम पोताना आश्रयभूत परिणामीनुं ज होय छे, अन्यनुं नहि; कारण के अन्यना परिणामनो अन्य आश्रय नथी होतो अर्थात् अन्यना परिणाम अन्यद्रव्यनी सत्तामां थता नथी; अर्थात् अन्यद्रव्यना परिणाममां अन्यद्रव्य प्रवेशतुं नथी. आवी वात! समजाय छे कांई.....?
हवे कहे छे- ‘इह कर्म कर्तृशून्यम् न भवति’ वळी कर्म कर्ता विना होतुं नथी, ‘च वस्तुनः एकतया स्थितिः इह न’ तेम ज वस्तुनी एकरूपे स्थिति (अर्थात्
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कूटस्थ स्थिति होती नथी (कारण के वस्तु द्रव्यपर्यायस्वरूप होवाथी सर्वथा नित्यपणुं बाधासहित छे) ; ‘ततः तद् एव कर्तृ भवतु’ माटे वस्तु पोते ज पोताना परिणामरूप कर्मनी कर्ता छे (-ए निश्चय-सिद्धांत छे).
अहा! आ कळशमां केटला सिद्धांत गोठव्या छे? १. खरेखर परिणाम छे ते ज निश्चयथी कर्म छे; २. अने परिणाम पोताना आश्रयभूत परिणामीनुं ज होय छे, अन्यनुं नहि; ३. वळी कर्म कर्ता विना होतुं नथी; ४. तेम ज वस्तुनी एकरूपे स्थिति होती नथी; प. माटे वस्तु पोते ज पोताना परिणामरूप कर्मनी कर्ता छे ए निश्चय-
भाई! आमां तो ‘अहं करोमि’ हुं (परनुं) करुं छुं एवा अहंकारने मारी नाखे एवुं छे. जुओ, आ लाकडी आम ऊंची थई ने? ए लाकडी ऊंची थई ते परिणाम छे अने ते परिणाम तेना आश्रयभूत परिणामीनुं-पुद्गलपरमाणुओनुं ज छे, अन्यनुं नहि. वळी ते परिणाम अर्थात् कर्म कर्ता विना केम होय? न होय. पहेलां (लाकडी) एक अवस्थारूप हती ते हवे बदलीने ऊंची थवारूप थई ते तेनो काळ छे, ते एनी वर्तमान योग्यता छे. कांई आ जीवे के आंगळीओए तेने ऊंची करी छे एम नथी. वस्तु अजब छे भाई! प्रतिसमय पलटीने कायम रहे एवो वस्तुनो सहज स्वभाव छे. अहीं कह्युं ने के-वस्तुनी एकरूपे स्थिति होती नथी. माटे आ लाकडीना परमाणुओ ज तेना ऊंचा थवारूप कर्मना कर्ता छे ए निश्चय छे. हवे आवी वात बीजे श्वेतांबरादिमां कयां छे?
एक श्वेतांबर साधु लींबडीमां अमारी साथे चर्चा करवा आव्या. कहे के-आपणे चर्चा करीए. त्यारे कह्युं के-अमे कोई साथे चर्चा (अर्थात् वाद) करता नथी. त्यारे ए कहे-तो लोको शुं मानशे? (एम के तमे आवा मोटा विद्वान-ज्ञानी ने चर्चाथी डरी गया?) तो कह्युं के-लोकोने मानवुं होय ते माने, अमारे एनाथी शुं काम छे? कहेशे के चर्चा न आवडी, बस ए ज ने? आम पंदर वीस मिनिट गई पछी ए कहे-
जुओ, आ चश्मा विना कांई देखाय खरुं? त्यारे कह्युं के-चर्चा (पूरी) थई गई. अहाहा....! आवो प्रश्न के-शुं चश्मा विना देखे? देखवानुं काम आत्मानुं ने चश्माथी देखे, हें! ! बापु! एम नथी भाई! अहीं कहे छे-
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-जे देखवानुं थयुं ते परिणाम छे अने ते ज निश्चयथी कर्म छे. -ते देखवाना परिणाम पोताना आश्रयभूत परिणामीना-जीवना ज छे, अन्यना
-पण ए देखवारूप कर्म कर्ता विना केम होय? न होय. तो एनो कर्ता कोण? सांभळ भाई! जरा धीरजथी सांभळ. -पहेलां अन्य विचाररूप दशा हती ने हवे देखवारूप विलक्षण अवस्था थई ते ते
करी छे के जड कर्मे करी छे एम छे ज नहि. चश्मां तो ते अवस्थाने (देखवारूप
दशाने) अडतांय नथी. अहाहा...! वस्तुनो पोते कायम रहीने प्रतिसमय
पलटवानो सहज ज स्वभाव छे. कह्युं ने के-वस्तुनी (-पर्यायनी) सदा एकरूप
स्थिति होती नथी.
-माटे आ निश्चय छे के जीव पोते ज पोताना देखवाना परिणामरूप कर्मनो कर्ता
काळे निमित्तमात्र छे. आवी वात छे. समजाणुं कांई...? निमित्तने लईने देखवुं
थाय छे एम माने ए तो मिथ्यात्व छे.
अहाहा...! वस्तु सहज ज द्रव्य-पर्यायरूप छे. तेमां द्रव्य तो नित्य एकरूप छे, पण पर्याय तो क्षणेक्षणेपलटे छे. दरेक समये एक अवस्था बदलीने बीजी थाय छे ए वस्तुनो स्वभाव छे. हवे वस्तुनी अवस्था बीजी-बीजी थाय छे, विलक्षण थाय छे, त्यां निमित्त आव्युं माटे ते पर्याय थाय छे एम नथी. वस्तुनी अवस्था पलटे छे ते कांई निमित्तने लईने पलटे छे एम नथी, बल्के अवस्थानुं पलटवुं ते तेनो सहज स्वभाव छे. वस्तुनी भिन्न भिन्न अवस्थाओ जे थाय छे ते वस्तुना ज कार्यभूत छे, वस्तु ज ते ते अवस्थाओनी कर्ता छे.
भाई! धर्म केम थाय एनी आ वात छे. लोकोए बिचाराओने आ कदीय सांभळवा मळ्युं न होय एटले बीजी रीते माने अने दान, शील, तप, इत्यादि बहारमां करवा मंडी पडे, पण ए तो बधो राग बापु! एनाथी धर्म न थाय, एनाथी जो कषायनी मंदता होय तो, पुण्यबंध थाय अने एने भलो जाणे तो मिथ्यात्व ज थाय.
तो चार प्रकारे धर्म कह्यो छे ने? दान, शील, तप, ब्रह्मचर्य -एम चार प्रकार धर्मना कह्या छे ने?
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हा, कह्या छे; पण ते आ प्रमाणे छे हों;-
पोताना त्रिकाळी शुद्ध एक ज्ञायक भगवाननी द्रष्टि करवाथी जे निर्मळ पर्याय प्रगट थाय ते पर्यायनुं पोताने दान देवुं ते वास्तविक दान छे अने ते धर्म छे अने तेनो पोते ज कर्ता छे.
पोतानो शील नाम स्वभाव जे एक ज्ञायकभाव तेमां ज अंतररमणतां करतां जे निर्मळ रत्नत्रय प्रगट थाय ते शील नाम चारित्र छे अने ते ज धर्म छे.
अहाहा...! पोते ब्रह्मस्वरूप भगवान आत्मा छे तेमां एकाग्र थई चरवुं-रमवुं ते ब्रह्मचर्य छे अने ते यथार्थमां धर्म छे.
सच्चिदानंदमय आत्मा पोते-तेमां लीन थई प्रतापवंत रहेवुं तेनुं नाम इच्छाना अभावरूप तप छे अने ते सत्यार्थ धर्म छे. भाई! आवुं धर्मनुं स्वरूप छे. धर्मी पुरुषने बहारमां साथे साथे दान, शील, तप, ब्रह्मचर्यनो राग थतो होय छे, तेने सहकारी जाणी उपचारथी एने धर्म कहीए छीए; परंतु एवो राग निश्चयथी धर्म छे, वा ते करतां करतां धर्म थाय छे एवुं धर्मनुं सत्यार्थ स्वरूप नथी. समजाणुं कांई....?
अहीं कहे छे-वस्तु पोते ज पोताना परिणामरूप कर्मनी कर्ता छे ए निश्चय- सिद्धांत छे; परद्रव्यनुं कर्ता परद्रव्य त्रणकाळमां नथी. परद्रव्यनो कर्ता आत्मा त्रणकाळमां नथी. आ मूळ वात छे.
हवे आगळनी गाथाओनी सूचनारूपे काव्य कहे छेः-
‘स्वयं स्फुटत्–अनंत–शक्तिः’ जेने पोताने अनंत शक्ति प्रकाशमान छे एवी वस्तु ‘बहिः यद्यपि लुठति’ अन्य वस्तुनी बहार जो के लोटे छे ‘तथापि अन्य–वस्तु अपर वस्तुनः अन्तरम् न विशति’ तोपण अन्य वस्तु अन्य वस्तुनी अंदर प्रवेशती नथी; ‘यतः सकलम् एव वस्तु स्वभावनियतम् इष्यते’ कारण के समस्त वस्तुओ पोत- पोताना स्वभावमां निश्चित छे एम मानवामां आवे छे.
अहाहा....! शुं कहे छे? के दरेक आत्मा ने परमाणु-परमाणु अनंत शक्तिथी प्रकाशमान छे. भाई! आ आत्मानी जेम छए द्रव्यो-प्रत्येक अनंत शक्तिथी प्रकाशमान छे. अहाहा.....! आवी वस्तु, कहे छे, जो के अन्य वस्तुनी बहार लोटे छे
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तोपण अन्य वस्तुमां प्रवेशती नथी. शुं कीधुं? द्रव्यमां-वस्तुमां अनंत शक्तिओ छे तोपण एमां कोई शक्ति एवी नथी के परवस्तुमां प्रवेशीने परने करे, परने बदले.
आ छरीथी आम शाक कपाय छे ने? अहीं कहे छे-ए शाकना टुकडा छरीथी थया नथी. अहाहा....! छरीना रजकणोनी पोतानी पोतामां अनंत शक्ति छे, पण शाकने कापे एवी छरीनी शक्ति नथी. वास्तवमां छरी तो शाकनी बहार ज लोटे छे; छरी क्यां शाकमां प्रवेशे छे के शाकने कापे? आवी वात! भाई! आ तो एकलुं अमृत छे बापा!
अहाहा....! वस्तु द्रव्यपर्यायस्वरूप छे. तेनी पर्याय नाम अवस्था बदलीने क्षणेक्षणे बीजी-बीजी थाय छे. त्यां कहे छे, संयोगी बीजी चीज (निमित्त) आवी माटे ते अवस्था (विलक्षणपणे) बदले छे एम नथी, केमके बीजी चीज तो वस्तुनी बहार लोटे छे, वस्तुमां प्रवेशती ज नथी. बीजी-बीजी अवस्थाए पलटवुं ए वस्तुनो सहज ज स्वभाव छे. आ चटाई छे ने? चटाई.. चटाई; ते आम बळे छे; त्यां कहे छे, अग्निकणने लईने बळे छे एम नथी. अहा! अग्निना परमाणु पोतामां रहेली अनंत शक्तिथी संपन्न छे, पण तेमां परद्रव्यनी-चटाईनी (बळवारूप) अवस्था करे एवी कोई शक्ति नथी; केमके तेओ परद्रव्यमां-चटाईमां प्रवेशता नथी, बहार ज लोटे छे. आवी झीणी वात भाई!
परजीवोनी दया पाळवी ते धर्म एम कहे छे ने? अहीं कहे छे-भाई! तुं परजीवने बचावी शकतो ज नथी. पोते तो बहार बेठो छे, सामा जीवना आयुनी पर्यायमां के तेना आत्मानी पर्यायमां प्रवेश करतो नथी-करी शकतो नथी तो बीजा जीवने शी रीते बचावी शके? पर जीव बचे छे ए तो तेनी ते ते काळनी योग्यता छे. अहा! आवुं जैन परमेश्वरे कहेलुं तत्त्व बहु गंभीर छे भाई! आ तो रोजना दाखला कीधा.
मूळ वात तो आ छे के- जीवने जे विकार-राग थाय छे ते कर्म करावे छे एम नथी. मोहनीय कर्मना उदयने लईने जीवने विकार थाय छे एम नथी. केटलाक विपरीत माने छे पण जडकर्म कर्ता ने जीवनो विकार कार्य एम नथी बापु! केमके उदयमां आवेलुं जड कर्म तो जीवनी बहार ज लोटे छे, ते जीवमां पेसी शकतुं ज नथी. शुं कीधुं? जड कर्ममां एनी अनंत शक्ति भले हो, पण जीवमां पेसीने एना विकारने करे एवी एनामां कोई शक्ति नथी. अहाहा....! जीवने अडे ज नहि ए जीवनी पर्यायने केवी रीते करे? अहा! विकार अने जड कर्म वच्चे तो अत्यंताभाव छे; तो पछी जडकर्मनो उदय जीवना विकारने केवी रीते करे? त्रणकाळमां न करे. समजाणुं कांई...?
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तो शास्त्रमां तो एम आवे छे के बे कारणथी कार्य थाय छे? हा, आवे छे; तेमां एक उपादानकारण छे. ते वस्तुनी निजशक्तिरूप छे अने ते वास्तविक कारण छे. जोडे बीजुं निमित्तकारण छे; ते परवस्तु-बीजी चीज छे, ते यथार्थ कारण नथी पण आरोपित कारण छे. भाई! निमित्त छे ए तो उपादाननी बहार फरे छे, ते उपादानमां शुं करे? कांई न करे. निमित्तथी उपादानमां कांई थतुं नथी. माटे कर्मना उदयथी विकार थाय छे एम केटलाक माने छे ते सत्यार्थ नथी.
जुओ, समयसारनी त्रीजी गाथामां आवे छेः- केवा छे पदार्थो? के प्रत्येक पदार्थ पोतामां अंतर्मग्न रहेल पोताना द्रव्य-गुण-पर्यायोने चुंबे छे, तथापि तेओ परस्पर एकबीजाने चुंबता नथी-स्पर्शता नथी. आ भगवाननी वाणी छे. ‘भगवाननी वाणी’ ए तो एम निमित्तथी कहेवाय, बाकी वाणी तो वाणीनी छे, भगवान तो एने स्पर्शताय नथी. वळी वाणी सांभळीने कोईने अंतःजागृति थतां ज्ञान थयुं तो ते कांई वाणीथी थयुं छे एम नथी. ज्ञाननी पर्यायथी वाणीनी पर्याय तो बहार लोटे छे; त्यां वाणी ज्ञानने केम करे? भाई! द्रव्यमां समये समये जे जे पर्याय थाय छे ते तेनी जन्मक्षण छे, जोडे निमित्त छे माटे ते पर्याय थाय छे एम छे ज नहि, कारण के निमित्त छे ते बहार ज लोटे छे, उपादानने अडतुं ज नथी.
त्यारे कोई वळी कहे छे-पाणी अग्निथी उनुं थाय छे एम अमने प्रत्यक्ष देखाय छे. जो अग्निथी पाणी उनुं न थतुं होय तो अग्नि न होय त्यारे पण ते उनुं थवुं जोईए ने?
समाधानः– प्रत्यक्ष शुं देखाय छे? ए तो संयोगद्रष्टिथी तुं जुए छे तो एम देखाय छे, पण ए (-एम मानवुं ए) तो अज्ञान छे; केमके अग्निना कणो पाणीने अडता ज नथी, पाणीनी बहार ज फरे छे. छे ने कळशमां – ‘बहिः लुठति’ ? छे के नहि? अरे भाई! अग्नि अग्निमां ने पाणी पाणीमां -बन्ने भिन्न भिन्न पोत पोतामां अवस्थित रहेलां छे. हवे आवुं छे त्यां अग्नि पाणीने उनुं केवी रीते करे? ल्यो, आवुं झीणुं! तत्त्वनो विषय बहु झीणो छे भाई! अज्ञानीने स्थूळद्रष्टिमां निमित्ताधीनद्रष्टिमां आ बेसवुं बहु कठण छे.
अज्ञानीए ज्यां होय त्यां ‘निमित्तथी थाय’ एम मांडी छे, पण अहीं कहे छे- अन्य वस्तु अन्य वस्तुनी अंदर प्रवेशती नथी. अग्नि पाणीमां प्रवेशती नथी. आवी वात! पाणीनी शीतळ अवस्था हो के उष्ण, ते ते अवस्थामां पाणीना परमाणुओ ज ते ते रूपे (शीत-उष्णरूपे) परिणमे छे, बाह्य वस्तु तो तेमां निमित्तमात्र ज छे, अनुकूळमात्र ज छे, बस. अग्नि छे माटे पाणी उनुं थयुं छे
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एम नथी अने अग्नि नथी माटे पाणी शीतळ छे एमेय नथी. पाणीनी शीत अने उष्ण अवस्था ए तो पाणीनी (पाणीना परमाणुओनी) ते ते समयनी योग्यता छे, जन्मक्षण छे. आवी झीणी वात छे.
भाई! तत्त्व जे रीते छे ते रीते न माने तो द्रष्टि विपरीत-मिथ्या थशे. उपादान- निमित्त संबंधी बनारसीदास कहे छे ने के-
बापु! जड अने चेतननी जे जे अवस्थाओ थाय छे ते निज-निज उपादानना- योग्यताना बळथी ज थाय छे, एमां निमित्तनो कोई दाव नथी, निमित्तनो एमां कोई प्रभाव नथी. आवी ज वस्तुस्थिति छे.
शास्त्रमां आवे छे के-एक परमाणुमां बे गुण चिकाश होय अने ते बीजा चार अंश चिकाशवाळा परमाणु साथे जोडाय तो ते बे अंशवाळो परमाणु चार अंश चिकाशरूपे परिणमी जाय छे. आवो ज सहज निमित्त-नैमित्तिकभाव बने छे. पण त्यां ओलो चारअंशवाळो परमाणु आ बे अंशवाळाने परिणमावी दे छे एम नथी, केमके ते आमां प्रवेशतो नथी, बहार ज लोटे छे, कारण के सर्व वस्तुओ पोतपोताना स्वभावमां निश्चित छे. आ वस्तुनी स्थिति छे. तेने नहि जाणीने अज्ञानीओ भ्रमपूर्वक ‘निमित्त आव्युं तो थयुं ने न आव्युं माटे न थयुं’ -एम एक अवस्थाकाळे बीजी अवस्थानी कल्पना करीने पोताना विपरीत-मिथ्या अभिप्रायने द्रढ कर्या करे छे, पण बापु! एनां फळ बहु आकरां आवशे भाई!
आचार्यदेव बहु करुणाथी कहे छे के- ‘इह’ आम होवा छतां, ‘मोहितः’ मोहित जीव, ‘स्वभाव–चलन–आकुलः’ पोताना स्वभावथी चलित थईने आकुळ थतो थको, ‘किम् क्लिश्यते’ शा माटे कलेश पामे छे?
अहाहा....! शुं कहे छे? के अन्य वस्तु अन्य वस्तुमां प्रवेशती नथी केमके सर्व वस्तुओ पोतपोताना स्वभावमां निश्चित छे. अहाहा...! आम वस्तुस्थिति होवा छतां, आचार्य कहे छे, मोहित जीव पोताना स्वभावथी च्युत थईने आकुळ थतो थको शा माटे कलेश पामे छे? एम के- कर्मथी थाय, निमित्तथी थाय -एम भ्रम सेवीने निमित्ताधीन- कर्माधीन परिणमतो थको चतुर्गतिरूप संसारमां केम परिभ्रमे छे? आचार्यदेवना आ खेद अने करुणाना उद्गार छे.
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‘वस्तुस्वभाव तो नियमरूपे एवो छे के कोई वस्तुमां कोई वस्तु मळे नहि. आम होवा छतां, आ मोही प्राणी “परज्ञेयो साथे पोताने पारमार्थिक संबंध छे” एम मानीने, कलेश पामे छे, ते मोटुं अज्ञान छे.’
जुओ, आ चोकखी वात करी छे के कोई वस्तुमां कोई वस्तु मळे नहि एवो वस्तुस्वभाव छे. अहाहा...! शुं कीधुं? के जगतमां अनंता द्रव्यो छे. तेओ परस्पर भिन्न भिन्न छे, कोई कोईमां प्रवेशतां नथी. एक द्रव्य बीजा द्रव्योथी बहार ज लोटे छे. आवो वस्तु-स्वभाव छे. माटे कोई एक द्रव्य अन्यद्रव्यनुं कार्य करतुं नथी. आ महासिद्धांत छे.
अज्ञानीने बहारमां निमित्त देखीने भ्रमणा थाय छे. एम के गुरुनी वाणी सांभळवाथी ज्ञान थाय छे; पण बापु! एम नथी. समाधिशतकमां (श्लोक ७पमां) आवे छे के परमार्थे आत्मा ज आत्मानो गुरु छे, बीजो कोई नहि. पोते ज पोताने समजावे छे अने पोते ज पोताना हितरूप पोताने प्रयोजे छे माटे पोते ज गुरु छे. वास्तवमां (अन्य) गुरुनी वाणीनी पर्याय तो शिष्यना ज्ञानने स्पर्शतीय नथी. माटे वाणी सांभळवाथी ज्ञान थयुं छे एम छे नहि. भाई! आवुं यथार्थ मान्या विना द्रष्टि परथी खसीने द्रव्य उपर केम जाय? अने द्रष्टि द्रव्यस्वभाव पर आव्या विना सम्यग्दर्शन केवी रीते थाय? न थाय. अहाहा...! ध्रुवने ध्येय बनावी धगशथी ध्याननी धूणी धखाव्या विना कदीय धर्म न थाय. अहा! मारी पर्याय परथी थाय ने परनी पर्याय माराथी थाय एम माननार तो मूढ मिथ्याद्रष्टि छे. आवी वात छे.
अहीं कहे छे-कोई वस्तु कोई वस्तुमां मळे नहि ए अचलित नियम छे; छतां मोही जीव परज्ञेयो साथे मारे पारमार्थिक संबंध छे एम मानीने कलेश पामे छे, ते मोटुं अज्ञान छे.
जुओ, देव-गुरु-शास्त्र साथे के स्त्री-पुत्र-परिवार साथे मारे पारमार्थिक संबंध छे एवुं माननारा मूढ मोही जीव छे. भाई! देव-गुरु-शास्त्र इत्यादि तो बधा परज्ञेय छे, ज्ञानथी भिन्न छे. अहीं जीवनी ज्ञाननी अवस्था थाय ते काळे जिनबिंब के जिनवाणी बाह्य निमित्त हो, पण ते जिनबिंब के जिन-वाणी ज्ञाननी पर्यायमां प्रवेश करी ज्ञानने करे छे एम नथी. जिनबिंब के जिन-वाणी तो ज्ञानने अडतां सुद्धां नथी, तेओ ज्ञानथी बहार ज रहे छे. माटे देव-गुरु-शास्त्रथी ज्ञान थाय छे एम छे नहि. वास्तवमां परज्ञेय साथे आत्माने पारमार्थिक संबंध नथी; एक समय
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पूरतो निमित्त-नैमित्तिक संबंध छे ए तो जाणवा माटे छे. भाई! एक समयनी अवस्था असहायपणे परना-निमित्तना कर्या विना ज स्वतंत्र थाय छे एम जेने स्वीकार नथी ते त्रिकाळी ध्रुव द्रव्यगुणने केवी रीते स्वीकारशे? अने त्रिकाळी ध्रुव द्रव्यना स्वीकार विना तेने अंतर्द्रष्टि केम थाय? न थाय.
हा, पण श्रीमदे तो एम कह्युं छे के-
पामे नहि परमार्थने रहे भ्रांतिमां स्थिति.
भाई! ए तो उपादानना नामे जेने एकांत निश्चयाभास छे एनी वात छे, उपादाननुं नाम लईने, जे अंतर-एकाग्रता तो करतो नथी अने धर्मीने होय छे एवां बाह्य साधनोने उथापे छे एवा स्वच्छंदी जीवने, कहे छे, परमार्थनी प्राप्ति थती नथी. हवे आमां निमित्तथी उपादानमां कार्य थाय छे एम क्यां वात छे? अहीं तो धर्मीने होय छे एवा बाह्य साधननो जे सर्वथा ईन्कार करे छे एनी वात छे के-एवो स्वच्छंदी जीव मोक्षमार्गने पामतो नथी.
भाई! निमित्त एक चीज छे खरी; तेनो ईन्कार करे तेय अज्ञान छे अने निमित्तथी उपादानमां कार्य थाय छे एम माने तेय भ्रान्ति छे, अज्ञान छे. समजाणुं कांई....?
तो नियमसारमां तो एम आवे छे के-काळद्रव्य विना द्रव्योमां परिणमन न थाय-आ केवी रीते छे?
समाधानः– बापु! ए तो त्यां काळद्रव्य (निमित्त) सिद्ध करवुं छे, द्रव्योनुं परिणमन सिद्ध करवुं नथी. द्रव्योमां प्रतिसमय पर्यायरूप परिणमन थाय ए तो एनो सहज स्वभाव छे, कांई काळद्रव्यना कारणे परिणमन थाय छे एम नथी. हा, पण काळद्रव्य तेमना परिणमनमां निमित्त छे, तो निमित्तने हेतु बनावी त्यां काळद्रव्य सिद्ध कर्युं छे. बस आटली वात छे. बाकी परज्ञेय साथे जे पोतानो पारमार्थिक संबंध माने छे ते भ्रान्त मोही जीव छे अने ते जगतमां वृथा कलेशने ज पामे छे. आवी वात छे.
फरी आगळनी गाथाओनी सूचनारूपे बीजुं काव्य कहे छेः-
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‘इह च’ आ लोकमां ‘येन एकम् वस्तु अन्यवस्तुनः न’ एक वस्तु अन्यवस्तुनी नथी, ‘तेन खलु वस्तु तत् वस्तु’ तेथी खरेखर वस्तु छे ते वस्तु ज छे- ‘अयम् निश्चयः’ ए निश्चय छे.......
‘आ लोकमां एक वस्तु अन्यवस्तुनी नथी. शुं कीधुं आ? के जगतमां अनंता वस्तु नाम द्रव्यो छे, अनंत आत्मा अने अनंतानंत पुद्गल परमाणुओ इत्यादि छे. अहीं कहे छे-
-एक आत्मा बीजा आत्मानो नथी, -एक आत्मा (अन्य) जड परमाणुनो नथी, -एक परमाणु अन्य परमाणुनो नथी अने -एक परमाणु (अन्य) आत्मानो नथी. एटले शुं? के-एक आत्मा बीजा आत्मानुं कांई करतो नथी, -आत्मा जड परमाणुनुं कांई करतो नथी, -जड परमाणु अन्य परमाणुनुं कांई करतो नथी अने -जड परमाणु आत्मानुं कांई करतो नथी. आवी वात! प्रवचनसार, गाथा १०२ मां आवे छे के-प्रत्येक द्रव्यनी प्रतिसमय जे पर्याय नवी नवी उत्पन्न थाय छे ते तेनी जन्मक्षण छे. एटले शुं? के द्रव्यमां जे काळे जे पर्याय उत्पन्न थवायोग्य होय ते काळे ते ज पर्याय द्रव्यमां प्रगट थाय छे; तेमां अन्य कोई कांई फेरफार करी शके नहि; अर्थात् अन्य द्रव्य अन्य द्रव्यनुं कांई करी शके नहि.
आत्माने धर्मनी दशा पामवानो काळ छे त्यारे ते धर्म पामे छे, ते तेनी जन्मक्षण छे. कार्यनो पोतानो स्वकाळ छे अने त्यारे ते सहज ज प्रगट थाय छे, कोई परने-निमित्तने लईने थाय छे एम नथी. आम वात तो सीधी-सादी छे बापु! एनो भाव तो जे छे ते छे. एना भावने जाण्या विना लोको तो आंधळे-बहेरुं कूटे राखे छे; एम के कर्म-निमित्त न होय तो न थाय. पण अहीं तो आ चोकखुं कहे छे के वस्तु छे ते वस्तु ज छे; अर्थात् आत्मा वस्तु छे तेनी पर्याय थाय ते पोताथी ज थाय, ते पर्यायने बीजो कोई करे एम मानवुं ते मोटो भ्रम छे. भगवान आत्मा पोताना द्रव्य-गुण-पर्यायथी विराजमान छे, तेमां नवी नवी
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अवस्था थवी ते वस्तुनुं सहज ज छे, निमित्त आवे तो कार्य थाय एम छे ज नहि.
जुओ, अहीं शुं कहे छे? के आम होवाथी ‘कः अपरः’ कोई अन्य वस्तु ‘अपरस्य बहिः लुठन् अपि हि’ अन्य वस्तुनी बहार लोटतां छतां ‘किं करोति’ तेने शुं करी शके?
अहाहा...! वस्तु वस्तु ज छे, एक वस्तु बीजी वस्तु नथी; आम होवाथी कोई अन्य वस्तु अन्य वस्तुनी बहार लोटतां छतां तेने शुं करी शके? कांई ना करी शके; मात्र बहार लोटे, बस. शास्त्रना शब्द सांभळीने कोईने ज्ञान थयुं के हुं शुद्ध एक ज्ञानानंदस्वरूप छुं तो त्यां जे ज्ञाननी दशा थई ते पोतानी पोताथी थई छे, ते तेनो उत्पत्तिकाळ छे; शास्त्रना शब्दोना कारणे ते थई छे एम नथी; शास्त्रना शब्दो तो बहार लोटे बस, अर्थात् बाह्य निमित्तमात्र छे बस. आवी वात! समजाणुं कांई...? भाई! परनुं ज्ञान थवा काळे पण परज्ञेयना कारणे ज्ञान थाय छे एम नथी, ज्ञान तो ज्ञानना कारणे पोताथी थाय छे, बल्के ते एनी जन्मक्षण छे.
आम शब्दोना कारणे ज्ञान नहि ने ज्ञानना-आत्माना कारणे शब्दो नहि. शुं कीधुं? आ भाषा बोलाय छे ने? ते कांई आत्माना विकल्पना कारणे बोलाय छे एम नथी. आ हळवे बोलाय, ताणीने बोलाय ए भाषावर्गणानी अवस्था छे, ते पर्याय पुद्गल-रजकणोनुं कार्य छे, ए कांई आत्मानुं कार्य नथी. बापु! बोले ते बीजो (- पुद्गल), बोले ते आत्मा नहि. समजाय छे कांई...?
‘वस्तुनो स्वभाव एवो छे के एक वस्तु अन्य वस्तुने पलटावी न शके. जो एम न होय तो वस्तुनुं वस्तुपणुं ज न ठरे.’
जुओ, आ वस्तुनो स्वभाव कह्यो. शुं? के- -एक आत्मा बीजा आत्माने पलटावी न शके, -एक परमाणु बीजा आत्माने पलटावी न शके, -एक परमाणु बीजा परमाणुने पलटावी न शके अने -एक आत्मा बीजा परमाणुने पलटावी न शके. भाई! कुंभार छे ते माटीने पलटावीने घडो न करी शके; अर्थात् घडो ए कुंभारनुं कार्य नथी. माटी ज स्वयं पलटीने घडो थई होवाथी माटी कर्ता ने घडो तेनुं कार्य छे. बापु! आत्मामां अनंत शक्ति छे, पण परनुं कार्य करे एवी एनामां कोई शक्ति नथी. आत्मामां सर्वने जाणवानी शक्ति छे; व्यवहाररत्नत्रयना
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रागने जाणवानी आत्मामां शक्ति छे, पण रागने करवानी आत्मामां शक्ति नथी. भाई! द्रव्य-गुण रागना कर्ता नहि जडकर्म पण रागनुं कर्ता नहि; विकार-राग पोताथी स्वतंत्र थाय छे. जो एम न होय तो वस्तुनुं वस्तुपणुं ज न ठरे.
ज्ञानी धर्मात्माने दया, दान आदिनो जे राग आवे तेने ते जाणे ज छे; ते जाणे छे एम कहीए एय व्यवहार छे केमके राग छे ते परज्ञेय छे. त्यां आने जे राग संबंधी ज्ञान थाय ते कांई रागने कारणे थाय छे एम नथी. ते काळे रागने जाणवारूप पर्याय तो स्वयं पोताथी पोता वडे थाय छे, राग तो तेने अडतोय नथी, बहार ज लोटे छे. भाई! लोकालोक छे माटे तेनुं ज्ञान थाय छे एम नथी. लोकालोकने जाणनारी ते ज्ञाननी पर्याय पोते पोताथी थाय छे. लोकालोकने कारणे नहि. जो लोकालोकने कारणे ज्ञान थाय तो बधाने थवुं जोईए, पण एम छे नहि; लोकालोक तो बापु! बाह्य निमित्तमात्र छे, ज्ञान लोकालोकने जाणे छे एम कहीए ए तो व्यवहार छे, वास्तवमां ज्ञान ज्ञाननी पर्यायने जाणे छे त्यां लोकालोक जणाई जाय छे. हवे आम छे त्यां आत्मा परने करे ने रागने करे ए तो वात ज क्यां रहे छे? अहीं तो कहे छे-
एक चीज जो बीजी चीजने पलटावे तो वस्तुनुं वस्तुपणुं ज न रहे. माटे आ सिद्धांत छे के एक वस्तु अन्यने परिणमावी शकती नथी. अग्निथी पाणी उनुं थतुं नथी, छरीथी शाक कपातुं नथी, बाई रोटली करती नथी इत्यादि. हवे कहे छे-
‘आम ज्यां एक वस्तु अन्यने परिणमावी शकती नथी त्यां एक वस्तुए अन्यने शुं कर्युं? कांई न कर्युं.
ल्यो, कहे छे- निमित्ते शुं कर्युं? कांई न कर्युं; केमके निमित्त उपादानने पलटावी शकतुं नथी. अहाहा...! आ आंख छे ते आंखने लईने शुं आत्मा जाणे छे? आत्मानी जाणवानी पर्याय शुं आंखने कारणे छे? ना, एम नथी भाई! आंख तो बाह्य निमित्तमात्र परवस्तु छे. आंखथी देखाय छे ने कानथी संभळाय छे इत्यादि मानवुं ए तो मिथ्या छे, केमके जड आंख, कान आदि ज्ञान-दर्शनरूप चेतननी दशाने केम करे? जड वस्तु चेतनने केम पलटावे? ए ज कहे छे-
‘चेतन-वस्तु साथे एकक्षेत्रावगाहरूपे पुद्गलो रहेलां छे तोपण चेतनने जड करीने पोतारूपे तो परिणमावी शक्यां नहि; तो पछी पुद्गले चेतनने शुं कर्युं? कांई न कर्युं.’
अहाहा...! शुं कहे छे? के कर्म, नोकर्म आदि पुद्गलो चेतन-वस्तु भगवान आत्मा साथे एकक्षेत्रावगाहे रहेलां छे; कयारथी? तो कहे छे- (प्रवाहरूपे) अनादि-
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काळथी रहेलां छे, तोपण तेओ चेतनने पोतारूप-जडरूप तो करी शक्यां नहि. अनंतकाळमां चेतन तो चेतन ज रह्यो; तो पछी ए पुद्गले चेतनने शुं कर्युं? कांई ज न कर्युं. माटे कहे छे-
‘आ उपरथी एम समजवुं के-व्यवहारे परद्रव्योने अने आत्माने ज्ञेयज्ञायक संबंध होवा छतां परद्रव्यो ज्ञायकने कांई करता नथी अने ज्ञायक परद्रव्योने कांई करतो नथी.’
शुं कीधुं आ? के आ आत्मा पोते स्वरूपथी ज्ञायक छे, अने शरीर, मन, वाणी, इन्द्रिय, कर्म इत्यादि जड पदार्थो अने अन्य आत्माओ ज्ञेय छे. ते सर्व परद्रव्योने अने आत्माने व्यवहारे ज्ञेयज्ञायक संबंध छे, छतां ते परद्रव्योने कारणे आत्मा ज्ञायक छे एम नथी; परद्रव्यो ज्ञायकने कांई करतां नथी, ज्ञायकने परज्ञेयोनुं ज्ञान थाय छे ते कांई ते ते परज्ञेयोने लईने थतुं नथी, परज्ञेयो कांई आत्मानी ज्ञाननी पर्यायनां कर्ता नथी. ज्ञान ज्ञेयोने जाणे ते ज्ञाननुं पोतानुं सहज सामर्थ्य छे.
अहाहा...! जडकर्मने लईने आत्माने राग उपजे छे एम तो नहि, अहीं कहे छे, जडकर्मने लईने आत्माने ज्ञान उपजे छे एम पण नथी. ज्ञान ज्ञेयना कारणे थाय छे एम छे ज नहि.
तो ज्ञान थाय छे तेनो कर्ता कोण?
बापु! ज्ञान थाय छे ते ज्ञायक आत्माना परिणाम छे अने तेनो कर्ता आत्मा पोते ज छे; परज्ञेय नहि. वळी परद्रव्योमां कार्य थाय तेनो कर्ता ते ते परद्रव्यो छे, आत्मा तेनो कर्ता नथी. अहाहा...! ज्ञायक परद्रव्योने कांई करतो नथी.
आ लाकडामांथी गाडुं थयुं छे तेनो कर्ता कोण? लोको भले कहे, पण सुथार (- सुथारनो जीव) तेनो कर्ता नथी, लाकडाना परमाणुओ ज तेना कर्ता छे, केमके लाकडाना परमाणुओ ज परिणमीने गाडुं थयुं छे. सुथार तो तेने जे राग थयो तेनो कर्ता छे, गाडानो नहि. वळी आ गाडुं छे एवुं जे ज्ञान थयुं तेनो कर्ता गाडुं नथी, ते ज्ञानपरिणाम गाडाने लईने नथी पण तेनो कर्ता स्वयं जीव ज छे. आ प्रमाणे जीवना परिणामनो कर्ता जीव ज छे, पर नहि; अने परना परिणामनो कर्ता पर ज छे, जीव नहि.
सर्वज्ञ भगवान केवळीने जे केवळज्ञान प्रगट थाय छे तेना कर्ता भगवान केवळी ज छे. अहाहा...! भगवान केवळी सर्व जीव, सर्व लोक अने सर्व भावने एक समयमां जाणे छे. ते जाणनारुं ज्ञान कांई ज्ञेयोने लईने थयुं छे एम नथी; अहाहा....!
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(ज्ञान) ज्ञेयो जेम छे तेम यथास्थित जाणे, छतां ज्ञान ज्ञेयोने लईने थयुं नथी, पण ज्ञान स्वयं पोताथी ज थयुं छे. समजाय छे कांई....?
जुओ, प्रद्युम्नकुमारनो जन्म थतां एक विद्याधर तेमने उपाडी गयो. नारदजीए भगवानने प्रश्न पूछयो के प्रद्युम्नकुमार क्यारे आवशे? त्यारे भगवाननी ॐध्वनिमां आव्युं के-सोळ वर्षे घरे आवशे. ल्यो, नारदजीने आ जाणवुं-ज्ञान थयुं ते कांई वाणीने लईने थयुं नथी, तथा परज्ञेयने कारणे थयुं छे एम पण नथी; केमके परद्रव्यो ज्ञायकने कांई (-ज्ञान) करतां नथी. नगरमां हाथी नीकळे त्यारे हाथीनुं ज्ञान थाय ते हाथीथी थयुं नथी. ज्ञानमां सन्मुख रहेलो घडो जणाय त्यां घडा संबंधी ज्ञान घडाना कारणे थयुं नथी. अहा! भगवान जिनेन्द्रदेव फरमावे छे के ज्ञानपर्यायो कर्ता जीव छे, ज्ञेयोथी ज्ञान थतुं नथी. आम पदार्थोमां (स्व-पर पदार्थोमां) भिन्नता छे, छतां त्यां एकपणुं मानवुं ते भारे भ्रमणा छे अने ते ज संसार-परिभ्रमणनुं कारण छे.
आ प्रमाणे परज्ञेयो ज्ञायकनुं कांई करता नथी तथा ज्ञायक परज्ञेयोनुं कांई करतो नथी-एम यथार्थ जाणवुं. आवुं यथार्थ जाणनारनो मोह सहेजे क्षय पामी जाय छे अने तेने समकितनी प्राप्ति थाय छे. आवी वात छे.
हवे, ए ज अर्थने द्रढ करतुं त्रीजुं काव्य कहे छेः-
‘वस्तु’ एक वस्तु ‘स्वयम् परिणामिनः अन्य–वस्तुनः’ स्वयं परिणमती अन्य वस्तुने ‘किञ्चन अपि कुरुते’ कांई पण करी शके छे- ‘यत् तु’ एम जे मानवामां आवे छे, ‘तत् व्यावहारिक–दशा एव मतम्’ ते व्यवहार-द्रष्टिथी ज मानवामां आवे छे.
अहाहा.....! प्रत्येक वस्तु स्वयं-पोते पोताथी ज निरंतर परिणमी रही छे. छतां एक वस्तु स्वयं परिणमती बीजी वस्तुने कांई पण करे छे एम जे कहेवामां आवे छे ते व्यवहारथी-उपचारथी ज कहेवामां आवे छे. आत्मा शरीर-मन-वाणीनुं, दुकान-धंधानुं इत्यादि परद्रव्यनुं कांई पण करी शकतो नथी. तथापि परनुं कांई पण काम आत्मा करे छे एम कहीए ते, कहे छे, असत्यार्थ द्रष्टिथी उपचारमात्र समजवुं.
‘निश्चयात्’ निश्चयथी ‘इह अन्यत् किम् अपि न अस्ति’ आ लोकमां अन्य वस्तुने अन्य वस्तु कांईपण नथी.
ल्यो, निश्चयथी अर्थात् सत्यार्थपणे एक वस्तुने अन्य वस्तु साथे कांईपण संबंध नथी. भाई! आ शरीर-मन-वाणी-ईन्द्रिय, पैसा, धन, मकान, आबरू
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इत्यादि परद्रव्य साथे आत्माने कांई संबंध नथी. आम छे त्यां आत्माने परद्रव्यनुं कर्तापणुं क्यांथी होय? न होय.
‘एक द्रव्यना परिणमनमां अन्य द्रव्य निमित्त देखीने एम कहेवुं के-अन्य द्रव्ये आ कर्युं -ते व्यवहारनी द्रष्टिथी ज छे; निश्चयथी तो ते द्रव्यमां अन्य द्रव्ये कांई कर्युं नथी. वस्तुना पर्यायस्वभावने लीधे वस्तुनुं पोतानुं ज एक अवस्थाथी बीजी अवस्थारूप परिणमन थाय छे; तेमां अन्य वस्तु पोतानुं कांई भेळवी शकती नथी.’
आत्मा त्रिकाळी वस्तु छे; तेनो ज्ञान त्रिकाळी गुण छे, तेनी-ज्ञाननी पर्याय प्रतिसमय पोताथी थाय छे. भगवाननी वाणीथी ज्ञान थयुं एम कहीए ते व्यवहारनयनी द्रष्टिथी ज छे. निश्चयथी तो भगवाननी वाणीए आत्मानुं कांई कर्युं नथी. ‘भगवाननी वाणी’ -एम कहीए एय व्यवहारनय छे, वास्तवमां वाणी भगवाने करी नथी; वाणीनी कर्ता वाणी छे, भगवान तो निमित्तमात्र छे. तेवी रीते ज्ञान थवामां वाणी-शब्दो निमित्त छे, त्यां निमित्ते कांई कर्युं नथी; केमके परिणमन -ए द्रव्यनो स्वभाव छे. द्रव्य पोते ज परिणमतुं थकुं वर्तमान-वर्तमान अवस्थारूप थाय छे, तेमां निमित्तादि परवस्तु पोतानुं कांई भेळवी शकती नथी. ज्ञाननुं परिणमन थाय तेमां वाणी आदि निमित्त कांई करी शकतुं नथी, आवी जैनशासननी वात खूब गंभीर ने सूक्ष्म छे भाई!
आ पाणी उनुं थाय छे ते पोताथी थाय छे. अग्नि तेमां निमित्त हो, पण शीत अवस्था बदलीने वर्तमानमां उष्ण थई ते पाणीनुं पोतानुं परिणमन छे, अग्निए तेमां पोतानुं कांई भेळव्युं नथी. अग्निथी पाणी उनुं थयुं एम कहीए ते व्यवहारद्रष्टिथी छे, निश्चयथी अग्निए पाणीनुं कांई कर्युं नथी. आवी वात!
आत्मामां ज्ञाननुं परिणमन थाय त्यां परज्ञेय निमित्त हो, पण निमित्त तेमां कांई करतुं नथी, उपादाननुं कार्य थाय तेमां परवस्तु-निमित्तनुं कांई कर्तव्य नथी. उपादान - निमित्तना दोहरामां बनारसीदासजीए कह्युं छे के-
‘उपादान बल जहाँ तहाँ, नहि निमित्तको दाव.’ ज्यां जुओ त्यां सर्वत्र द्रव्यमां पोतानी पर्याय उपादानना बळथी थाय छे, तेमां निमित्तनो कांई दाव नथी, अर्थात् निमित्त कांई करतुं नथी.
बापु! ज्यां सुधी आवी पर्यायनी स्वतंत्रता बेसे नहि त्यां सुधी द्रव्य-गुणनी स्वतंत्रता केम बेसे? अने द्रव्य-गुणनी स्वतंत्रता ज्ञानमां भास्या विना द्रष्टि द्रव्य
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उपर केम जाय? न जाय. अने तो द्रव्यनी द्रष्टि थया विना सम्यग्दर्शन पण न ज थाय. अहाहा.....! पर्यायना कर्ता-कर्म-करण आदि छए कारक स्वतंत्र छे. द्रव्यमां पर्याय पोताथी स्वतंत्र थाय छे. प्रत्येक द्रव्य ज्यां पोताना क्रमबद्ध परिणामथी स्वयं उपजे छे त्यां बीजुं द्रव्य तेने शुं करे? बीजी वस्तु ते काळे निमित्त हो, पण ते पोतानुं तेमां कांई भेळवी शकती नथी. अहाहा....! द्रव्यमां, पोताना परिणमनस्वभावने लईने एक अवस्थाथी अवस्थांतररूप परिणमन थाय, पण तेमां निमित्त बीजी वस्तु पोतानुं कांई भेळवी शकती नथी. आ तो वस्तुनुं मूळ स्वरूप छे बापु! हवे कहे छे-
‘आ उपरथी एम समजवुं के- परद्रव्यरूप ज्ञेय पदार्थो तेमना भावे परिणमे छे अने ज्ञायक आत्मा पोताना भावे परिणमे छे; तेओ एकबीजाने कांई करी शकता नथी. माटे, ज्ञायक परद्रव्योने जाणे छे-एम व्यवहारथी ज मानवामां आवे छे; निश्चयथी ज्ञायक तो बस ज्ञायक ज छे.’
ल्यो, सौ-पोतपोताना भावे परिणमता पदार्थो ने एकबीजाने कांई करी शकता नथी. ज्ञायक परद्रव्योने जाणे छे एम कहेवामां आवे ते मात्र उपचारथी छे. निश्चयथी तो ज्ञायक पण पोते, ज्ञान पण पोते ने ज्ञेय पण पोते ज छे. सूक्ष्म वात छे भाई! परने जाणवा काळे पण ते पोतानी ज्ञाननी पर्यायने ज जाणे छे. अहाहा.....! ज्ञाननी पर्यायना सामर्थ्य वडे ज स्व ने पर जणाय छे, परज्ञेयोना कारणे ज्ञान थाय छे एम कदीय नथी. ल्यो, कहे छे-निश्चयथी ज्ञायक तो बस ज्ञायक ज छे; अर्थात् ज्ञायक पोताने ज -पोताना द्रव्य-गुण-पर्यायने ज जाणतो थको ज्ञायक छे. आवी वात!