PDF/HTML Page 3541 of 4199
single page version
स तत्पुनरपि बध्नाति बीजं दुःखस्याष्टविधम्।। ३८९।।
तत्र तावत्सकलकर्मसंन्यासभावनां नाटयति–
परिहृत्य कर्म सर्व परमं नैष्कर्म्यमवलम्बे।। २२५।।
मया कृतं जानाति] ‘कर्मफळ में कर्युं’ एम जाणे छे, [सः] ते [पुनः अपि] फरीने पण [अष्टविधम् तत्] आठ प्रकारना कर्मने- [दुःखस्य बीजं] दुःखना बीजने- [बध्नाति] बांधे छे.
[कर्मफलं वेदयमानः] कर्मना फळने वेदतो थको [यः चेतयिता] जे आत्मा [सुखितः दुःखितः च] सुखी अने दुःखी [भवति] थाय छे, [सः] ते [पुनः अपि] फरीने पण [अष्टविधम् तत्] आठ प्रकारना कर्मने- [दुःखस्य बीजं] दुःखना बीजने- [बध्नाति] बांधे छे.
टीकाः– ज्ञानथी अन्यमां (-ज्ञान सिवाय अन्य भावोमां) एम चेतवुं (अनुभववुं) के ‘आ हुं छुं’ , ते अज्ञानचेतना छे. ते बे प्रकारे छे-कर्मचेतना अने कर्मफळचेतना. तेमां, ज्ञानथी अन्यमां (अर्थात् ज्ञान सिवाय अन्य भावोमां) एम चेतवुं के ‘आने हुं करुं छुं’ , ते कर्मचेतना छे; अने ज्ञानथी अन्यमां एम चेतवुं के ‘आने हुं भोगवुं छुं’ , ते कर्मफळचेतना छे. (एम बे प्रकारे अज्ञानचेतना छे.) ते समस्त अज्ञानचेतना संसारनुं बीज छे; कारण के संसारनुं बीज जे आठ प्रकारनुं (ज्ञानावरणादि) कर्म, तेनुं ते अज्ञानचेतना बीज छे (अर्थात् तेनाथी कर्म बंधाय छे). माटे मोक्षार्थी पुरुषे अज्ञानचेतनानो प्रलय करवा माटे सकळ कर्मना संन्यासनी (त्यागनी) भावनाने तथा सकळ कर्मफळना संन्यासनी भावनाने नचावीने, स्वभावभूत एवी भगवती ज्ञानचेतनाने ज एकने सदाय नचाववी.
तेमां प्रथम, सकळ कर्मना संन्यासनी भावनाने नचावे छेः- (त्यां प्रथम, काव्य कहे छेः-) श्लोकार्थः–
अनागत काळ संबंधी) [सर्व कर्म] समस्त कर्मने [कृत–कारित–अनुमननैः] कृत- कारित-अनुमोदनाथी अने [मनः– वचन–कायैः] मन-वचन-कायाथी [परिहृत्य] त्यागीने [परमं नैष्कर्म्यम् अवलम्बे] हुं परम नैष्कर्म्यने (-उत्कृष्ट निष्कर्म अवस्थाने) अवलंबुं छुं.
PDF/HTML Page 3542 of 4199
single page version
(ए प्रमाणे, सर्व कर्मनो त्याग करनार ज्ञानी प्रतिज्ञा करे छे.) २२प.
(हवे टीकामां प्रथम, प्रतिक्रमण-कल्प अर्थात् प्रतिक्रमणनो विधि कहे छेः-) (प्रतिक्रमण करनार कहे छे केः) जे में (पूर्वे कर्म) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. (कर्म करवुं, कराववुं अने अन्य करनारने अनुमोदवुं ते संसारनुं बीज छे एम जाणीने ते दुष्कृत प्रत्ये हेयबुद्धि आवी त्यारे जीवे तेना प्रत्येनुं ममत्व छोडयुं, ते ज तेनुं मिथ्या करवुं छे). १.
जे में (पूर्वे कर्म) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २. जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३. जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४.
जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. प. जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ६. जे में (पूर्वे) कर्युं, कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं, कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ७.
जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ८. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ९. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १०.
जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ११. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १२. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १३. जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १४. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा कायथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १प. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १६.
PDF/HTML Page 3543 of 4199
single page version
जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १७. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १८. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. १९.
जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २०. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २१. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २२. जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २३. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २४. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २प. जे में (पूर्वे) कर्युं अने कराव्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २६. जे में (पूर्वे) कर्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २७. जे में (पूर्वे) कराव्युं अने अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २८.
जे में (पूर्वे) कर्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. २९. जे में (पूर्वे) कराव्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३०. जे में अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३१.
जे में (पूर्वे) कर्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३२. जे में (पूर्वे) कराव्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३३. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३४. जे में (पूर्वे) कर्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३प. जे में (पूर्वे) कराव्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३६. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३७. जे में (पूर्वे) कर्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३८. जे में (पूर्वे) कराव्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ३९. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी तथा कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४०.
जे में (पूर्वे) कर्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४१. जे में (पूर्वे) कराव्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४२. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय
PDF/HTML Page 3544 of 4199
single page version
तेनुं अनुमोदन कर्युं मनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४३. जे में (पूर्वे) कर्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४४. जे में (पूर्वे) कराव्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४प. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं वचनथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४६. जे में (पूर्वे) कर्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४७. जे में (पूर्वे) कराव्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४८. जे में (पूर्वे) अन्य करतो होय तेनुं अनुमोदन कर्युं कायाथी, ते मारुं दुष्कृत मिथ्या हो. ४९.
(आ ४९ भंगोनी अंदर, पहेला भंगमां कृत, कारित, अनुमोदना-ए त्रणे लीधां अने तेना पर मन, वचन, काया-ए त्रणे लगाव्यां. ए रीते बनेला आ एक भंगने * ‘३३’ नी समस्याथी-संज्ञाथी-ओळखी शकाय. २ थी ४ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदना त्रणे लईने तेना पर मन, वचन, कायामांथी बब्बे लगाव्यां. ए रीते बनेला आ त्रण भंगोने, ‘३२’ नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. प थी ७ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदना त्रणे लईने तेना पर मन, वचन, कायामांथी एकेक लगाव्युं. आ त्रण भंगोने ‘३१’ नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. ८ थी १० सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी बब्बे लईने तेमना पर मन, वचन, काया त्रणे लगाव्यां. आ त्रण भंगोने ‘२३’ नी संज्ञावाळा भंगो तरीके ओळखी शकाय. ११ थी १९ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी बब्बे लईने तेमना पर मन, वचन, कायामांथी बब्बे लगाव्यां. आ नव भंगोने ‘२२’ नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. २० थी २८ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी बब्बे लईने तेमना पर मन, वचन, कायामांथी एकेक लगाव्युं. आ नव भंगोने ‘२१’ नी संज्ञावाळा भंगो तरीके ओळखी शकाय. २९ थी ३१ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी एकेक लईने तेमना पर मन, वचन, काया त्रणे लगाव्यां. आ त्रण भंगोने ‘१३’ नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. ३२ थी ४० सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी एकेक लईने तेमना पर मन, वचन, कायामांथी बब्बे लगाव्यां. आ नव भंगोने ‘१२’ नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. ४१ थी ४९ सुधीना भंगोमां कृत, कारित, अनुमोदनामांथी एकेक लईने तेमना पर मन, वचन, कायामांथी एकेक लगाव्युं. आ नव भंगोने ‘११’ नी संज्ञाथी ओळखी शकाय. बधा मळीने ४९ भंग थया.) _________________________________________________________________ * कृत, कारित, अनुमोदना-ए त्रणे लीधां ते बताववा प्रथम ‘३’ नो आंकडो मूकवो, अने पछी
‘३३’ नी समस्या थई.
* कृत, कारित, अनुमोदना त्रणे लीधां ते बताववा प्रथम ‘३’ नो आंकडो मूकवो; अने पछी मन,
नी संज्ञा थई.
PDF/HTML Page 3545 of 4199
single page version
आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते।। २२६।।
हवे आ कथनना कळशरूपे काव्य कहे छेः-
श्लोकार्थः– [यद् अहम् मोहात् अकार्षम्] जे में मोहथी अर्थात् अज्ञानथी (भूत काळमां) कर्म कर्यां, [तत् समस्तम् अपि कर्म प्रतिक्रम्य] ते समस्त कर्मने प्रतिक्रमीने [निष्कर्मणि चैतन्य–आत्मनि आत्मनि आत्मना नित्यम् वर्ते] हुं निष्कर्म (अर्थात् सर्व कर्मोथी रहित) चैतन्यस्वरूप आत्मामां आत्माथी ज (-पोताथी ज-) निरंतर वर्तुं छुं (एम ज्ञानी अनुभव करे छे).
भावार्थः– भूतकाळमां करेला कर्मने ४९ भंगपूर्वक मिथ्या करनारुं प्रतिक्रमण करीने ज्ञानी ज्ञानस्वरूप आत्मामां लीन थईने निरंतर चैतन्यस्वरूप आत्मानो अनुभव करे, तेनुं आ विधान (विधि) छे. ‘मिथ्या’ कहेवानुं प्रयोजन आ प्रमाणे छेः- जेवी रीते, कोईए पहेलां धन कमाईने घरमां राख्युं हतुं; पछी तेना प्रत्ये ममत्व छोडयुं त्यारे तेने भोगववानो अभिप्राय न रह्यो; ते वखते, भूत काळमां जे धन कमायो हतो ते नहि कमाया समान ज छे; तेवी रीते, जीवे पहेलां कर्म बांध्युं हतुं; पछी ज्यारे तेने अहितरूप जाणीने तेना प्रत्ये ममत्व छोडयुं अने तेना फळमां लीन न थयो, त्यारे भूत काळमां जे कर्म बांध्युं हतुं ते नहि बांध्या समान मिथ्या ज छे. २२६.
आ रीते प्रतिक्रमण-कल्प (अर्थात् प्रतिक्रमणनो विधि) समाप्त थयो.
(हवे टीकामां आलोचनाकल्प कहे छेः-)
हुं (वर्तमानमां कर्म) करतो नथी. करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. १.
हुं (वर्तमानमां कर्म) करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा वचनथी. २. हुं (वर्तमानमां) करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा कायाथी. ३. हुं करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी तथा कायाथी ४.
हुं करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी. प. हुं करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी,
PDF/HTML Page 3546 of 4199
single page version
वचनथी. ६. हुं करतो नथी, करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, कायाथी. ७.
हुं करतो नथी, करावतो नथी, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ८. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ९. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. १०.
हुं करतो नथी, करावतो नथी, मनथी तथा वचनथी. ११. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा वचनथी. १२. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा वचनथी. १३. हुं करतो नथी, करावतो नथी, मनथी तथा कायाथी. १४. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा कायाथी. १प. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी तथा कायाथी. १६. हुं करतो नथी, करावतो नथी, वचनथी तथा कायाथी. १७. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी तथा कायाथी. १८. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी तथा कायाथी. १९.
हुं करतो नथी, करावतो नथी, मनथी. २०. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी. २१. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, मनथी. २२. हुं करतो नथी, करावतो नथी, वचनथी. २३. हुं करतो नथी, अन्य करतो हतो तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी. २४. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, वचनथी. २प. हुं करतो नथी, करावतो नथी, कायाथी. २६. हुं करतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, कायाथी. २७. हुं करावतो नथी, अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी, कायाथी. २८.
हुं करतो नथी मनथी, वचनथी तथा कायाथी. २९. हुं करावतो नथी मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ३०. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ३१.
हुं करतो नथी मनथी तथा वचनथी. ३२. हुं करावतो नथी मनथी तथा वचनथी. ३३. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी मनथी तथा वचनथी. ३४. हुं करतो नथी मनथी तथा कायाथी. ३प. हुं करावतो नथी मनथी तथा कायाथी. ३६. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी मनथी तथा कायाथी. ३७. हुं करतो नथी वचनथी तथा कायाथी. ३८. हुं करावतो नथी वचनथी तथा कायाथी. ३९. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी वचनथी तथा कायाथी. ४०.
हुं करतो नथी मनथी. ४१. हुं करावतो नथी मनथी. ४२. हुं अन्य करतो
PDF/HTML Page 3547 of 4199
single page version
आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते।। २२७।।
इत्यालोचनाकल्पः समाप्तः। होय तेने अनुमोदतो नथी मनथी. ४३. हुं करतो नथी वचनथी. ४४. हुं करावतो नथी वचनथी. ४प. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी वचनथी. ४६. हुं करतो नथी कायाथी. ४७. हुं करावतो नथी कायाथी. ४८. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदतो नथी कायाथी. ४९. (आ रीते, प्रतिक्रमणना जेवा ज आलोचनामां पण ४९ भंग कह्या.)
हवे आ कथनना कळशरूपे काव्य कहे छेः- श्लोकार्थः– (निश्चयचारित्रने अंगीकार करनार कहे छे के-) [मोहविलासविजृम्भितम् इदम् उदयत् कर्म] मोहना विलासथी फेलायेलुं जे आ उदयमान (उदयमां आवतुं) कर्म [सकलम् आलोच्य] ते समस्तने आलोचीने (-ते सर्व कर्मनी आलोचना करीने-) [निष्कर्मणि चैतन्य–आत्मनि आत्मनि आत्मना नित्यम् वर्ते] हुं निष्कर्म (अर्थात् सर्व कर्मोथी रहित) चैतन्यस्वरूप आत्मामां आत्माथी ज (-पोताथी ज-) निरंतर वर्तुं छुं.
भावार्थः– वर्तमान काळमां कर्मनो उदय आवे तेना विषे ज्ञानी एम विचारे छे के-पूर्वे जे कर्म बांध्युं हतुं तेनुं आ कार्य छे, मारुं तो आ कार्य नथी. हुं आनो कर्ता नथी, हुं तो शुद्धचैतन्यमात्र आत्मा छुं. तेनी दर्शनज्ञानरूप प्रवृत्ति छे. ते दर्शनज्ञानरूप प्रवृति वडे हुं आ उदयमां आवेला कर्मनो देखनार-जाणनार छुं. मारा स्वरूपमां ज हुं वर्तुं छुं. आवुं अनुभवन करवुं ते ज निश्चयचारित्र छे. २२७.
आ रीते आलोचनाकल्प समाप्त थयो. (हवे टीकामां प्रत्याख्यानकल्प अर्थात् प्रत्याख्याननो विधि कहे छेः- (प्रत्याख्यान करनार कहे छे केः-) हुं (भविष्यमां कर्म) करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. १.
हुं (भविष्यमां कर्म) करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा वचनथी. २. हुं करीश नहि, करावीश, नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा कायाथी. ३. हुं करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी तथा कायाथी. ४.
PDF/HTML Page 3548 of 4199
single page version
हुं करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी. प. हुं करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी. ६. हुं करीश नहि, करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, कायाथी. ७.
हुं करीश नहि, करावीश नहि, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ८. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी, वचनथी तथा कायाथी ९. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी, वचनथी तथा कायाथी. १०.
हुं करीश नहि, करावीश नहि, मनथी तथा वचनथी. ११. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा वचनथी. १२. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा वचनथी. १३. हुं करीश नहि, करावीश नहि, मनथी तथा कायाथी. १४. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा कायाथी. १प. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी तथा कायाथी. १६. हुं करीश नहि, करावीश नहि, वचनथी तथा कायाथी. १७. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी तथा कायाथी. १८. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी तथा कायाथी. १९.
हुं करीश नहि, करावीश नहि, मनथी. २०. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी. २१. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, मनथी. २२. हुं करीश नहि, करावीश नहि, वचनथी. २३. हुं करीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी २४. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, वचनथी. २प. हुं करीश नहि, करावीश नहि, कायाथी. २६. हुं करीश नहि, अन्य करता होय तेने अनुमोदीश नहि, कायाथी. २७. हुं करावीश नहि, अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि, कायाथी. २८.
हुं करीश नहि मनथी, वचनथी तथा कायाथी. २९. हुं करावीश नहि मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ३०. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि मनथी, वचनथी तथा कायाथी. ३१.
हुं करीश नहि मनथी तथा वचनथी. ३२. हुं करावीश नहि मनथी तथा वचनथी. ३३. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि मनथी तथा वचनथी. ३४ हुं करीश नहि मनथी तथा कायाथी. ३प. हुं करावीश नहि मनथी तथा कायाथी. ३६. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि मनथी तथा कायाथी. ३७. हुं करीश नहि वचनथी तथा कायाथी. ३८. हुं करावीश नहि वचनथी तथा कायाथी ३९. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि वचनथी तथा कायाथी. ४०.
PDF/HTML Page 3549 of 4199
single page version
आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते।। २२८।।
इति प्रत्याख्यानकल्पः समाप्तः।
हुं करीश नहि मनथी. ४१. हुं करावीश नहि मनथी. ४२. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि मनथी. ४३. हुं करीश नहि वचनथी. ४४. हुं करावीश नहि वचनथी. ४प. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि वचनथी. ४६. हुं करीश नहि कायाथी. ४७. हुं करावीश नहि कायाथी. ४८. हुं अन्य करतो होय तेने अनुमोदीश नहि कायाथी. ४९. (आ रीते, प्रतिक्रमणना जेवा ज प्रत्याख्यानमां पण ४९ भंग कह्या.)
हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः- श्लोकार्थः– (प्रत्याख्यान करनार ज्ञानी कहे छे के-)
प्रत्याख्याय] भविष्यना समस्त कर्मने पचखीने (-त्यागीने), [निरस्त–सम्मोहः निष्कर्मणि चैतन्य–आत्मनि आत्मनि आत्मना नित्यम् वर्ते] जेनो मोह नष्ट थयो छे एवो हुं निष्कर्म (अर्थात् सर्व कर्मोथी रहित) चैतन्यस्वरूप आत्मामां आत्माथी ज (-पोताथी ज-) निरंतर वर्तुं छुं.
भावार्थः– निश्चयचारित्रमां प्रत्याख्याननुं विधान एवुं छे के-समस्त आगामी कर्मोथी रहित, चैतन्यनी प्रवृत्तिरूप (पोताना) शुद्धोपयोगमां वर्तवुं ते प्रत्याख्यान. तेथी ज्ञान आगामी समस्त कर्मोनुं प्रत्याख्यान करीने पोताना चैतन्यस्वरूपमां वर्ते छे.
अहीं तात्पर्य आ प्रमाणे जाणवुंः- व्यवहारचारित्रमां तो प्रतिज्ञामां जे दोष लागे तेनुं प्रतिक्रमण, आलोचना तथा प्रत्याख्यान होय छे. अहीं निश्चयचारित्रनुं प्रधानपणे कथन होवाथी शुद्धोपयोगथी विपरीत सर्व कर्मो आत्माना दोषस्वरूप छे. ते सर्व कर्मचेतनास्वरूप परिणामोनुं-त्रणे काळनां कर्मोनुं-प्रतिक्रमण, आलोचना तथा प्रत्याख्यान करीने ज्ञानी सर्व कर्मचेतनाथी जुदा पोताना शुद्धोपयोगरूप आत्मानां ज्ञानश्रद्धान वडे अने तेमां स्थिर थवाना विधान वडे निष्प्रमाद दशाने प्राप्त थई, श्रेणी चडी, केवळज्ञान उपजाववानी सन्मुख थाय छे. आ, ज्ञानीनुं कार्य छे. २२८.
आ रीते प्रत्याख्यानकल्प समाप्त थयो. हवे सकळ कर्मना संन्यासनी भावनाने नचाववा विषेनुं कथन पूर्ण करतां, कळशरूप काव्य कहेः-
PDF/HTML Page 3550 of 4199
single page version
त्रैकालिकं शुद्धनयावलम्बी ।
श्चिन्मात्रमात्मानमथावलम्बे ।। २२९।।
अथ सकलकर्मफलसंन्यासभावनां नाटयति–
सञ्चेतयेऽहमचलं चैतन्यात्मानमात्मानम्।। २३०।।
श्लोकार्थः– (शुद्धनयनुं आलंबन करनार कहे छे के-) [इति एवम्] पूर्वोक्त रीते [त्रैकालिकं समस्तम् कर्म] त्रणे काळनां समस्त कर्मोने [अपास्य] दूर करीने-छोडीने, [शुद्धनय–अवलम्बी] शुद्धनयावलंबी (अर्थात् शुद्धनयने अवलंबनार) अने [विलीन– मोहः] विलीनमोह (अर्थात् जेनुं मिथ्यात्व नष्ट थयुं छे) एवो हुं [अथ] हवे [विकारैः रहितं चिन्मात्रम् आत्मानम्] (सर्व) विकारोथी रहित चैतन्यमात्र आत्माने [अवलम्बे] अवलंबुं छुं. २२९.
हवे सकळ कर्मफळना संन्यासनी भावनाने नचावे छेः- (त्यां प्रथम, ते कथनना समुच्चय-अर्थनुं काव्य कहे छेः-) श्लोकार्थः– (समस्त कर्मफळनी संन्यासभावना करनार कहे छे के-)
तरु–फलानि] कर्मरूपी विषवृक्षनां फळ [मम भुक्तिम् अन्तरेण एव] मारा भोगव्या विना ज [विगलन्तु] खरी जाओ; [अहम् चैतन्य–आत्मानम् आत्मानम् अचलं सञ्चेतये] हुं (मारा) चैतन्यस्वरूप आत्माने निश्चळपणे संचेतुं छुं-अनुभवुं छुं.
भावार्थः– ज्ञानी कहे छे के-जे कर्म उदयमां आवे छे तेना फळने हुं ज्ञाता-द्रष्टापणे जाणुं-देखुं छुं, तेनो भोक्ता थतो नथी, माटे मारा भोगव्या विना ज ते कर्म खरी जाओ; हुं मारा चैतन्यस्वरूप आत्मामां लीन थयो थको तेनो देखनार-जाणनार ज होउं.
अहीं एटलुं विशेष जाणवुं के-अविरत, देशविरत तथा प्रमत्तसंयत दशामां तो आवुं ज्ञान-श्रद्धान ज प्रधान छे, अने ज्यारे जीव अप्रमत्त दशाने पामीने श्रेणी चडे छे त्यारे आ अनुभव साक्षात् होय छे. २३०.
(हवे टीकामां सकळ कर्मफळना संन्यासनी भावनाने नचावे छेः-)
PDF/HTML Page 3551 of 4199
single page version
हुं (ज्ञानी होवाथी) मतिज्ञानावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं अर्थात् एकाग्रपणे अनुभवुं छुं. (अहीं ‘चेतवुं’ एटले अनुभववुं, वेदवुं, भोगववुं. ‘सं’ उपसर्ग लागवाथी, ‘संचेतवुं’ एटले ‘एकाग्रपणे अनुभववुं’ एवो अर्थ अहीं बधा पाठोमां समजवो.) १. हुं श्रुत-ज्ञानावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं-अनुभवुं छुं. २. हुं अवधिज्ञानावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३. हुं मनःपर्ययज्ञानावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ४. हुं केवळज्ञानावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प.
हुं चक्षुर्दर्शनावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६. हुं अचक्षुर्दर्शनावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७. हुं अवधिदर्शनावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८. हुं केवळदर्शनावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९. हुं निद्रादर्शनावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १०. हुं निद्रानिद्रादर्शनावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११. हुं प्रचलादर्शनावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२ हुं प्रचलाप्रचलादर्शनावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३. हुं स्त्यानगृद्धिदर्शनावरणीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४.
हुं शातावेदनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १प. हुं अशातावेदनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १६.
हुं सम्यक्त्वमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १७. हुं मिथ्यात्वमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १८. हुं सम्यक्त्वमिथ्यात्वमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १९. हुं अनंतानुबंधिक्रोधकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २०. हुं अप्रत्याख्यानावरणीयक्रोधकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २१. हु प्रत्याख्यानावरणीयक्रोधकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २२. हुं संज्वलनक्रोधकषायवेदनीय-
PDF/HTML Page 3552 of 4199
single page version
मोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २३. हुं अनंतानुबंधिमानकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २४. हुं अप्रत्याख्यानावरणीयमानकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २प. हुं प्रत्याख्यानावरणीयमानकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २६. हुं संज्वलनमानकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २७. हुं अनंतानुबंधिमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २८. हुं अप्रत्याख्यानावरणीयमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. २९. हुं प्रत्याख्यानावरणीयमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३० हुं संज्वलनमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३१. हुं अनंतानुबंधिलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३२. हुं अप्रत्याख्यानावरणीयलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३३. हुं प्रत्याख्यानावरणीयलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३४. हुं संज्वलनलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३प. हुं हास्यनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३६. हुं रतिनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३७. हुं अरतिनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३८. हुं शोकनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ३९. हुं भयनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ४०. हुं जुगुप्सानोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ४१. हुं स्त्रीवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ४२. हुं पुरुषवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ४३. हुं नपुंसकवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ४४.
हुं नरक-आयुकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ४प. हुं तिर्यंच-आयुकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ४६. हुं मनुष्य-आयुकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने
PDF/HTML Page 3553 of 4199
single page version
हुं नरकगतिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ४९. हुं तिर्यंचगतिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प०. हुं मनुष्यगतिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प१. हुं देवगतिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प२. हुं एकेन्द्रियजातिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प३. हुं द्वींद्रियजातिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प४. हुं त्रीन्द्रियजातिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. पप. हुं चतुरिन्द्रियजातिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प६. हुं पंचेन्द्रियजातिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प७. हुं औदारिकशरीरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प८. हुं वैक्रियिकशरीरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. प९. हुं आहारकशरीरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६०. हुं तैजसशरीरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६१. हुं कार्मणशरीरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं ६२. हुं औदारिकशरीर- अंगोपांगनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६३. हुं वैक्रियिकशरीर-अंगोपांगनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६४. हुं आहारकशरीरअंगोपांगनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६प. हुं औदारिकशरीरबंधननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६६. हुं वैक्रियिकशरीरबंधननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६७. हुं आहारकशरीरबंधननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६८. हुं तैजसशरीरबंधननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ६९. हुं कार्मणशरीरबंधननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७०. हुं औदारिकशरीरसंघातनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७१. हुं वैक्रियिकशरीरसंघातनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७२. हुं आहारकशरीरसंघातनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७३. हुं तैजसशरीरसंघातनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७४. हुं कार्मणशरीर-
PDF/HTML Page 3554 of 4199
single page version
संघातनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७प. हुं समचतुरस्रसंस्थाननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७६. हुं न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थाननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७७. हुं सातिकसंस्थाननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७८. हुं कुब्जकसंस्थाननाकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ७९. हुं वामनसंस्थाननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८०. हुं हुंडकसंस्थाननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८१. हुं वज्रर्षभनाराचसंहनननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८२. हुं वज्रनाराचसंहनननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८३. हुं नाराचसंहनननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८४. हुं अर्धनाराचसंहनननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८प. हुं कीलिकासंहनननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८६. हुं असंप्राप्तासृपाटिकासंहनननामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८७. हुं स्निग्धस्पर्शनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८८. हुं रूक्षस्पर्शनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ८९. हुं शीतस्पर्शनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९०. हुं उष्णस्पर्शनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९१. हुं गुरुस्पर्शनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं ९२. हुं लघुस्पर्शनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९३. हुं मृदुस्पर्शनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९४. हुं कर्कशस्पर्शनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९प. हुं मधुररसनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९६. हुं आम्लरसनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९७. हुं तिक्तरसनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९८. हुं कटुकरसनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ९९. हुं कषायरसनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १००. हुं सुरभिगंधनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छं. १०१. हुं असुरभिगंधनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १०२. हुं शुक्लवर्णनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने
PDF/HTML Page 3555 of 4199
single page version
ज संचेतुं छुं. १०३. हुं रक्तवर्णनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १०४. हुं पीतवर्णनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १०प. हुं हरितवर्णनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १०६. हुं कृष्णवर्णनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १०७. हुं नरकगत्यानुपूर्वीनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १०८. हुं तिर्यंचगत्यानुपूर्वीनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं १०९. हुं मनुष्यगत्यानुपूर्वीनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११०. हुं देवगत्यानुपूर्वीनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १११. हुं निर्माणनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११२. हुं अगुरुलघुनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११३. हुं उपघातनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११४. हुं परघातनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११प. हुं आतपनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११६. हुं उद्योतनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११७. हुं उच्छ्वासनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११८. हुं प्रशस्तविहायोगतिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. ११९. हुं अप्रशस्तविहायोगतिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२०. हुं साधारणशरीरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२१. हुं प्रत्येकशरीरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२२. हुं स्थावरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२३. हुं त्रसनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२४. हुं सुभगनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२प. हुं दुर्भगनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२६. हुं सुस्वरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२७. हुं दुःस्वरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२८. हुं शुभनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १२९. हुं अशुभनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३०. हुं सूक्ष्मशरीरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३१. हुं बादरशरीरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३२. हुं पर्याप्तनामकर्मना फळने
PDF/HTML Page 3556 of 4199
single page version
नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३३. हुं अपर्याप्तनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३४. हुं स्थिरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३प. हुं अस्थिरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३६. हुं आदेयनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३७. हुं अनादेयनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३८. हुं यशःकीर्तिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १३९. हुं अयशःकीर्तिनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४०. हुं तीर्थंकरनामकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४१.
हुं उच्चगोत्रकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४२. हुं नीचगोत्रकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४३.
हुं दानांतरायकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४४. हुं लाभांतरायकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४प. हुं भोगांतरायकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४६. हुं उपभोगांतरायकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४७. हुं वीर्यांतरायकर्मना फळने नथी भोगवतो, चैतन्यस्वरूप आत्माने ज संचेतुं छुं. १४८. (आ प्रमाणे ज्ञानी सकळ कर्मोना फळना संन्यासनी भावना करे छे).
(अहीं भावना एटले वारंवार चिंतवन करीने उपयोगनो अभ्यास करवो ते. ज्यारे जीव सम्यग्द्रष्टि-ज्ञानी थाय छे त्यारे तेने ज्ञान-श्रद्धान तो थयुं ज के ‘हुं शुद्धनये समस्त कर्मथी अने कर्मना फळथी रहित छुं’ . परंतु पूर्वे बांधेलां कर्म उदयमां आवे तेमनाथी थता भावोनुं कर्तापणुं छोडीने, त्रणे काळ संबंधी ओगणपचास ओगणपचास भंगो वडे कर्मचेतनाना त्यागनी भावना करीने तथा सर्व कर्मनुं फळ भोगववाना त्यागनी भावना करीने, एक चैतन्यस्वरूप आत्माने ज भोगववानुं बाकी रह्युं. अविरत, देशविरत अने प्रमत्त अवस्थावाळा जीवने ज्ञानश्रद्धानमां निरंतर ए भावना तो छे ज; अने ज्यारे जीव अप्रमत्त दशा प्राप्त करीने एकाग्र चित्तथी ध्यान करे, केवळ चैतन्यमात्र आत्मामां उपयोग लगावे अने शुद्धोपयोगरूप थाय, त्यारे निश्चयचारित्ररूप शुद्धोपयोगभावथी श्रेणी चडीने केवळज्ञान उपजावे छे. ते वखते ए भावनानुं फळ जे कर्मचेतनाथी अने कर्मफळचेतनाथी रहित साक्षात् ज्ञानचेतनारूप
PDF/HTML Page 3557 of 4199
single page version
सर्वक्रियान्तरविहारनिवृत्तवृत्तेः ।
चैतन्यलक्ष्म भजतो भृशमात्मतत्त्वं
कालावलीयमचलस्य वहत्वनन्ता।। २३१।।
परिणमन ते थाय छे. पछी आत्मा अनंत काळ सुधी ज्ञानचेतनारूप ज रहेतो थको परमानंदमां मग्न रहे छे.)
हवे आ ज अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः- श्लोकार्थः– (सकळ कर्मोना फळनो त्याग करीने ज्ञानचेतनानी भावना करनार ज्ञानी कहे छे केः) [एवं] पूर्वोक्त रीते [निःशेष–कर्म–फलं–संन्यसनात्] समस्त कर्मना फळनो संन्यास करवाथी [चैतन्य–लक्ष्म आत्मतत्त्वं भृशम् भजतः सर्व–क्रियान्तर– विहार–निवृत्त–वृत्तेः] हुं चैतन्य जेनुं लक्षण छे एवा आत्मतत्त्वने अतिशयपणे भोगवुं छुं अने ते सिवायनी अन्य सर्व क्रियामां विहारथी मारी वृत्ति निवृत्त छे (अर्थात् आत्मतत्त्वना भोगवटा सिवायनी अन्य जे उपयोगनी क्रिया-विभावरूप क्रिया-तेमां मारी परिणति विहार करती नथी-प्रवर्तती नथी); [अचलस्य मम] एम आत्मतत्त्वना भोगवटामां अचळ एवा मने, [इयम् काल–आवली] आ काळनी आवली के जे [अनंता] प्रवाहरूपे अनंत छे ते, [वहतु] आत्मतत्त्वना भोगवटामां ज वहो-जाओ. (उपयोगनी प्रवृत्ति अन्यमां कदी पण न जाओ.)
भावार्थः– आवी भावना करनार ज्ञानी एवो तृप्त थयो छे के जाणे भावना करतां साक्षात् केवळी ज थयो होय; तेथी ते अनंत काळ सुधी एवो ज रहेवानुं चाहे छे. अने ते योग्य ज छे; कारण के आ ज भावनाथी केवळी थवाय छे. केवळज्ञान ऊपजवानो परमार्थ उपाय आ ज छे. बाह्य व्यवहारचारित्र छे ते आना ज साधनरूप छे; अने आना विना व्यवहारचारित्र शुभकर्मने बांधे छे, मोक्षनो उपाय नथी. २३१.
फरी काव्य कहे छेः- श्लोकार्थः– [पूर्व–भाव–कृत–कर्म–विषद्रुमाणां फलानि यः न भुंक्ते] पूर्वे अज्ञानभावथी करेलां जे कर्म ते कर्मरूपी विषवृक्षोनां फळने जे पुरुष (तेनो स्वामी थईने) भोगवतो नथी अने [खलु स्वतः एव तृप्तः] खरेखर पोताथी ज (- आत्मस्वरूपथी ज) तृप्त छे, [सः आपात–काल–रमणीयम् उदर्क–रम्यम् निष्कर्म– शर्ममयम् दशान्तरम् एति] ते पुरुष, जे वर्तमान काळे रमणीय छे अने भविष्यमां पण जेनुं फळ रमणीय छे.
PDF/HTML Page 3558 of 4199
single page version
भुंक्ते फलानि न खलु स्वत एव तृप्तः ।
आपातकालरमणीयमुदर्करम्यं
निष्कर्मशर्ममयमेति दशान्तरं सः।। २३२।।
प्रस्पष्टं नाटयित्वा प्रलयनमखिलाज्ञानसञ्चेतनायाः ।
पूर्ण कृत्वा स्वभावं स्वरसपरिगतं ज्ञानसञ्चेतनां स्वां
सानन्दं नाटयन्तः प्रशमरसमितः सर्वकालं पिबन्तु।। २३३।।
एवी निष्कर्म-सुखमय दशांतरने पामे छे (अर्थात् जे पूर्वे संसार-अवस्थामां कदी थई नहोती एवी जुदा प्रकारनी कर्मरहित स्वाधीन सुखमय दशाने पामे छे).
भावार्थः– ज्ञानचेतनानी भावनानुं आ फळ छे. ते भावनाथी जीव अत्यंत तृप्त रहे छे-अन्य तृष्णा रहेती नथी, अने भविष्यमां केवळज्ञान उपजावी सर्व कर्मथी रहित मोक्ष-अवस्थाने पामे छे. २३२.
‘पूर्वोक्त रीते कर्मचेतना अने कर्मफळचेतनाना त्यागनी भावना करीने अज्ञानचेतनाना प्रलयने प्रगट रीते नचावीने, पोताना स्वभावने पूर्ण करीने, ज्ञानचेतनाने नचावता थका ज्ञानी जनो सदाकाळ आनंदरूप रहो’ -एवा उपदेशनुं काव्य हवे कहे छेः-
श्लोकार्थः– [अविरतं कर्मणः तत्फलात् च विरतिम् अत्यन्तं भावयित्वा] ज्ञानी जनो, अविरतपणे कर्मथी अने कर्मना फळथी विरतिने अत्यंत भावीने (अर्थात् कर्म अने कर्मफळ प्रत्ये अत्यंत विरक्तभावने निरंतर भावीने), [अखिल–अज्ञान–सञ्चेतनायाः प्रलयनम् प्रस्पष्टं नाटयित्वा] (ए रीते) समस्त अज्ञानचेतनाना नाशने स्पष्टपणे नचावीने, [स्व–रस–परिगतं स्वभावं पूर्णं कृत्वा] निजरसथी प्राप्त पोताना स्वभावने पूर्ण करीने, [स्वां ज्ञानसञ्चेतनां सानन्दं नाटयन्तः इतः सर्व–कालं प्रशम–रसम् पिबन्तु] पोतानी ज्ञानचेतनाने आनंदपूर्वक नचावता थका हवेथी सदाकाळ प्रशमरसने पीओ (अर्थात् कर्मना अभावरूप आत्मिक रसने-अमृतरसने-अत्यारथी मांडीने अनंत काळ पर्यंत पीओ. आम ज्ञानीजनोने प्रेरणा छे).
भावार्थः– पहेलां तो त्रणे काळ संबंधी कर्मना कर्तापणारूप कर्मचेतनाना
PDF/HTML Page 3559 of 4199
single page version
विना कृतेरेकमनाकुलं ज्वलत् ।
समस्तवस्तुव्यतिरेकनिश्चयाद्–
विवेचितं ज्ञानमिहावतिष्ठते।। २३४।।
त्यागनी भावना (४९ भंगपूर्वक) करावी. पछी १४८ कर्मप्रकृतिना उदयरूप कर्मफळना त्यागनी भावना करावी. ए रीते अज्ञानचेतनानो प्रलय करावीने ज्ञानचेतनामां प्रवर्तवानो उपदेश कर्यो छे. ए ज्ञानचेतना सदा आनंदरूप-पोताना स्वभावना अनुभवरूप-छे. तेने ज्ञानीजनो सद्रा भोगवो-एम श्री गुरुओनो उपदेश छे. २३३.
आ सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार छे, तेथी ज्ञानने कर्ताभोक्तापणाथी भिन्न बताव्युं; हवेनी गाथाओमां अन्य द्रव्यो अने अन्य द्रव्योना भावोथी ज्ञानने भिन्न बतावशे. ते गाथाओनी सूचनारूप काव्य प्रथम कहे छेः-
श्लोकार्थः– [इतः इह] अहींथी हवे (आ सर्वविशुद्धज्ञान अधिकारमां हवेनी गाथाओमां एम कहे छे के-) [समस्त–वस्तु–व्यतिरेक–निश्चयात् विवेचितं ज्ञानम्] समस्त वस्तुओथी भिन्नपणाना निश्चय वडे जुदुं करवामां आवेलुं ज्ञान, [पदार्थ– प्रथन–अवगुण्ठनात् कृतेः विना] पदार्थना विस्तार साथे गूंथावाथी (-अनेक पदार्थो साथे, ज्ञेयज्ञानसंबंधने लीधे, एक जेवुं देखावाथी) उत्पन्न थती (-अनेक प्रकारनी) क्रिया तेनाथी रहित [एकम् अनाकुलं ज्वलत्] एक ज्ञानक्रियामात्र, अनाकुळ (-सर्व आकुळताथी रहित) अने देदीप्यमान वर्ततुं थकुं, [अवतिष्ठते] निश्चळ रहे छे.
भावार्थः– हवेनी गाथाओमां ज्ञानने स्पष्ट रीते सर्व वस्तुओथी भिन्न बतावे छे. २३४.
हवे आ कथनने गाथा द्वारा कहे छे.
‘ज्ञानथी अन्यमां (-ज्ञान सिवाय अन्य भावोमां) एम चेतवुं (अनुभववुं) के “आ हुं छुं,” ते अज्ञानचेतना छे. ते बे प्रकारे छे-कर्मचेतना अने कर्मफळचेतना.’
PDF/HTML Page 3560 of 4199
single page version
अहाहा......! शुं टीका छे! आत्मा ज्ञानस्वरूपी शीतळ शीतळ शांतस्वभावथी भरेलो चैतन्यचंद्र जिनचंद्र प्रभु छे. अहीं कहे छे- एनाथी अर्थात् ज्ञानस्वभावथी अन्य भावोमां एम अनुभववुं के ‘आ हुं छुं’ ए अज्ञानचेतना छे. आवी चोख्खी वात छे बापा! ‘अन्य भावो’ एटले शुं? के आ पर्यायमां थता पुण्य-पापना शुभाशुभ भाव अने एनुं फळ बंध अने संयोग ए बधा अन्य भावो छे; अने एमां ‘आ हुं छुं’ एम चेतवुं ते अज्ञानचेतना छे एम कहे छे. भाई! दया, दान, व्रतादिना परिणाम ते शुभभाव पुण्यतत्त्व छे, ने तेमां ‘आ हुं छुं’ एम चेतवुं ते अज्ञान-चेतना छे. अहीं ‘ज्ञानथी अन्य’ कह्युं त्यां ‘ज्ञान’ शब्दे आत्मा समजवो.
भाई! शुभ ने अशुभ भाव बधा भगवान आत्माथी अन्य छे, जुदा छे. तेमां ‘आ हुं छुं’ एम अनुभववुं ते अज्ञानचेतना छे. अज्ञानचेतना एटले शुं? के अज्ञानने चेतनारी -अज्ञानमां जाग्रत थयेली चेतना, अर्थात् स्वरूपने चेतवा प्रति आंधळी एवी चेतना. अरे भाई! चाहे तुं हजारो राणीओ छोडीने वनवासी नग्न दिगंबर साधु थयो हो, पण ए व्रतादिना रागने ‘आ हुं छुं, आ मने ठीक छे, भला छे’ एम जो तुं अनुभवे छे तो बापु ए अज्ञानचेतना छे, मिथ्यादर्शन छे. समजाणुं कांई....? बहु थोडा शब्दोमां खूब गंभीर वात करी छे!
आत्मा सच्चिदानंद प्रभु शाश्वत ज्ञान अने आनंदनी मूर्ति छे. तेने ‘हुं छुं’ एम नहि अनुभवतां एनाथी अन्य विरुद्ध जे शुभाशुभ भाव तेमां ‘आ हुं छुं’ एम अनुभववुं ते अज्ञानचेतना छे अने ते बे प्रकारे छे- कर्मचेतना अने कर्मफळचेतना. हवे कहे छे- ‘तेमां, ज्ञानथी अन्यमां (अर्थात् ज्ञान सिवाय अन्य भावोमां) एम चेतवुं के “आने हुं करुं छुं,” ते कर्मचेतना छे; अने ज्ञानथी अन्यमां एम चेतवुं के “आने हुं भोगवुं छुं,” ते कर्मफळचेतना छे. (एम बे प्रकारे अज्ञान चेतना छे.)
जुओ, शुं कह्युं? भगवान आत्मा सिवाय अन्य जे पुण्य-पापना विकारी भाव तेने हुं करुं छुं एम जे माने-अनुभवे छे ते कर्मचेतना छे. अहीं कर्म शब्दे जड पुद्गलकर्मनी वात नथी. अहीं तो भावकर्म जे शुभाशुभ भाव ते मारुं कार्य नाम कर्म छे, हुं एने करुं छुं -एम जे माने छे ते कर्मचेतना छे एम वात छे. कर्मचेतना कहो के कार्यचेतना कहो -एक वात छे. रागरूपी कार्यमां चेताई गयो छे ने? परना कार्यनी अहीं वात नथी, केमके परनां कार्य ते करी शकतो नथी; परने तो ते स्पर्श सुद्धां करी शकतो नथी.
वळी ज्ञानथी-आत्माथी अन्य जे शुभाशुभ भाव-विकारी भाव तेने हुं भोगवुं छुं एम माने-अनुभवे ते कर्मफळचेतना छे. विकारमां हरख-शोकनुं वेदन करे ते कर्मफळचेतना छे. एम बे प्रकारे अज्ञानचेतना छे. हवे कहे छे -