Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 98-101.

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पुण्य-पापना भाव जे अज्ञान छे, दुःखमय छे ते करवा योग्य नथी. आचार्य कहे छे ते ज केवळ शीखवा योग्य छे के जे जरामरणनो क्षय करे.

अहाहा...! त्रणलोकनो नाथ चैतन्यघन प्रभु अंतरमां बिराजमान छे. तेनुं श्रद्धान- ज्ञान-चारित्र प्रगट करवुं ए मोक्षनो एटले जन्म-मरणना क्षयनो उपाय छे. तेथी कहे छे व्यवहार अने पर निमित्तनी वात छोड एक बाजु; अने आ मनुष्यभवमां ध्रुवधाम भगवान आत्माने ध्येय बनावी तेनुं ध्यान करीने धन्य थई जा. श्रुतनो तो पार नथी. अरे! भगवाननी कहेली वात बार अंगमां पण पुरी आवती नथी एवो श्रुत तो अगाध समुद्र छे; अने आपणे मंदबुद्धि छीए. माटे जे वडे जन्म-मरणनो क्षय थाय ए ज (भेदज्ञान कळा) शीखवा योग्य छे. ए सिवाय बीजी कोई वात शीखवा योग्य नथी.

अज्ञानी पुण्य-पापना भाव करे छे, पण परनुं ते कांई करी शकतो नथी. परनुं करे तो परमां तन्मय थई जाय. पोतानी सत्ता छोडीने परमां तन्मय थाय तो पोतानो नाश थई जाय. पण एम बनतुं नथी. माटे आत्मा परनो कर्ता नथी. आ रळवुं-कमावुं, वेपार-धंधा अने उद्योग करवा ए आत्मानां कार्य नथी, अने आत्मानां माने ए मूढता छे.

अमृतचंद्राचार्यदेव एम कहे छे के बहारना क्षयोपशमथी बस थाओ! त्यां विकल्प उठे एनाथी तो क्षोभ थाय छे. अमारे तो जन्म-मरणनो क्षय थई जाय बस ए ज काम छे. माटे हे भाई! ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा अंदर बिराजमान छे ते एकनी उपर तारी द्रष्टि लगावी दे. ते एक ज कर्तव्य छे, ते एक ज शीखवा योग्य छे. कह्युं छे ने के-‘ज्ञान सिवाय बीजुं शुं करे?’ आ मोटी वकीलातना धंधा, दाक्तरना धंधा, वेपार अने उद्योगना धंधा-ए बधा पर मीडां वाळवा जेवुं छे. ए बधुं हुं करुं छुं ए मान्यता तो अनंत संसारमां रखडावनारी मूढता छे. ६२ श्लोक पुरो थयो.

[प्रवचन नं. १६३ शेष, थी १७१ चालु * दिनांकः २२-८-७६ थी ३१-८-७६]


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तथापि–

ववहारेण दु आदा करेदि घडपडरधाणि दव्वाणि।
करणाणि य कम्माणि य णोकम्माणीह विविहाणि।। ९८ ।।
व्यवहारेण त्वात्मा करोति घटपटरथान् द्रव्याणि।
करणानि च कर्माणि च नोकर्माणीह विविधानि।। ९८ ।।

हवे कहे छे के व्यवहारी जीवो आम कहे छेः-

घट–पट–रथादिक वस्तुओ, करणो अने कर्मो वळी,
नोकर्म विधविध जगतमां आत्मा करे व्यवहारथी. ९८.

गाथार्थः– [व्यवहारेण तु] व्यवहारथी अर्थात् व्यवहारी लोको माने छे के [इह] जगतमां [आत्मा] आत्मा [घटपटरथान् द्रव्याणि] घडो, कपडुं, रथ इत्यादि वस्तुओने, [च] वळी [करणानि] इंद्रियोने, [विविधानि] अनेक प्रकारनां [कर्माणि] क्रोधादि द्रव्यकर्मोने [च नोकर्माणि] अने शरीरादि नोकर्मोने [करोति] करे छे.

टीकाः– जेथी पोताना (इच्छारूप) विकल्प अने (हस्तादिनी क्रियारूप) व्यापार वडे आ आत्मा घट आदि परद्रव्यस्वरूप बाह्यकर्मने करतो (व्यवहारीओने) प्रतिभासे छे तेथी तेवी रीते (आत्मा) क्रोधादि परद्रव्यस्वरूप समस्त अंतरंग कर्मने पण-बन्ने कर्मो परद्रव्यस्वरूप होईने तेमनामां तफावत नहि होवाथी-करे छे, एवो व्यवहारी जीवोनो व्यामोह (भ्रांति, अज्ञान) छे.

भावार्थः– घट-पट, कर्म-नोकर्म इत्यादि परद्रव्योने आत्मा करे छे एम मानवुं ते व्यवहारी लोकोनो व्यवहार छे, अज्ञान छे.

* * *
समयसार गाथा ९८ः मथाळुं

हवे कहे छे के व्यवहारी जीवो आम कहे छेः-

* गाथा ९८ः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘जेथी पोताना (इच्छारूप) विकल्प अने (हस्तादिनी क्रियारूप) व्यापार वडे आ आत्मा घट आदि परद्रव्यस्वरूप बाह्य कर्मने करतो (व्यवहारीओने) प्रतिभासे छे


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तेथी तेवी रीते (आत्मा) क्रोधादि परद्रव्यस्वरूप समस्त अंतरंग कर्मने पण-बन्ने कर्मो परद्रव्यस्वरूप होईने तेमनामां तफावत नहि होवाथी-करे छे, एवो व्यवहारी जीवोनो व्यामोह (भ्रान्ति, अज्ञान) छे.’

अहीं आत्मा हस्तादिनी क्रिया करी शके छे एम वात नथी. आ तो अज्ञानी शुं माने छे ए वात समजावे छे. पोताना विकल्प अने हस्तादिनी क्रियारूप व्यापार वडे घट आदि परद्रव्यस्वरूप कर्मने पोते करे छे एवुं अज्ञानी माने छे. ते मूढ जीव छे. वस्त्र बनावी शकुं छुं, घडो बनावी शकुं छुं एवुं व्यवहारी जीवो भ्रान्तिथी माने छे. आत्मा परद्रव्यस्वरूप बाह्य कर्मने करे छे एवुं अज्ञानीओने-व्यवहारीओने प्रतिभासे छे.

प्रश्नः– व्यवहारी जीव व्यवहारथी तो परनुं करी शके छे ने?

उत्तरः– ना; एम नथी. जीव व्यवहारथी पण परनुं करी शक्तो नथी. व्यवहारी- अज्ञानी जीवो, परनुं करी शकुं छुं एम माने छे ते एमनुं अज्ञान छे. आ बाईओ रसोई करे, रोटली बनावे, पकवान बनावे, मोती परोवे-इत्यादि परद्रव्यनां कर्मने करे छे एवी अज्ञानीओनी भ्रान्ति छे. वास्तवमां एम छे नहि.

आत्मा ज्ञानस्वरूप छे. ते ज्ञानमां जाणवानुं कार्य करे के परद्रव्यनुं कार्य करे? आत्मा परनुं कार्य करी शके छे एवी मान्यता व्यवहारी जीवोनी मूढता छे. आवुं सत्य प्रसिद्ध छे तोपण शरीरनां, कुटुंबनां, समाजनां अने देशनां बधां परद्रव्यनां कार्य अमे करीए छीए ए अज्ञानीओनो भ्रम छे. भगवाने कह्युं छे के प्रत्येक द्रव्यमां अने प्रत्येक परमाणुमां तेनी एकेक समयनी पर्याय पोताना षट्कारकथी थाय छे. ते पर्याय पोते कर्ता, ते पर्याय पोते कर्म, पर्याय करण, पर्याय संप्रदान, पर्याय अपादान अने ते पर्याय पोते अधिकरण छे. अज्ञानी जीव विकारी परिणमनना षट्कारकने करे, परंतु साथे ते एम माने के घट-पट आदि परद्रव्यने पण हुं करुं छुं ते एनो मिथ्या भ्रम छे, मिथ्या अहंकार छे.

दीकरा दीकरी, स्त्री परिवार, मा बाप, घर-बार इत्यादिनुं कार्य थाय तेनो हुं कर्ता छुं एम माननारा जीवो मूढ, अज्ञानी छे. तेवी रीते क्रोधादि स्वरूप अंतरंग कर्मने पण हुं करुं छुं एवुं माने ते मिथ्याद्रष्टि छे. जड कर्मनुं बंधन हुं करुं छुं, चारित्रमोह आदि पुद्गलकर्मने हुं बांधु छुं एम माने ते मूढ छे. शरीर, मन, वाणी, घट, पट, रथ आदि बाह्य परद्रव्यस्वरूप कर्म छे अने ज्ञानावरणीय आदि जडकर्म अंतरंग परद्रव्यस्वरूप कर्म छे. ते बन्ने परद्रव्यस्वरूप होवाथी तेमनामां तफावत नथी.

आ छोकरांने में भणाव्यां, पाळी पोषीने मोटां कर्यां, दीकरा-दीकरीओने ठेकाणे पाडयां, इत्यादि अज्ञानी माने छे पण भाई! ए बधी क्रिया आत्माथी थती नथी. तेवी रीते जड कर्म जे अंतरंग परद्रव्यस्वरूप कर्म छे तेने पण आत्मा करतो नथी. आम


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छे छतां अज्ञानी माने छे के हुं ते परद्रव्यस्वरूप कर्मनो कर्ता छुं ते एनो व्यामोह छे, भ्रान्ति छे, अज्ञान छे.

भावार्थः– ‘घट-पट, कर्म-नोकर्म इत्यादि परद्रव्योने आत्मा करे छे एम मानवुं ते व्यवहारी लोकोनो व्यवहार छे, अज्ञान छे.’

परद्रव्योनां कार्य हुं करी शकुं छुं एम मानवुं ते अज्ञान छे. परनां काम आत्मा त्रण काळमां करतो नथी. वस्तुस्थिति ज आवी छे. ल्यो, ९८ पूरी थई.

[प्रवचन नं. १६८ * दिनांक २७-८-७६]

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जदि सो परदव्वाणि य करेज्ज णियमेण तम्मओ होज्ज। जम्हा ण तम्मओ तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता।। ९९ ।।

यदि स परद्रव्याणि च कुर्यान्नियमेन तन्मयो भवेत्।
यस्मान्न तन्मयस्तेन स न तेषां भवति कर्ता।। ९९ ।।

व्यवहारी लोकोनी ए मान्यता सत्यार्थ नथी एम हवे कहे छेः-

परद्रव्यने जीव जो करे तो जरूर तन्मय ते बने,
पण ते नथी तन्मय अरे! तेथी नहि कर्ता ठरे. ९९.

गाथार्थः– [यदि च] जो [सः] आत्मा [परद्रव्याणि] परद्रव्योने [कुर्यात्] करे तो ते [नियमेन] नियमथी [तन्मयः] तन्मय अर्थात् परद्रव्यमय [भवेत्] थई जाय; [यस्मात् न तन्मयः] परंतु तन्मय नथी [तेन] तेथी [सः] ते [तेषां] तेमनो [कर्ता] र्क्ता [न भवति] नथी.

टीकाः– जो निश्चयथी आ आत्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मने करे तो, परिणाम-परिणामीपणुं बीजी कोई रीते बनी शकतुं नहि होवाथी, ते (आत्मा) नियमथी तन्मय (परद्रव्यमय) थई जाय; परंतु ते तन्मय तो नथी, कारण के कोई द्रव्य अन्यद्रव्यमय थई जाय तो ते द्रव्यना नाशनी आपत्ति (दोष) आवे. माटे आत्मा व्याप्य- व्यापकभावथी परद्रव्यस्वरूप कर्मनो कर्ता नथी.

भावार्थः– एक द्रव्यनो कर्ता अन्य द्रव्य थाय तो बन्ने द्रव्यो एक थई जाय, कारण के कर्ताकर्मपणुं अथवा परिणाम-परिणामीपणुं एक द्रव्यमां ज होई शके. आ रीते जो एक द्रव्य बीजा द्रव्यरूप थई जाय, तो ते द्रव्यनो ज नाश थाय ए मोटो दोष आवे. माटे एक द्रव्यने अन्य द्रव्यनो कर्ता कहेवो उचित नथी.

* * *
समयसार गाथा ९९ः मथाळुं

व्यवहारी लोकोनी ए मान्यता सत्यार्थ नथी एम हवे कहे छेः-

* गाथा ९९ः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘जो निश्चयथी आ आत्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मने करे तो, परिणाम-परिणामीपणुं बीजी कोई रीते बनी शक्तुं नहि होवाथी, ते (आत्मा) नियमथी तन्मय (परद्रव्यमय)


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थई जाय; परंतु ते तन्मय तो नथी, कारण के कोई द्रव्य अन्यद्रव्यमय थई जाय तो ते द्रव्यना नाशनी आपत्ति (दोष) आवे. माटे आत्मा व्याप्यव्यापकभावथी परद्रव्यस्वरूप कर्मनो कर्ता नथी.’

जो आत्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मने करे तो आत्मा नियमथी तन्मय थई जाय, कारण के परिणाम-परिणामीपणुं बीजी कोई रीते बनी शक्तुं नथी. परनां कार्य आत्मा करे तो एनो अर्थ ए थयो के परिणाम परमां थया अने परिणामी आत्मा थयो. तो बे द्रव्य एक थई गयां, केमके जे अवस्था थाय ते परिणाम अने अवस्था करनारो परिणामी बे अभिन्न होय छे. तो बे द्रव्यो वच्चे व्याप्यव्यापकभाव थई गयो. परना परिणाम व्याप्य अने आत्मा पोते व्यापक एम थई गयुं अने ए प्रमाणे थतां पोतानी सत्तानो नाश थई गयो.

आत्मा खरेखर जो शरीरनी क्रिया करे, खान-पाननुं कार्य करे, घट-पट आदि कार्य करे अने जडकर्मना बंधननी क्रिया करे तो, परिणाम-परिणामीपणुं बीजी कोई रीते बनी शक्तुं नहि होवाथी जरूर ते ते परद्रव्यमां तन्मय थई जाय अर्थात् परद्रव्य साथे एकमेक थई जाय. आत्मा जडस्वरूप थई जाय अने एम बनतां पोतानी (आत्मानी) सत्तानो नाश थई जाय. परंतु आत्मा परद्रव्यमां तन्मय तो थतो नथी, पररूप थतो नथी. (सर्व द्रव्यो पोतपोतामां ज स्थित रहे एवो ज तेमनो स्वभाव छे).

अहाहा...! रोटली हुं बनावुं छुं एम कोई बाई माने तो ते बाईनो जीव रोटलीमां तन्मय थई जाय, तेनी पोतानी सत्तानो नाश थईने ते परनी सत्तामां चाल्यो जाय, पररूप थई जाय. अहाहा...! गजब वात छे! लोजीकथी-न्यायथी वात छे ने! प्रभु! परद्रव्यनी क्रिया ताराथी थाय तो बन्नेमां व्याप्यव्यापकपणुं स्थापित थतां बन्ने एक थई जाय. पर व्याप्य अने तुं व्यापक-एम बन्ने अभिन्न एकमेक थई जाय. आत्मा एक पांपणने पण जो हलावी शके तो पांपण अने आत्मा बे एक थई जाय आत्मा पांपणरूप-जडरूप थई जाय. परनी दया हुं पाळी शकुं छुं एम माननार परनुं द्रव्य अने पोतानुं आत्मद्रव्य एकमेक करे छे. परिणाम-कार्य परमां थाय अने परिणामी-कर्ता पोते-एम मानतां बन्ने द्रव्योनुं एकत्व थई जाय छे. परंतु एम तो कदी बनतुं नथी. बे द्रव्यो जो एक थई जाय तो पोताना द्रव्यना नाशनी आपत्ति आवे. आत्मा व्यापक थईने परद्रव्यस्वरूप व्याप्यने करे तो पोतानो नाश थई जाय, परनो पण नाश थई जाय अने सर्वनाश थई जाय. माटे आत्मा व्याप्यव्यापकभावथी परद्रव्यस्वरूप कर्मनो र्क्ता नथी ए यथार्थ छे. आत्मा परथी अत्यंत निराळो छे.

* गाथा ९९ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘एक द्रव्यनो कर्ता अन्यद्रव्य थाय तो बन्ने द्रव्य एक थई जाय, कारण के कर्ता-


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कर्मपणुं अथवा परिणाम-परिणामीपणुं एक द्रव्यमां ज होई शके. आ रीते जो एक द्रव्य बीजा द्रव्यरूप थई जाय, तो ते द्रव्यनो ज नाश थाय ए मोटो दोष आवे. माटे एक द्रव्यने अन्य द्रव्यनो कर्ता कहेवो उचित नथी.’

एक द्रव्यनो कर्ता अन्यद्रव्य थाय तो बन्ने द्रव्य एक थई जाय. आत्मा आ आंगळीने हलावी शके तो आत्मा आगळीमां एकमेक थई जाय. जडना परिणाममां आत्मा प्रवेश करे तो पोतानी सत्तानो नाश थई जाय. वळी परनी पर्याय तुं करे तो ते अन्य द्रव्यनी पोतानी पर्यायनो नाश थई गयो अने पर्यायनो नाश थतां ते द्रव्यनो पण नाश थई गयो.

कर्ताकर्मभाव अथवा परिणाम-परिणामीभाव एक द्रव्यमां ज होय छे. अज्ञानी रागनो कर्ता अने ज्ञानी ज्ञाननो कर्ता हो, परंतु जीव परनो कर्ता त्रणकाळमां नथी. एक द्रव्यनो कर्ता अन्यद्रव्य थाय तो ते द्रव्यनो ज नाश थाय ए मोटो दोष आवे. परने हुं जीवाडुं, सुखी-दुखी करुं, तेनुं भरण-पोषण करुं आवुं माने ते मिथ्याद्रष्टि छे.

कोई मोटुं कारखानुं चलावतो होय अने तेमां हजारो माणस काम करता होय तो त्यां अज्ञानी एम माने छे के हुं कारखानुं चलावुं छुं अने ते बधांने निभावुं छुं. भाई! वस्तुस्वरूप एम नथी. सौ द्रव्यो पोतपोतानुं कार्य स्वतंत्रपणे करे छे ए वस्तुस्वरूप छे. कोई डोकटर एम कहे के हुं दवाखानुं चलावुं छुं अने अनेक लोकोना रोग मटाडुं छुं तो ए एनी भ्रान्ति छे, अज्ञान छे. एक द्रव्यने बीजा द्रव्यनो कर्ता कहेवो उचित नथी, केमके एम छे ज नहि.

[प्रवचन नं. १६८ * दिनांक २७-८-७६]

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निमित्तनैमित्तिकभावेनापि न कर्तास्ति–

जीवो ण करेदि घडं णेव पडं णेव सेसगे दव्वे।
जोगुवओगा उप्पादगा य तेसिं हवदि कत्ता।। १०० ।।
जीवो न करोति घटं नैव पटं नैव शेषकानि द्रव्याणि।
योगोपयोगावुत्पादकौ च तयोर्भवति कर्ता।। १०० ।।

आत्मा (व्याप्यव्यापकभावथी तो कर्ता नथी परंतु) निमित्तनैमित्तिकभावथी पण कर्ता नथी एम हवे कहे छेः-

जीव नव करे घट, पट नहीं, जीव शेष द्रव्यो नव करे;
उत्पादको उपयोगयोगो, तेमनो कर्ता बने. १००.

गाथार्थः– [जीवः] जीव [घटं] घटने [न करोति] करतो नथी, [पटं न एव] पटने करतो नथी, [शेषकानि] बाकीनां कोई [द्रव्याणि] द्रव्योने (वस्तुओने) [न एव] करतो नथी; [च] परंतु [योगोपयोगौ] जीवना योग अने उपयोग [उत्पादकौ] घटादिने उत्पन्न करनारां निमित्त छे [तयोः] तेमनो [कर्ता] र्क्ता [भवति] जीव थाय छे.

टीकाः– खरेखर जे घटादिक तथा क्रोधादिक परद्रव्यस्वरूप कर्म छे तेने आ आत्मा व्याप्यव्यापकभावे तो करतो नथी कारण के जो एम करे तो तन्मयपणानो प्रसंग आवे; वळी निमित्तनैमित्तिकभावे पण तेने करतो नथी कारण के जो एम करे तो नित्य- कर्तृत्वनो (अर्थात् सर्व अवस्थाओमां कर्तापणुं रहेवानो) प्रसंग आवे. अनित्य (अर्थात् जे सर्व अवस्थाओमां व्यापता नथी एवा) योग अने उपयोग ज निमित्तपणे तेना (-परद्रव्यस्वरूप कर्मना) कर्ता छे. (रागादिविकारवाळा चैतन्यपरिणामरूप) पोताना विकल्पने अने (आत्माना प्रदेशोना चलनरूप) पोताना व्यापारने कदाचित् अज्ञानथी आत्मा करतो होवाथी योग अने उपयोगनो तो आत्मा पण कर्ता (कदाचित्) भले हो तथापि परद्रव्यस्वरूप कर्मनो कर्ता तो (निमित्तपणे पण कदी) नथी.

भावार्थः– योग एटले (मन-वचन-कायना निमित्तवाळुं) आत्मप्रदेशोनुं चलन अने उपयोग एटले ज्ञाननुं कषायो साथे उपयुक्त थवुं-जोडावुं. आ योग अने उपयोग घटादिक तथा क्रोधादिकने निमित्त छे तेथी तेमने तो घटादिक तथा क्रोधादिकना निमित्तकर्ता


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कहेवाय परंतु आत्माने तेमनो कर्ता न कहेवाय. आत्माने संसार-अवस्थामां अज्ञानथी मात्र योग-उपयोगनो कर्ता कही शकाय.

अहीं तात्पर्य आ प्रमाणे जाणवुंः-द्रव्यद्रष्टिथी तो कोई द्रव्य अन्य कोई द्रव्यनुं कर्ता नथी; परंतु पर्यायद्रष्टिथी कोई द्रव्यनो पर्याय कोई वखते कोई अन्य द्रव्यना पर्यायने निमित्त थाय छे तेथी आ अपेक्षाए एक द्रव्यना परिणाम अन्य द्रव्यना परिणामना निमित्तकर्ता कहेवाय छे. परमार्थे द्रव्य पोताना ज परिणामनुं कर्ता छे, अन्यना परिणामनुं अन्यद्रव्य कर्ता नथी.

* * *
समयसार गाथा १०० मथाळुं
आत्मा (व्याप्यव्यापकभावथी तो कर्ता नथी परंतु) निमित्तनैमित्तिकभावथी पण कर्ता

नथी एम हवे कहे छेः-

* गाथा १००ः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘खरेखर जे घटादिक तथा क्रोधादिक परद्रव्यस्वरूप कर्म छे तेने आ आत्मा व्याप्यव्यापकभावे तो करतो नथी कारण के जो एम करे तो तन्मयपणानो प्रसंग आवे.’

आ घट-पट आदि अने जडकर्म क्रोधादि ते बंने परद्रव्यस्वरूप कर्म छे. तेनो व्याप्यव्यापकभावथी आत्मा कर्ता नथी. ते परद्रव्यस्वरूप कर्म आत्मानुं व्याप्य अने आत्मा तेनो व्यापक कर्ता एम नथी. पर साथे आत्माने व्याप्यव्यापकभाव नथी. पर साथे जो व्याप्यव्यापकपणुं होय तो तन्मयपणानो प्रसंग आवे. आ वात गाथा ९९मां आवी गई छे. परद्रव्यनी पर्यायने जो आत्मा करे तो परद्रव्यनी पर्यायमां तन्मय एटले एकमेक थई जाय. पोतानी हयाती परद्रव्यमां भळी जाय अर्थात् पोतानी भिन्न सत्ता रहे नहि.

आ दयाना जे भाव थाय ते राग छे. ते रागनो अज्ञानी कर्ता छे, केमके पोताना परिणाम साथे व्याप्यव्यापकभाव होय छे. पण त्यारे कर्मबंधननी जे अवस्था थाय तेनो कर्ता आत्मा नथी.

पंचास्तिकाय गाथा १३२मां पुण्य-पापना स्वरूपनुं कथन करतां कह्युं छे के-‘‘जीवरूप कर्ताना निश्चयकर्मभूत शुभपरिणाम द्रव्यपुण्यने निमित्तमात्रपणे कारणभूत छे तेथी ‘द्रव्यपुण्यास्रव’ना प्रसंगने अनुसरीने (-अनुलक्षीने) ते शुभ परिणाम ‘भावपुण्य-छे. (शाता वेदनीयादि द्रव्यपुण्यास्रवनो जे प्रसंग बने छे तेमां जीवना शुभपरिणाम निमित्तकारण छे माटे ‘द्रव्यपुण्यास्रव’ प्रसंगनी पाछळ पाछळ तेना निमित्तभूत शुभ-परिणामने पण ‘भावपुण्य’ एवुं नाम छे).

एवी रीते जीवरूप कर्ताना निश्चयकर्मभूत अशुभपरिणाम द्रव्यपापने निमित्तमात्रपणे कारणभूत छे तेथी ‘द्रव्यपापास्रव’ना प्रसंगने अनुसरीने ते अशुभपरिणाम ‘भावपाप’ छे.


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शुभभाव थाय ते खरेखर पुण्य नथी, पाप छे केमके शुभभाव राग छे. हवे तेने पुण्य केम कह्युं? के शातावेदनीय बंधाय तेमां शुभभाव निमित्त छे; शातावेदनीयने पुण्य कह्युं छे तेथी तेना कारणरूप निमित्तने पण पुण्य कहेवामां आव्युं छे.

अहीं कहे छे के जीवे शुभाशुभ परिणाम कर्या माटे त्यां कर्मबंधन थयुं एम छे नहि. अशुभभाव कर्या माटे त्यां अशाता वेदनीय कर्म बंधायुं एम नथी. जो एम होय तो तन्मयपणानो प्रसंग आवे; बे द्रव्यो एक थई जाय अने एकबीजानी सत्तानो नाश थई जाय.

आ गाथा सूक्ष्म छे. एमां मुदनी रकमनी वात छे ने! कहे छे के घट, पट, मकान, वासण-कुसण इत्यादि बधां परद्रव्यस्वरूप कर्म छे. तथा नवां ज्ञानावरणीय आदि जड कर्म बंधाय ते पण परद्रव्यस्वरूप कर्म छे. आत्मा तेने व्याप्यव्यापकभावे करतो नथी. आ कारखानाओमां कापडना ताका बने, रंगीन लादी तैयार थाय, पेट्रोल, तेल, केरोसीन वगेरे साफ करवानी-रीफाईन करवानी क्रिया थाय ए बधां परद्रव्यनां कार्य छे; कारखानाना कारीगरो (आत्मा) अने कारखानाना शेठीआओ ए कार्यना कर्ता नथी. ए परद्रव्यस्वरूप जडना परिणाम ते व्याप्य अने आत्मा परिणामी ते व्याप्य एम नथी. परद्रव्यनी पर्याय आत्मानुं व्याप्य थई शके नहि. परद्रव्यस्वरूप कर्म जो आत्मानुं व्याप्य होय अने आत्मा तेनो व्यापक कर्ता होय तो आत्मा परद्रव्यनी क्रियामां तन्मय थई जाय. परद्रव्यना कार्यने जो आत्मा करे तो तेमां ते तन्मय थई जाय, भळी जाय. परंतु आत्मा तन्मय थतो नथी. माटे परनां कार्योनो आत्मा व्याप्यव्यापकभावथी कर्ता नथी.

सर्वज्ञ वीतराग परमात्माए आ जगतमां अनंत पदार्थ देख्या छे. तेओ कहे छे के एक द्रव्य, बीजा द्रव्यनुं कार्य करे तो ते बीजा द्रव्यमां तन्मय थई जाय, भळी जाय; द्रव्य भिन्न रही शके नहि. माटे आत्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मनो व्याप्यव्यापकभावथी कर्ता नथी.

आ तो भेद करवानो महा अलौकिक सिद्धांत छे. आ १००मी गाथामां चैतन्य-स्वरूप जीव शुं करी शके ते मुदनी वात समजावी छे. आ भाषानी पर्याय थाय ते परमाणुनी पर्याय छे. ते पर्याय जो आत्मानुं कार्य होय तो आत्मा भाषाना परमाणु साथे तन्मय एटले एकाकार थई जाय. टीमरुनुं मोटुं पांदडुं होय तेमांथी बीडी बने ते परद्रव्यनी परमाणुनी क्रिया छे, आत्मा तेने करतो नथी. ते क्रियाने जो आत्मा करे तो आत्मा बीडीमां तन्मय थई जाय. गजब वात छे! पोताना आत्मा सिवाय जेटलां अनंत परद्रव्य छे ते प्रत्येकमां प्रतिसमय जे जे पर्याय थाय ते पर्यायने कर्म एटले कार्य कहेवामां आवे छे. ते कार्यने जो आत्मा करे तो तेमां तन्मय थवानो प्रसंग आवे. पण एम तो बनतुं नथी. माटे ए सिद्ध थयुं के व्याप्यव्यापकभावथी आत्मा परद्रव्यना कार्योनो कर्ता नथी. आत्माने परद्रव्य साथे कर्ताकर्मभाव नथी.


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अहाहा...! तत्त्वना अस्तित्वनी सिद्धिनी शुं अलौकिक युक्ति छे! कहे छे-परपदार्थमां जे वर्तमान परिणति थाय छे ते परिणति कार्य छे अने ते पदार्थ तेनो कर्ता छे. पण ए परिणतिनो जो आत्मा कर्ता होय तो परपदार्थना परिणाम अने परिणामी आत्मा अभेद थई जाय. पण एम छे ज नहि.

अरे बापु! तारुं स्वरूप शुं छे तेनी तने खबर नथी. आ संस्थाओना वहिवट चाले एमां अमे आम व्यवस्था करी अने तेम व्यवस्था करी एम तुं माने छे पण ए तारुं अज्ञान छे. परमां थती व्यवस्था ए परद्रव्यनुं व्याप्य कर्म छे. एने जो तुं करे तो परना परिणाममां तुं तन्मय थई जाय, भळी जाय. पण एम छे नहि. अहो! वस्तुस्थितिनी संतो प्रतीति करावे छे. आ एक वात थई. हवे कहे छे-

‘वळी निमित्तनैमित्तिकभावे पण तेने करतो नथी कारण के जो एम करे तो नित्य- कर्तृत्वनो प्रसंग आवे.’ (अर्थात् सर्व अवस्थाओमां कर्तापणुं रहेवानो प्रसंग आवे).

परद्रव्यमां कार्य थयुं ते नैमित्तिक अने आत्मा तेमां निमित्त-आवुं पण नथी एम कहे छे. परनुं कार्य तो तेना काळे उपादानथी थयुं, पण आत्मा द्रव्य जे छे ते परना कार्यनुं निमित्त- कर्ता पण नथी. अरे भाई! आत्माने परना कार्योनो कर्ता मानवो ए तो मिथ्यादर्शन छे, मूढता छे. परनो कर्ता तो आत्मा नथी; पण ते ते द्रव्यना ते ते काळे क्रमबद्ध जे जे परिणाम तेमां थाय छे तेनो निमित्तकर्ता पण आत्मा नथी, कारण के एम जो होय तो नित्य कर्तृत्वनो तेने प्रसंग आवे. जो परद्रव्यना कार्योनो निमित्तकर्ता आत्मा होय तो ज्यां ज्यां परद्रव्यनां कार्य थाय त्यां त्यां आत्माने उपस्थित रहेवानो प्रसंग आवे.

अहा! प्रभु! तुं कोण छो? तो कहे के आत्मा. ठीक; तो आत्मा परद्रव्यनुं जे कार्य थाय तेने शुं करी शके? ना; न करी शके. तो हवे बीजो प्रश्न छे के-परद्रव्यना कार्यकाळे आत्मा तेमां निमित्त तो छे के नहि? तो कहे छे-ना, निमित्त पण नथी. परद्रव्यना कार्यमां आत्माने जो निमित्त मानो तो नित्य कर्तृत्वनो प्रसंग आवी जशे, अर्थात् सर्व अवस्थाओमां कर्तापणुं रहेवानो प्रसंग आवी जशे. नित्य कर्तृत्वनो प्रसंग आवतां परद्रव्यनी क्रियाना काळमां नित्य उपस्थिति रहेतां रागथी भिन्न पडीने भेदज्ञान प्रगट करवानो अवसर रहेशे नहि.

आ १००मी गाथामां परिपूर्ण स्वतंत्रता बतावी छे. अहा! दिगंबर संतोए गजब काम कर्यां छे! तेओ कहे छे के आ शास्त्रना अक्षर लखायानी जे पर्याय थई तेना अमे कर्ता नथी; वळी ते पर्यायना काळे अमारुं द्रव्य प्रभु आत्मा तेनुं निमित्त पण नथी. द्रव्य जो निमित्त होय तो नित्य कर्तृत्वनो प्रसंग आवे अने परना कार्यमां नित्य निमित्तपणे हाजर रहेवुं पडे. न्याय समजाय छे? धीमे धीमे समजवुं भाई!


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आ तो सर्वज्ञ प्रभु केवळीना मारगडा छे! न्यायथी विचारे तो बेसी जाय एवुं छे. कहे छे- भगवान! तारुं जे आत्मद्रव्य छे ते जगतना कार्यकाळे जो निमित्त होय तो नित्य कर्तृत्वनो प्रसंग आवी जशे; रागथी भिन्न पडवानो कदी अवसर प्राप्त थशे ज नहि. तो कई रीते छे? कोण निमित्त छे? ते हवे कहे छे-

‘अनित्य (अर्थात् सर्व अवस्थाओमां व्यापता नथी एवा) योग अने उपयोग ज निमित्तपणे तेना (परद्रव्यस्वरूप कर्मना) कर्ता छे.’

योग एटले प्रदेशोनुं कंपन अने उपयोगनो अर्थ अहीं राग करवो. योग अने उपयोग अनित्य छे, ते सर्व अवस्थाओमां व्यापता नथी. ते योग अने उपयोग परद्रव्यस्वरूप कर्मना निमित्तपणे कर्ता छे एम अहीं कहे छे. १. घडो माटीथी तेना कार्यकाळे बने छे, कुंभारथी घडो बनतो नथी. २. घडाना कार्यकाळे कुंभारना आत्माने निमित्त कहो तो नित्य कर्तृत्वनो प्रसंग आवी पडे.

एम पण नथी.

तो कई रीते छे? ते कहे छे-

३. अनित्य एटले सर्व अवस्थाओमां जे व्यापता नथी एवा कंपन अने रागादि परिणामनो

जे कर्ता थाय छे एवो अज्ञानी ते परद्रव्यना कार्यकाळे निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे.

४. त्यां माटीमां जे घडारूप कार्य थयुं ते तो माटीथी ज थयुं छे, निमित्तथी नहि.

तेवी रीते रोटली, वस्त्र, मकान, वासण, भाषा, अक्षर इत्यादि जे कार्यो थाय छे ते पुद्गल परमाणुनां कार्य छे. ते कार्यमां आत्मद्रव्य जो निमित्त होय तो नित्यकर्तृत्वनो प्रसंग आवी जाय. ज्यां ज्यां परनां कार्य थाय त्यां त्यां निमित्तपणे कर्तानी हाजरी अनिवार्य थई जाय. न्यायथी वात छे ने? तो केवी रीते छे? तो कहे छे के जीवना योगनुं कंपन अने राग एटले इच्छारूप भाव ते परना कार्यकाळे तेना निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. कार्य तो द्रव्यमां पोताथी ज थयुं छे; योग अने राग एमां निमित्त छे बस.

अज्ञानी योग अने रागनी क्रियानो कर्ता छे. ते कारणथी तेना योग अने रागने परपदार्थना कार्यकाळे निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. जुओ, १. रोटली बने छे ते रोटलीना परमाणुनुं कार्य छे, ते जीवनुं कार्य नथी. २. ए तो ठीक; पण रोटली बनवा काळे एमां जीवद्रव्य निमित्त छे एम पण नथी; जो

जीवद्रव्य निमित्त होय तो नित्य कर्तृत्वनो प्रसंग आवी जाय. नित्य कर्तृत्वनो

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प्रसंग बनतां जगतनां जेटलां कार्यो थाय त्यां तेने हाजर रहेवुं पडे एवो दोष आवे. तो
छे शुं? निमित्त कोण?

३. जीवना अनित्य एवा योग अने उपयोग एटले के राग ते परद्रव्यना कार्यकाळे एमां

निमित्त कहेवामां आवे छे.

हवे कहे छे-‘(रागादि विकारवाळा चैतन्यपरिणामरूप) पोताना विकल्पने अने (आत्माना प्रदेशोना चलनरूप) पोताना व्यापारने कदाचित् अज्ञानथी आत्मा करतो होवाथी योग अने उपयोगनो तो आत्मा पण कर्ता (कदाचित्) भले हो तथापि परद्रव्य-स्वरूप कर्मनो कर्ता तो (निमित्तपणे पण कदी) नथी.’

निमित्त छे तो कार्य थयुं ए वात तो उडाडी दीधी, पण परनां कार्योमां आत्मा निमित्त थाय ए वात पण अहीं उडाडी दीधी छे. राग अने जोगनो भाव ते कार्यमां ते काळे निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. पण कोना? के जे राग अने जोगनो कर्ता छे एवा अज्ञानीना.

आ गाथा बहु ऊंची छे. भगवानथी सिद्ध थयेली, त्रणलोकना नाथ केवळी भगवाने दिव्यध्वनिमां कहेली आ वात छे. एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कार्य करे ए वात त्रणकाळमां नथी. वळी आत्मद्रव्य परना कार्यमां निमित्तकर्ता पण नथी. ए वात अहीं सिद्ध करी छे. विश्वमां अनंत द्रव्यो छे. ते प्रत्येक द्रव्यनी प्रतिसमय थती परिणति पोताथी थाय छे. परद्रव्यना परिणामनो कर्ता भगवान आत्मा नथी. वळी परद्रव्यमां जे परिणाम थाय एनो भगवान आत्मा-त्रिकाळी द्रव्य निमित्तकर्ता पण नथी. कार्य तो तेना काळे पोताथी थाय छे. तो तेमां निमित्त कोण छे? तो कहे छे जे सर्व अवस्थाओमां व्यापता नथी एवा योग अने उपयोग परद्रव्यस्वरूप कर्मना निमित्तपणे कर्ता छे.

लग्न वखते जेम मांडवा रोपे तेम आचार्यदेवे अहीं मोक्षना मांडवा रोप्या छे. आ पर्युषण पर्व शरू थाय छे. तेमां दशलक्षणधर्मनी विशेष आराधना करवाना आ मंगळ दिवसो छे. आत्माना अनुभव सहित क्षमा करवी तेने उत्तमक्षमा कहे छे. ते उत्तमक्षमावंत धर्मी जीव परद्रव्यना कार्यकाळे तेमां निमित्तकर्ता पण नथी. शुद्ध द्रव्य निमित्तकर्ता नथी तेथी शुद्ध द्रव्यनी जेने द्रष्टि थई छे ते धर्मीनी शुद्ध द्रष्टि पण निमित्तकर्ता नथी, केमके ते जोग अने रागनी क्रियाना स्वामी नथी, कर्ता नथी. सूक्ष्म वात छे भाई!

अहो! आचार्यदेवे अति गंभीर वात करी छे! भगवान त्रणलोकना नाथना शासनमां प्रसिद्ध थयेलो आ ढंढेरो आचार्यदेव जगत पासे जाहेर करे छे. कहे छे-भगवान! तुं आत्मा छो; परथी तुं भिन्न अने पर ताराथी भिन्न एवो प्रभु! तुं आत्मा छो; कोई पण परद्रव्यनुं तुं कार्य करे ए कदी बनी शके नहि. ए तो बराबर, पण परद्रव्यनुं जे कार्य परद्रव्यथी थयुं तेमां तारुं आत्मद्रव्य निमित्त कर्तापण नथी.


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जो परनो तुं (आत्मा) निमित्तकर्ता होय तो तेने (आत्माने) नित्यकर्तृत्वनो प्रसंग आवी पडे. त्यारे प्रश्न थाय के निमित्तकर्ता कोण छे? तो कहे छे के-अंदर भगवान ज्ञायक चैतन्यमूर्ति बिराजमान छे तेनी जेने द्रष्टि नथी ते अज्ञानीना जोग अने ईच्छारूप रागने परद्रव्यस्वरूप कर्मनो निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. निमित्तकर्ता छे एटले निमित्त कार्यनुं कर्ता छे. एवो अर्थ नथी.

धर्मी सम्यग्द्रष्टि जीव जोग अने रागना परिणामनो कर्ता नथी. तेथी धर्मात्मा परद्रव्यना कार्यकाळे तेनो निमित्तकर्ता नथी. ज्ञानी राग अने जोगनो कर्ता नथी. ज्ञानी (आत्मा) पोताना ज्ञाताद्रष्टाना ज्ञानना परिणाम करे छे एम कहेवुं ए पण भेदकथन होवाथी उपचार छे तो पछी परना कर्तानी अने निमित्तकर्तानी तो वात ज कयां रही? त्यां तो उपचार पण बनतो नथी.

अज्ञानी जीव माने छे के परजीवोनी दया पाळवी ते धर्म छे. अरे भाई! तने आ शुं थई गयुं छे? पर जीवनुं टकवुं तो तेना कारणे छे. तेनी तुं दया पाळी शके ए केम बने? वळी दयानुं कार्य जे परमां थयुं तेमां आत्मा निमित्त छे एम जो तुं कहे तो एम पण नथी, केमके एम मानतां नित्यकर्तृत्वनो प्रसंग आवी पडशे. नित्यकर्तृत्वनो प्रसंग बनतां रागथी भिन्न पडी भेदज्ञान अने मुक्तिमार्ग प्राप्त करवानो कोई अवसर रहेशे नहि ए महादोष आवशे. माटे हे भाई! आत्मद्रव्य परनां कार्योनुं निमित्तकर्ता पण नथी एम यथार्थ निर्णय कर.

भगवान! तुं कोण छो? शुं तुं राग छो? कंपन छो? ना रे ना; तुं तो भगवान ज्ञानस्वरूप छो. अहाहा...! आवो ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा जेने ज्ञानमां जाणवामां आव्यो ते परनां कार्योनो निमित्तकर्ता पण नथी, केमके ज्ञानी जोग अने रागनो कर्ता नथी, ज्ञाता छे. तो पछी ज्ञानी कर्ता थईने परनां कार्य करे ए वात केवी? (ए तो बनतुं ज नथी).

ज्ञानीनी वाणीथी अन्य जीवने ज्ञान थाय छे ए वात यथार्थ नथी. ते जीवने ज्ञान पोताथी थाय छे, वाणीथी नहि. ते ज्ञानना परिणमननो कर्ता जीव छे. वाणीथी तेने ज्ञान थयुं एम छे नहि. अरे भाई! निमित्तथी कथन करवुं ए जुदी वात छे अने निमित्तथी कर्तापणुं मानवुं ए जुदी वात छे.

कहे छे-‘रागादि विकल्पवाळा चैतन्यपरिणामस्वरूप पोताना विकल्पने अने आत्माना प्रदेशोना चलनरूप पोताना व्यापारने कदाचित् अज्ञानथी आत्मा करतो होवाथी योग अने उपयोगनो तो आत्मा पण कर्ता (कदाचित्) भले हो तथापि परद्रव्यस्वरूप कर्मनो कर्ता तो (निमित्तपणे पण कदी) नथी.’

अज्ञानी परनो कर्ता नथी, पण जोग अने इच्छानो कर्ता छे. माटे तेनां जोग


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अने इच्छाने परना कार्यकाळे निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. केटलाक कहे छे के आ तो निश्चयनी वात छे. तेने कहीए छीए के-हा, निश्चयनी एटले सत्य वात छे. जोग अने इच्छानो कर्ता भगवान नहि एनुं नाम सत्य वात. जोग अने रागनो कर्ता समकिती नहि. सम्यग्द्रष्टिना जोग अने राग परना कार्यमां निमित्तकर्ता पण नहि. धर्मीजीव जेने पोताना ज्ञाता-द्रष्टास्वभावनुं भान थयुं छे तेने जोग अने रागनुं ज्ञान पोताना उपादानथी थयुं छे. अहाहा...! स्वपरने जाणतुं ज्ञान ते ज्ञानीनुं कार्य छे तेमां जोग, राग अने परनी क्रिया निमित्तमात्र छे.

जुओ, अहीं जोग अने रागना परिणामने चैतन्यपरिणाम कह्या छे केमके अज्ञानीए जोग अने रागनो पोताने कर्ता मान्यो छे. खरेखर तो आत्मा ज्ञायक प्रभु छे. तेनो स्वभाव तो बस जाणवुं अने देखवुं छे. ते जाणवा देखवानुं कार्य तो पोताथी थाय छे. त्यां जाणवा- देखवाना परिणामनो कर्ता जीव छे एम कहेवुं ए उपचार छे, केमके खरेखर तो जाणवा देखवानुं कार्य पर्यायथी थाय छे. जाणवा देखवानुं कार्य पर्यायनुं छे अने तेने जीवनुं कार्य कहेवुं ते उपचार छे. ज्यां आम वात छे त्यां रागनुं कार्य अने परनुं कार्य मारुं ए वात कयां रही? अहो! आ वात अने वाणी धन्य छे!

जीव जोगना कंपननो अने रागयुक्त उपयोगनो तो कदाचित् एटले अज्ञानभावे कर्ता छे पण परनां कार्य ते काळे जे थाय तेनो ए कर्ता नथी. जोग अने रागनो कदाचित् कर्ता छे एम केम कह्युं? तो कहे छे के अज्ञान सदाय रहेतुं नथी; ज्यां सुधी अज्ञान छे त्यां सुधी राग अने जोगनो र्क्ता छे अने ते राग अने जोगने परना कार्यना निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे एटले ते कांई परना कार्यना कर्ता छे एम अर्थ नथी. भाई! जगतनां कार्यो माराथी थाय छे एम अज्ञानी माने छे पण एम छे नहि. अहीं एनी स्पष्ट ना पाडे छे.

प्रश्नः– बधां नहि तो थोडांक तो थाय ने?

उत्तरः– ना, जराय न थाय. जोग अने रागनो अज्ञानी कर्ता थाय छे एथी आगळ बीजी कोई वात छे नहि. अहो! आ तो थोडामां (पांच लीटीमां) तो बधुं घणुं भरी दीधुं छे. आ राग-द्वेष, विषयवासनाना जे परिणाम थाय तेनो अज्ञानी कर्ता छे पण विषयभोगना काळे शरीरनी जे क्रिया थाय ते परमाणुनुं कार्य छे, जीव तेनो कर्ता नथी. परमाणुना ते कार्यकाळे जीव (द्रव्य) तेमां निमित्त पण नथी; जीव निमित्त थाय तो नित्यकर्तृत्वनो प्रसंग बनतां तेने राग-अज्ञाननो कदी नाश न थाय. अज्ञानी जे जोग अने रागनो कर्ता थाय छे तेना जोग अने रागने ते काळे जडनी जे क्रिया थाय तेनो निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे.

आ मकान बने, खुरशी बने, गाडा बने, विमान बने इत्यादि अनेक कार्यो थाय छे तेनो कर्ता कोण? तो कहे छे जडमां थतां आ कार्योनो कर्ता ते ते ज परमाणु छे;


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आत्मा तेनो कर्ता नथी; तो ए कार्यो थाय एमां निमित्त कोण छे? जे सर्व अवस्थाओमां व्यापता नथी एवा योग अने उपयोगने ते कार्यकाळे तेना निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. पण कोना योग अने उपयोग? तो कहे छे अज्ञानीना; केमके अज्ञानी योग अने रागनो कर्ता थाय छे.

जे जीव जोग अने रागनो कर्ता थाय तेना जोग अने राग परद्रव्यना कार्यना निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. भगवाननी पूजा करे त्यां आठ प्रकारनी सामग्रीनी क्रिया जडनी जडथी थाय छे. ते जडनी क्रियानो कर्ता आत्मा नथी. ते क्रियानो कर्ता आत्मा होय तो परिणाम अने परिणामी एक होवाथी तेमां आत्मा तन्मय एटले एकमेक थई जाय. वळी ते क्रियाना काळमां आत्मा तेनुं निमित्त छे एम कहो तो एम पण नथी केमके तो आत्माने शाश्वत निमित्तपणे रहेवानो प्रसंग आवे. तेथी ते वखते पूजा भक्तिना जे शुभभाव थाय ते शुभभावनो जे र्क्ता थाय छे ते अज्ञानीना शुभभाव ते क्रियामां निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. भाई! आ तो जैनदर्शननी सारभूत वात छे.

दशलक्षणी पर्वनो आजे उत्तममार्द्रवधर्मनो बीजो दिवस छे. उत्तममार्द्रवधर्म सम्यग्द्रष्टिने अने चारित्रवंत मुनिराजने होय छे. समकितीने अने श्रावकने ते अंशे होय छे अने मुनिदशामां सविशेषपणे होय छे. उत्तम पुरुषो जाति अने कुळनुं अभिमान करता नथी, शरीरनुं बळ अने रूप वगेरेनुं अभिमान करता नथी. तेमने ज्ञाननुं पण अभिमान होतुं नथी. परमां अहंबुद्धिनो-माननो त्याग तेने मार्द्रवधर्म कहे छे. आ उत्तमक्षमादि दश भेद चारित्रना छे अने ए चारित्र सम्यग्दर्शन सहित होय छे. अहाहा...! विवेकज्योति प्रगट थवाथी जेओ आत्माना निर्मळ ज्ञान अने ध्यानमां लीन रहे छे ते मुनिवरोने जगतना कया पदार्थो अभिमान करवा योग्य लागे? हुं तो आनंदमूर्ति छुं, मारी चीज सदाय निर्मान छे एम विचारी आत्माना ध्यानमां स्थित रहेनारा ते मुनिवरो उत्तममार्द्रवधर्मना स्वामी छे.

आवा चैतन्यविहारी मुनिवरोने जे शुभभाव थाय तेना ते ज्ञाता ज छे. तेओ ज्ञानने रागथी भिन्न जाणे छे. ज्ञानीने स्वनुं ज्ञान थयुं ते ज काळे रागसंबंधी पण ज्ञान थयुं छे. त्यां राग छे माटे रागनुं ज्ञान थयुं छे एम नथी. जे प्रकारनो राग आव्यो अने जे प्रकारनी शरीरनी क्रिया थई तेनुं ज्ञान अहीं पोताथी थाय छे अने त्यारे पोताना स्वपरप्रकाशक ज्ञानमां राग अने शरीरनी क्रिया निमित्त थाय छे. निमित्त एटले कर्ता नहि. ज्ञानीने स्वपरप्रकाशक ज्ञान पोताथी थाय छे अने तेमां राग अने परवस्तु निमित्त कहेवामां आवे छे.

कोई एम कहे के पचास टका निमित्तना अने पचास टका उपादानना राखो. तेने कहे छे के भाई! बन्नेना सो ए सो टका स्वतंत्र पोतपोतामां छे. निमित्त परनुं काम एक अंश पण करे नहि. आवो ज वस्तुनो स्वभाव छे.


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केवळज्ञान पण स्वपरप्रकाशक छे. केवळज्ञान पोताने जाणे छे एने लोकालोकने जाणे छे. केवळज्ञानने लोकालोक निमित्त छे; तो लोकालोक छे माटे केवळज्ञान छे एम नथी. वळी लोकालोकने केवळज्ञान निमित्त छे; तेथी केवळज्ञान छे तो लोकालोक छे एम नथी. उपादान अने निमित्त बन्ने पोतपोतामां स्वतंत्र छे. कोईनाथी कोई छे एम छे ज नहि. निमित्त छे माटे कार्य निमित्तथी थाय छे एम छे नहि.

अरे! लोको ‘निमित्त तो छे ने!’ ‘आत्मा निमित्त तो छे ने!’ एम कहीने पण कर्तापणानुं ज सेवन करता होय छे! अर्थात् पोते परद्रव्यना कार्यना कर्ता थाय छे.

जुओ, कोई हथोडीथी नाळियेर फोडे त्यां नाळियेर फूटवानी क्रिया तो पुद्गलनी छे, आत्मा ते क्रियानो कर्ता नथी. अज्ञानी ते संबंधी रागनो कर्ता छे. अज्ञानीना ते रागने नाळियेर फुटवानी क्रियानो निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे. नाळियेर हथोडीथी फूटयुं छे एम नथी, ते फूटवानी क्रियानो कर्ता तो ते नाळियेर छे. ते क्रिया समये तत्संबंधी जे रागनो कर्ता छे ते अज्ञानीना योग अने उपयोगने निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे.

त्यां ज्ञानीने ते वखते नाळियेर फूटयानुं ज्ञान पोताथी थयुं छे. ते ज्ञानमां नाळियेरनी क्रिया अने राग निमित्त छे. फूटवानी क्रियानुं ज्ञान तो पोताना उपादानथी थयुं छे. निमित्त छे माटे निमित्तनुं ज्ञान थयुं छे एम नथी. भाई! आ तो धीरज अने शान्तिथी समजवानी वात छे.

कोई समकिती कुंभार उपस्थित होय अने घडो बनवानी क्रिया थाय त्यां घडो तो माटीथी थयो छे; कुंभारना रागथी के कुंभारना आत्मद्रव्यथी घडो थयो नथी. घडो थवानी क्रिया अने तत्संबंधी जे राग थयो तेनो समकिती कुंभार कर्ता नथी, ज्ञाता ज छे. त्यां घडानुं अने रागनुं जे ज्ञान थयुं ते पोताथी थयुं छे अने घडो अने राग तेमां निमित्तमात्र छे. निमित्त छे माटे तेनुं ज्ञान थयुं छे एम नथी. अहा! घडो बनवानी क्रिया अने तत्संबंधी जे राग थयो ते ज्ञानीनुं कार्य नथी. आवी सूक्ष्म वात छे भाई!

अहीं कहे छे प्रभु! तुं एकवार सांभळ, नाथ! तारी ऋद्धि तो ज्ञान छे. राग अने परवस्तु तारी ऋद्धि नथी. आवुं जेने भान थाय तेने कमजोरीथी राग आवे पण ते रागनो कर्ता नथी, ज्ञाता छे. ते समये पोताने अने रागने जाणतुं स्वपरप्रकाशक ज्ञान पोताथी थाय छे अने त्यारे राग तेमां निमित्त छे. प्रभु! तारुं ज्ञान सत्पणे कयारे रही शके? के रागथी अने परथी भिन्न पडतां पोताना सदा निर्मळ चैतन्य-स्वभावनुं ज्ञान थाय त्यारे ज्ञान सत्पणे रही शके छे. (मतलब के स्वभावनुं ज्ञान थतां ज्ञान ज्ञानथी पोताथी छे एम साचुं ज्ञान थाय छे). ते ज्ञान पोताथी स्वपरने जाणतुं जे प्रगटयुं छे तेमां राग अने परवस्तु निमित्त कहेवामां आवे छे.

आचार्यदेवे कर्तानी व्याख्या बहु स्पष्ट करी छे. परद्रव्यनो कर्ता कोई ईश्वर नथी


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अने परद्रव्यनो कर्ता तुं (आत्मा) पण नहि. परना परिणाम परथी थाय तेनो तुं कर्ता नथी अने तारो आत्मा एमां निमित्त पण नथी. त्यारे छे केवी रीते? ते कार्यकाळे रागनो जे कर्ता थाय छे एवा अज्ञानीना राग अने जोगने एनो निमित्तकर्ता कहेवामां आवे छे.

योग अने उपयोगनो तो आत्मा पण कर्ता कदाचित् भले हो पण परद्रव्यस्वरूप कर्मनो कर्ता तो (निमित्तपणे पण कदी) नथी.

भावार्थः– योग एटले (मन-वचन-कायना निमित्तवाळुं) आत्मप्रदेशोनुं चलन अने उपयोग एटले ज्ञाननुं कषायो साथे उपयुक्त थवुं-जोडावुं. आ योग अने उपयोग घटादिक तथा क्रोधादिकने निमित्त छे तेथी तेमने तो घटादिक तथा क्रोधादिकना निमित्तकर्ता कहेवाय परंतु आत्माने तेमनो कर्ता न कहेवाय. आत्माने संसार अवस्थामां अज्ञानथी मात्र योग-उपयोगनो कर्ता कही शकाय.

अहीं तात्पर्य आ प्रमाणे जाणवुंः-द्रव्यद्रष्टिथी तो कोई द्रव्य अन्य कोई द्रव्यनुं कर्ता नथी; परंतु पर्यायद्रष्टिथी कोई द्रव्यनो पर्याय कोई वखते कोई अन्यद्रव्यना पर्यायने निमित्त थाय छे तेथी आ अपेक्षाए एक द्रव्यना परिणाम अन्यद्रव्यना परिणामना निमित्तकर्ता कहेवाय छे. परमार्थे द्रव्य पोताना ज परिणामनुं कर्ता छे, अन्यना परिणामनुं अन्यद्रव्य कर्ता नथी.

गाथा १०० पुरी थई.

[प्रवचन नं. १६८ शेष थी १७१ चालु * दिनांक २७-८-७६ थी ३१-८-७६]

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ज्ञानी ज्ञानस्यैव कर्ता स्यात्–

जे पोग्गलदव्वाणं परिणामा होंति णाणआवरणा।
ण करेदि ताणि आदा जो जाणदि सो हवदि णाणी।। १०१ ।।
ये पुद्गलद्रव्याणां परिणामा भवन्ति ज्ञानावरणानि।
न करोति तान्यात्मा यो जानाति स भवति ज्ञानी।। १०१ ।।

हवे ज्ञानी ज्ञाननो ज कर्ता छे एम कहे छेः-

ज्ञानावरणआदिक जे पुद्गल तणा परिणाम छे,
करतो न आत्मा तेमने, जे जाणतो ते ज्ञानी छे. १०१.

गाथार्थः– [ये] जे [ज्ञानावरणानि] ज्ञानावरणादिक [पुद्गलद्रव्याणां] पुद्गलद्रव्योना [परिणामाः] परिणाम [भवन्ति] छे [तानि] तेमने [यः आत्मा] जे आत्मा [न करोति] करतो नथी परंतु [जानाति] जाणे छे [सः] ते [ज्ञानी] ज्ञानी [भवति] छे.

टीकाः– जेवी रीते दहीं-दूध के जेओ गोरस वडे व्याप्त थईने (-व्यपाईने) ऊपजता गोरसना खाटा-मीठा परिणाम छे, तेमने गोरसनो तटस्थ जोनार पुरुष करतो नथी, तेवी रीते ज्ञानावरण इत्यादि के जेओ खरेखर पुद्गलद्रव्य वडे व्याप्त थईने ऊपजता पुद्गलद्रव्यना परिणाम छे, तेमने ज्ञानी करतो नथी; परंतु जेवी रीते ते गोरसनो जोनार, पोताथी (जोनारथी) व्याप्त थईने ऊपजतुं जे गोरस-परिणामनुं दर्शन (जोवापणुं) तेमां व्यापीने, मात्र जुए ज छे, तेवी रीते ज्ञानी, पोताथी (ज्ञानीथी) व्याप्त थईने ऊपजतुं, पुद्गलद्रव्य-परिणाम जेनुं निमित्त छे एवुं जे ज्ञान तेमां व्यापीने, मात्र जाणे ज छे. आ रीते ज्ञानी ज्ञाननो ज कर्ता छे.

वळी एवी ज रीते ‘ज्ञानावरण’ पद पलटीने कर्म-सूत्रनुं (कर्मनी गाथानुं) विभाग पाडीने कथन करवाथी दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र अने अंतरायनां सात सूत्रो तथा तेमनी साथे मोह, राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, नोकर्म, मन, वचन, काय, श्रोत्र, चक्षु, ध्राण, रसन अने स्पर्शननां सोळ सूत्रो व्याख्यानरूप करवां; अने आ उपदेशथी बीजां पण विचारवां.

* * *

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हवे ज्ञानी ज्ञाननो ज कर्ता छे एम कहे छेः-

* गाथा १०१ः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘जेवी रीते दहीं-दूध के जेओ गोरस वडे व्याप्त थईने (-व्यपाईने) ऊपजता गोरसना खाटा-मीठा परिणाम छे, तेमने गोरसनो तटस्थ जोनार पुरुष करतो नथी.....’

गाथा बहु सरस छे. अनंतकाळमां जे कर्युं नथी एनी आ अपूर्व वात छे. भाई! शांतिथी धीरज राखीने सांभळवुं. अहीं द्रष्टांत आप्युं छे.

गायना दूधना रसनो जे सामान्यभाव छे ते गोरस छे. गोरस पोते व्यापीने दहीं- दूधना जे खाटा-मीठा स्वरूपे परिणाम छे तेरूपे ऊपजे छे, परिणमे छे. दहीं-दूधना जे खाटा- मीठा परिणाम छे ते गोरसनुं कार्य (विशेष) छे. तेमने गोरसनो तटस्थ जोनार पुरुष करतो नथी. दूध मेळवे त्यां दूधनुं दहीं थाय, मलाई थाय, माखण थाय इत्यादि-ए बधी गोरसनी अवस्थाओ छे; ते अवस्थाओमां-खाटी-मीठी अवस्थाओमां गोरस व्याप्त छे. ए गोरसनो तटस्थ जोनार पुरुष ते अवस्थाओनो कर्ता नथी. मात्र तेनो जोनार छे. खाटा-मीठा परिणामनो कर्ता गोरस छे, तटस्थ (समकिती) पुरुष तेनो कर्ता नथी, देखनारो ज छे.

हवे आवी वात समजवा जीवे अनंतकाळमां फुरसद लीधी नथी. भाई! आ जेटलो समय जाय छे ते मनुष्यजीवनमांथी ओछो थतो जाय छे. आ मनुष्यजीवनमां समजण न करी तो आवो अवसर कयारे मळशे भाई! स्त्रीने, पुत्रने, कुटुंबने राजी राखवामां आखी जिंदगी चाली जाय पण अंदर वस्तु सच्चिदानंदस्वरूप भगवान आत्मा पडयो छे तेनी द्रष्टि न करी तो मरीने तुं कयां जईश भाई? जेम वंटोळिये चढेलुं तणखलुं कयां जईने पडशे ते निश्चित नथी तेम आ संसारमां आत्माना भान विना संसारमां रखडता जीवो मरीने कयांय कागडे, कुतरे, कंथवे,.. ....चाल्या जशे!

जेम नदीना किनारे कोई पुरुष स्थिर ऊभो छे ते पाणीना प्रवाहना लोढना लोढ वही जाय तेनो ते मात्र जोनारो छे; जे प्रवाह वही रह्यो होय तेनो ए कर्ता नथी. तेम खाटा-मीठा गोरसना जे परिणाम थाय तेनो तटस्थ पुरुष कर्ता नथी, मात्र जोनारो ज छे. अहीं कहे छे- ‘तेवी रीते ज्ञानावरण इत्यादि के जेओ खरेखर पुद्गलद्रव्य वडे व्याप्त थईने उपजता पुद्गलद्रव्यना परिणाम छे, तेमने ज्ञानी करतो नथी.’

ज्ञानावरणादि कर्मनी पर्याय पुद्गलद्रव्य वडे व्याप्त थईने उपजती थकी पुद्गलना परिणाम छे. ज्ञानी तेने करतो नथी. आत्मा तेमां व्याप्त थईने ते पुद्गलद्रव्यनी पर्यायने करतो नथी. ज्ञानावरणादि कर्म पुद्गलद्रव्यनी पर्याय छे एम जाणतो ज्ञानी तेने करतो नथी. अज्ञानी रागपरिणामनो कर्ता थाय छे माटे तेना रागादि परिणाम