Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Combined PDF/HTML Page 195 of 210

 

PDF/HTML Page 3881 of 4199
single page version

अहा! आवो मनुष्यनो भव (आवो अवसर) क्यारे मळे भाई? ने एमां तत्त्वज्ञाननी वार्ता सांभळवानुं क्यारे मळे? अरे भाई! अनंतकाळ तारो मिथ्यात्वने लईने नर्क-निगोदादिमां ज गयो छे. मिथ्यात्वना गर्भमां अनंता नर्क-निगोदना भव पडेला छे. पहेली नरकमां ओछामां ओछी स्थिति दस हजार वर्ष छे, ने सातमी नरकमां उत्कृष्ट स्थिति तेत्रीस सागरोपम छे. अरे! मिथ्यात्वने लईने दस हजार वर्षनी स्थितिए नरकमां अनंतवार ऊपज्यो छे. तेवी रीते दस हजार वर्षने एक समय, दसहजार वर्षने बे समय एम क्रमशः तेत्रीस सागरोपम पर्यंत वधती स्थितिए- प्रत्येक स्थितिए अनंतवार ऊपज्यो-मर्यो छे. अने निगोदमां तो त्यां ने त्यां अनंतकाळ पर्यंत अनंतां जन्म-मरण थया करे. अहा! तारा दुःखनी कथनी शुं करीए? तेथी कहीए छीए के आ मनुष्यभवनो एक समय पण महा मूल्यवान छे. तेनी आगळ कौस्तुभमणि पण कांई नथी. माटे आ अवसरमां तत्त्वद्रष्टि करी ले भाई!

अहीं हवे कहे छे - ‘स्याद्वादी तु’ अने स्याद्वादी तो ‘स्वधामनि वसन्’ स्वक्षेत्रमां रहेतो, ‘परक्षेत्र नास्तितां विदन्’ परक्षेत्रमां पोतानुं नास्तित्व जाणतो थको, ‘त्यक्त–अर्थः अपि’ (परक्षेत्रमां रहेला) ज्ञेय पदार्थोने छोडतां छतां ‘परान् आकार कर्षी’ ते परपदार्थोमांथी चैतन्यना आकारोने खेंचतो होवाथी (अर्थात् ज्ञेय पदार्थोना निमित्ते थता चैतन्यना आकारोने छोडतो नहि होवाथी) ‘तुच्छताम्–अनुभवति न’ तुच्छता पामतो नथी.

सामे अग्नि होय तो अहीं अग्निनुं ज्ञान थाय छे, परंतु ते अग्निना कारणे थाय छे एम नथी; ज्ञाननी दशामां ते काळे स्व-परनुं ने स्वनुं अग्निनुं ज्ञान पोताना सामर्थ्यथी थाय छे. अग्नि तो ते काळे निमित्त-बीजी चीज छे बस. परंतु अज्ञानी जाणे पोताना ज्ञानमां अग्नि घूसी गई छे एम मानी पोतानुं तत्संबंधी जे ज्ञाननी दशा तेने छोडी दे छे, ज्यारे स्याद्वादी-ज्ञानी तो निज असंख्यप्रदेशी स्वक्षेत्रमां रहेतो, परक्षेत्रथी पोतानुं नास्तित्व जाणतो परक्षेत्रथी लक्ष छोडतां छतां परक्षेत्रसंबंधी जे पोतानी ज्ञाननी दशा तेने पोतानी जाणे छे. अहा! परक्षेत्र-परज्ञेयसंबंधी जे पोतानो ज्ञानाकार ए तो पोताना ज स्वभावरूप छे एम जाणतो धर्मी तुच्छता पामतो नथी, नाश पामतो नथी. अर्थात् धर्मी बहार गमे ते क्षेत्रमां होय तोपण ते पोताना स्वक्षेत्रमां-आनंदमां ज रहे छे.

सम्मेदशिखर हो के गिरनार हो के शेत्रुंजय हो, धर्मी जाणे छे के ए परक्षेत्रथी नास्तिरूप छुं, भिन्न छुं. सम्मेदशिखरनां दर्शन थयां ए ज्ञाननी दशा पोतानी पोतामां


PDF/HTML Page 3882 of 4199
single page version

पोताथी थई छे, परक्षेत्रने कारणे ए उत्पन्न थई नथी. आ प्रमाणे यथार्थ जाणतो धर्मी पर पदार्थोने छोडतां छतां तेना निमित्ते प्रगट पोताना चैतन्य-आकारोने-ज्ञानाकारोने छोडतो नथी. ‘परपदार्थोमांथी चैतन्यना आकारोने खेंचतो होवाथी’ -एम कह्युं ने? मतलब के परपदार्थोना निमित्ते अहीं आत्मामां जे चैतन्यना आकारो प्रगट थया तेने छोडतो नहि होवाथी, तेने पोतामां ज पोतारूप राखतो होवाथी, तुच्छता पामतो नथी, नाश पामतो नथी अर्थात् स्वस्थित निराकुळ आनंदने अनुभवतो एवो जिवित रहे छे. समजाणुं कांई.....?

* कळश २पपः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘परक्षेत्रमां रहेला ज्ञेय पदार्थोना आकारे चैतन्यना आकारो थाय छे तेमने जो हुं पोताना करीश तो स्वक्षेत्रमां रहेवाने बदले परक्षेत्रमां पण व्यापी जईश-एम मानीने अज्ञानी एकांतवादी परक्षेत्रमां रहेला ज्ञेय पदार्थोनी साथे साथे चैतन्यना आकारोने पण छोडी दे छे; ए रीते पोते चैतन्यना आकारो रहित तुच्छ थाय छे, नाश पामे छे.’

जोयुं? शुं कीधुं? के परक्षेत्रना निमित्ते अहीं (आत्मामां) जे ज्ञान थाय तेने हुं पोतानुं मानुं तो परद्रव्यमां व्यापी जाउं. हुं परद्रव्यमय थई जाउं एम एकांत कल्पना वडे अज्ञानी परक्षेत्रने छोडतां साथे पोताना चैतन्य-आकारोने-ज्ञाननी दशाने पण छोडी दे छे. आ रीते ते पोते चैतन्यना आकारो रहित तुच्छ थयो थको नाश पामे छे.

ज्यारे, ‘स्याद्वादी तो स्वक्षेत्रमां रहेतो, परक्षेत्रमां पोतानी नास्तिता जाणतो थको, ज्ञेय पदार्थोने छोडतां छतां चैतन्यना आकारोने छोडतो नथी; माटे ते तुच्छ थतो नथी, नाश पामतो नथी.’

अहाहा....! स्याद्वादी-ज्ञानी तो परक्षेत्र जे शरीर, बाग-बंगला आदि तेमां हुं नास्ति छुं एम परक्षेत्रथी पोताने भिन्न जाणतो-अनुभवतो परक्षेत्रने छोडी दे छे, अर्थात् परक्षेत्रमां हुं नथी एम जाणे छे, पण परक्षेत्रसंबंधी जे पोतानुं ज्ञान छे एमां हुं छुं, अने ए मारुं छे एम जाणतो तेने छोडतो नथी. धर्मी पोते ज्यां ऊभो छे त्यां ते क्षेत्रने- परक्षेत्रने छोडवा छतां ते-संबंधी जे पोतानी ज्ञाननी दशा प्रगट थाय तेने छोडतो नथी, पोतानी जाणी राखे छे. तेथी ते तुच्छ थतो नथी, नाश पामतो नथी, जिवित रहे छे.

आ प्रमाणे परक्षेत्रनी अपेक्षाथी नास्तिनो भंग कह्यो.

*

हवे नवमा भंगना कळशरूपे काव्य कहेवामां आवे छेः-

* कळश २प६ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘पशुः’ पशु अर्थात् एकांतवादी अज्ञानी, ‘पूर्व–आलम्बित–बोध्य–नाश–समये


PDF/HTML Page 3883 of 4199
single page version

ज्ञानस्य नाशं विदन्’ पूर्वालंबित ज्ञेय पदार्थोना नाश समये ज्ञाननो पण नाश जाणतो थको, ‘न किञ्चन अपि कलयन्’ ए रीते ज्ञानने कांई पण (वस्तु) नहि जाणतो थको (अर्थात् ज्ञानवस्तुनुं अस्तित्व ज नहि मानतो थको), ‘अत्यन्त तुच्छः’ अत्यंत तुच्छ थयो थको ‘सीदति एव’ नाश पामे छे;.......

जुओ, अज्ञानी, पूर्वालंबित एटले के पूर्वकाळमां लक्षमां लीधेला ज्ञेयपदार्थोना नाशना काळे ज्ञाननो पण नाश थयो एम जाणे छे. खरेखर तो समये समये परज्ञेयरूप पदार्थोनुं जे ज्ञान थाय छे ते ज्ञान पोतानुं पोतामां पोताथी थाय छे, परंतु एकांती- अज्ञानी परकाळथी (परज्ञेयथी) पोतामां स्वकाळ थयो मानतो थको पोतानी ज्ञाननी पर्यायनो नाश करे छे.

पोतामां परकाळने जाणवानी शक्ति पोतानी पोताथी छे. परकाळ-परज्ञेय बदलतां अहीं ज्ञाननी दशा बदलाणी ते स्वतः बदलाणी छे, परकाळने-परज्ञेयने लीधे बदलाणी छे एम नथी. जेमकेः ज्ञाननी पूर्वदशामां भगवानने (बिंबने) जोया; पछीना समये भगवाननी सन्मुखता न होतां ते संबंधी ज्ञाननी दशा न रही, बदलाणी. त्यां पूर्वकालीन ज्ञाननी दशा पोतानी पोताथी हती, कांई भगवानने लईने नहोती; ने वर्तमान बदलाणी ते पण पोतानी पोताथी बदलाणी छे, ते तेनो स्वकाळ छे, परज्ञेयना कारणे बदलाणी छे एम नथी. परंतु अज्ञानी आ मानतो नथी. ए तो आलंबितज्ञेयनो अभाव-नाश थतां पोताना ज्ञाननो नाश थयो एम मानतो थको पोताना अस्तित्वनो अभाव-नाश करे छे. समजाणुं कांई....?

अरिसामां अग्नि देखाय छे ते अरिसानी अवस्था छे. सामेथी अग्नि जती रहेतां अरिसामां पण अग्निसंबंधी अरिसानी पर्यायनो अभाव थाय छे, अरिसानी बीजी अवस्था प्रगट थाय छे. परंतु अग्नि जतां अरिसानी अवस्था ज नाश पामी गई एम अज्ञानी माने छे; ए रीते ते अरिसानो ज नाश करे (माने) छे. तेम पोताना ज्ञानमां परपदार्थ-परज्ञेय जाणवामां आवे छे ते पोताना आत्मानी अवस्था छे, ते परपदार्थने लईने नथी; वळी ते बदले छे ते पण पोतानी ज्ञाननी दशानो स्वकाळ छे, परपदार्थ बदली गयो माटे अहीं ज्ञाननी दशा बदली छे एम नथी. परंतु अज्ञानी, पोतानी ज्ञाननी दशा परालंबित मानतो थको परनो नाश थतां निरन्वय नाश पामी एम माने छे. आम पोतानी ज्ञानवस्तुने कांईपण नहि मानतो थको, अत्यंत तुच्छ थयो थको, अज्ञानी नाश पामे छे; पोताना आत्मानो ज (अभिप्रायमां) नाश करे छे.

अहाहा.....! पोते त्रिकाळ एक ज्ञायकस्वरूप छे. परज्ञेयनो जाणवारूप तेनी पूर्वकाळमां जे ज्ञाननी दशा हती ते पोतानी पोताथी ज हती, परज्ञेयने लईने नहि; तथा वर्तमान ते बदलीने अन्यज्ञेयने जाणवारूप थई ते पण पोतानी पोताथी ज छे,


PDF/HTML Page 3884 of 4199
single page version

अन्यज्ञेयने लईने नथी. अहा! स्वपरने जाणवापणे प्रतिसमय परिणमे ए ज्ञाननुं आत्मानुं स्वरूप ज छे; पण अज्ञानी- एकांती तेम नहि मानतां, पूर्वे जाणवामां आवेला ज्ञेयो नाश पामतां मारुं ज्ञान नाश पामी गयुं एम माने छे; केमके एनी द्रष्टि पर उपर ज छे, परावलंबी छे. समजाणुं कांई....?

अहो! आ तो अनंता तीर्थंकरोना पेटनी रहस्यनी वात आचार्य भगवाने वहेती मूकी छे. एना प्रवाहनुं अमृत पीनारा पीने परमानंदने पामे छे, ने बाकीना तुच्छ अभावरूप थईने रखडी मरे छे.

हवे कहे छे-- ‘स्याद्वादवेदी पुनः’ अने स्याद्वादनो जाणनार तो ‘अस्य निज– कालतः अस्तित्वं कलयन्’ आत्मानुं निजकाळथी अस्तित्व जाणतो थको, ‘बाह्यवस्तुषु मुहुः भूत्वा विनश्यत्सु अपि’ बाह्य वस्तुओ वारंवार थईने नाश पामतां छतां पण, ‘पूर्णः तिष्ठति’ पोते पूर्ण रहे छे.

अहाहा...! स्याद्वादनो जाणनार अर्थात् वस्तुने अपेक्षाथी यथार्थ जाणनार तो, हुं स्वकाळथी अस्ति छुं, परकाळने लईने मारुं ज्ञान छे एम नथी, -अहाहा.....! एम जाणतो थको, वारंवार परवस्तुओ नाश पामवा छतां, ऊभो ज रहे छे, नाश पामतो नथी. कळशटीकामां कळश २प२ मां त्रिकाळी वस्तुने स्वकाळ कही छे, ने तेनी वर्तमान- वर्तमान वर्तती अवस्थाना भेदने, द्रव्यस्वभावनी अपेक्षा परकाळ कह्यो छे. अहाहा....! ज्ञानी कहे छे-मारी वर्तमान दशामां स्वतः पलटना थवा छतां हुं स्वकाळथी अस्तिरूप छुं, द्रव्यभावथी त्रिकाळ अस्तिरूप छुं, एक ज्ञायकभावमय छुं. आवी वात!

धर्मी जाणे छे के-सामे भगवान छे ते काळे भगवानने जाणवापणे ज्ञाननी दशा थई ते पोतानी पोताथी थई छे, भगवानने लईने थई नथी. अहाहा....! परकाळरूप पूर्वालंबित ज्ञेयपदार्थो जे ख्यालमां आवे छे ते पलटवा काळे पण हुं तो आ एक ज्ञायक ज छुं. आम आत्मानुं निजकाळथी अस्तित्व जाणतो, बाह्य वस्तुओ-ज्ञेयो भले समये समये पलटाय छतां, पोते पूर्ण रहे छे अर्थात् हुं तो ज्ञानानंद-पूर्णानंदस्वरूप ज छुं एम पोताने जाणे छे-अनुभवे छे. अहाहा! पोतानी ज्ञाननी दशा पोताना ज आलंबनथी उत्पन्न थई छे एम जाणतो धर्मी पोते पूर्ण रहे छे अर्थात् नाश पामतो नथी.

भाई! आ तारा घरनां निधान संतो तने देखाडे छे. बाकी ८४ ना अवतारमां कोई तने सहाय करे एम नथी. आ आत्माने एक ज्ञायक आत्मा ज शरण छे. अने अरिहंता शरणं, सिद्धां शरणं ईत्यादि कहीए ए ते व्यवहारथी छे; ए तो शुभभावमात्र छे. समजाणुं कांई.....?

* कळश २प६ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘पहेलां जे ज्ञेय पदार्थो जाण्या हता ते उत्तर काळमां नाश पामी गया; तेमने


PDF/HTML Page 3885 of 4199
single page version

जोयुं? अज्ञानी परकाळथी-परज्ञेयथी पोतानुं ज्ञान होवानुं माने छे. तेथी परज्ञेय नाश पामतां पोतानुं ज्ञान नाश पामी गयुं एम मानी ते पोतानो नाश करे छे. ज्यारे,-

‘स्याद्वादी तो, ज्ञेय पदार्थो नष्ट थतां पण, पोतानुं अस्तित्व पोताना काळथी ज मानतो थको नष्ट थतो नथी.’

हुं एक त्रिकाळ ज्ञायकस्वरूप छुं, अने मारी दशा-पर्याय एक ज्ञायकना आश्रये मारामां थाय छे एम मानतो धर्मी आत्माने जेम छे तेम (ऊभो) राखे छे, नाश पामवा देतो नथी.

प्रश्नः– स्वकाळ एटले शुं? उत्तरः– परनी अपेक्षा पोतानी वर्तमान पर्यायने स्वकाळ कहेवामां आवे छे; अने एने ज त्रिकाळी एक द्रव्यनी अपेक्षाए परकाळ कहेवामां आवे छे; त्रिकाळी एकरूप द्रव्य ते स्वकाळ, अने तेनी अपेक्षा तेनी वर्तमान दशा ते परकाळ. ल्यो, आवी वात!

आ प्रमाणे स्वकाळ-अपेक्षाथी अस्तित्वनो भंग कह्यो.

*

हवे दसमा भंगना कळशरूपे काव्य कहेवामां आवे छेः-

* कळश २प७ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘पशुः’ पशु अर्थात् एकांतवादी अज्ञानी, ‘अर्थ–आलम्बन–काले एव ज्ञानस्य सत्त्वं कलयन्’ ज्ञेय पदार्थोना आलंबन काळे ज ज्ञाननुं अस्तित्व जाणतो थको, ‘बहिः– ज्ञेय–आलम्बन–लालसेन मनसा भ्राम्यन्’ बाह्य ज्ञेयोना आलंबनना लालसावाळा चित्तथी (बहार) भमतो थको ‘नश्यति’ नाश पामे छे;..........

अहा! पोते आत्मा शुं चीज छे एनी खबर नथी ते, कहे छे, अज्ञानी ढोर जेवो छे. तेनी वर्तमान ज्ञाननी दशानुं लक्ष बाह्य पदार्थ उपर ज होय छे. आ परज्ञेयरूप पदार्थो छे त्यांसुधी ज जाणपणुं छे ने त्यांसुधी ज हुं छुं एम ते माने छे. तेथी बाह्य ज्ञेयोने ग्रहण करवानी लालसावाळा चित्तथी अर्थात् आने जाणुं ने तेने जाणुं एवी लालसा वडे चित्तने बहारमां ने बहारमां भमावतो थको पोतानी हयातीनो नाश करे छे. अहा! हुं माराथी जाणुं छुं, ने ज्ञाननी दशामां जे बदलवुं थाय छे ते मारा ज्ञानस्वभावने आश्रित छे, परज्ञेयाश्रित नथी एवुं (सत्यार्थ) नहि मानतो थको, बाह्य ज्ञेयोना आलंबननी लालसा वडे चित्तने बहारमां ने बहारमां भमावतो


PDF/HTML Page 3886 of 4199
single page version

थको अज्ञानी-एकांती नाश पामे छे. अहा! आलंबनना काळे आलंबनरूप जे निमित्त छे तेनाथी ज मारी अवस्था छे एम मानीने अज्ञानी पोतानी हयातीनो निषेध करे छे. ल्यो, आनुं नाम हिंसा छे. स्वहिंसा करी ने? स्वहिंसा ए ज वास्तवमां हिंसा छे.

अहा! भगवान! तुं वस्तु पदार्थ छो के नहि? छो. तो एमां ज्ञानादि अनंत गुण छे. अहा! ते अनंत गुणनी वर्तमान दशा जे थाय छे ते पोतामां पोताथी थाय छे. ते ते दशा ते वस्तुनो स्वकाळ छे. वर्तमान ज्ञाननी दशा ते एनो स्वकाळ छे. छतां वर्तमान ज्ञाननी दशा देव-गुरु के शास्त्रने लईने थई एम तुं माने ते मूढपणुं छे. गुरुनी वाणी सांभळवाथी के शास्त्र वांचवाथी मारी ज्ञाननी दशा उघडी एम माननार मूढ जीवो, अहीं कहे छे, आत्मानी वर्तमान अवस्थानो ईन्कार करता थका पोतानो नाश करे छे, पोतानो घात करे छे. वस्तुनी पर्यायना स्वकाळने न मानतां निमित्तथी पोतानी दशा थई, ने जेवुं निमित्त आवे-मळे तेवी एनी दशा थाय एम माननार, अहीं कहे छे, मूढ छे, अज्ञानी छे, मिथ्याद्रष्टि छे. ते मिथ्याभाव वडे पोतानो घात करनारो छे. समजाणुं कांई.....?

जुओ, देव-गुरु-शास्त्र, जिनप्रतिमा, जिनमंदिर, सम्मेदशिखर ने शेत्रुंजो ए बधुंय छे खरुं, पण ए बधुं परज्ञेय छे, परकाळ छे. ए परकाळथी ज जे पोताना ज्ञाननुं अस्तित्व जाणे छे, माने छे ते मूढ छे, अज्ञानी छे; केमके एवुं वस्तुस्वरूप नथी.

प्रश्नः– तो पछी मंदिरमां जावुं केम (शा माटे?) उत्तरः– अरे भाई! पूर्ण वीतरागदशा थई नथी त्यां सुधी धर्मी-ज्ञानी पुरुषने देव-गुरु-शास्त्र प्रति विनय-भक्ति आदिनो शुभभाव सहज ज आवे छे, आव्या विना रहेतो ज नथी. पण ए रागने लईने के देव-गुरु-शास्त्रने लईने पोतानी ज्ञाननी दशा उघडी छे एम ते मानतो नथी. शुं कीधुं? शुभभाव पण तेना काळे प्रगट थयो छे, अने ते काळे ज्ञाननी दशा पण पोतानी पोताथी स्वकाळे प्रगट थई छे एम ज्ञानी यथार्थ माने छे. जिज्ञासु मुमुक्षु जीवने पण अशुभथी बची देव-गुरु-शास्त्र आदि प्रत्ये विनय- भक्तिए प्रवर्तवानो भाव सहज ज आवतो होय छे. समजाणुं कांई.....?

अहा! जेटला त्रणकाळना समयो छे एटली वस्तुनी त्रणकाळनी पर्यायो छे. ते दरेक पर्याय समय समय प्रति क्रमबद्ध थई रही छे एम न मानतां, बहारमां ज नजर होवाथी, ते परकाळथी-परनिमित्तथी थई रही छे एम अज्ञानी माने छे अने ए रीते ते पोतानी वर्तमान अवस्थानी पोताथी नास्ति माने छे. पोतानी अवस्थानी नास्ति माने छे एटले शुं? के तेने वर्तमान अधर्मदशा उत्पन्न थाय छे. अहा! आ प्रमाणे जेणे ज्ञानमांथी वर्तमान दशानुं अस्तित्व उडाडयुं तेने त्रिकाळीनुं अस्तित्व पण सिद्ध थतुं नथी, द्रष्टिमां आवतुं नथी; तेथी एने पण ते उडाडे छे. आवी वात!


PDF/HTML Page 3887 of 4199
single page version

वळी केटलाक कहे छे-उपादाननी अनेक योग्यता छे. तेमां जे काळे जेवुं निमित्त मळे ते मुजब योग्यता प्रगटरूप थई कार्य नीपजे छे. तेओ कहे छे-वर्तमान दशा ए द्रव्यनो परिणमनस्वभाव छे, पण विकाररूपे के निर्विकारदशारूपे थवुं ए तो जेवो संयोग-निमित्त होय एना पर आधारित छे. अरे भाई! वस्तुनो परिणमन स्वभाव, परिणाम अने परिणमननुं थवुं ए शुं जुदी जुदी चीज हशे? शुं थाय? कोई पण रीते आत्मानी दशा परने लईने थाय एम माने तो ज एने संतोष थाय छे. परंतु प्रत्येक पदार्थ-जीव अने रजकण वगेरेना परिणमनथी थती दशा ते पोताथी ज थाय छे, परथी- निमित्तथी कदीय नहि. पर-निमित्त हो भले, पण एनाथी आमां परिणमन अने एनी दशा थाय छे एम त्रणकाळमां नथी. भाई! आ सर्वज्ञ परमात्मा त्रिलोकीनाथ तीर्थंकरदेवनी वाणीमां आवेली वात छे. अहीं कहे छे- निमित्तने-परने लईने एनी दशा थाय एवी जेनी मान्यता छे ते निमित्तनी-परनी लालसावाळो निमित्तनी शोधमां बहार परिभ्रमतो नाहक व्यग्र थाय छे बस; अर्थात् ते पोतानो नाश करे छे बस; केमके पोतानी पर्यायनुं सहज स्वतः अस्तित्व छे तेनी एने खबर नथी.

प्रश्नः– अहीं आवीए छीए तो आवी तत्त्वनी वात जाणवा मळे छे, बहार बीजे केम नथी मळती? (माटे जेवुं निमित्त मळे तेवुं उपादानमां कार्य थाय).

उत्तरः– अरे भाई! प्रत्येक समये वस्तुमां थतुं परिणमन अने परिणाम ते तेनो स्वकाळ छे. बहारनो स्वकाळ बीजो छे तेथी वर्तमान तत्त्वने जाणवारूप दशा परथी थई छे (एम ते) केम होय? प्रत्येक समये थती भिन्न भिन्न दशा ते पोताना ज कारणथी छे, एनुं कारण कोई पर नथी. जो भिन्न भिन्न अवस्था परना कारणे थाय तो पोताना अस्तित्वनो ज नाश थई जाय. सूक्ष्म वात छे भाई! वस्तुनी प्रत्येक अवस्था स्वथी थाय ने परथी न थाय ए अनेकान्त छे; अने परथी जे ते दशा थवानुं माने ते एकान्त छे, मिथ्यात्व छे.

जुओ, आ भाषा थई रही छे ने! ते भाषा-वर्गणानुं परिणमन छे, ते एनो स्वकाळ छे; आ जीवना बोलवाना विकल्पना कारणे ए थई छे एम नथी. भाषानुं अस्तित्व-होवापणुं ए एना कारणे छे, आ जीवना कारणे नथी. भाई! आवुं ज वस्तुनुं स्वरूप छे बापु! पर निमित्त हो, पण निमित्त उपादानमां कांई ज करतुं नथी. वास्तवमां तो प्रत्येक पर्याय पोताना षट्कारकपणे थईने पोते उपजे छे, तेने परनी कोईज सहाय- अपेक्षा होता नथी. समजाणुं कांई......?

पर्याय थाय छे तो पोतामां पोताथी, परंतु ते समये लक्ष निमित्त पर होवाथी अज्ञानीने एम भास थाय छे के बाह्य पदार्थने लईने आ दशा थई. तेथी हुं बधां बाह्य निमित्तो मेळवुं- एम अज्ञानी निमित्तोनी लालसारूप चित्त वडे भमे छे अने ए रीते खेदखिन्न थई पोतानो नाश करे छे.


PDF/HTML Page 3888 of 4199
single page version

अहा! वस्तु अनादि अनंत त्रिकाळी ध्रुव सत् छे, एम एनी वर्तमान वर्तमान वर्तती दशा पण सत् छे. अने सत् छे तो ते दशा परने लईने नथी. आ तो आवी ज वस्तुव्यवस्था छे छतां पोतानी अवस्था परथी थवी माने छे ते मूढ मिथ्याद्रष्टि छे; ते पोतानी वर्तमान अवस्थानुं जे अस्तित्व पोताथी छे तेनो नाश करे छे, अर्थात् ए रीते पोतानो ज नाश करे छे.

वळी शरीर, मन, वाणी, इन्द्रिय, स्त्री-कुटुंब, परिवार, लक्ष्मी, आबरू ईत्यादि बधां बाह्य निमित्तो सारा होय तो मने सुखनी वेळा थाय एम अज्ञानी माने छे. ते निरंतर निमित्तोने ज ताकीने बेसे छे; तेनुं चित्त निमित्तोनी लालसाथी घेरायेलुं रहे छे. सुखनी वेळा तो दूर रहो, निमित्तोनी लालसाथी घेरायेलुं तेनुं चित्त दुःखनो ज-व्यग्रतानो ज अनुभव करे छे, केमके परवस्तु-निमित्त पोतानी इच्छाने आधीन प्राप्त थतां नथी आम परवस्तु-बाह्य निमित्तोथी मने सुखनी वेळा थाय ए मिथ्या कल्पना दुःखकारी ज बने छे. वास्तवमां परवस्तु परवस्तुने माटे अकिंचित्कर ज छे. परवस्तुथी पोताने सुखनी वेळा थाय एवी मान्यता तो अज्ञानीनी मिथ्या कल्पना सिवाय कांई ज नथी. समजाणुं कांई........?

अहा! ज्ञेयनी अवस्थानुं जे जे परिणमन थाय ते एना ज्ञानमां जणाय छे. त्यां एने भ्रम थई जाय छे के आ ज्ञेयनी अवस्थाना परिणमनने आधारे ज मारी ज्ञाननी दशा छे. अहा! आवा भ्रम वडे अज्ञानी पोतानी वर्तमान अवस्थामां अधर्म उत्पन्न करे छे- बंधनने पामे छे. हाथीने जेम चुरमु अने खडनो विवेक नथी तेम अज्ञानी जीवोने स्व अने परनो विवेक नथी. अहा! आवा जीवो, अहीं कहे छे, भले ते बहारमां मोटा धनपति शेठ के मोटा देव होय, तोपण पशु जेवा ज छे. अरे! आवा जीवोने मारुं शुं थशे ने हुं मरीने क्यां जईश एनी कोई दरकार ज नथी. तेओ बिचारा एम ने एम (- कषाय ने विषयमां रोकाईने) ८४ लाख योनिमां परिभ्रमण कर्या करे छे.

अरे! अज्ञानी बाह्यज्ञेयोना अवलंबननी लालसावाळा चित्तथी बहार-बायडी, छोकरां, पैसा, धन, परिजन, बाग, बंगला इत्यादि विषयोमां-भमे छे. पण भाई रे! तुं मूढ छो के शुं? अंदर अतीन्द्रिय आनंदनो भंडार निर्मळानंदनो नाथ प्रभु तुं छो त्यां जा ने! त्यां रम ने. भाई! तारी आनंदनी दशा आवे ते तारा पोतामांथी पोताथी ज आवे छे, तुं बहारमां-विषयोमां मा शोध. विषयोमांथी मने मझा-आनंद आवे छे एम माननार तो पोतानी वर्तमान दशानो अभाव (इन्कार) करीने चित्तनी शांतिनो नाश करे छे, पोतानी ज हिंसा करे छे. समजाणुं कांई....?

आ शरीरादिनी जे अवस्था जे काळे थवानी होय ते ते काळे थाय, थाय ने


PDF/HTML Page 3889 of 4199
single page version

जुओ, ए ज कहे छे के- ‘स्याद्वाद वेदी पुनः’ अने स्याद्वादनो जाणनार तो ‘पर–कालतः अस्य नास्तित्वं कलयन्’ परकाळथी आत्मानुं नास्तित्व जाणतो थको, ‘आत्म–निखात–नित्य–सहज–ज्ञान–एक–पुञ्जीभवन्’ आत्मामां दढपणे रहेला नित्य सहज ज्ञानना एक पुंजरूप वर्ततो थको, ‘तिष्ठति’ टके छे-नष्ट थतो नथी.

अहाहा...! स्याद्वादी धर्मी तो, पोतानी दशा पोताथी ज थाय, परथी न थाय, परथी तो एनी नास्ति ज छे एम जाणतो थको, वर्तमान ज्ञाननी दशाने सहज नित्य ज्ञानपुंज एवा आत्मामां एकाग्र करीने, हुं तो ज्ञानपुंज आत्मा छुं एम वर्ततो थको पोताना सत्ने जीवतुं राखे छे.

भाई! दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादिना परिणाम ते शुभभाव छे, ते कांई धर्म नथी. वळी तेमां कर्ताबुद्धि थवी ते मिथ्यात्वभाव छे. रागनी ने परनी कर्ताबुद्धि ते मिथ्यात्वभाव छे. एक स्वद्रव्यना लक्षे आनंदनी जे दशा थाय तेने ज परमात्मा धर्म कहे छे. स्याद्वादी धर्मात्मा आम स्वद्रव्यना ज आश्रयमां रहीने पोताना सत्ने टकावी राखे छे. आवी वात छे.

* कळश २प७ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘एकांती ज्ञेयोना आलंबनकाळे ज ज्ञाननुं सत्पणुं जाणे छे तेथी ज्ञेयोना आलंबनमां मनने जोडी बहार भमतो थको नष्ट थाय छे.’

जोयुं? एकांती अज्ञानी ज्ञेयोना आलंबन काळे ज ज्ञाननुं होवापणुं माने छे. तेथी ते ज्ञेयोना आलंबननी लालसावाळो थईने पोताना चित्तने ज्ञेयोना आलंबनमां जोडे छे, अने ते रीते बहार विषयोमां भमतो थको नाश पामे छे अर्थात् अशांति ने व्यग्रताने ज पामे छे. परंतु-


PDF/HTML Page 3890 of 4199
single page version

‘स्याद्वादी तो परज्ञेयोना काळथी पोतानुं नास्तित्व जाणे छे, पोताना ज काळथी पोतानुं अस्तित्व जाणे छे; तेथी ज्ञेयोथी जुदा एवा ज्ञानना पुंजरूप वर्ततो थको नष्ट थतो नथी.’

अहाहा...! स्याद्वादी तो मारी दशा माराथी थई छे, परथी-निमित्तथी नहि एम यथार्थ जाणे छे. अहा! साक्षात् त्रणलोकना नाथ सर्वज्ञ परमात्मा हो, के गुरु के शास्त्र हो, मारी अवस्था एनाथी नास्तिपणे ज छे, एने लईने मारी दशा थई ज नथी-एम मानतो धर्मी पुरुष, स्वद्रव्यना आलंबने, आ हुं ज्ञानपुंज आत्मा छुं एम वर्ततो थको, जिवित रहे छे, नष्ट थतो नथी. अहाहा....! पोताना एक त्रिकाळी स्वभावनो आश्रय करीने तेमां एकाग्र थई प्रवर्ततो ज्ञानी पोताने जीवतो राखे छे, अर्थात् सत्यार्थ आनंदनुं जीवन जीवे छे. मारी अवस्था परथी छे एम पराश्रयमां ते प्रवर्ततो नथी.

प्रश्नः– तो क्षायिक समकित तीर्थंकर केवळी आदिनी समीपमां ज थाय एम शास्त्रमां आवे छे ते शुं छे?

उत्तरः– ए तो भाई! यथार्थ बाह्य निमित्तनुं ज्ञान करावनारुं निमित्तनी मुख्यताथी करेलुं व्यवहारनयनुं कथन छे. बाकी क्षायिक समकिती, केवळीनी समीपमां हुं छुं माटे क्षायिक समकित थयुं छे एम मानता नथी. ज्ञानपुंज प्रभु आत्मानी समीपता ज मुख्य छे, केवळीनी समीपता कहेवी ते व्यवहार छे. समजाणुं कांई....? भगवान केवळीने जे केवळज्ञाननी दशा प्रगटी ते आत्मानो पूर्ण आश्रय थतां प्रगटी छे; मनुष्यपणुं हतुं ने शरीरनां हाडकां मजबुत हतां, ने कर्म खसी गयां-नाश पामी गयां माटे प्रगटी छे एम नथी; छतां एम कहेवुं ए व्यवहार छे.

अहा! धर्मीने किंचित् राग होवा छतां रागमां धर्मी नथी, ए तो निरंतर पोताना ज्ञान ने आनंदमां छे, केमके ते आत्मानी समीप छे; ज्यारे अज्ञानी समोसरणमां बेठो होय तोय ए रागमां छे, केमके तेने आत्मा समीप नथी, ते तो परथी पोतानी अस्ति माने छे. समजाणुं कांई....?

आ प्रमाणे परकाळ-अपेक्षाए नास्तित्वनो भंग कह्यो.

*

हवे अगियारमा भंगना कळशरूपे काव्य कहेवामां आवे छेः-

* कळश २प८ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘पशुः’ पशु अर्थात् एकांतवादी अज्ञानी, ‘परभाव–भाव–कलनात्’ परभावोना भवनने ज जाणतो होवाथी, (ए रीते परभावोथी ज पोतानुं अस्तित्व मानतो होवाथी,)


PDF/HTML Page 3891 of 4199
single page version

‘नित्यं बहिः –वस्तुषु विश्रान्तः’ सदाय बाह्य वस्तुओमां विश्राम करतो थको, ‘स्वभाव– महिमनि एकान्त–निश्चेतनः’ (पोताना) स्वभावना महिमामां अत्यंत निश्चेतन (जड) वर्ततो थको, ‘नश्यति एव’ नाश पामे छे;.......

वस्तु-आत्मा जे रीते छे ते रीते एनी जेने द्रष्टि नथी, परंतु ऊंधी ज द्रष्टि छे ते एकान्तवादी मिथ्याद्रष्टि पशु छे. वर्तमानमां ते पशु जेवो छे अने एना फळमां निगोदरूप पशुगतिमां जशे. आ (हम्बग) जूठ मूठ नथी, आ सत्य वात छे भाई!

अहीं कहे छे- पशु अर्थात् एकान्तवादी अज्ञानी ‘परभाव भाव कलनात्’ पोता सिवाय बीजा अनंत आत्मा अने परमाणुओ आदिना भाव-शक्ति-गुणने तेनुं जे परिणमन तेने जाणतां ए परभावो वडे पोतानुं अस्तित्व छे तेम माने छे. खरेखर तो जे भावस्वरूप (गुणस्वरूप) पोते छे एनाथी पोतानी हयाती छे, परंतु अज्ञानीनुं लक्ष निरंतर पर उपर होवाथी, आ परभाव जे जणाय छे ते वडे हुं छुं एम ते माने छे. पोताना ज्ञान आदि अनंतगुणनुं अनंत सामर्थ्य छे. अने एमांथी पोतानी पर्याय प्रगटे छे, छतां एम न मानतां परभाव जे जगतनी अनंती चीजो -मन, वाणी, इन्द्रिय, देव, गुरु, शास्त्र, धन-संपत्ति ईत्यादि लक्षमां आवे छे ते वडे मारा ज्ञाननुं अस्तित्व छे एम अज्ञानी माने छे. ओहो! पोताना अनंतगुणमय अस्तित्वनुं अज्ञानीने ज्ञान-श्रद्धान नथी. अहा! अनंत सामर्थ्ययुक्त ईश्वरने लईने मारा भावनी प्रगटता थशे, पर ईश्वरथी मारामां ईश्वरता प्रगटशे -एम अज्ञानी माने छे; तेने अनंत ईश्वरतायुक्त पोताना ज्ञान-दर्शनादि गुणोनुं श्रद्धान नथी. तेथी पोताने छोडी सदाय बाह्य वस्तुओमां ज ते विश्राम करे छे.

अहा! एकांती-अज्ञानी पोताना भावना-गुणना अनंत सामर्थ्यने जाणतो नथी. पोताना आत्मामां ज्ञानदर्शन आदि अनंतगुणना अचिंत्य सामर्थ्यने अवगणीने, परभावथी-देह, मन, वाणी, इन्द्रियथी मारी पर्यायनुं परिणमन अने अस्तित्व छे एम अज्ञानी माने छे. अहा! परभावना लक्षमां हुं जाउं छुं तो मारी पर्यायमां भावनी वृद्धि थाय छे एम मानतो थको अज्ञानी परमां-परवस्तुमां ज विश्राम करे छे, अने ए रीते पोते जड निश्चेतन थयो थको नाश पामे छे.

अज्ञानी बाह्य विषयोमां सुख माने छे. पोते अंदर सुखधाम प्रभु छे एने अवगणीने, परभावोथी-स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द आदि इन्द्रियना विषयोथी मने मझा आवे छे एम ते माने छे, अने तेथी स्पर्शादि विषयोमां ते प्रवर्ते छे, जड जेवो थई त्यां ज विश्राम करे छे. पण भाई! ए पांच इन्द्रियना विषयो ए तो जडनी शक्ति बापु! एनाथी तारा सुखनुं होवापणुं केम होय? जरा जो तो खरो!


PDF/HTML Page 3892 of 4199
single page version

परभावमां सुख शोधवा थतां, परभावमां विश्राम करवा जतां तारा अनंत सुखस्वभावनो विच्छेद थाय छे.

अहा! वीतरागनी वाणीनी शी गंभीरता! आत्मामां अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य, अनंत सुख ईत्यादि अनंत महिमायुक्त अनंत भाव छे. ए भावोनो प्रवाह सतत पोताथी वहे-परिणमे छे. जेमके-ज्ञाननो प्रवाह, सुखनो प्रवाह सतत निरंतर पोताथी वह्या-परिणम्या ज करे छे. परंतु अज्ञानी, वर्तमान पर्याय पोताना भावमांथी प्रवहती थकी उत्पन्न होवा छतां, जाणवामां आवता परभावमांथी ते प्रगट थई छे एम माने छे. अने ए रीते ते पोताना स्वभावना महिमाथी रहित थई जड अचेतन थई रह्यो छे. एने स्वभावनो-निज चैतन्यभावनो-महिमा न रह्यो एटले परभावना महिमामां स्थित थयो थको ते जड थई रह्यो छे. अहा! पर केवळीने जाणतां मारुं ज्ञान पर केवळीमांथी आवे छे एम माननार परभावना महिमामां स्थिर थयो थको जड थई रह्यो छे. बहु आकरी वात! पण आ सत्य वात छे. समजाणुं कांई....?

प्रश्नः– तो जे अर्हंतने द्रव्य-गुण-पर्यायथी जाणे तेनो मोह नाश पामे छे एम प्रवचनसारमां कह्युं छे ने?

उत्तरः– भाई! त्यां प्रवचनसारमां (गाथा ८०मां) जे कह्युं छे ए तो निमित्तनुं कथन छे. ए व्यवहारनयनुं वचन छे. ए तो एना ज्ञानमां पहेलां अरिहंतना द्रव्य- गुण-पर्याय ख्यालमां आवे छे. अर्हंतना द्रव्य-गुण-पर्यायनो निर्णय करनारुं चिंतवन छे त्यांसुधी तो विकल्प छे, स्वानुभूति नथी, पण पछी ज्यारे पोतानो द्रव्य स्वभाव पण एवो ज छे एम निश्चय करी अंदरमां जाय छे त्यारे स्वभावना सामर्थ्यनुं वास्तविक परिणमन थाय छे अने मोह नाश पामे छे. तेमां अरिहंतना द्रव्य-गुण-पर्यायनुं चिंतवन-जाणपणुं तो निमित्तमात्र छे, ए कांई अंतर-परिणमननुं वास्तविक कारण नथी, अर्थात् एने लईने अंदर समकित थयुं छे एम नथी. अहा! अरिहंतना जेवुं ज मारा स्वभावनुं सामर्थ्य छे एम निश्चय करी ज्यारे द्रष्टि अंतर्मुख एकाकार थाय छे त्यारे सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान प्रगट थाय छे, अने तो निमित्तथी-निमित्तनी मुख्यताथी एम कहेवाय के जे अरहंतना द्रव्य-गुण-पर्यायने जाणे छे तेनो मोह नाश पामे छे. भाई! निमित्तथी कहीए ए जुदी चीज छे (व्यवहारनयनी शैली छे) अने एम मानवुं ए जुदी चीज (मिथ्यात्व) छे. समजाणुं कांई...?

प्रभु! तारा भावनी गंभीरता केटली? भगवान! तुं आखो ध्रुव चित्स्वरूप पदार्थ -एमां शान्तिनो भाव पूर्ण, ज्ञाननो भाव पूर्ण, श्रद्धानो भाव पूर्ण, आनंदनो भाव पूर्ण, प्रभुतानो भाव पूर्ण-एम अनंता पूर्ण भाव तारा एक ज्ञायक तत्त्वमां पडया छे.


PDF/HTML Page 3893 of 4199
single page version

जेवुं निमित्त आवे तेवी पोताना भावनी दशा थाय एम जे माने छे ते खरेखर पोतानी दशाना भावनी अंतरंग योग्यताने स्वीकारतो नथी. तेनी द्रष्टि निरंतर निमित्त- परभाव उपर ज रहे छे. तेना चितमां निमित्तनो-परवस्तुनो ज महिमा रहे छे, तेने पोताना स्वभाव-सामर्थ्यनो महिमा उदय पामतो नथी. भगवान अरिहंतनी दिव्यध्वनिनी गर्जना थाय तो मारुं वीर्य उछळे ने मारामां भाव प्रगटे -एम बाह्यवस्तुमां ज अज्ञानी विश्राम करे छे. पण भाई! स्वभावना सामर्थ्यनुं अंतर्लक्ष थया विना तारामां भाव केम प्रगटे? बाह्य वस्तुमां-निमित्तमां तारा भावने प्रगटाववानुं (परिणमाववानुं) सामर्थ्य नथी भाई! तुं अवळे रस्ते चढयो छो बापु! अहा! आ एक बोल पण सत्यार्थ समजे तो बधा खुलासा थई जाय.

तो क्षायिक समकित भगवान केवळी आदिनी समीपमां ज थाय छे एम शास्त्रमां कह्युं छे ने?

हा, कह्युं छे; पण ए तो क्षायिक समकितना काळे बाह्य निमित्त कोण होय छे एनुं त्यां ज्ञान कराव्युं छे बापु! बाकी क्षायिक समकित तो अंदर पोताना स्वभावनी समीपता ने स्वभावनुं अंतर्लक्ष वधतां थाय छे. स्वभावनी समीपता विना केवळीनी समीपता तो अनंतवार थई प्रभु! पण एथी शुं? (एनाथी शुं साध्य थयुं?)

भाई! तुं विचार कर. परतंत्रतामां तुं राजी थई रह्यो छो परंतु एथी तारी स्वतंत्रता लूंटाई रही छे प्रभु! वर्तमान भले विकारी पर्याय हो, परंतु ते एनी योग्यताथी थई छे, कर्मना उदयना कारणे थई छे एम नथी. एक समयनी, विकारनी पर्यायमां षट्कारकरूपे परिणमवुं एवो ज ए भावनी पर्यायनो स्वभाव छे. त्रिकाळभावमां षट्कारकनी शक्ति गुणरूपे पडी छे, अने ते भावनुं परिणमन पोतानी पर्यायमां पोतानी जन्मक्षणे पोताना सामर्थ्यथी थाय छे. अहा! जे आम मानतो नथी एनुं लक्ष परभावना महिमामां गयुं छे, एने स्वभावनो महिमा छूटी गयो छे. तेथी ते अत्यंत जड थई वर्ततो थको नाश पामे छे.

अहा! पोताना भावनुं सामर्थ्य पूरण छे. छतां एने न मानतां जे कोई एम माने छे के मारी पर्यायमां जे कांई सामर्थ्य प्रगट थाय छे ते परने लईने प्रगट थाय


PDF/HTML Page 3894 of 4199
single page version

छे ते जीव पोताना भावना सामर्थ्यथी रहित थयो थको अत्यंत जड थई गयो छे. जेवुं निमित्त आवे एवुं परिणमन करवुं पडे एम माननार अत्यंत जड थई गयो छे. भाई! (द्रव्यनी) एक समयनी पर्यायनी योग्यता पोताना भावना सामर्थ्यथी पोताना कारणे छे; एनो भाव जे पडयो छे एमांथी ए आवशे, कांई परभावथी-निमित्तथी ए प्रगटशे एम छे नहि. बापु! आ तो स्वतंत्रतानो ढंढेरो छे. वळी आमां तो हुं आम करुं ने तेम करुं-एम परनुं करवानां बधां अभिमान ने बधो बोजो उतरी जाय छे. भाई! तने जे बोजो छे ते कांई परवस्तुने लईने नथी, तारी विपरीत मान्यतानो बोजो छे. तारी दशानी मर्यादा तारी सत्तामां रही छे, बहारमां नहि; तो पछी बहारनी चीज तने शुं करे? कांई ज न करे. समजाणुं कांई.....? पण अरे! परचीजथी मारो भाव उघडे छे एम मानीने अत्यंत निश्चेतन-जड थयो थको अज्ञानी पोतानो नाश करे छे, अर्थात् अनंता जन्म-मरण कर्या करे छे.

हवे कहे छे- ‘स्याद्वादी तु’ अने स्याद्वादी तो ‘नियत–स्वभाव–भवन–ज्ञानात् सर्वस्मात् विभक्तः भवन्’ (पोताना) नियत स्वभावना भवनस्वरूप ज्ञानने लीधे सर्वथी (-सर्व परभावोथी) भिन्न वर्ततो थको, ‘सहज–स्पष्टीकृत–प्रत्ययः’ जेणे सहज स्वभावनुं प्रतीतिरूप जाणपणुं स्पष्ट-प्रत्यक्ष-अनुभवरूप कर्युं छे एवो थयो थको, ‘नाशम् एति न’ नाश पामतो नथी.

अहाहा...! स्याद्वादी अर्थात् अनेकान्तना स्वरूपने जाणनार, पोतानो त्रिकाळ नियत जे स्वभाव छे तेने अनुसरीने थवारूप ज्ञानने लीधे, पोतानुं वर्तमान थवुं- परिणमवुं छे ते पोताना कारणे छे एम जाणतो थको परथी भिन्न वर्ते छे. आ वांचन- श्रवण-चिंतवन (विकल्प) थी मारा ज्ञाननुं परिणमन आवे छे एम ज्ञानी मानतो नथी. ए तो सर्व परभावोथी भिन्न निर्मळ ज्ञाननी दशाए वर्ते छे. एना ज्ञानना परिणमननी दशामां परथी विभक्तपणुं छे. मारा द्रव्यना लक्षे मारो जे स्वभाव छे एनुं ए परिणमन छे एम धर्मी माने छे. भाई! बहु अंतर बापा! ज्ञानी-अज्ञानीनी मान्यता ने प्रवर्तनामां आभ-जमीननुं अंतर छे.

अहा! ज्ञानी जाणे छे के -मारो आत्मा ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, कर्ता, कर्म, साधन इत्यादि अनंत स्वभावोथी पूरण भरेलो भगवान छे. पर कर्ता थाय, पर साधन थाय ने परनो आधार मळे तो मारी पर्याय उघडे एम छे नहि. अहाहा....! मारो स्वभाव ज कर्तागुणथी, साधनगुणथी ने आधारगुणथी पूरण भरेलो छे तो मने परनी शुं अपेक्षा छे? अहा! आम जेणे पोताना सहज स्वभावनुं -एक ज्ञायकभावनुं प्रतीति- विश्वासरूप जाणपणुं स्पष्ट-प्रत्यक्ष-अनुभवरूप कर्युं छे ते ज्ञानी, अहीं कहे छे, जिवित रहे छे, अर्थात् परम आनंदने अनुभवे छे; नाश पामतो नथी.


PDF/HTML Page 3895 of 4199
single page version

* कळश २प८ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘एकांतवादी परभावोथी ज पोतानुं सत्पणुं मानतो होवाथी बाह्य वस्तुओमां विश्राम करतो थको आत्मानो नाश करे छे;........’

जुओ, पशुनो अर्थ ज एकांतवादी कर्यो छे. अहा! पशु अर्थात् एकांतवादी जीव परभावोथी पोतानुं सत्पणुं-होवापणुं माने छे, अने एम मानतो थको बाह्य वस्तुओमां विश्राम करे छे. निमित्त आवे तो मारामां काम थाय एवी मान्यता वडे ते निमित्तोने ताकीने बेसे छे. अहर्निश निमित्तो मेळववामां ज उद्यमशील ते अंतःपुरुषार्थ -स्वभावना पुरुषार्थने खोई बेसे छे, अर्थात् तेने अंतः पुरुषार्थ जागृत थई शकतो नथी. निमित्तवादीने अंतःपुरुषार्थ संभवित नथी. केमके तेनुं चित सदा बहारमां ज रोकाएलुं रहे छे.

शास्त्रमां अकाळनयनी वात आवे छे. त्यां तो काळनी मुख्यता न करतां, काळनी साथे स्वभाव, पुरुषार्थ, निमित्त ईत्यादि जे बीजां समयवाय कारणो होय छे तेनी अपेक्षाए अकाळनय कह्यो छे. अकाळ एटले काळ नहि, काळ सिवायनां बीजां-एम बीजां समवाय कारणोनी अपेक्षा लईने अकाळनय कह्यो छे. बाकी प्रत्येक द्रव्यनी समय समयनी अवस्था तो जे समये जे थवानी होय ते ज थाय छे. भूत, भविष्य ने वर्तमान-त्रणे काळनी जेटली पर्यायो छे ए बधी पर्यायोना समुदायने द्रव्य कहे छे; अने जे काळे जे भावमांथी जे पर्याय आववानी होय ते ज आवे छे. भगवानना ज्ञानमां पण एम ज भास्युं छे के प्रगट थवाना सामर्थ्यरूप जे शक्ति छे ते शक्तिमांथी व्यक्ति-पर्याय समये समये प्रगटे छे. अज्ञानीने आनो विश्वास नथी तेथी परवस्तुओमां विश्राम करतो थको नाश पामे छे अर्थात् चतुर्गतिमां खोवाई जाय छे.

‘अने स्याद्वादी तो, ज्ञानभाव ज्ञेयाकार थवा छतां ज्ञानभावनुं स्वभावथी अस्तित्व जाणतो थको, आत्मानो नाश करतो नथी.’

अहाहा...! जोयुं? ज्ञेयाकार-ज्ञेय जणातां जे आकार थाय ते, ज्ञानी जाणे छे के मारा ज्ञाननो आकार छे, ज्ञेयनो नहि ने ज्ञेयने लईने पण नहि. ज्ञानभावनुं थवुं ते मारो सहज स्वभाव छे एम जाणतो अने स्वभावथी ज परिणमतो ज्ञानी पोताने नाश पामवा देतो नथी, जिवित राखे छे. अहा! आ चौद बोलमां तो आचार्यदेवे चौद गुणस्थानना भावो प्रगट कर्या छे. आचार्यदेवनी कोई अद्भुत शैली छे.

आ प्रमाणे स्व-भावनी (पोताना भावनी) अपेक्षाथी अस्तित्वनो भंग कह्यो.

*

हवे बारमा भंगना कळशरूपे काव्य कहेवामां आवे छेः-


PDF/HTML Page 3896 of 4199
single page version

* कळश २प९ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘पशुः’ पशु अर्थात् अज्ञानी एकांतवादी, ‘सर्व–भाव–भवनं आत्मनि अध्यास्य शुद्ध –स्वभाव–च्युतः’ सर्व भावोरूप भवननो आत्मामां अध्यास करीने (अर्थात् सर्व ज्ञेय पदार्थोना भावोरूपे आत्मा छे एम मानीने) शुद्ध स्वभावथी च्युत थयो थको, ‘अनिवारितः सर्वत्र अपि स्वैरं गतभयः क्रीडति’ कोई परभावने बाकी राख्या विना सर्व परभावोमां स्वच्छंदताथी निर्भयपणे (निःशंकपणे) क्रीडा करे छे;........

जुओ, भगवान आत्मा स्वभावे ईश्वर-परमेश्वर छे. परमेश्वरनी शक्ति एनामां त्रिकाळ पडी छे ने? अहाहा....! जेना एक एक गुण परम ईश्वरताथी भरेला छे एवो आत्मा अनंतगुणना सामर्थ्यनो स्वामी छे. एनी ईश्वरता कोईथी खंडित न थाय एवी अखंडित छे. एने कोई परनी सहायनी अपेक्षा नथी एवो ए परमेश्वर छे. जगतमां श्रीमदे त्रण प्रकारे ईश्वर कह्या छे. धर्मात्माने भगवान आत्मा अनंत चैतन्यस्वभावना सामर्थ्यथी भरेलो होवाथी पोते स्वभाव-ईश्वर छे. अज्ञानीने राग अने पुण्य ज पोतानुं सर्वस्व होवाथी ते विभावेश्वर छे अने परमाणु जडेश्वर छे. केमके ते पोताना द्रव्य-गुण- पर्यायथी स्वतंत्र परिणमी रह्यो छे.

अहीं आ अज्ञानी विभावेश्वरनी वात छे. तेने अहीं पशु कह्यो छे. अहाहा....! आत्मा अंदर अनंतगुणना सामर्थ्यथी भरेलो परमेश्वर छे. तेनी वर्तमान दशा थई छे ए तो पोताना भावना (गुणना) अस्तित्वथी थई छे. भावमां वर्तमान जे पर्यायनी शक्ति व्यक्त थवायोग्य छे ते ज व्यक्त-प्रगट थई छे. तेमां परभावो जाणवामां आवतां आ परभावो छे ते ज हुं छुं एम अज्ञानी परभावोने पोतारूप करे छे. अहा! एने स्वभाव-परभावनो कोई विवेक ज नथी.

वस्तुनुं स्वरूप पोताना भावथी छे अने परभावथी नथी. पण एम न मानतां जाणवामां आवता शरीरादि परभावो हुं छुं एम अज्ञानीने भ्रम छे. आ शरीर हुं छुं, मन-वाणी-इन्द्रियो हुं छुं, क्रोधादि हुं छुं -एम परभावोने अज्ञानी पोतारूप माने छे. शरीरादिथी अने रागादिथी लाभ थाय एम माननारा बधा परभावोने ज पोतारूप करे छे. तेओने अहीं एटला माटे पशु कह्या छे के पशुनी जेम तेओने स्वभाव-परभावनो कोई विवेक नथी. समजाणुं कांई....?

अहाहा...! स्त्री-कुटुंब-परिवार, देव-गुरु-शास्त्र ईत्यादि परभावो ज्ञानमां जणाय खरा, पण ए बधा पोताना भावोना अस्तित्वथी भिन्न छे. अहा! ए सर्व परभावोथी तो पोते नास्तिरूप जुदो ज छे. पण ते परभावो हुं छुं-देव ते हुं छुं, गुरु ते हुं छुं, शास्त्र ते हुं छुं केमके ए सर्वथी मने लाभ छे एम मानतो अज्ञानी परभावोने


PDF/HTML Page 3897 of 4199
single page version

पोतारूप-ज्ञायकरूप करे छे. अहा! मृगनी नाभिमां कस्तुरी होय छे, पण एनी एने खबर नथी, तेथी आ गंध बहारमांथी आवे छे एम जाणी ते बहार दोडधाम करे छे. तेम ज्ञान ने आनंद तो पोतानुं ज स्वरूप छे, पण अज्ञानीने तेनी खबर नथी. तेथी आ मारुं ज्ञान ने मारो आनंद आ परभावोमांथी आवे छे एम जाणी, जाणवामां आवता अनंता परद्रव्योना जे भाव तेमां आत्माना-पोताना होवापणानो अध्यास करीने ते सर्व परभावोने पोतारूप करे छे. तेथी तो आ देश मारो, ने आ गाम मारुं ने आ बंगलो मारो, आ स्त्री-पुत्र-परिवार मारां एम अज्ञानी प्रवर्ते छे. अरे भाई! ए सर्व वस्तु तो पर छे. एमां तारो आत्मा क्यांथी आवी गयो? पण शुं थाय? अज्ञानीने एवो ज चिरकालीन अध्यास छे तेथी ते पोताना शुद्ध चैतन्यभावथी भ्रष्ट थयो थको परभावोमां ज रमे छे.

अहा! परद्रव्योना भावोनुं परिणमन जाणवाकाळे ते (परभावोना) आकारे ज्ञान जे परिणम्युं ते पोतानुं ज्ञान छे अने ते एना स्वकाळे प्रगट थयुं छे. शुं कीधुं? परभावोने जाणनारुं ज्ञान जे अहीं (-आत्मामां) प्रगट थयुं ते एनो स्वकाळ छे, ते काळे ते स्वयं पोताथी थयुं छे. छतां एम न मानतां परभावोथी मने अहीं ज्ञान थयुं छे एम जे माने छे ते परभावोने पोतारूप करे छे. निमित्तथी उपादानमां (विलक्षणता) थाय एम जे माने छे ते पण परभावने पोतारूप करे छे; केमके पोतानी अवस्थामां परभावनुं जे ज्ञान थाय छे ते पोताथी थाय छे, परभाव छे तो थाय छे एम नथी. लोकालोक छे तो केवलज्ञान थाय छे एम नथी; केवळज्ञान पोताना स्वतंत्र परिणमनथी थाय छे. केवळज्ञाननी पर्यायनो कर्ता के साधन लोकालोक नथी. तेम आ शरीरादि छे तो एनुं ज्ञान थाय छे एम नथी. भाई! वीतरागनुं तत्त्व बहु सूक्ष्म छे भाई! आ चौद बोलमां तो बधां चौद ब्रह्मांड डहोळी नाख्या छे. (चौद ब्रह्मांडना भावो उकेल्या छे.)

प्रश्नः– तो पछी सामे जेवी चीज होय एवुं ज अहीं ज्ञान केम थाय छे? (एम के निमित्तथी नथी थतुं तो जेवी चीज-निमित्त होय एवुं ज ज्ञान केम थाय छे?)

उत्तरः– अहा! आत्मद्रव्यना भावनी एवी ज शक्ति-योग्यता छे. सामे जेवो परभाव-परज्ञेय निमित्तपणे होय एवुं ज जे ज्ञानमां आवे छे ते द्रव्यनी एवी ज तत्कालीन शक्ति-योग्यता छे तेथी आवे छे. आ तो आवो ज वस्तुनो-ज्ञाननो स्वभाव छे भाई! अज्ञानी निज शक्तिने समजतो नथी, ने परभावना कारणे पोतानुं ज्ञान (परिणमन) थाय छे एम मानी पोताना शुद्ध स्वभावथी च्युत-भ्रष्ट थाय छे. कह्युं ने अहीं के- ‘शुद्धस्वभावच्युतः अनिवारितः सर्वत्र अपि स्वैरं गतभयः क्रीडति’ अहाहा....!


PDF/HTML Page 3898 of 4199
single page version

शुद्धस्वभावथी भ्रष्ट थयो थको कोई पण परभाव-परज्ञेयने बाकी राख्या विना सर्व परभाव ते हुं छुं -हुं सर्वव्यापक छुं -एम मानी अज्ञानी स्वच्छंदे क्रीडा करे छे-आचरण करे छे. ल्यो, आ महाहिंसा छे जेना कारणे एने अनंतकाळ पशुगतिमां-निगोदादिमां रझळपट्टी थाय छे. आवी वात बापु!

हवे कहे छे– ‘स्याद्वादी तु’ अने स्याद्वादी तो ‘स्वस्य स्वभावं भरात् आरूढः’ पोताना स्वभावमां अत्यंत आरूढ थयो थको, ‘परभाव–भाव–विरह–व्यालोक– निष्कम्पितः’ परभावोरूप भवनना अभावनी द्रष्टिने लीधे (अर्थात् आत्मा परद्रव्योना भावोरूपे नथी- एम देखतो होवाथी) निष्कंप वर्ततो थको, ‘विशुद्ध एव लसति’ शुद्ध ज विराजे छे.

अहाहा....! जोयुं? कहे छे- स्याद्वादी सम्यग्द्रष्टि तो पोताना स्वभावमां अत्यंत आरूढ थयो छे; तेने परभावोरूप भवनना त्यागनी द्रष्टि खीली गई छे. अहाहा...! मारामां आ जे कोई दशा प्रगट थाय छे ते मारामां शक्तिरूपे विद्यमान छे ते प्रगट थाय छे, परभावोमांथी ते आवे छे वा परभावने लईने ते प्रगट थाय छे एम छे नहि-एम ते यथार्थ जाणे छे. अहा! एक समये एक (चीजनुं) ज्ञान छे, ने बीजे समये बीजुं (बीजी चीजनुं) ज्ञान थाय छे एनुं कारण सामे चीज बदलाय छे ते नथी, ए तो पोताना भावमां जे शक्तिरूपे पडी छे ते, ते काळे व्यक्तपर्यायरूपे प्रगट थाय छे. सामेनी चीज तो निमित्तमात्र छे; ल्यो, धर्मी पुरुष आवुं जाणे छे. समये समये प्रगट थती पर्याय ए तो स्व-भावनी शक्तिनी व्यक्ति छे अने ते एनो स्वकाळ छे. ओहो! भावमां तो शक्तिरूपे त्रिकाळवर्ती बधी पर्यायो पडेली छे. समजाणुं कांई....?

समयसार गाथा ४९ मां अव्यक्तना बोलमां आवे छे के -“चैतन्यसामान्यमां चैतन्यनी समस्त व्यक्तिओ अंतर्लीन छे माटे (-आत्मा) अव्यक्त छे.” आमां चैतन्यनुं जे सामान्यपणुं, ध्रुवपणुं, एकपणुं तेने अव्यक्त कह्युं छे केमके एमां चैतन्यनी समस्त व्यक्तिओ-जे प्रगट थवानी छे, ने जे प्रगट थई गई छे ए बधी -अंतर्लीन छे. (एमांथी प्रतिनियत एक एक पर्याय एना काळे आवे छे). निश्चयथी जोईए तो स्वभाव-परभावने जाणवानी जे स्वपरप्रकाशक पर्याय प्रगट थाय छे ते, ते जातनी ते काळे पर्यायनी शक्ति-योग्यता छे ते प्रगट थाय छे. एटले सामान्यपणुं छे तेने (समर्थ) कारण न गणतां खरेखर जे ते प्रकारे पर्याय थवानो सामान्यस्थित अंदर पर्याय शक्ति- योग्यतारूप जे भाव छे ते कारण छे. जो सामान्य स्वभाव खरेखर कारण होय तो समये समये एकसरखी दशा आववी जोईए केमके सामान्य स्वभाव तो सदा एकरूप छे; परंतु सरखी नथी आवती, केमके पर्यायनो ते ते प्रकारे पोतानो स्वकाळ छे, ते ते काळे तेवी ज योग्यता छे. समजाणुं कांई....? भाई! आ बधुं समजवुं पडशे हों. आ समज्या विना बहारमां-परभावमां सुख गोते छे पण धूळेय त्यां सुख नथी, त्यां तो मफतनो हेरान थई रखडी मरवानुं छे.


PDF/HTML Page 3899 of 4199
single page version

अहा! पोताना द्रव्यमां जे ज्ञान, श्रद्धा, शान्ति, आनंद ईत्यादि शक्तिओ छे एमांथी जेटली पर्यायो प्रगट थई गई अने जेटली प्रगट थशे ते बधी तेमां अंतर्लीन छे. अने तेथी स्व-परने, स्वभाव-परभावने जाणवानो जे पर्यायभाव उत्पन्न थाय छे ते पोताथी थाय छे, परथी नहि, अने त्रिकाळी सामान्यस्वभाव छे एनाथी पण नहि. त्रिकाळीमां जे ते समयनी जे ते प्रकारनी योग्यता विद्यमान छे ते जे ते समये पर्यायरूपे प्रगट थाय छे. एटले खरेखर सामान्यद्रव्य पण पर्यायनुं कारण न रह्युं भाई! आ तारा ख्यालमां -बुद्धिमां तो प्रथम ले. आ बुद्धिगम्य थाय तो पछी अनुभवगम्य थाय, अने त्यारे आ आम ज छे एम अंदरथी निःशंकतानो रणको आवे. धर्मीने आ निःशंकता थई छे के- मारी वर्तमान दशा, मारा भावमां जे शक्तिरूप-योग्यतारूप विद्यमान हती ते बहार आवी छे. तेथी खरेखर तेने परभावरूप थवाना त्यागरूप द्रष्टि अंदरमां खीली गई छे. अहा! तेणे द्रष्टिमां परभावनो त्याग करी दीधो छे.

जुओ, आ कह्युं ने के- धर्मी पोताना स्वभावमां अत्यंत आरूढ थयो थको, परभावोरूप भवनना अभावनी द्रष्टिने लीधे निष्कंप वर्तता थको, शुद्ध ज विराजे छे. धर्मीने परभावमांथी मारो भाव थाय एवी द्रष्टिनो अभाव-त्याग थई गयो छे, अने पोताना स्व-भावथी पोतानुं अस्तित्व होवानी द्रष्टि प्रगट थई छे. तेथी ते स्वभावमां आरूढ थई निष्कंप वर्ततो थको शुद्ध ज विराजे छे. अहा! धर्मी, आत्मा परद्रव्योना भावरूप नथी-एम देखतो होवाथी निष्कंप छे. परथी मारी दशा थाय एवो मिथ्यात्वभाव ते कंपन छे, अने सम्यग्दर्शन निष्कंप छे. अहा! निज आत्मद्रव्यने द्रष्टिमां लेतां जे सम्यग्दर्शन थयुं ते निष्कंप छे, कारण के भेगुं अजोगपणुं पण अंशे प्रगट थाय छे ने! सर्वगुणांश ते समकित. एटले के समकित थवा काळे, आत्मानो योग नामनो जे गुण छे तेमां पण ते प्रकारे निष्कंपता थवानो काळ छे. तेथी ज्ञानी स्वभावमां आरूढ थई निष्कंप वर्ततो थको शुद्ध ज विराजे छे; अर्थात् परभावने पोतामां भेळवतो नथी, एक शुद्ध स्वरूपने ज अनुभवे छे.

अहाहा...! कहे छे– ‘विशुद्धः एव लसति’ ज्ञानी शुद्ध ज विराजे छे. तो शुं एने राग छे ज नहि? किंचित् राग छे, तथापि शुद्ध ज विराजे छे. केम? केमके रागने ते मात्र जाणे ज छे (करतो नथी). वळी ते ज्ञान शुद्ध छे अर्थात् राग तेमां भळ्‌यो नथी, केमके एने जाणनारुं ज्ञान ज्ञानथी-पोताथी छे रागने लईने छे एम नहि-एम ज्ञानी यथार्थ जाणे छे. थोडुं सूक्ष्म आवी गयुं! पण अरूपी आत्मानी वात सूक्ष्म ज होय ने!

जे जीव निमित्त एटले के संयोग अने परभावथी पोताना भावनी (ज्ञाननी) दशा थयेली माने छे ते संयोग अने परभावने पोतारूप माने छे; ते मिथ्याद्रष्टि छे.


PDF/HTML Page 3900 of 4199
single page version

ज्ञानी तो स्वभावनी अस्तिनी मस्तीमां रहेतो, परभावरूपभवनना त्यागनी द्रष्टिने लीधे निष्कंप वर्ततो थको, शुद्ध ज विराजे छे, अर्थात् शुद्धने एकने ज अनुभवे छे.

* कळश २प९ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘एकांतवादी सर्व परभावोने पोतारूप जाणीने पोताना शुद्ध स्वभावथी च्युत थयो थको सर्वत्र (सर्व परभावोमां) स्वेच्छाचारीपणे निःशंक रीते वर्ते छे;.........’

जोयुं? शुं कहे छे? के एकांतवादी अर्थात् एक ज पक्षने ग्रहण करनारो बहिरात्मा सर्व परभावोने पोतारूप जाणे छे. आ शरीर मारुं, ने बायडी-छोकरां मारां, ने मकान मारुं ने पैसा मारा-एम सर्व परभावोने ते पोतारूप जाणे छे.

हा, पण करे शुं? पैसा विना तो कांई ज मळतुं नथी. एना विना तो क्षण पण न चाले.

समाधानः– अरे भाई! पैसा विना क्षण पण न चाले ए तारी मान्यता ठीक नथी; केमके पैसानो तो तारा आत्मामां त्रिकाळ अभाव छे. पैसा विना ज भाई! तुं सदाय जीवी-टकी रह्यो छो. जेणे पैसा विना न चाले एम मान्युं छे एणे पैसाथी ज पोतानुं टकवुं मान्युं छे, पण ए तो भ्रम छे. वळी पैसाथी सामग्री आवे छे एम मानवुं ए पण भ्रम छे. सामग्री-संयोग तो (कर्मोदय निमित्ते) पोताना काळे पोताथी आवे छे, ने पोताना काळे पोताथी जती रहे छे. वळी ए सामग्री ने पैसा -ए बधुं तारामां छे क्यां? ए तो त्रिकाळ भिन्न ज छे. आत्मा त्रणे काळ परभावोथी रहित ज छे. ए तो अज्ञानी भ्रमथी परभावोने पोतारूप जाणे छे. पण एथी तो ए शुद्ध स्वभावथी भ्रष्ट थयो थको परभावोमां स्वेच्छाचारे प्रवर्ततो नाश पामे छे, अर्थात् संसारमां डूबी मरे छे.

पण शरीर सारुं होय तो तपश्चर्या थाय ने?

धूळेय न थाय सांभळने, शरीर तो जड छे. ज्यां शरीर ज तारुं नथी त्यां शरीरथी तपश्चर्या थाय ए क्यांथी लाव्यो? भाई! तपश्चर्या तो अंदर स्वरूपमां जाय ने त्यां तपे प्रतापवंत रहे तो थाय. बाकी शरीरथी तप कर्युं कहीए ए तो निमित्तना कथन सिवाय कांई नथी.

हवे कहे छे- ‘अने स्याद्वादी तो, परभावोने जाणतां छतां, पोताना शुद्ध ज्ञानस्वभावने सर्व परभावोथी भिन्न अनुभवतो थको शोभे छे.’

अहाहा....! अंदर मारी चीज-शुद्ध चैतन्यवस्तु तो परभावना अभावस्वरूप ज