Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 20-25.

< Previous Page   Next Page >


Combined PDF/HTML Page 18 of 210

 

PDF/HTML Page 341 of 4199
single page version

लक्षे-स्वभाव तरफना पुरुषार्थथी रागथी भेद करी भेदज्ञानवडे अविचळ अनुभूतिने पामे छे-ते एव ते ज पुरुषो मुकुरवत दर्पणनी जेम प्रतिफलननिमग्नानंतभावस्वभावैः पोतामां प्रतिबिंबित थयेला अनंत भावोना स्वभावोथी संततं निरंतर अविकाराः स्युः विकार रहित होय छे.

शुं कहे छे ए? के अनुभूतिनी-ज्ञाननी जे पर्याय थई ए पर्यायमां पोतामां प्रतिबिंबित थयेला ए (अनंत भावोना-ज्ञेयोना स्वभाव) जाणवामां आव्या; शरीरनी पर्याय, वाणीनी पर्याय रागनी पर्याय-एम बधा अनंत भावो ज्ञाननी पर्यायमां पोतपोताना कारणे जाणवामां आव्या, ए ज्ञेयोनुं ज्ञान थयुं पण ज्ञेयो संबंधी विकार थयो एम नथी. ए ज्ञेयोनुं ज्ञान निर्विकारी छे. ज्ञानमां जे ज्ञेयोना आकार प्रतिभासे छे तेमनाथी (भेदविज्ञानी पुरुषो) रागादि विकारने प्राप्त थता नथी. ए ज्ञाननी पर्यायनुं पोतानुं सहज सामर्थ्य छे. तेथी स्वने अने परने पोताना अस्तित्वमां जाणे छे. तेथी एमां रागने जाणे, शरीरने जाणे माटे ए परज्ञेयना कारणे अहीं (ज्ञानमां) विकार थाय-एम नथी. अनंत ज्ञेयोना स्वभावने जाणे छतां निरंतर तेओ विकार रहित छे.

[प्रवचन नं.ः ६१-६२ * दिनांकः ३०-१-७६ अने ३१-१-७६]






PDF/HTML Page 342 of 4199
single page version

हवे शिष्य प्रश्न करे छे के ए अप्रतिबुद्ध कई रीते ओळखी शकाय एनुं चिह्न बतावो; तेना उत्तररूप गाथा कहे छेः-

अहमेदं एदमहं अदमेदस्स म्हि अत्थि मम एदं।
अण्णं जं परदव्वं सच्चित्ताचित्तमिस्सं वा।। २० ।।
आसि मम पुव्वमेदं एदस्स अहं पि आसि पुव्वं हि।
होहिदि पुणो ममेदं एदस्स अहं पि होस्सामि।। २१ ।।
एयं तु असब्भूदं आदवियप्पं करेदि संमूढो।
भूदत्थं जाणंतो ण करेदि दु तं असंमूढो।। २२ ।।

अहमेतदेतदहं अहमेतस्यास्मि अस्ति ममैतत्।
अन्यद्यत्परद्रव्यं सचित्ताचित्तमिश्रं वा।। २० ।।

आसीन्मम पूंर्वमेतदेतस्याहमप्यासं पूर्वम्।
भविष्यति पुनममैतदेतस्याहमपि भविष्यामि।। २१ ।।

एतत्त्वसद्भूतमात्मविकल्पं करोति सम्मूढः।
भूतार्थ जानन्न करोति तु तमसम्मूढः।। २२ ।।

हुं आ अने आ हुं, हुं छुं आनो अने छे मारुं आ,
जे अन्य को परद्रव्य मिश्र, सचित्त अगर अचित्त वा; २०.

हतुं मारुं आ पूर्वे, हुं पण आनो हतो गतकाळमां,
वळी आ थशे मारुं अने आनो हुं थईश भविष्यामां; २१.

अयथार्थ आत्मविकल्प आवो, जीव संमूढ आचरे;
भूतार्थने जाणेल ज्ञानी ए विकल्प नहीं करे. २२.

गाथार्थः– [अन्यत् यत् परद्रव्यं] जे पुरुष पोताथी अन्य जे परद्रव्य-


PDF/HTML Page 343 of 4199
single page version

[सचित्ताचित्तमिश्रं वा] सचित्त स्त्रीपुत्रादिक, अचित्त धनधान्यादिक अथवा मिश्र ग्रामनगरादिक-तेने एम समजे के [अहं एतत्] हुं आ छुं, [एतत् अहम्] आ द्रव्य मुज-स्वरूप छे, [अहम् एतस्य अस्मि] हुं आनो छुं, [एतत् मम अस्ति] आ मारुं छे, [एतत् मम पूर्वेम् आसीत्] आ मारुं पूर्वे हतुं, [एतस्य अहम् अपि पूर्वम् आसम्] आनो हुं पण पूर्वे हतो, [एतत् मम पुनः भविष्यति] आ मारुं भविष्यमां थशे, [अहम् अपि एतस्य भविष्यामि] हुं पण आनो भविष्यमां थईश, - [एतत् तु असद्भूतम्] आवो जूठो [आत्मविकल्पं] आत्मविकल्प [करोति] करे छे ते [सम्मूढः] मूढ छे, मोही छे, अज्ञानी छे; [तु] अने जे पुरुष [भूतार्थ] परमार्थ वस्तुस्वरूपने [जानन्] जाणतो थको [तम्] एवो जूठो विकल्प [न करोति] नथी करतो ते [असम्मूढः] मूढ नथी, ज्ञानी छे.

टीकाः– (द्रष्टांतथी समजावे छेः) जेम कोई पुरुष ईधन अने अग्निने मळेलां देखी एवो जूठो विकल्प करे के “अग्नि छे ते ईंधन छे, ईंधन छे ते अग्नि छे; अग्निनुं ईंधन छे, ईंधननो अग्नि छे; अग्निनुं ईंधन पहेलां हतुं, ईंधननो अग्नि पहेलां हतो; अग्निनुं ईंधन भविष्यमां थशे, ईंधननो अग्नि भविष्यमां थशे”;-आवो ईंधनमां ज अग्निनो विकल्प करे ते जूठो छे, तेनाथी अप्रतिबुद्ध कोई ओळखाय छे, तेवी रीते कोई आत्मा परद्रव्यमां ज असत्यार्थ आत्मविकल्प (आत्मानो विकल्प) करे के “हुं आ परद्रव्य छुं, आ परद्रव्य मुजस्वरूप छे; मारुं आ परद्रव्य छे, आ परद्रव्यनो हुं छुं; मारुं आ पहेलां हतुं, हुं आनो पहेलां हतो; मारुं आ भविष्यमां थशे, हुं आनो भविष्यमां थईश”;-आवा जूठा विकल्पथी अप्रतिबुद्ध ओळखाय छे.

वळी अग्नि छे ते इंधन नथी, इंधन छे ते अग्नि नथी, -अग्नि छे ते अग्नि ज छे, इंधन छे ते इंधन ज छे; अग्निनुं इंधन नथी, इंधननो अग्नि नथी, -अग्निनो ज अग्नि छे, इंधननुं इंधन छे; अग्निनुं इंधन पहेलां हतुं नहि, इंधननो अग्नि पहेलां हतो नहि, -अग्निनो अग्नि पहेलां हतो, इंधननुं इंधन पहेलां हतुं; अग्निनुं इंधन भविष्यमां थशे नहि, इंधननो अग्नि भविष्यमां थशे नहि, -अग्निनो अग्नि ज भविष्यमां थशे, इंधननुं इंधन ज भविष्यमां थशे;”-आ प्रमाणे जेम कोइने अग्निमां ज सत्यार्थ अग्निनो विकल्प थाय ते प्रतिबुद्धनुं लक्षण छे, तेवी ज रीते “हुं आ परद्रव्य नथी, आ परद्रव्य मुजस्वरूप नथी, -हुं तो हुं ज छुं, परद्रव्य छे ते परद्रव्य ज छे; मारुं आ परद्रव्य नथी, आ परद्रव्यनो हुं नथी, -मारो ज हुं छुं, परद्रव्यनुं परद्रव्य छे; आ परद्रव्य मारुं पहेलां हतुं नहि, आ परद्रव्यनो हुं पहेलां हतो नहि, -मारो हुं ज पहेलां हतो, परद्रव्यनुं परद्रव्य पहेलां हतुं; आ परद्रव्य मारुं भविष्यमां थशे नहि, एनो हुं भविष्यमां थईश नहि, -हुं मारो ज भविष्यमां थईश, आ (परद्रव्य) नुं आ (परद्रव्य) भविष्यमां थशे.”-आवो जे स्वद्रव्यमां ज सत्यार्थ आत्मविकल्प थाय छे ते ज प्रतिबुद्धनुं लक्षण छे, तेनाथी ते ओळखाय छे.


PDF/HTML Page 344 of 4199
single page version

(मालिनी)
त्यजतु जगदिदानीं मोहमाजन्मलीढं
रसयतु रसिकानां रोचनं ज्ञानमुद्यत्।
इह कथमपि नात्मानात्मना साकमेकः
किल कलयति काले कापि तादात्म्यवृत्तिम्।। २२ ।।

__________________________________________________

भावार्थः– जे परद्रव्यमां आत्मानो विकल्प करे छे ते तो अज्ञानी छे अने जे पोताना आत्माने ज पोतानो माने छे ते ज्ञानी छे-एम अग्नि-इन्धनना द्रष्टांत द्वारा द्रढ कर्युं छे.

हवे आ अर्थनुं कलशरूप काव्य कहे छेः-

श्लोकार्थः– [जगत्] जगत अर्थात् जगतना जीवो [आजन्मलीढं मोहम्] अनादि संसारथी मांडीने आज सुधी अनुभव करेला मोहने [इदानीं त्यजतु] हवे तो छोडो अने [रसिकानां रोचनं] रसिक जनोने रुचिकर, [उद्यत् ज्ञानम्] उद्रय थई रहेलुं जे ज्ञान तेने [रसयतु] आस्वादो; कारण के [इह] आ लोकमां [आत्मा] आत्मा छे ते [किल] खरेखर [कथम् अपि] कोई प्रकारे [अनात्मना साकम्] अनात्मा (परद्रव्य) साथे [क्व अपि काले] कोई काळे पण [तादात्म्यवृत्तिम् कलयति न] ताद्रात्म्यवृत्ति (एकपणुं) पामतो नथी, केम के [एकः] आत्मा एक छे ते अन्य द्रव्य साथे एक्तारूप थतो नथी.

भावार्थः– आत्मा परद्रव्य साथे कोई प्रकारे कोई काळे एकताना भावने पामतो नथी. ए रीते आचार्ये, अनादिथी परद्रव्य प्रत्ये लागेलो जे मोह छे तेनुं भेदविज्ञान बताव्युं छे अने प्रेरणा करी छे के ए एकपणारूप मोहने हवे छोडो अने ज्ञानने आस्वादो; मोह छे ते वृथा छे, जूठो छे, दुःखनुं कारण छे. २२. उपोद्घातः–

हवे शिष्य प्रश्न करे छे के ए अप्रतिबुद्ध कई रीते ओळखाय एनुं चिह्न बतावो. तेना उत्तररूप गाथा कहे छेः-

टीकाः– (द्रष्टांतथी समजावे छे) जेम कोई पुरुष इंधन अने अग्निने मळेलां देखी एवो जूठो विकल्प करे के-“अग्नि छे ते इंधन छे, इंधन छे ते अग्नि छे; अग्निनुं इंधन छे, इंधननो अग्नि छे; अग्निनुं इंधन पहेलां हतुं, इंधननो अग्नि पहेलां हतो; अग्निनुं इंधन भविष्यमां थशे, इंधननो अग्नि भविष्यमां थशे;”-आवो इंधनमां ज अग्निनो विकल्प करे ते जूठो छे, तेनाथी अप्रतिबुद्ध-‘लौकिक मूर्ख’ कोई ओळखाय छे.


PDF/HTML Page 345 of 4199
single page version

तेवी रीते कोई आत्मा परद्रव्यमां ज आत्मविकल्प (आत्मानो विकल्प) करे-हुं आ परद्रव्य छुं, आ परद्रव्य मुजस्वरूप छे. हुं आ राग, शरीर, मन, वाणी इत्यादि परद्रव्य छुं अने ए मारा स्वरूपे छे; आ सामान्य कह्युं. हवे त्रण काळ जोईए. (वर्तमान) मारुं आ राज्य, मारुं शरीर, मारी वाणी, मारो राग इत्यादि मारां आ परद्रव्य छे अने एनो हुं छुं-ए वर्तमान. (भूतकाळ) मारुं आ पहेलां हतुं. हुं पहेलां आनो हतो. ए राग पूर्वे मारो हतो जे वडे आ मनुष्यपणुं मळ्‌युं. लोको कहे छे ने के पूर्वे राग (पुण्य) हतो तो आ मनुष्यपणुं मळ्‌युं अने भगवाननी वाणी सांभळवा मळी. एम पूर्वना रागने पोताना मान्या-ए भूतकाळ. (भविष्य) मारुं आ भविष्यमां थशे अने हुं आनो भविष्यमां थईश. आ जे हुं पुण्य बांधुं छुं एनाथी भविष्यमां मनुष्यपणुं मळशे, जिनवाणी सांभळवा मळशे, ए बधुं मने मळशे. अरे प्रभु! तुं तो ज्ञायकभाव छे ने! तने शुं मळ्‌युं अने शुं मळशे? भाई, ए तारी चीजमां कयां छे? आ मारुं भविष्यमां थशे, हुं एनो थईश, इत्यादि आवा जूठा विकल्पथी ते अप्रतिबुद्ध-मूढ- अज्ञानी-मिथ्याद्रष्टि छे एम ओळखाय छे.

जुओ, पहेलां द्रष्टांत आपे छे के लाकडाने अने अग्निने मळेलां देखीने लाकडुं- इंधन अने अग्निनो स्वभाव भिन्न होवा छतां बेने जे एक माने छे-एटले के इंधन ते अग्नि छे अने अग्नि छे ते इंधन छे एम जे माने छे ते लौकिकमां मूर्ख कहेवाय छे, केम के अग्निनो स्वभाव जे प्रकाश अने उष्णता ते लाकडाना स्वभावथी भिन्न छे. तेम जे कोई आत्मा आ राग, शरीर, मन, वाणी, घर, दीकरा, दीकरी, इत्यादि हुं छुं अने ए मारां छे-एवो परद्रव्यमां ज असत्यार्थ आत्मविकल्प करे छे ते अप्रतिबुद्ध-अज्ञानी छे, मिथ्याद्रष्टि छे.

परद्रव्यमां सचेत, अचेत अने मिश्र एम त्रण प्रकार लीधा छे. संसारी गृहस्थने स्त्री, कुटुंब-परिवार, दीकरा, दीकरी इत्यादि सचेत, शरीर तथा लक्ष्मी आदि अचेत अने दीकरो अने एनां उपकरणो तथा स्त्री अने तेनां कपडां, दागीना आदि बन्ने साथे भेगां ते मिश्र. ए त्रणे जे मारां कहे-माने ते मूढ छे. तेम साधुने जे शिष्य ते सचेत, उपकरण ते अचेत अने उपकरण सहित शिष्य ते मिश्र. बीजी रीते कहीए तो पुण्य-पापना विकल्पो ते सचेत, पुद्गलादि परद्रव्य ते अचेत, अने गुणस्थान-मार्गणास्थाने परिणमेलो माने ते मिश्र. आ सचेत, अचेत अने मिश्र-एम त्रण प्रकारना परद्रव्यमां आ हुं छुं अने ए मारा स्वरूपे छे एम माने ए मूढ-मिथ्याद्रष्टि छे. एना ज्ञानमां साचापणुं आव्युं ज नथी.

प्रश्नः–चौद मार्गणामांथी पोताने शोधवो जोईए ने?

उत्तरः–कयां शोधवो? ए तो पर्यायद्रष्टिए पर्यायपणे केवो छे एनी वात छे.


PDF/HTML Page 346 of 4199
single page version

वस्तुपणे तो ज्ञायक चौद मार्गणामां छे ज नहि, भेदमां आत्मा छे ज नहि. अने ए मार्गणास्थानो वस्तुपणे आत्मामां छे ज नहि. अरे! गुणस्थानपणे एने गोतीए तो गुणस्थान पण ज्ञायकमां नथी, अने ज्ञायक आत्मा गुणस्थानमां नथी. आवी वात छे, भाई! झीणी. आ तो टूंकामां समजाव्युं छे. भाई, तुं कोण छो एनी आ वात छे.

हुं आ परद्रव्य छुं अने आ परद्रव्य मारा स्वरूपे छे ए मान्यता अज्ञान छे. आ राग-व्यवहार रत्नत्रयनो विकल्प मारा स्वरूपे छे, आ शरीर मारा स्वरूपे छे, स्त्री मारा स्वरूपे छेः अर्धांगना नथी कहेता? स्त्रीने अडधुं अंग-अडधुं हुं अने अडधुं ए-एम कहे छे. आ तो मूर्खाई छे, धूळेय अर्धांगना नथी. ए आत्मा जुदो, एना शरीरनां रजकण जुदां; एने अने आत्माने संबंध केवो? आ मारो देश, आ मारो पुत्र, आ मारा पिता एम निमित्तथी, व्यवहारथी, बोलाय छे. कोना पिता? कोनो पुत्र? आत्माने बाप केवो अने दीकरो केवो? जीव एक निज ज्ञायकभाव सिवाय जेटली चीज-पुण्य-पाप, गुणस्थान भेद इत्यादि बधां मारां-पोतानां माने ए परद्रव्यने ज पोतानुं माने छे. आ तो पांचमुं गुणस्थान (श्रावक दशा) कोने कहेवुं ए कयां एने खबर छे? पर्यायमां ए वस्तुनुं व्यवहारनयथी ज्ञान करे, पण ए चीज मारी छे अने ए हुं छुं एम माने तो मिथ्याद्रष्टि छे.

‘हुं आ’ एम बे अस्ति तो सिद्ध करी. ‘हुं’ एटले एक अस्ति अने ‘आ’ ए बीजी अस्ति थई. रागादि, पुण्य, पाप, दया, दान, व्रत, शरीर, मन, वाणी, इंद्रिय इत्यादि अस्ति तो छे. वेदान्तीनी पेठे एम तो नथी “ब्रह्म सत्य अने जगत मिथ्या.” आत्मा सत्य अने बीजुं भ्रम एम नथी. हुं अने आ एम बे शब्द वापर्या छे. आ टीका तो बहु टूंकी भाषामां छे पण अंदर घणुं रहस्य भरेलुं छे.

प्रार्थनाः- (अहीं श्रोता विशेष खुलासो करवा माटे विनंती करे छे?) ते आप खोलो. (कृपाळुदेव!)

हा, हळवे हळवे खोलीए.

सवारमां जुओने केवुं आव्युं हतुं? के जैनधर्म कोने कहेवो? (तो कहे छे) के भगवान आत्मा ज्ञायकस्वभावे परिपूर्ण ज्ञान अने आनंदथी भरेलो अथवा वीतरागस्वभावे भरेलो प्रभु छे. एनी परिणतिमां-पर्यायमां वीतरागतानी द्रष्टि, ज्ञान अने शान्ति प्रगटे ए जैनधर्म. मुनिओए त्यां सुधी कह्युं के ए जैनधर्म जयवंत वर्ते छे-एटले के आ ज्ञायक प्रभु मारो नाथ मने हाथ आव्यो छे, मने वीतरागी समकित, वीतरागी ज्ञान अने वीतरागी रमणतारूप जैनधर्म जयवंत वर्ते छे. मने ए जैनधर्म प्रगट छे, कोईकने हशे


PDF/HTML Page 347 of 4199
single page version

एम नहि. ओहो! दिगंबर संतोनी गजब शैली! धर्मए वीतरागी दशा छे, एमां व्यवहाररत्नत्रयना रागनुं मिश्रपणुं नथी.

लोको कहे छे के आ बधा छोकराओ भणीगणीने होशियार एन्जिनियर थाय छे, पछी कारखानां करे छे. कहे छे ने के जुओ, आनो दीकरो कारखानां केवां करे छे? शुं ए साचुं हशे? गप छे, कारखानां केवां? भाई, तुं तो ज्ञायकस्वरूप छे ने. प्रभु! तुं एक समयनी पर्याय जेटलो नथी तो पछी रागनो, दीकरा-दीकरीनो, देशनो वगेरेनो केम होय? आ लक्ष्मीवाळो, आबरूवाळो, पैसावाळो, बायडीवाळो, कुटुंबवाळो, कारखानावाळो अहाहा! केटला वाळा वळग्या एने? एक वाळो होय तो राड नाखे छे. वाळो (एक जातनुं जंतु) वाव-कूवाना पाणीमां होय छे ते पीवाथी पगमां लांबो तांतणो नीकळे छे. एक वाळाथी तो राड नाखी जाय छे तो आ तो केटला वाळा?

प्रश्नः–ए वाळो जे पगमां नीकळे ए तो दुःखे छे पण आ तो दुखता नथी ने?

उत्तरः–भाई, वात तो खरेखर एम छे के शरीरादि पर चीज मारी छे ए मान्यता दुःखरूप छे. अने पर चीज-शरीर, पैसा वगेरे उपर लक्ष जाय छे त्यारे पोताना आकुळताना दुःखमां ए (पर चीज) निमित्त छे. आनंदनुं-अतीन्द्रिय आनंदनुं (सुखनुं) कारण तो एकमात्र चैतन्यमूर्ति भगवान छे.

व्यवहाररत्नत्रय आदि परद्रव्यो मारा छे एम माने ते मूढ मिथ्याद्रष्टि छे. नियमसार गाथा प० मां तो शुद्धरत्नत्रयनी मोक्षमार्गनी वीतरागी निर्मळ पर्यायने परद्रव्य कही छे. त्रिकाळी एक शुद्ध ज्ञायक स्वद्रव्य जे नहि ते बधुं परद्रव्य छे. आत्मा पर्याय जेटलो छे एम माने ते पोताने परद्रव्यरूप माने छे. एटले चैतन्यसूर्य, आनंदनो नाथ, भगवान आत्मा सिवाय एक समयनी पर्यायने, रागने के शरीरादि परद्रव्यने पोतानुं माने ते मूढ मिथ्याद्रष्टि छे. त्यां (नियमसार गाथा प० मां) सम्यग्दर्शन अने वीतरागी चारित्रने परद्रव्य कह्युं छे कारण के जेम स्वद्रव्य (लक्ष) सिवाय बीजा द्रव्यमांथी पोतानी नवी (निर्मळ) पर्याय आवती नथी तेम नवी (निर्मळ) पर्याय निर्मळ पर्यायमांथी पण आवती नथी. त्यां एने (निर्मळ पर्यायने) परद्रव्य कहीने स्वद्रव्यनी द्रष्टि कराववी छे. नवी (निर्मळ) पर्यायनी उत्पत्ति स्वद्रव्यना आश्रये थाय छे. (पण पर्यायना आश्रये थती नथी) पर्यायमांथी पर्याय न आवे. भाई! वीतराग परमेश्वरनो मार्ग गहन छे.

अहाहा! जैनधर्मना परिणमनने पामेला, वीतरागतानी परिणतिमां ऊभेला आ दिगंबर मुनिओ-संतो तो जुओ. तेमने विकल्प आव्यो अने टीका टीकाना कारणे थई. आचार्य भगवान टीकाना छेल्ला श्लोकमां कहे छे के आ टीकानो हुं र्क्ता नथी. मारा माथे आळ नाखशो मा. (हुं तो स्वरूपगुप्त छुं) अरे प्रभु! आवी सरस टीका करीने आप


PDF/HTML Page 348 of 4199
single page version

ना केम पाडो छो? भाई, ए तो शब्दोनी शक्तिथी टीका थई छे; मारा विकल्प अने मारी शक्तिथी नहि. पंचास्तिकाय, प्रवचनसारमां बधे छेल्ला कळश छे एमां आ कहे छे के आ टीका में करी अने टीका द्वारा तने ज्ञान थाय एवा भ्रम न करीश.

पहेलां सामान्य लीधुं के हुं आ छुं अने आ मारां छे. पछी त्रणकाळनुं लीधुं. वर्तमानमां आ मारां छे अने हुं एनो छुं; भूतकाळमां आ मारां हतां अने हुं एनो हतो; भविष्यमां आ मारां थशे अने हुं एनो थईश, छोकराओने अमे पाळी पोषी मोटा कर्या, हवे अमे घडपणमां निरांते रहीशुं. आपणने छोकराओ पोषशे. कोने पोषशे? तने के एने? भारे वात, भाई! आ तो संसारनुं नाटक छे. अरे भाई! तने भ्रमणा छे. नाथ! तुं तो सर्वज्ञस्वभावी छे. दरेक आत्मा सर्वज्ञस्वभावरूप ज छे. एनो अर्थ ए थयो के ए स्वने अने परने जाणवाना परिणमनवाळो छे. ए स्व अने पर बे एक छे एम नहि. स्वना ज्ञानरूपे अने परना ज्ञानरूपे परिणमवुं एवो स्वपरप्रकाशक एनो स्वभाव छे. सर्वज्ञनी परिणति पर्यायमां जे प्रगटे ते पहेलां श्रद्धामां एम आव्युं हतुं के हुं तो सर्वज्ञस्वभावी छुं. तेथी श्रद्धाना बळे सर्वज्ञदशा प्रगट करी. ए श्रद्धा सर्वज्ञ- स्वभावी आत्मानी छे, अल्पज्ञ के रागवाळा आत्मानी नहि. आवो उपदेश छे, भाई! मार्ग तो आ छे.

केटलाक एम माने के अमे तो एवी उपदेश शैली करीए के धीमेथी बोलवुं होय तो धीमेथी बोलीए, ताणीने बोलवुं होय तो ताणीने बोलीए. बीजाने खंखेरीए, वळी कोई एक जण एम कहेतुं हतुं के अमारी पासे पैसा नथी पण एवो उपदेश आपीए के लोकोना पैसा खंखेरी नाखीए. अरे भगवान! शुं करे छे तुं आ? भाई, तारुं स्वरूप ए (उपदेश) नहि. उपदेश हुं करुं छुं ए तो परने पोतानुं मान्युं छे. गजब वात, बापु! में पूर्वे उपदेश कर्यो हतो एनाथी बधा समज्या, मारा उपदेशनुं ए फळ आव्युं एम माननार परद्रव्यने पोतानुं माने छे अने पोताने परद्रव्यरूप माने छे.

प्रश्नः–एवो निमित्त-नैमित्तिक संबंध तो छे?

उत्तरः–ए तो जाणवा माटे छे, पण (निमित्तथी कार्य थाय एम) मानवा माटे नथी. स्वयंभूस्तोत्रमां गाथा ७३ मां धर्मनाथ भगवाननी स्तुतिमां आवे छे के-प्रभु! आपनी वाणीमां उपदेश नीकळ्‌यो पण धर्म कोई पाम्या के नहि तेनुं फळ आपे न जोयुं. आपे उपदेश आप्यो पण आमांथी धर्म कोण पाम्या ए आपे न जोयुं. एनो अर्थ ए के पामनारा पामे ए तो केवळज्ञानमां पहेलेथी जणाई गयुं छे. एम समक्तिी पण, मारा उपदेशथी आटला पाम्या ए फळ जोता नथी. उपदेश ज मारो नथी ने भाई, परचीजथी भिन्नतानी वातो झीणी छे.


PDF/HTML Page 349 of 4199
single page version

पहेलां कह्युं ने के-में उपदेश कर्यो हतो एनाथी बधा समज्या अने मारा उपदेशनुं आ फळ आव्युं-आवा जूठा विकल्पथी अज्ञानी अप्रतिबुद्ध ओळखाय छे, पहेलां दलपतरामनी कवितामां आवतुं के “मूरख माथे शींगडां नहि, ” तो जेम आ मूरखने एवी कोई निशानी होती नथी एम अज्ञानीने बहारमां एवां कोई चिह्न होता नथी पण परद्रव्यने पोतानुं मानवुं अने पोताने परद्रव्यरूप मानवुं ए अज्ञानीनुं चिह्न अंदरमां छे.

अहीं तो भगवान आत्मा खरेखर सर्वज्ञस्वभावी छे एम सिद्ध करवुं छे. ते भूतकाळनी चीज जाणे, वर्तमान छे एने जाणे, भविष्यमां थशे एने जाणे. जाणे, जाणे अने जाणे-ए सिवाय बीजुं एनामां छे नहि. बीजी रीते कहीए तो ज्ञाता-द्रष्टा एनो स्वभाव छे, देखनार-जाणनार बस. ए वस्तुना भूत, वर्तमान अने भविष्यने जाणे ए जुदी वात. पण ते वस्तु हती माटे जाणे एम नथी. ए समयनी स्वपरप्रकाशक ज्ञाननी पर्याय पोताथी प्रगटी एने जाणे छे.

बंध अधिकारमां त्यां सुधी लीधुं छे के-आने में मोक्ष पमाडयो, हुं आने मोक्ष पमाडुं, हुं आने बंध करावुं एवी मान्यता मिथ्याबुद्धि छे. भाई, एना अज्ञान अने राग विना एने बंध नहि थाय. अने वीतरागता विना एने मुक्ति नहि थाय. (तारा विना नहि थाय एम नहीं.) हुं आने आजीविका दईने जीवाडुं, हुं आने मारुं, हुं आने सुखना संयोगो दउं, हुं आने दुःखना संयोगो दउं-ए बधी मान्यता मिथ्याद्रष्टि मूढ अप्रतिबुद्धनी छे. त्यां दलील आपी छे के जीवनी वीतराग दशा विना ए मुक्ति नहि पामे, तो तुं पमाडीश ए कयां आव्युं? अने अज्ञान अने रागभाव विना जीवने बंध नहि थाय एटले आने हुं बंध करावुं ए वात कयां रही?

श्वेतांबरमां एक कथा आवे छे. देवद्रव्य खाय तो खानारने नुकशान थाय-पाप थाय, एना उपर एक एवी कथा छे. बे जण हता. एक बीजानो वैरी हतो. हवे जेना पर वेर हतुं एनुं मकान थतुं हतुं. तेमां पेला वैरीए देरासरनी इंट लईने मकान थतुं हतुं एमां मूकी दीधी. एणे वेर वाळवा आम कर्युं. एने मन एम के हवे पेला वैरीने देवद्रव्य खाधानुं पाप लागशे अने एनुं नख्खोद जशे. पण भाई, जेनुं मकान थतुं हतुं एने पोताने तो इंटनी खबरेय नथी तो पछी एने पाप लागे अने एनुं नख्खोद जाय एम शी रीते बने? न बने. पण अज्ञानी आवुं अनादिथी मानी रह्यो छे. वळी कोई एम माने छे के आपणे लाख बे लाखनुं जे मंदिर बंधावीए तेमां जे लोको भक्ति, पूजा, धर्म करे एनो (पुण्य) लाभ आपणने मळशे. आ तद्न खोटी वात छे. (अज्ञानीओ आवुं ने आवुं केटलुंय मानतां होय छे.) अहीं तो कहे छे के हुं आनो अने आ मारां एम त्रणेकाळ संबंधी राग, शरीर, वाणी, पैसा, लक्ष्मी, घर, दीकरा, दीकरी, देश इत्यादि ए बधा बोल लागु पाडतां जे आ प्रकारे जूठा विकल्पो करे छे ते अज्ञानी- अप्रतिबुद्ध छे.


PDF/HTML Page 350 of 4199
single page version

हवे सवळुं ल्यो. अवळानी वात पहेलां करी. वळी अग्नि छे ते इंधन नथी ए द्रष्टांतथी प्रतिबुद्धनी वात करे छे.

वळी अग्नि छे ते लाकडुं (इंधन) नथी, अने इंधन छे ते अग्नि नथी. अग्नि - प्रकाशमान ज्योति ते लाकडुं नथी. लाकडुं छे ते प्रकाश नथी. समयसार, जयसेनाचार्यनी टीकामां अग्निना त्रण मुख्य गुणो वर्णव्या छे. पाचक, प्रकाशक अने दाहक. अग्नि अनाजने पकवे ए पाचक, अग्नि पोताने अने परने प्रकाशे ते प्रकाशक अने लाकडां आदिने बाळे ते दाहक. तेम भगवान आत्मामां त्रण मुख्य गुणो छे. पाचक-सम्यग्दर्शन पूर्णानंदने पचावे छे ते पाचक. एक समयनी सम्यग्दर्शननी पर्याय पूर्णानंदस्वरूपने पचावे छे. प्रकाशकः ज्ञान स्व अने परने जाणवानो प्रकाश करे छे ते प्रकाशक अने दाहकः वीतरागी चारित्र रागादिने बाळी मूके छे ते दाहक. ज्यां आत्मामां स्थिरता थई त्यां राग रहेतो नथी ए दाहक. आम अग्निना द्रष्टांते आत्मामां त्रण गुण कह्या.

वळी अग्नि छे ते इंधन नथी, इंधन छे ते अग्नि नथी. अग्नि छे ते अग्नि ज छे, इंधन छे ते इंधन ज छे. आ सामान्य वात करी. (हवे त्रण काळथी वात करे छे.) (वर्तमान) अग्निनुं इंधन नथी, इंधननो अग्नि नथी, -अग्निनो ज अग्नि छे, इंधननुं इंधन छे-ए वर्तमान थयुं. (भूतकाळ) अग्निनुं इंधन पहेलां हतुं नहि, इंधननो अग्नि पहेलां हतो नहि, -अग्निनो अग्नि पहेलां हतो, इंधननुं इंधन पहेलां हतुं-ए भूतकाळ थयो. (भविष्यकाळ) अग्निनुं इंधन भविष्यमां थशे नहि, इंधननो अग्नि भविष्यमां थशे नहि, -अग्निनो अग्नि ज भविष्यमां थशे, इंधननुं इंधन भविष्यमां थशे. आ प्रमाणे जेम कोईने अग्निमां ज सत्यार्थ अग्निनो विकल्प थाय ते प्रतिबुद्धनुं लक्षण छे.

तेवी ज रीते हुं आ परद्रव्य नथी, आ परद्रव्य मुजस्वरूप नथी, -हुं तो हुं ज छुं, परद्रव्य छे ते परद्रव्य ज छे. आ सामान्य वात करी, जुओ, आ हुं तो सर्वज्ञ- स्वरूपी प्रभु आत्मा छुं. हुं सर्वने जाणुं खरो, पण ए सर्व मारुं नहि. अहाहा! पर्यायमां स्वपरने पूर्ण जाणुं ए मारो स्वभाव छे, पण पर मारा छे एम वस्तुस्वरूप नथी. तथा पर हतां तो मारामां ज्ञान थयुं एम पण नथी. अहीं शुं कहे छे? के हुं आ परद्रव्य नथी. राग ए हुं नहि, शरीर ए हुं नहि, देश, कुटुंब, दीकरा-दीकरी ए हुं नहि. केटलाक माने छे ने के-मारी (पोतानी) हाजरी होय अने मारी (पोतानी) हूंफ मळे तो काम सारां थाय. धूळेय नथी. हुं (पोते) तो जाणनार ज्ञायक छुं. एमां वळी बीजाने हूंफ मळे ए कयांथी आव्युं? वळी आ परद्रव्य मारा स्वरूपे नथी. आ शरीर, मन, वाणी, राग ते मारुं स्वरूप नहि. हुं तो एक अस्ति सर्वज्ञस्वरूप ज छुं. लोकमां माणस होशियार होय तो वधारे रळे अने दुकाने डफोळ बेठो होय तो शुं रळे? एम नथी कहेता! जुओ, गामनी घणी दुकानो भांगी पडी अने हुं होशियार-जाणकार छुं


PDF/HTML Page 351 of 4199
single page version

एटले मारी दुकान बराबर चाले छे-एम कहे छे, पण ए वात तद्न खोटी छे. पोतानी चीज शुं छे ए जाण्या वगर मिथ्या अभिमान सेवे पण एथी शुं? प्रभु! तुं तो सर्वज्ञनेत्र छे; सौने जाणे खरो; पण ए सर्वमांथी कोई पण चीज पोतापणे छे एम नथी.

‘हुं आ परद्रव्य नथी’ एमां हुं छुं अने बीजां द्रव्यो, रागादि वगेरे छे एम (बन्नेनुं अस्तित्व) सिद्ध कर्युं. पण ए परद्रव्यो, राग, व्यवहाररत्नत्रयनो विकल्प अने एनुं फळ जे स्वर्गादि ए मारुं स्वरूप नथी. अहाहा! छ खंडनो स्वामी चक्रवर्ती समक्ति पामे त्यारे कहे के आ (छ खंडनो वैभव) हुं नथी. आ तो बधुं एनी मेळे थाय छे. हुं छ खंड साधतो नथी, हुं तो अखंडने (निज स्वरूपने) साधुं छुं. छ खंडनो हुं स्वामी नहि, हुं तो अखंडस्वरूपनो स्वामी छुं. न्यालभाईए द्रव्यद्रष्टिप्रकाशमां लीधुं छे के-कोईए कह्युं के चक्रवर्ती छ खंडने साधता हता तो कह्युं के भाई, एम नहोतुं. ए तो समक्तिी हता एटले अखंडने साधता हता. छ खंडने नहि पण जे ज्ञायकस्वरूपी अखंड एक आनंदनो नाथ भगवान आत्मा तेने साधता हता. भाई, आ तो वस्तु अंदर कोई अलौकिक छे. आ सामान्य वात थई.

हवे वर्तमानः-मारुं आ परद्रव्य नथी, आ परद्रव्यनो हुं नथी. आ अत्यारे जे रागादि छे ते मारां नथी, शरीर, मन, वाणी, कुटुंब, देश इत्यादि मारां नथी. ए परद्रव्योनो हुं नथी. मारो ज हुं छुं. सर्वज्ञ-स्वभावी जे अखंड चीज ए ज हुं छुं. परद्रव्य परद्रव्यरूप ज छे. व्यवहार रत्नत्रयनो जे राग आवे तेनाथी एकरूप हुं नथी, अने ए मारो नथी. फक्त ते संबंधीनुं ज्ञान ते मारुं छे. अहाहा! संतोए करुणा करी केवी टीका करी छे! सामाने गळे उतरी जाय एवो गरभलो (तैयार कोळियो) करीने मोढांमां आप्यो छे. भाई, तुं वर्तमानमां पण सर्वज्ञस्वभावी आत्मा ज छे ने, नाथ! ए परवस्तुनो तुं नथी अने परवस्तु तारी नथी.

हवे भूतकाळः-आ परद्रव्य मारुं पहेलां हतुं नहि, आ परद्रव्यनो हुं पहेलां हतो नहि. अरे, पहेलां मारुं शरीर सारुं हतुं पण हमणां हमणां बगडी गयुं छे. कोई वळी एम कहेतो हतो के आ स्त्री एवी छप्परपगी (खराब पगलांनी) मळी के आवी त्यारथी बधी लक्ष्मी चाली गई. तो एक जण वळी एम कहेतो हतो के आ बाई मारे घेर कंकुपगलांनी आवी के आवी त्यारथी अढळक पैसो थई गयो. आवा गांडा छे बधा. आ शरीर, पगलां, अने पैसो आत्मानां कयारे हतां? आ तो बधुं (अज्ञाननुं) तोफान छे. खबर छे ने बधी, नाटक तो बधुं जोयुं छे, नाच्या नथी पण नाचनारने जोया छे. वळी कोई कहे-आ नोकर पहेलां तो वफादार हतो, हवे फरी गयो छे; आ छोकरां पहेलां पहेलां कह्यागरा हता, पण हवे कोण जाणे शुं थयुं छे के मानता ज नथी,


PDF/HTML Page 352 of 4199
single page version

परण्या पछी बायडीना थई गया; इत्यादि केटलाक वातो करे छे. अरे! सांभळने बापु! अहीं कहे छे के पहेलां मारुं कोई हतुं ज नहि, मारुं हतुं एक सर्वज्ञस्वरूप. ते तो हुं छुं ज. अने परद्रव्य परद्रव्य ज हतुं.

हवे भविष्यकाळः आ परद्रव्य मारुं भविष्यमां थशे नहि अने एनो हुं भविष्यमां थईश नहि. ए रागनो, शरीरनो के देशनो हुं थईश नहि. कोईनो दीकरो अने कोईकनो बाप हुं भविष्यमां थईश नहि. हुं मारो ज भविष्यमां थईश. अस्ति- नास्ति कहे छे ने? अने आ परद्रव्यनुं परद्रव्य ज भविष्यमां थशे.

आवो जे त्रणेकाळ संबंधीनो स्वद्रव्यमां ज सत्यार्थ आत्मविकल्प थाय छे ते ज प्रतिबुद्धनुं लक्षण छे, तेनाथी ते ओळखाय छे. जुओ भाषा. एक ज्ञायकभाव सर्वज्ञस्वभावी आत्मा ए ज हुं छुं एवो सत्यार्थ-भूतार्थ आत्मविकल्प ए ज ज्ञानी समक्तिीनुं लक्षण छे. आ रीते ज्ञानी ओळखाय छे. बाकी आ मारां ने ए तारां, में आम कर्युं हतुं. अने तें आम कर्युं, तमे उपकार भूली गया आदि बधुं गांडपण छे, अज्ञान छे.

जे परद्रव्यमां आत्मानो विकल्प करे ते तो अज्ञानी छे, अने जे पोताना आत्माने ज पोतानो माने छे ते ज्ञानी छे-एम अग्नि-इंधनना द्रष्टांत द्वारा द्रढ कर्युं छे. (आ भावार्थ थयो.)

हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः-

* कळश २२ः श्लोकार्थ *

जगतना जीवोने उद्देशीने कह्युं छे के जगत् जगतना जीवो आजन्मलीढं मोहम् अनादि संसारथी मांडीने आज सुधी अनुभव करेला मोहने इदानीम् त्यजतु हवे तो छोडो. एटले के अनादिकाळथी भगवान आत्मानो आनंद अने शांत स्वभाव होवा छतां तेणे राग-द्वेष अने पुण्य-पापना भावने ज वेद्या छे. अनादिथी दया, दान, व्रत, भक्ति, काम, क्रोधादि भावोमां जे मोहपरमां मारापणाना भाव, परमां सावधानीना भाव जे अधर्मरूप छे ते ज एणे वेद्या छे. परंतु पोते जे अतीन्द्रिय ज्ञान अने आनंदस्वरूप भगवान आत्मा छे तेने वेद्यो नथी.

आ खावुं, पीवुं अने वेपार करवो इत्यादिमां जे बाह्य क्रिया थाय छे ए तो एणे करी नथी. ए काळे जे राग-द्वेषना भाव थाय ते एणे कर्या अने अनुभव्या-वेद्या छे. चोवीसे कलाक आ धंधापाणी इत्यादि बधी प्रवृत्ति देखाय छे ने-एमां ए परनुं कांई करतो नथी, करी शक्तो नथी. अनादिकाळथी स्वरूपना स्वादथी जे विरुद्धभाव एवा राग अने द्वेष, शुभ अने अशुभ एम विकृतभाव एणे कर्या अने वेद्या छे. परने तो ए वेदी शक्तो नथी अने आत्माने एणे अनुभव्यो नथी.


PDF/HTML Page 353 of 4199
single page version

पोताना आत्मानुं वास्तविक स्वरूप तो ज्ञाता-द्रष्टा छे. ए स्वरूपने भूलीने आ पुण्य-पाप मारां, आ शरीर मारुं, आ लक्ष्मी, स्त्री, कुटुंब आदि मारां एवी मान्यतामां करेलो मिथ्यात्वभाव अने अनुकूळ-प्रतिकूळमां करेला राग-द्वेष-एनो ज अनादिथी अनंतकाळ अनुभव कर्यो छे. मोटो दिगंबर साधु थईने अनंतवार नवमी ग्रैवेयके गयो तोपण भगवान! तें मोह अने राग-द्वेषने ज वेद्या छे. आटली वात करीने कहे छे इदानीम् हवे तो आ मोहने छोडो. स्वपदार्थना ध्येयने भूलीने, परपदार्थने ध्येय बनावी जे राग-द्वेषनुं अनादिथी वेदन छे तेने हवे छोडीने भगवान आनंदना नाथ प्रभु आत्माने विषय-ध्येय बनावो.

भगवान अतीन्द्रिय आनंदनो नाथ अंदर विराजे छे. तेने भूलीने अनादि संसारथी एटले निगोदथी मांडीने एकेन्द्रिय, बेईन्द्रिय, त्रणईन्द्रिय, चौरेन्द्रिय अने पंचेन्द्रियना, नारकी, तिर्यंच, देव तेमज मनुष्यना जे अनंत भव कर्या तेमां आ परद्रव्य मारा एम परने पोतानां मान्यां छे. पोतानी चीजनी संभाळ करवाने बदले परद्रव्यनी संभाळ करवामां रोकाई गयो छे. एथी हे भाई! तुं दुःखी छे. तो हवे ए परद्रव्य प्रत्येना मोहने छोड. जे राग-द्वेष मारा मानीने ग्रह्या हता, वेद्या हता तेनुं लक्ष छोडीने भगवान आनंदनो नाथ प्रभु आत्मा छे एनुं लक्ष कर. जुओ, आ धर्मनी रीत. दया, दान, व्रत करवां ए कोई धर्मनी रीत नथी. ए तो विकल्प छे. ए तो रागनुं वेदन छे. (अनादिथी करी रह्यो छे) तो हवे वर्तमानमां गुलांट खा एम कहे छे. तें जे राग-द्वेष अने पुण्य-पापने ध्येय बनावीने एनुं वेदन कर्युं छे एमां ‘ते हुं छुं’ एम मानीने वेदन कर्युं छे तो हवे ‘ते हुं नहि, पण हुं तो ज्ञाताद्रष्टा चेतन छुं’ एम अंतरनी पर्यायमां-ध्यानमां त्रिकाळीने ध्येय बनाव. आ धर्म छे, भाई! आवो केवो धर्म? आटलां देरासर (मंदिर) बंधाववां के आटला उपवास करवा एम कहो तो झट समजाई जाय. देरासर कोण बंधावे, भाई? ए वखते एवो ते संबंधी राग थाय. उपवास करवानो विकल्प पण राग ज छे. अरे! अनादिथी पोताने भूलीने आवा राग कर्या विनानो एक पण समय गयो नथी. तो हवे ए मोहने छोड. ए छोडीने शुं करवुं? तेथी शुं थाय? ए वात हवे कहे छेः-

रसिकानाम् रोचनम् रसिक जनोने रुचिकर उद्यत् ज्ञानम् उद्रय थई रहेलुं जे ज्ञान रसयतु तेने आस्वादो. आत्माना अतीन्द्रिय आनंदना जे रसिकजनो छे. ए सम्यग्द्रष्टि धर्मी रसिकजनोने आत्माना अतीन्द्रिय आनंदना स्वादनी रुचि छे. सम्यग्द्रष्टि निज शुद्ध द्रव्यनी रुचि करीने शक्तिमां जे आनंद रस छे ते पर्यायमां प्रगट करीने आत्माना आनंदनो स्वाद ले छे. एने पुण्य-पाप भावनी रुचि नथी. एने पुण्य-पाप बंधनी के तेना फळनी पण रुचि नथी. एने रुचिकर छे एकमात्र आत्माना आनंदनो स्वाद. अहीं कहे छे के एवा अतीन्द्रिय आनंदना स्वादने आस्वादो.


PDF/HTML Page 354 of 4199
single page version

अहीं एम नथी कह्युं के पहेलो व्यवहार करजे अने आम करजे तेम करजे, केम के व्यवहार तो राग छे, ए तो अनंतवार कर्यो छे. एनी रुचि तो अनादिनी छे. अहीं तो सीधी वात करी छे के त्यजतु इदानीम् हवे तो छोडो. एटले रागादि व्यवहारना लक्षने छोडो अने त्रिकाळी भगवान जे अंदर बिराजे छे एनुं लक्ष करो. रसिकजनोने रुचिकर एवो जे भगवान आत्मा-एने ज्ञान कहो, आनंद कहो, ज्ञायक कहो-एना स्वादनी रुचि करो. पहेलां जे रागना वेदननी रुचि हती ए तो मिथ्यादर्शन हतुं. तेथी हवे आत्माना आनंदनी रुचि करो, केम के भगवान आनंदघनस्वभावना स्वादनी रुचि करे ते सम्यग्द्रष्टि छे. रसिकानाम् रोचनं उद्यत् ज्ञानम् सम्यग्द्रष्टि-धर्मी ज्ञाननो जे उद्रय-प्रगट द्रशा एनो स्वाद ले छे. ए एने रुचिकर छे. पहेलां ए राग-द्वेषनो स्वाद लेतो हतो ते तो परने लक्ष-ध्येय बनावी लेतो हतो. रसिकजनोने ध्येय तो चैतन्यतत्त्व छे. तेथी कहे छे के ए चैतन्यतत्त्वना लक्षे प्रगट थतुं ज्ञान जे स्वभावरूप छे (आनंद सहित छे) एनो स्वाद लो अने रागनी रुचि छोडो. भाई! आटला शब्दोमां तो घणुं भर्युं छे.

अहाहा! शुभभाव पण धर्मीने ज्ञाताना ज्ञाननुं पर ज्ञेय छे. ए वडे पुण्यबंध थाय ए पण ज्ञातानुं ज्ञेय छे अने एनुं फळ जे स्वर्गादि मळे ए पण ज्ञातानुं ज्ञेय छे. ए स्वज्ञेय नहि, हो. एवी रीते धर्मीने पापना परिणाम होय ए ज्ञातानुं ज्ञेय छे, एनाथी पापबंध थाय ए पण ज्ञातानुं ज्ञेय छे अने एना फळमां जे (नरकादिना) प्रतिकूळ संयोगो मळे ए पण ज्ञातानुं ज्ञेय छे. ए बधुं शुभ अने अशुभ ज्ञातानुं परज्ञेय छे. सवारमां कह्युं हतुं ने के व्रतना परिणामथी जीवने स्वर्गमां स्त्रीओ मळे, सुख (वैभव) मळे. शुभभावथी संयोग मळे पण स्वभाव न मळे. एनो अर्थ ए के धर्मीने आत्मा रुच्यो छे, एने शुभभावथी-व्रतादिनी रुचि नथी. ज्ञानीने ए शुभभाव, एनाथी थतुं बंधन अने एनुं फळ जे आवे ते बधुंय परज्ञेय तरीके छे. ए संयोगी भाव अने ए संयोगो मारा एम ज्ञानी मानतो नथी.

शुद्ध आत्माना अनुभवी सम्यग्द्रष्टिने तो अतीन्द्रिय आनंदना स्वादनी रुचि छे. अहाहा! चक्रवर्तीने छ खंडनुं राज्य मळे तोपण ते समक्तिी होवाथी तेने ज्ञानमां परज्ञेय तरीके जाणे छे, पोताना तरीके जाणतो नथी. समयसार नाटकमां बनारसीदास कहे छेः-

“स्वपरप्रकासक सकति हमारी
तातैं वचन-भेद भ्रम भारी
ज्ञेयदशा दुविधा परगासी
निजरूपा पररूपा भासी.”

PDF/HTML Page 355 of 4199
single page version

आ पांच अणुव्रत, पांच महाव्रत वगेरेना शुभभाव ए मारा छे एम ज्ञानीए मान्युं नथी, पण ए परज्ञेय तरीके छे, स्वज्ञेयमां नहि. तेथी तेना फळ तरीके जे कर्मनुं बंधन पडयुं ए पण परज्ञेय तरीके छे. मने बंधन छे, हुं बंधाणो एम ज्ञानी मानतो नथी. तथा एना फळमां जे संयोग मळे ते पण एने परज्ञेय छे. संयोग मारा छे एम ज्ञानी मानतो नथी.

सम्यग्द्रष्टि धर्मीने आत्मानो स्वाद रुचिकर छे. रुचिकर एटले आनंद आपनारो. रुचि-श्रद्धा-प्रतीतिनी व्याख्या आ छे के-एने प्रत्यक्ष (आत्माना) आनंदनो स्वाद आव्यो ते रुचि-श्रद्धा-प्रतीति छे. आ जैनधर्म छे जुओ, जैनदर्शन ए वस्तुदर्शन छे. बधाने भेगा करीने विश्वधर्म विश्वधर्म कहे पण ए विश्वधर्म छे ज नहि. भगवान सर्वज्ञदेवे कहेलो एक ज मार्ग विश्वधर्म-जैनधर्म छे. एने बीजा कोई धर्म साथे मेळ छे नहि. भाई, बीजाने ठीक लागे के न लागे, पण वस्तु तो आ छे. वस्तु ज्ञानानंद- स्वभावी जे ज्ञायक आत्मा तेनी रुचि करतां जे ज्ञान अने आनंदनी शक्ति छे ते पर्यायमां प्रगट थाय छे, तेने आस्वादो एम कहे छे. आ मार्ग छे, आ सिवाय बीजो कोई मार्ग नथी. कुंदकुंदाचार्यनी एक गाथा छे के समक्ति जेवी कल्याणकारी जगतमां कोई चीज नथी अने मिथ्यात्व जेवी अकल्याणकारी जगतमां कोई चीज नथी.

तेथी अहीं कहे छे के रसिकजनोने रुचिकर उदय थई रहेलुं जे ज्ञान ते आस्वादो, कारण के इह आ लोकमां आत्मा किल आत्मा छे ते खरेखर कथम् अपि कोई प्रकारे अनात्मना साकम् अनात्मा (परद्रव्य) साथे क्वापि कोई काळे तादात्म्यवृत्तिम् न कलयति तादात्म्यवृत्ति (एकपणुं) पामतो नथी. अनात्मा एटले रागथी मांडीने बधी चीजो अनात्मा छे. आ आत्मानी अपेक्षाए सिद्ध भगवान पण अनात्मा छे. अहाहा! अहीं कहे छे के कोई पण प्रकारे कोई काळे भगवान आत्मा परद्रव्य साथे एकरूप थतो नथी. भगवान ज्ञायकस्वरूप प्रभु गुण-गुणीना भेदना विकल्पथी मांडीने बधाय जे अनात्मा-परद्रव्य तेनी साथे एकपणाने पामतो नथी. आवो धर्म अने आवो मार्ग! अहाहा!

प्रश्नः–दया पाळवी, व्रत करवां ए तो तमे कहेता नथी?

उत्तरः–सांभळने बापा! ए दया अने व्रतनो जे विकल्प छे एमां तारी दया नथी. परनी दया पाळवानो विकल्प ए शुभभाव छे. (स्वरूपनी हिंसा छे.) बापु! स्वना आश्रयनो मार्ग कोई अलौकिक छे. तेथी परनो आश्रय छोडीने स्वनो आश्रय कर एम कहे छे. आत्मा राग अने पर साथे कदी पण एक्ता पामतो नथी. कारण के एकः आत्मा एक छे. ते अन्य द्रव्य साथे एकरूप थयो नथी. जुओ एक कळशमां केटलुं भर्युं छे? अमारी आंख सारी हती, हमणां जरा बगडी छे, अमारुं शरीर अत्यार सुधी नीरोगी रह्युं छे, कोई दिवस सूंठ पण चोपडी नथी इत्यादि. आम ‘अमारुं’ अमारुं एवी पर साथे


PDF/HTML Page 356 of 4199
single page version

एकत्वबुद्धि करीने मरी गयो (संसारमां रखडयो). पण भाई! पहेलांय शरीर तारुं कयारे हतुं अने अत्यारे पण तारुं कयां छे? कोई काळे पण (परमां) प्रवृत्ति तुं माने एम थती नथी.

मोक्ष अधिकारमां एम लीधुं छे के राग अने भगवान आत्मा वच्चे संधि छे, तड छे, निःसंधि-एक कदीय थया नथी. आवो पाठ छे. फक्त तें एम मान्युं छे के आ राग, पुण्य, विकल्प इत्यादि मारां. ए तारी मान्यतामां निःसंधि-एकपणुं छे. बाकी खरेखर बे वच्चे संधि-तड छे. आ लोकमां आत्मा छे ए अनात्मा साथे कोई प्रकारे खरेखर एकपणुं पामतो नथी, कारण के ते एक छे. ते बगडे बे थतो नथी. एकडे एक अने बगडे बे. आत्मा एकपणे छे अने राग बीजी चीज छे. आत्मा राग साथे एकपणुं पामतो नथी, जो एकपणुं पामे तो ते आत्मा बगडी जाय, बगडे बे थई जाय. परंतु आत्मा बधाय अन्य द्रव्य-रागादि विकल्पो साथे एकरूप थतो नथी केमके ते एक एकः छे. आ धर्मनी रीत छे.

* कळशः २२ भावार्थ *

आत्मा कोई काळे अने कोई प्रकारे परद्रव्य साथे एटले राग, शरीर, मन, वाणी, कर्म, देश, जड इन्द्रियो साथे, अरे खंड खंड भावेन्द्रियो साथे एक्ताभावने पामतो नथी. आ रीते आचार्ये अनादिथी परद्रव्य प्रत्ये लागेलो मोह एटले परमां थयेली सावधानीथी आत्मानुं भेदज्ञान बताव्युं छे, अने प्रेरणा करी छे के ए एकपणाना मोहने हवे छोडो. रागादि साथेना एकपणाने हवे छोडी आत्मा एक छे एनी साथे एक्ता प्राप्त करो, ज्ञानस्वभाव साथे एकपणुं प्रगट करो, निज ज्ञानस्वरूप आत्माना आनंदने आस्वादो-ज्ञानने आस्वादो. अहो! अमृतचंद्राचार्यना कळशो घणा गंभीर छे. एमनी टीका पण घणी गंभीर छे. शास्त्रोमां कांई भाव भर्या छे एमणे! जेम आंचळमांथी दूध संभाळपूर्वक दोहीने काढे तेम शास्त्रोमां भरेला भावो तर्कनी भींस दईने काढया छे, टीकामां भर्या छे.

भगवान आत्मा ज्ञानस्वरूप (चैतन्यस्वरूप) छे. रागभाव ए अचेतनस्वरूप छे. चाहे तो दया, दान, के व्रतनो विकल्प हो के गुण-गुणीना भेदनो विकल्प हो, ए (सघळा) विकल्प अचेतन छे. तेमां ज्ञानस्वभावनुं किरण नथी. रागमां ज्ञानस्वभावनुं किरण नथी. माटे ते रागनुं आस्वादवुं छोडी आ ज्ञानस्वरूप आत्माने आस्वादो. भगवान आत्मामां आनंद, सुखनो आस्वाद छे. अनादिकाळथी रागनो आस्वाद कर्यो ते दुःखनो-आकुळतानो स्वाद हतो, एमां कांई नवीन नथी. तेथी नवुं करवुं होय तो ज्ञानने आस्वादो एम कहे छे.

‘मोह छे ते वृथा छे.’ भाषा जुओ. मोह छे ते वृथा अने अमोह ते सफळ. मोह कहेतां परमां सावधानी ते वृथा-अफळ (मोक्ष माटे छे.) अने अमोह कहेतां


PDF/HTML Page 357 of 4199
single page version

स्वरूपमां सावधानी ते सफळ (मोक्ष माटे) छे. प्रवचनसार गाथा ११६ मां सफळ अने अफळ जुदी रीते संसारनी अपेक्षाथी आवे छे. त्यां पुण्य-पापना भावनुं (मोह सहित क्रियानुं) सफळपणुं कह्युं छे. एटले ते वडे मनुष्यादि जे गति मळे छे ते अवश्य मळशे. अने मोहरहित आत्मानी धार्मिक क्रियानुं अफळपणुं कह्युं छे. एटले एना फळमां संसार प्राप्ति नहि मळे. आ प्रमाणे मोह वृथा छे, जूठो छे, दुःखनुं कारण छे. तथा अमोह सफळ छे, साचो छे अने सुखनुं कारण छे. एम बावीसमो कळश पूरो थयो.

[प्रवचन नं. ६२-६३-६४ * दिनांक ३१-१-७६ थी २-२-७६]




PDF/HTML Page 358 of 4199
single page version

अथाप्रतिबुद्धबोधनाय व्यवसायः क्रियते–

अण्णाणमोहिदमदी मज्झमिणं भणदि पोग्गलं दव्वं।
बद्धमबद्धं च तहा जीवो बहुभावसंजुत्तो।। २३ ।।
सव्वण्हुणाणदिट्ठो जीवो उवओगलक्खणो णिच्चं।
कह सो पोग्गलदव्वीभूदो जं भणसि मज्झमिणं।। २४ ।।
जदि सो पोग्गलदव्वीभूदो जीवत्तमागदं इदरं।
तो सक्को वत्तुं जे मज्झमिणं पोग्गलं दव्वं।। २५ ।।
अज्ञानमोहितमतिर्ममेदं भणति पुद्गलं द्रव्यम्।
बद्धमबद्धं च तथा जीवो बहुभावसंयुक्तः।। २३ ।।
सर्वज्ञज्ञानद्रष्टो जीव उपयोगलक्षणो नित्यम्।
कथं स पुद्गलद्रव्यीभूतो यद्भणसि ममेदम्।। २४ ।।
यदि स पुद्गलद्रव्यीभूतो जीवत्वमागतमितरत्।
तच्छक्तो वक्तुं यन्ममेदं पुद्गलं द्रव्यम्।। २५ ।।

हवे अप्रतिबुद्धने समजाववा माटे प्रयत्न करे छेः-

अज्ञानथी मोहितमति बहुभावसंयुत जीव जे,
“आ बद्ध तेम अबद्ध पुद्गलद्रव्य मारुं” ते कहे. २३.
सर्वज्ञज्ञानविषे सदा उपयोगलक्षण जीव जे,
ते केम पुद्गल थइ शके के ‘मारुं आ’ तुं कहे अरे! २४.
जो जीव पुद्गल थाय, पामे पुद्गलो जीवत्वने,
तुं तो ज एम कही शके ‘आ मारुं पुद्गलद्रव्य छे’. २प.

गाथार्थः– [अज्ञानमोहितमतिः] जेनी मति अज्ञानथी मोहित छे [बहुभाव– संयुक्तः] अने जे मोह, राग, द्वेष आदि घणा भावोथी सहित छे एवो [जीवः] जीव [भणति] एम कहे छे के [इदं] [बद्धम् तथा च अबद्धं] शरीरादि बद्ध तेम ज धनधान्यादि


PDF/HTML Page 359 of 4199
single page version

अबद्ध [पुद्गलं द्रव्यम्] पुद्गलद्रव्य [मम] मारुं छे. आचार्य कहे छेः [सर्वज्ञज्ञानद्रष्टः] सर्वज्ञना ज्ञान वडे देखवामां आवेलो जे [नित्यम्] सदा [उपयोगलक्षणः] उपयोगलक्षणवाळो [जीवः] जीव छे [सः] ते [पुद्गलद्रव्योभूतः] पुद्गलद्रव्यरूप [कथं] केम थई शके [यत्] के [भणसि] तुं कहे छे के [इदं मम] आ पुद्गलद्रव्य मारुं छे? [यदि] जो [सः] जीवद्रव्य [पुद्गलद्रव्यीभूतः] पुद्गलद्रव्यरूप थई जाय अने [इतरत्] पुद्गलद्रव्य [जीवत्वम्] जीवपणाने [आगतम्] पामे [तत्] तो [वक्तुं शक्तः] तुं कही शके [यत्] के [इदं पुद्गलं द्रव्यम्] आ पुद्गलद्रव्य [मम] मारुं छे. (पण एवुं तो थतुं नथी.)

टीकाः– एकीसाथे अनेक प्रकारनी बंधननी उपाधिना अति निकटपणाथी वेगपूर्वक वहेता अस्वभावभावोना संयोगवशे जे (अप्रतिबुद्ध जीव) अनेक प्रकारना वर्णवाळा *आश्रयनी निकटताथी रंगायेला स्फटिकपाषाण जेवो छे, अत्यंत तिरोभूत (ढंकायेला) पोताना स्वभावभावपणाथी जे जेनी समस्त भेदज्ञानरूप ज्योति अस्त थई गई छे एवो छे, अने महा अज्ञानथी जेनुं हृदय पोते पोताथी ज विमोहित छे-एवो अप्रतिबुद्ध जीव स्वपरनो भेद नहि करीने, पेला अस्वभावभावोने ज (पोताना स्वभाव नथी एवा विभावोने ज) पोताना करतो, पुद्गलद्रव्यने ‘आ मारुं छे’ एम अनुभवे छे. (जेम स्फटिकपाषाणमां अनेक प्रकारना वर्णनी निकटताथी अनेकवर्णरूपपणुं देखाय छे, स्फटिकनो निज श्वेत-निर्मळभाव देखातो नथी तेवी रीते अप्रतिबुद्धने कर्मनी उपाधीथी आत्मानो शुद्ध स्वभाव आच्छादित थई रहृाो छे-देखातो नथी तेथी पुद्गलद्रव्यने पोतानुं माने छे.) एवा अप्रतिबुद्धने हवे समजाववामां आवे छे केः-रे दुरात्मन्! आत्मानो घात करनार! जेम परम अविवेकथी खानारा हस्ती आदि पशुओ सुंदर आहारने तृण सहित खाई जाय छे एवी रीते खावाना स्वभावने तुं छोड, छोड. जेणे समस्त संदेह, विपर्यय, अनध्यवसाय दूर करी दीधा छे अने जे विश्वने (समस्त वस्तुओने) प्रकाशवाने एक अद्वितीय ज्योति छे एवा सर्वज्ञ-ज्ञानथी स्फुट (प्रगट) करवामां आवेल जे नित्य उपयोगस्वभावरूप जीवद्रव्य ते केवी रीते पुद्गलद्रव्यरूप थई गयुं के जेथी तुं ‘आ पुद्गलद्रव्य मारुं छे’ एम अनुभवे छे? कारण के जो कोई पण प्रकारे जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्यरूप थाय अने पुद्गलद्रव्य जीवद्रव्यरूप थाय तो ज ‘मीठानुं पाणी’ एवा अनुभवनी जेम ‘मारुं आ पुद्गलद्रव्य’ एवी अनुभूति खरेखर व्याजबी छे; पण एम तो कोई रीते बनतुं नथी. ए, द्रष्टांतथी स्पष्ट करवामां आवे छेः जेम खारापणुं जेनुं लक्षण छे एवुं लवण पाणीरूप थतुं देखाय छे अने द्रवत्व (प्रवाहीपणुं) जेनुं लक्षण छे एवुं पाणी लवणरूप थतुं देखाय छे कारण के खारापणुं अने द्रवपणाने साथे रहेवामां __________________________________________________ * आश्रय = जेमां स्फटिकमणि मूकेलो होय ते वस्तु


PDF/HTML Page 360 of 4199
single page version

(मालिनी)
अयि कथमपि मृत्वा तत्त्वकौतूहली सन्
अनुभव भव मूर्तेः पार्श्ववर्ती मुहूर्तम्।
पृथगथ विलसन्तं स्वं समालोक्य येन
त्यजसि झगिति मूर्त्या साकमेकत्वमोहम्।। २३ ।।

__________________________________________________ अविरोध छे अर्थात् तेमां कोई बाधा नथी, तेवी रीते नित्य उपयोग-लक्षणवाळुं जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्य थतुं जोवामां आवतुं नथी अने नित्य अनुपयोग (जड) लक्षणवाळुं पुद्गलद्रव्य जीवद्रव्य थतुं जोवामां आवतुं नथी कारण के प्रकाश अने अंधकारनी माफक उपयोग अने अनुपयोगने साथे रहेवामां विरोध छे; जड-चेतन कदी पण एक थई शके नहि. तेथी तुं सर्व प्रकारे प्रसन्न था, तारुं चित्त उज्ज्वळ करी सावधान था अने स्वद्रव्यने ज ‘आ मारुं छे’ एम अनुभव. (एम श्री गुरुओनो उपदेश छे.)

भावार्थः– आ अज्ञानी जीव पुद्गलद्रव्यने पोतानुं माने छे तेने उपदेश करी सावधान कर्यो छे के जड अने चेतनद्रव्य-ए बन्ने सर्वथा जुदां जुदां छे, कदाचित् कोई पण रीते एकरूप नथी थतां एम सर्वज्ञे दीठुं छे; माटे हे अज्ञानी! तुं परद्रव्यने एकपणे मानवुं छोडी दे; वृथा मान्यताथी बस थाओ.

हवे आ ज अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः-

श्लोकार्थः– [अयि] अयि’ ए कोमळ संबोधनना अर्थवाळुं अव्यय छे. आचार्य कोमळ संबोधनथी कहे छे के हे भाई! तुं [कथम् अपि] कोई पण रीते महा कष्टे अथवा [मृत्वा] मरीने पण [तत्त्वकौतूहली सन्] तत्त्वोनो कौतूहली थई [मूर्तेः मुहूर्तम् पार्श्ववर्ती भव] आ शरीरादि मूर्त द्रव्यनो एक मुहूर्त (बे घडी) पाडोशी थई [अनुभव] आत्मानो अनुभव कर [अथ येन] के जेथी [स्वं विलसन्तं] पोताना आत्माने विलासरूप, [पृथक्] सर्व परद्रव्योथी जुदो [समालोक्य] देखी [मूर्त्या साकम्] आ शरीरादिक मूर्तिक पुद्गलद्रव्य साथे [एकत्वमोहम्] एकपणाना मोहने [झगिति त्यजसि] तुं तुरत ज छोडशे.

भावार्थः– जो आ आत्मा बे घडी पुद्गलद्रव्यथी भिन्न पोताना शुद्ध स्वरूपनो अनुभव करे (तेमां लीन थाय), परिषह आव्ये पण डगे नहि, तो घातीकर्मनो नाश करी, केवळज्ञान उत्पन्न करी, मोक्षने प्राप्त थाय. आत्मानुभवनुं एवुं माहात्म्य छे तो मिथ्यात्वनो नाश करी सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थवी तो सुगम छे; माटे श्री गुरुओए ए ज उपदेश प्रधानताथी कर्यो छे. २३.