PDF/HTML Page 1221 of 4199
single page version
उपर स्थिर चोंटी छे. पण पूर्णदशा न प्रगटे त्यांसुधी अस्थानना रागथी बचवा तेमने शुभराग आवे छे पण ते शुभभाव बंधनुं कारण छे एम ते जाणे छे. जो कोई तेने बंधनुं कारण न मानतां मोक्षनुं कारण माने तो ते मिथ्याश्रद्धान छे, अज्ञान छे.
अहीं घणी गंभीर वात करी छे. मूळ सूत्रमां तो एम लीधुं छे के जीव नवा बंधमां निमित्तभूत थाय छे. परंतु टीकामां आचार्यदेवे एम कह्युं के-आ लोकमां खरेखर आत्मा स्वभावथी पौद्गलिककर्मने निमित्तभूत नथी. आत्मानो स्वभाव ज्ञाताद्रष्टा छे. स्वभावथी आत्मा नवां कर्म बंधाय एमां निमित्तभूत नथी. स्वभावथी आत्मा निमित्तभूत होय तो त्रणे काळ तेने विकार करवो पडे. कर्मबंधनमां निमित्तपणे सदाय जीवने हाजर रहेवुं पडे. तेने नित्यकर्तृत्वनो प्रसंग बनतां मुक्ति थाय ज नहि.
दया, दान आदिना शुभभाव आवे तेने ज्ञानी बंधनुं कारण जाणे छे, तेने तेओ धर्म के धर्मनुं कारण मानता नथी. अहीं ए वात पण लीधी नथी. अहीं तो एम कहे छे के ज्ञानीने नवो बंध थतो ज नथी, केमके ज्ञानीनी द्रष्टि पोताना ज्ञानानंद स्वभाव उपर रहेली छे अने तेथी तेने स्वभावनी परिणति उत्पन्न थाय छे. जे रागना परिणाम थाय ते ज्ञानीनुं कार्य नथी. तेथी ज्ञानी नवा कर्मबंधनमां निमित्त पण नथी. अहो! खूब गंभीर व्याख्या करी छे.
अरे भाई! आ मनुष्यजीवन एम ने एम चाल्युं जाय छे. भगवान कहे छे के आ त्रसमां रहेवानी स्थिति बे हजार सागरनी छे. बे इन्द्रियथी पंचेन्द्रियनी अवस्थामां रहेवानो काळ बे हजार सागर छे. तेमां जो आत्मानुं ज्ञान अने सम्यग्दर्शन प्रगट न कर्यां तो आ त्रसनी स्थिति पूरी करीने निगोदमां चाल्यो जईश. अरे भगवान! तने आवो अवसर मळ्यो अने विकारथी रहित, व्यवहारथी रहित, बंध अने बंधना निमित्तपणाथी रहित एवा शुद्ध चिदानंदस्वरूप भगवान आत्मानुं भान प्रगट न कर्युं तो चार गतिनुं भ्रमण करतां करतां निगोदमां-दुःखना समुद्रमां चाल्यो जईश.
नवां कर्म जे बंधाय ते दशा तो जडकर्मथी थाय छे अने तेमां उपादानपणे कर्मना परमाणु वर्ते छे. तेमां निमित्त कोण छे? तो जे विकारीभाव थाय छे ते नवा कर्मबंधनमां निमित्त छे, पण चैतन्यरत्नाकर ज्ञाताद्रष्टा अने आनंदना स्वभावथी भरेलो चिदानंदघन प्रभु आत्मा विकारथी शून्य छे. तेथी ज्ञायकमूर्ति प्रभु आत्मा नवा कर्मबंधनमां निमित्तभूत नथी. भगवान आत्मा अतीन्द्रिय आनंदथी भरेलो चैतन्यमहासागर छे. तेमां दया, दान आदि विकारना विकल्प नथी तो ते नवा कर्मबंधनमां निमित्तभूत केम थाय? आत्मा स्वभावथी नवा कर्मबंधनमां निमित्त छे ज नहि.
ज्ञान-आनंदथी पूर्ण अने रागथी खाली एवी चीज शुद्ध ज्ञायकमूर्ति भगवान आत्मा छे. आवा आत्मानुं जेने भान थयुं छे ते समकिती ज्ञानी छे. समकितीने दया,
PDF/HTML Page 1222 of 4199
single page version
दान, व्रत अने व्यवहाररत्नत्रयना विकल्प आवे छे पण ते ए विकल्पने पोताना शुद्ध चैतन्यस्वरूपथी भिन्न जाणे छे. समकितीने जे स्वभावनी द्रष्टि थई छे ते द्रष्टिमां रागादि विकारनो अभाव छे अने तेथी जेम स्वभाव नवा कर्मबंधनमां निमित्तभूत नथी तेम स्वभावनी जेने द्रष्टि थई छे एवो ज्ञानी नवा कर्मबंधनमां निमित्तभूत नथी. समकितीने बंध थतो नथी. (जे अल्प बंध थाय ते अहीं गणतरीमां नथी.) माटे ते बंधमां निमित्त केम थाय? बंधमां निमित्त तो विकारी भाव छे अने ते विकारी भाव आत्मस्वभाव अने आत्मस्वभावनी द्रष्टिमां छे ज नहि. अहो! अद्भुत वात छे!
नव ग्रैवेयकना नव देवलोक छे. ते एकेक देवलोकमां अनंतवार जई आव्यो एवा भाव जीवे कर्या छे. शुकललेश्याना परिणाम करीने जीव नव ग्रैवेयक जाय छे. अत्यारे तो एवा शुभभाव पण नथी. जुओ, शुकललेश्या अने शुकलध्यान बे भिन्न चीज छे. शुकलध्यान तो भावलिंगी मुनिराजने आठमा गुणस्थानथी होय छे अने शुकललेश्याना परिणाम तो कोई अभवि जीवने पण थाय छे. शुकललेश्याना परिणाम करीने जीव नवमी ग्रैवेयक जाय छे पण शुभभावने ते पोताना माने छे अने शुभभावथी धर्म थाय एम माने छे तेथी ते मिथ्याद्रष्टि छे. शुभभाव राग छे अने आत्मानो स्वभाव वीतराग छे. राग अने स्वभावने एक माननार भले नवमी ग्रैवेयक जाय पण जे वडे जन्ममरणनो नाश थाय एवी क्रिया एनी पासे नथी तेथी ते चतुर्गतिसंसारमां रखडे ज छे.
भगवान आत्मा परनो तो कर्ता नथी पण परनां जे कार्य थाय तेमां निमित्त पण नथी. द्रव्यस्वभाव जो परना कार्यमां निमित्त थाय तो ज्यां ज्यां परनां कार्य थाय त्यां त्यां आत्माने सदा हाजर रहेवुं पडे. तेथी रागथी भिन्न पडीने तेने कदीय स्वभावनुं लक्ष थाय नहि. आ वात गाथा १००मां आवी गई छे. तेथी ए सिद्ध छे के वास्तवमां आत्मा स्वभावथी नवा कर्मबंधनमां निमित्त नथी.
हवे कहे छे के स्वभावथी आत्मा नवा कर्मबंधनमां निमित्त न होवा छतां अनादि अज्ञानना कारणे पौद्गलिक कर्मने निमित्तरूप थता एवा अज्ञानभावे परिणमतो होवाथी निमित्तभूत थतां, पौद्गलिक कर्म उत्पन्न थाय छे.
जुओ, पोताना शुद्ध चैतन्यस्वरूपनुं भान नथी ते जीव दया, दानना परिणामनो हुं कर्ता छुं एवुं माने छे. ते अज्ञान एने अनादिनुं छे. ते अज्ञानना कारणे पौद्गलिक कर्मने निमित्तरूप थता एवा अज्ञानभावे, विकाररूपे परिणमतो होवाथी पौद्गलिक कर्म उत्पन्न थाय छे. आ नवां कर्मबंधन जे थाय तेमां अज्ञानीना पुण्य-पापना विकारी भाव निमित्त थाय छे. जडकर्मनी प्रकृत्ति बंधाय ते तो कर्मना कारणे बंधाय छे. तेमां अज्ञानीना रागादि भाव निमित्त छे.
PDF/HTML Page 1223 of 4199
single page version
भाई! समयसारमां घणी गंभीरता भरी छे. आ तो जगतचक्षु छे. भगवाननी साक्षात् दिव्यध्वनिमांथी आवेलुं आ शास्त्र छे. संवत १९७८नी सालमां ज्यारे समयसार हाथमां आव्युं त्यारे ते वांचीने एम थयुं हतुं के-‘‘आ शास्त्र तो अशरीरी थवानी चीज छे’’ आनो स्वाध्याय खूब धीरज राखीने रोज करवो जोईए.
त्रणलोकना नाथ सर्वज्ञ परमेश्वरने इच्छा विना दिव्यध्वनि नीकळे छे. महाविदेहमां साक्षात् भगवान बिराजे छे. त्यां कुंदकुंदाचार्यदेव वाणी सांभळवा पधारेला. सांभळवानो विकल्प हतो पण विकल्पनुं लक्ष न हतुं; अंदर पोताना शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूपनुं लक्ष हतुं. वाणी सांभळवानो अने धर्मोपदेशनो ज्ञानीने विकल्प आवे छे पण ते विकल्पना ज्ञानी कर्ता थता नथी, ज्ञाता ज रहे छे. अहाहा...! आत्मा शुद्ध चैतन्यमय प्रभु छे, शुभराग ज्ञेय छे अने ज्ञानी तेना ज्ञाता ज छे, कर्ता नथी. तेथी जेम आत्मा स्वभावथी कर्मबंधनमां निमित्त नथी तेम ज्ञानी पण नवा कर्मबंधनमां निमित्त नथी.
अहाहा...! भगवान आत्मा निरंजन निर्विकार शुद्ध चैतन्यघन प्रभु छे. तेमां शरीर, मन, वाणी, कर्म, नोकर्म तो नथी; एमां शुभाशुभभावरूप विकार पण नथी. तेथी आत्मा स्वभावथी कर्मबंधननुं निमित्त नथी. अने शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्माना स्वसंवेदनपूर्वक जेने स्वानुभव थयो छे ते समकितीने नवा कर्मबंधनमां निमित्त थाय ए राग थतो नथी. अल्प राग जे थाय छे तेने (द्रष्टिना जोरमां) अहीं गणवामां आव्यो नथी. परंतु अज्ञानीने पोताना शुद्ध चैतन्यस्वरूपनुं भान नथी तेथी ते अज्ञानीनो रागभाव नवा बंधनमां निमित्त कहेवामां आवे छे.
नवां कर्मनो बंध थाय ते आत्मा करतो नथी. कर्मबंधन थाय ए तो पुद्गलनी पर्याय छे अने अज्ञानीना अज्ञानरूप परिणाम तेमां निमित्त कहेवामां आवे छे. आत्म-द्रव्य तेमां निमित्त नथी अने द्रव्यद्रष्टिवंत ज्ञानी पण तेमां निमित्त नथी. अखंडानंद-स्वरूप भगवान आत्मानुं आकर्षण थवाथी ज्ञानीने बहारनी सर्व चीजनुं आकर्षण छूटी गयुं छे. चैतन्यचमत्कारने जोया पछी धर्मीने बहार कयांय चमत्कार भासतो नथी. स्वर्गना इन्द्रनो अपार वैभव हो, धर्मी जीवने तेना तरफ लक्ष नथी; धर्मीने ए तुच्छ भासे छे. विषयनी वासनानो जे राग थाय ते धर्मीने झेर समान भासे छे. अहाहा...! हुं तो अतीन्द्रिय आनंदनो कंद प्रभु परमात्मस्वरूप छुं एवुं जेने पर्यायमां भान थयुं ते ज्ञानी नवा कर्मबंधनमां निमित्त नथी. नवां कर्म ज्ञानीने बंधातां नथी एम अहीं कहे छे.
अहो! शुं दैवी टीका छे! जाणे अमृतनां झरणां झरे छे! अन्यत्र तो आवी टीका नथी पण दिगंबरमांय आवी गंभीर टीका बीजा शास्त्रमां नथी.
९६ मी गाथामां आवी गयुं छे के आ शरीर मृतक कलेवर छे. अमृतसागर प्रभु
PDF/HTML Page 1224 of 4199
single page version
आत्मा मृतक कलेवरमां मूर्छाई गयो छे. ‘‘पोतानो केवळ बोध (-ज्ञान) ढंकायेल होवाथी अने मृतक कलेवर (शरीर) वडे परम अमृतरूप विज्ञानघन (पोते) मूर्छित थयो होवाथी ते प्रकारना भावनो कर्ता प्रतिभासे छे.’’ त्रणलोकनो नाथ अमृतनो सागर अंदर छलोछल भरेलो छे. तेने भूलीने मृतक कलेवरमां मूर्छित थयो छे एवो अज्ञानी जीव पोताना शुभाशुभ भावोनो कर्ता प्रतिभासे छे. शरीर छे ए तो हाड-मास-चामडाथी बनेलुं मृतक कलेवर छे. जीव नीकळ्या पछी मृतक एम नहि; हमणां ज ते मृतक कलेवर छे. आत्मा आ मृतक कलेवरमां मूर्छाई गयो छे. तेथी शरीर हुं छुं, शरीरनी क्रिया हुं करुं छुं एवुं माने छे. ते अज्ञानी जीव अज्ञानना कारणे विकारनो कर्ता थाय छे. आ अज्ञानीनो विकार (पुण्यपापना भाव) नवा कर्मबंधनमां निमित्त थाय छे.
केटलाक कहे छे के समन्वय करो तो बधुं एक थई जाय. अरे भाई! आ शुद्ध तत्त्वनी सत्य वातनो जगतना बीजा कोई पंथ साथे समन्वय थई शके एम नथी. जेम नेतरनी छालनो सूतरना दोरा साथे समन्वय न थाय तेम ज्ञान अने अज्ञाननो कदीय समन्वय न थाय, बेनो कदीय मेळ न खाय. प्रभु! मान के न मान; सत्य आ छे. सत्य मान्या विना तारो छूटकारो नहि थाय. भाई! आ तारा हितनो मार्ग छे; अने रागथी लाभ थाय एम मानवुं ए अहितनो मार्ग छे, अज्ञान छे अने तेमां तने मोटुं नुकशान छे.
शास्त्रमां त्यां सुधी कह्युं छे के दया, दान, हिंसा वगेरे शुभ-अशुभ भावनी जे रचना करे छे ते नपुंसक छे. ४७ शक्तिमां एक वीर्यशक्तिनुं वर्णन छे. त्यां कह्युं छे के पोतानी वीतराग निर्मळ परिणतिनी रचना करे ते वीर्यशक्ति छे. शुभाशुभ रागनी रचना करे ते वीर्यशक्ति नथी. शुभाशुभ रागनी रचना करे ए तो नपुंसक छे. जेम नपुंसकने पुत्रनी प्राप्ति थती नथी तेम शुभरागनी परिणतिथी निर्मळ परिणति प्रगट थती नथी. पुण्यनी रुचिवाळा जीवो नपुंसक-हीजडा जेवा छे केमके तेओ वीतराग-भावरूप धर्म प्रगट करी शक्ता नथी. समयसार गाथा ३९-४३ नी टीकामां तेमने नपुंसक कह्या छे अने पुण्य-पाप अधिकारनी गाथा १प४ मां नामर्द्र कह्या छे. संस्कृतमां जे ‘कलीब’ शब्द छे एनो अर्थ नपुंसक थाय छे.
पोताना आनंदना नाथने भूलीने जे पुण्य-परिणाममां रोकाई जाय अने रागनी रचना करे एवा अज्ञानीनो राग नवा कर्मबंधनमां निमित्त छे. ज्ञानी तो शुद्ध परिणतिनी रचना करे छे. राग आवे छे तेने गौण करीने ज्ञानी निर्मळ परिणतिने रचे छे. तेथी नवां कर्म ज्ञानीने बंधातां नथी. माटे नवा कर्मबंधनमां ज्ञानी निमित्त नथी.
अज्ञानी अज्ञानभावे परिणमतो होवाथी तेनो ते भाव निमित्तभूत थतां पौद्गलिक कर्म उत्पन्न थाय छे. अज्ञानीना पुण्य-पापना भाव नवा कर्मबंधनमां निमित्त थाय छे.
PDF/HTML Page 1225 of 4199
single page version
तेथी ‘पौद्गलिक कर्म आत्माए कर्युं’ एवो निर्विकल्प विज्ञानस्वभावथी भ्रष्ट, विकल्प-परायण अज्ञानीओनो विकल्प छे; ते विकल्प उपचार ज छे, परमार्थ नथी.
आत्मा रागरहित निर्विकल्प विज्ञानघनस्वभावरूप छे. आवा निजस्वभावथी अज्ञानी भ्रष्ट छे. अज्ञानी विकल्पपरायण एटले विकल्पमां तत्पर छे, स्वभावमां तत्पर नथी. विकल्पमां तत्पर एवो अज्ञानी जे शुभाशुभ विकल्प करे छे ते विकल्प नवा कर्मबंधनमां निमित्त थाय छे. तेथी अज्ञानी माने छे के हुं कर्मबंधननो उपचारथी-व्यवहारथी कर्ता छुं. आवो उपचार अज्ञानीने लागु पडे छे. स्वभावने भूलीने रागमां तत्पर एवो अज्ञानी जे विकल्प करे छे ते नवा कर्मबंधनमां निमित्त छे तेथी आत्माथी कर्म बंधाणुं एम उपचारथी कहेवामां आवे छे; ते परमार्थ नथी.
परनी, जडनी अवस्था तो परथी एनाथी थाय छे. तेने कोण करे? शुभभाव आवे पण परनी क्रिया ते शुभभावथी थाय छे एम नथी. आ रथयात्रामां भगवान बिराजमान करे अने रथने चलावे इत्यादि परनी क्रिया आत्मा करतो नथी. भाई! आ वीतरागनो मार्ग तद्न जुदो छे. तेनुं स्वरूप समजे तेने भव रहे नहि एवो आ मार्ग छे. एक बे भव रहे ए तो ज्ञातानुं ज्ञेय छे. अहीं कहे छे के अज्ञानीनो राग नवा कर्मबंधनमां निमित्त छे तेथी कर्म आत्माए बांध्युं एवो अज्ञानीओनो जे विकल्प छे ते उपचार ज छे; परमार्थ नथी.
‘कदाचित् थता निमित्तनैमित्तिकभावमां कर्ताकर्मभाव कहेवो ते उपचार छे.’ कदाचित् एटले अज्ञानपणे अज्ञानी जीव विकारनो कर्ता छे तेथी बंधनमां तेना विकारने निमित्त कहेवामां आवे छे. ते निमित्तनैमित्तिकभावमां कर्ताकर्मभाव कहेवो ते उपचार छे, अज्ञानी रागनो कर्ता छे. ते राग परनी क्रियामां निमित्त छे. त्यां अज्ञानी पोताने परनो कर्ता माने छे ते उपचार छे. परमार्थे आत्मा परनो कर्ता छे ज नहि.
PDF/HTML Page 1226 of 4199
single page version
कथमिति चेत्–
ववहारेण तह कदं णाणावरणादि जीवेण।। १०६ ।।
व्यवहारेण तथा कृतं ज्ञानावरणादि जीवेन।। १०६ ।।
हवे, ए उपचार कई रीते छे ते द्रष्टांतथी कहे छेः-
एम ज कर्यां व्यवहारथी ज्ञानावरण आदि जीवे. १०६.
गाथार्थः– [योधः] योद्धाओ वडे [युद्ध कृते] युद्ध करवामां आवतां, ‘[राज्ञा कृतम्] राजाए युद्ध कर्युं’ [इति] एम [लोकः] लोक [जल्पते] (व्यवहारथी) कहे छे [तथा] तेवी रीते ‘[ज्ञानावरणादि] ज्ञानावरणादि कर्म [जीवेन कृतं] जीवे कर्युं’ [व्यवहारेण] एम व्यवहारथी कहेवाय छे.
टीकाः– जेम युद्धपरिणामे पोते परिणमता एवा योद्धाओ वडे युद्ध करवामां आवतां, युद्धपरिणामे पोते नहि परिणमता एवा राजा विषे ‘राजाए युद्ध कर्युं’ एवो उपचार छे, परमार्थ नथी; तेम ज्ञानावरणादिकर्मपरिणामे पोते परिणमता एवा पुद्गलद्रव्य वडे ज्ञानावरणादि कर्म करवामां आवतां, ज्ञानावरणादिकर्मपरिणामे पोते नहि परिणमता एवा आत्मा विषे ‘आत्माए ज्ञानावरणादि कर्म कर्युं’ एवो उपचार छे, परमार्थ नथी.
भावार्थः– योद्धाओए युद्ध कर्युं होवा छतां ‘राजाए युद्ध कर्युं’ एम उपचारथी कहेवाय छे तेम पुद्गलद्रव्ये ज्ञानावरणादि कर्म कर्युं होवा छतां ‘जीवे कर्म कर्युं’ एम उपचारथी कहेवाय छे.
हवे, ए उपचार कई रीते छे ते द्रष्टांतथी कहे छेः-
‘जेम युद्धपरिणामे पोते परिणमता एवा योद्धाओ वडे युद्ध करवामां आवतां,
PDF/HTML Page 1227 of 4199
single page version
युद्धपरिणामे पोते नहि परिणमता एवा राजा विषे ‘‘राजाए युद्ध कर्युं’’ एवो उपचार छे, परमार्थ नथी;...’
एक द्रव्य बीजा द्रव्यनी पर्यायने करी शक्तुं नथी ए वात सिद्ध करे छे. माटीमय घडारूपी कार्य माटी करे छे, कुंभार तेने करतो नथी. तेम आत्मा राग-द्वेष, पुण्य-पापना भाव करे त्यारे जे कर्म बंधाय ते जीवना भावथी बंधाता नथी. जडकर्मनी अवस्था जड परमाणु द्रव्यथी थई छे अने तेमां जीवना विकारी भाव निमित्त कहेवामां आवे छे.
प्लास्टीकना कारखानामां जे माल तैयार थाय ते क्रिया परमाणुओथी थाय छे. एकेक परमाणु पोते पोताथी स्वतंत्रपणे परिणमे छे. ते क्रियाने अन्य परमाणु के आत्मा करे एम बनतुं नथी. ते क्रियाना काळमां जीव पोताना विकारी परिणामने करे छे, पण जडनी क्रिया जे थाय तेने आत्मा करतो नथी. जेटला प्रमाणमां जीव रागद्वेषादि भाव करे तेटला प्रमाणमां नवुं कर्म बंधाय छे छतां जे कर्म बंधाय छे ते क्रियानो आत्मा कर्ता नथी. पोताना रागद्वेषादि विकारी भावनो ते अज्ञानी जीव कर्ता हो, पण परना कार्यनो ते जीव कर्ता नथी.
धर्मी जीव तो एम जाणे छे के-हुं तो शुद्ध चैतन्यस्वरूप छुं जेवुं सिद्ध परमात्मानुं स्वरूप छे तेवुं ज मारुं शुद्ध चैतन्यस्वरूप छे. अहाहा...! ‘सिद्ध समान सदा पद मेरो’-आवी शुद्ध स्वरूपनी द्रष्टि थवाथी ज्ञानीने पंचपरमेष्ठीनी भक्तिनो जे राग आवे छे ते रागनो ते कर्ता थतो नथी. भगवाननी भक्तिनो राग ते अनर्थनुं कारण छे एम ते जाणे छे. पंचास्तिकाय गाथा १६८मां कह्युं छे के-‘‘आ, रागलव-मूलक दोष परंपरानुं निरूपण छे. (अर्थात् अल्प राग जेनुं मूळ छे एवी दोषोनी संततिनुं अहीं कथन छे.) अहीं (आ लोकमां) खरेखर अर्हंतादि प्रत्येनी भक्ति पण रागपरिणति विना होती नथी. रागादिपरिणति होतां, आत्मा बुद्धिप्रसार विनानो (चित्तना भ्रमणथी रहित) पोताने कोईपण रीते राखी शकतो नथी; अने बुद्धिप्रसार होतां (-चित्तनुं भ्रमण होतां) शुभ वा अशुभ कर्मनो निरोध होतो नथी. माटे, आ अनर्थसंततिनुं मूळ रागरूप कलेशनो विलास ज छे.’’
शुभराग करतां करतां मोक्ष थाय, परंपरा मोक्ष थाय ए वात छे ज नहि. राग तो विकार छे, आस्रव छे, झेर छे. मुनिवरोने पंचमहाव्रतनो शुभराग आवे छे पण ते शुभराग अनर्थनुं मूळ छे एम तेओ जाणे छे. वळी त्यां पंचास्तिकाय गाथा १७०मां कह्युं छे के-‘‘आ, रागरूप कलेशनो निःशेष नाश करवा योग्य होवानुं निरूपण छे.’’ मतलब के राग राखवा लायक नथी पण संपूर्णपणे, जराय बाकी न रहे एवो नाश करवा योग्य छे.
प्रश्नः– तो पंचास्तिकाय गाथा १७०नी टीकामां अर्हंतनी भक्ति आदि शुभ-रागने परंपरा मोक्षनो हेतु कह्यो छे ने?
PDF/HTML Page 1228 of 4199
single page version
उत्तरः– हा, त्यां कह्युं छे के-‘‘अहीं, अर्हंतादिनी भक्तिरूप परसमयप्रवृत्तिमां साक्षात् मोक्षहेतुपणानो अभाव होवा छतां परंपराए मोक्षहेतुपणानो सद्भाव दर्शाव्यो छे.’’ भाई! आ जे कथन छे ते आरोपथी करवामां आव्युं छे एम समजवुं. आवो कथंचित् मोक्षहेतुत्वनो आरोप पण ज्ञानीने ज वर्तता भक्ति आदिरूप शुभभावोमां करी शकाय छे. अज्ञानीने तो शुद्धिनो अंशमात्र पण परिणमनमां नहि होवाथी यथार्थ मोक्षहेतु बीलकुल प्रगटयो ज नथी, विद्यमान ज नथी. तो पछी तेना भक्ति आदिरूप शुभभावोमां आरोप कोनो करवो? ज्ञानीने पुण्यभावथी देवलोकादि जे मळे ते कलेश छे, दाह छे; ते कांई सुख नथी. तेनो ज्यारे ते अभाव करशे त्यारे परमसुखस्वरूप मोक्ष पामशे.
जेम हलवो, साकर, घी अने आटामांथी बने छे तेम मोक्षपदनी प्राप्ति शुद्ध ज्ञान- दर्शन-चारित्रथी थाय छे. पूर्णानंदनो नाथ चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मानी द्रष्टि थवी ते सम्यग्दर्शन छे, शुद्ध आत्मतत्त्वने स्पर्शीने जे ज्ञान थाय ते सम्यग्ज्ञान छे, स्वरूपमां निमग्न थईने तेमां ज लीन रहेवुं, अतीन्द्रिय आनंदनुं भोजन करवुं ते चारित्र छे. आ मोक्षनो मार्ग छे.
सोगानीजी सौ प्रथम आव्या त्यारे आटलुं ज कहेलुं के परलक्षे जे विकल्प उठे छे तेनाथी अंदर भगवान भिन्न छे. आ वात सांभळीने तेमने अंदर स्व तरफ ढळी जवानी धून चढी गई. समितिना ओरडामां उंडुं मंथन अने ध्यान करतां तेमने सम्यग्दर्शन प्रगट थई गयुं. तेओ अल्प भवमां मोक्ष जशे. तेओए द्रव्यद्रष्टि प्रकाशमां लख्युं छे के-शुभराग आवे छे ते धधकती भठ्ठी समान भासे छे. अहाहा...! निर्मळानंदस्वरूप पोते छे एवुं जेने भान थयुं तेने भक्ति आदिना शुभभावनो राग कष्टरूप लागे छे. जेम साकरना स्वाद सामे अफीणनो स्वाद कडवो लागे छे तेम अनुभव थतां अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद जेने आव्यो तेने शुभरागनो स्वाद कडवो लागे छे. जे भावथी तीर्थंकरगोत्र बंधाय ते शुभभाव धर्मीने कलेशरूप, दुःखरूप भासे छे.
अज्ञानीना शुभभाव अनर्थनुं कारण छे; ते परंपरा मोक्षनुं कारण नथी. सम्यग्द्रष्टिना शुभभावने उपचारथी मोक्षनुं परंपरा कारण कहेवाय छे, केमके रागना फळमां ते स्वर्गना कलेश भोगवी, मनुष्यगतिमां आवी स्वरूपमां ठरवानो उग्र पुरुषार्थ करीने मोक्षपद पामशे. आ प्रमाणे धर्मी जीवना शुभरागने मोक्षनो परंपरा हेतु उपचारथी ज कहेवामां आवे छे.
अहीं कहे छे के-युद्धना परिणामे योद्धा परिणमे छे; राजा युद्धना परिणामे परिणमतो नथी. राजा तो आदेश दई एककोर बेठो छे. आदेशना निमित्ते युद्धना भावे परिणमेला योद्धाओ युद्ध करे छे. राजा युद्धमां जोडातो नथी. एवा राजा विषे ‘‘राजाए युद्ध कर्युं’’ एवो उपचार छे, परमार्थ नथी. हवे कहे छे-‘तेम ज्ञानावरणादिकर्मपरिणामे
PDF/HTML Page 1229 of 4199
single page version
पोते परिणमता एवा पुद्गलद्रव्य वडे ज्ञानावरणादि कर्म करवामां आवतां, ज्ञानावरणादि- कर्मपरिणामे पोते नहि परिणमता एवा आत्मा विषे ‘‘आत्माए ज्ञानावरणादि कर्म कर्युं’’ एवो उपचार छे, परमार्थ नथी.’
पुद्गलद्रव्य पोते ज्ञानावरणादि कर्मरूपे परिणमे छे, अज्ञानी जीव ज्ञानावरणादि कर्मरूपे परिणमतो नथी. अज्ञानी जीव तो अज्ञानभावे पोताना रागद्वेषादि परिणामने करतो एककोर छे. ते रागद्वेषादिना निमित्ते पुद्गलद्रव्य स्वयं कर्मरूपे परिणमी जाय छे. तेमां, अज्ञानी जीवनुं कांई कर्तव्य नथी. बधी वस्तु स्वतंत्र जुदी छे. रजकणो स्वतंत्र चीज छे. रजकणो स्वयं ज्ञानावरणादिरूपे परिणमी जाय छे. तेमां अज्ञानी जीव कांई करतो नथी. छतां आत्माए कर्म कर्युं एम कहेवुं ते उपचार छे, आरोप छे; परमार्थ नथी. आत्मा जडकर्मनी अवस्थानो कर्ता नथी तो ते बीजानो उद्धार करे अने देशनी सेवा करे इत्यादि वात कयां रही? समाजनां, देशनां के बीजां बहार जे परद्रव्यनां कार्य थाय तेनो आत्मा कर्ता नथी.
भगवान! तारो तो चैतन्यदेश छे. तेमां ज्ञान आदि अनंत गुणथी भरेलो किंमती माल छे. श्रीमदे कह्युं छे के-
अहाहा...! ज्ञानी कहे छे के आ हिंदुस्तान अने सौराष्ट्र ते अमारो देश नथी. अमारो देश तो ज्ञान अने आनंदस्वरूप छे. आवा पोताना देशने ओळखी तेमां ज स्थिर थईने वसवुं-रहेवुं ते सम्यग्दर्शन अने धर्म छे, ते मोक्षमार्ग अने मोक्षपदरूप छे.
‘योद्धाओए युद्ध कर्युं होवा छतां ‘‘राजाए युद्ध कर्युं’’ एम उपचारथी कहेवाय छे तेम पुद्गलद्रव्ये ज्ञानावरणादि कर्म कर्युं होवा छतां ‘‘जीवे कर्म कर्युं एम उपचारथी कहेवाय छे.’
पुद्गलद्रव्य पोते ज्ञानावरणादि कर्मरूपे परिणमे छे. आत्मा जडकर्मपणे परिणमतो नथी. आत्माए जडकर्म कर्युं एम उपचारथी कहेवाय छे. जडकर्मनी जे प्रकृति बंधाय ते पुद्गलथी बंधाय छे, तेनो आत्मा कर्ता नथी. तो पछी वेपार, उद्योग वगेरे जे बहारनी परद्रव्यनी क्रिया थाय तेने आत्मा करे ए वात ज कयां रही? परपरिणतिने कोण करे? अज्ञानभावे जे विकारी भाव थाय ते एमां निमित्त छे. तेथी आत्माए जडकर्म कर्युं एम कहेवुं ते उपचार छे, परमार्थ नथी.
संयोगद्रष्टिवाळाने आ वात बेसवी महा कठण छे. परनां कार्य जीव करे एम मानवुं ए बे द्रव्योनी एकताबुद्धि छे. तेणे बे द्रव्योनी भिन्नता मानी नथी. बे द्रव्यो
PDF/HTML Page 1230 of 4199
single page version
वच्चे अत्यंत अभाव छे अने एक परमाणुनी पर्याय अने बीजा परमाणुनी पर्याय वच्चे अन्योन्य अभाव छे. संयोगीद्रष्टिवाळाने बधुं एक भासे छे. पण भाई! अभाव शुं करे? जडकर्म बंधाय ते ते पर्यायनी जन्मक्षण छे. जडकर्मनी पर्याय स्वतंत्र परमाणुथी थई छे; रागना परिणामथी कर्मनी पर्याय थई छे एम छे ज नहि.
आत्मा परनुं कार्य करी शकतो नथी; आत्मा जडकर्म बांधतो नथी, जडकर्मने छोडतो नथी. परने आत्मा शुं करे? न ज करे. भाई! आवी सूक्ष्म तत्त्वद्रष्टि थया विना धर्म थवो सुलभ नथी. भेदज्ञान करवुं ए ज साचो उपाय छे.
PDF/HTML Page 1231 of 4199
single page version
अत एतत्स्थितम्–
आदा पोग्गलदव्वं ववहारणयस्स वत्तव्वं।। १०७ ।।
आत्मा पुद्गलद्रव्यं व्यवहारनयस्य वक्तव्यम्।। १०७ ।।
हवे कहे छे के उपरना हेतुथी आम ठर्युंः-
पुद्गलदरवने आतमा–व्यवहारनयवक्तव्य छे. १०७.
गाथार्थः– [आत्मा] आत्मा [पुद्गलद्रव्यम्] पुद्गलद्रव्यने [उत्पादयति] उपजावे छे, [करोति च] करे छे, [बध्नाति] बांधे छे, [परिणामयति] परिणमावे छे [च] अने [गृह्णाति] ग्रहण करे छे-ए [व्यवहारनयस्य] व्यवहारनयनुं [वक्तव्यम्] कथन छे.
टीकाः– आ आत्मा खरेखर, व्याप्यव्यापकभावना अभावने लीधे, प्राप्य, विकार्य अने निर्वर्त्य-एवा पुद्गलद्रव्यात्मक (-पुद्गलद्रव्यस्वरूप) कर्मने ग्रहतो नथी, परिणमावतो नथी, उपजावतो नथी, करतो नथी, बांधतो नथी; अने व्याप्य- व्यापकभावनो अभाव होवा छतां पण, “प्राप्य, विकार्य अने निर्वर्त्य-एवा पुद्गल- द्रव्यात्मक कर्मने आत्मा ग्रहे छे, परिणमावे छे, उपजावे छे, करे छे अने बांधे छे” एवो जे विकल्प ते खरेखर उपचार छे.
भावार्थः– व्याप्यव्यापकभाव विना कर्ताकर्मपणुं कहेवुं ते उपचार छे; माटे आत्मा पुद्गलद्रव्यने ग्रहे छे, परिणमावे छे, उपजावे छे, इत्यादि कहेवुं ते उपचार छे.
हवे कहे छे के उपरना हेतुथी आम ठर्युंः-
‘आ आत्मा खरेखर, व्याप्यव्यापकभावना अभावने लीधे, प्राप्य, विकार्य अने निर्वर्त्य-एवा पुद्गलद्रव्यात्मक (-पुद्गलद्रव्यस्वरूप) कर्मने ग्रहतो नथी, परिणमावतो नथी, उपजावतो नथी, करतो नथी, बांधतो नथी;....’
PDF/HTML Page 1232 of 4199
single page version
जेम योद्धा युद्ध लडे त्यां एम कहेवुं के राजा युद्ध लडे छे-ए उपचारकथन छे तेम जे कर्मनुं बंधन थाय छे ते तेनी पर्यायनी योग्यताथी पोताथी थाय छे तेने एम कहेवुं के आत्मा कर्म बांधे छे ते उपचारनुं, व्यवहारनुं कथन छे.
जे कर्म बंधाय छे ते व्याप्य अने आत्मा तेनो व्यापक एवा भावनो अभाव छे. जड कर्म बंधाय छे ते व्याप्य अने परमाणु तेमां व्यापक छे. जड कर्मनी पर्यायनो कर्ता जड परमाणु छे. आत्माने ते पर्याय साथे व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे. माटे आत्मा जड कर्मनो कर्ता नथी, अने जड कर्म आत्मानुं कार्य नथी. जीवना जेवा विकारी भाव होय तेने अनुसार ज कर्मप्रकृत्ति बंधाय छे छतां जे कर्मबंधननी पर्याय थाय छे ते तेना पोताना कारणे थाय छे; जीवना विकारी भावना कारणे ते पर्याय थती नथी.
जेटलुं योगनुं कंपन अने कषायभाव होय तेटलो त्यां सामे जड कर्ममां प्रकृत्ति-बंध, प्रदेशबंध, स्थितिबंध अने अनुभागबंध थाय छे. योगने लईने प्रकृति अने प्रदेशबंध थाय अने कषायने लईने स्थिति अने अनुभागबंध थाय एम जे शास्त्रमां आवे छे ते निमित्तनुं कथन छे. अहीं कहे छे के कर्मबंधनी जे अवस्था थाय ते व्याप्य एटले कार्य अने आत्मा तेनो व्यापक एटले कर्ता एवा व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे. कर्मबंधनी अवस्था ते परिणाम अने आत्मा परिणामी-एवा परिणाम-परिणामीभावनो अभाव छे. जे चार प्रकारे बंध थाय ते पुद्गलपरमाणुनी पर्याय छे अने परमाणु तेमां व्यापक छे. माटे कर्मबंधननी पर्यायनो कर्ता पुद्गलपरमाणु छे, पण आत्मा तेनो कर्ता अने ते कर्मबंध आत्मानुं कार्य एम छे नहि.
वीतरागनो मार्ग बहु सूक्ष्म छे, भाई! रुचि-लगनीथी अभ्यास करे तो पकडाय एम छे. आत्मा जडकर्म करे अने आत्मा जडकर्म भोगवे-ए वात खोटी छे एम अहीं कहे छे. जडकर्म जे बंधाय ते पुद्गलथी पोताथी बंधाय छे. प्रकृति एटले स्वभाव, प्रदेश एटले परमाणुनी संख्या-ते बन्ने जडकर्मनी अवस्था पोताना कारणे परमाणुथी थाय छे. तेवी ज रीते स्थिति एटले तेनी मुदत अने अनुभाग एटले फळदानशक्ति-ते कार्य पण जड परमाणुथी पोताना कारणे थाय छे. आत्माने तेनी साथे व्याप्य-व्यापकभावनो अभाव छे. परमाणुनी कर्मबंधरूप पर्याय व्याप्य अने आत्मा तेनो व्यापक एम नथी. माटे आत्मा कर्मबंधननी पर्यायनो कर्ता नथी. अने ते पर्याय आत्मानुं कार्य नथी.
लोको बिचारा बहारना वेपारधंधानी पापनी प्रवृत्तिमां गुंचाई गया छे. मजुरनी जेम रातदिवस कषायनी मजुरी-वेठ करीने काळ गुमावे छे. पण भाई! ए तो चार-गतिमां रखडपट्टीनी मजुरी छे. फुरसद लईने आ तत्त्व नहि समजे तो तारुं कल्याण नहि थाय भाई!
व्यवहार तो बोलवा माटे छे, कल्पनामात्र छे. लौकिक व्यवहार बधोय जूठो छे.
PDF/HTML Page 1233 of 4199
single page version
आत्माने जडकर्म साथे परिणामी-परिणाम संबंध नथी, कर्ताकर्मसंबंध नथी. जडकर्मनी पर्यायनो आत्मा कर्ता नथी तो बहारनां जे वेपारादि काम थाय-जेम के माल लीधो-दीधो, पैसा लीधा- दीधा इत्यादि-तेनो कर्ता आत्मा केम होय? त्रणकाळमां नथी. बहारना पदार्थोनी क्रिया ते व्याप्य अने आत्मा तेनो व्यापक एम छे नहि. अरे भाई! विश्वनो प्रत्येक पदार्थ स्वतंत्र छे. पोतपोताना परिणामनो ते ते द्रव्य कर्ता छे; बीजो तेनो कर्ता थाय एम त्रणकाळमां बनतुं नथी. कुंभार घटरूपी कार्यनो कर्ता नथी तेम आत्मा जडकर्मनी पर्यायनो कर्ता नथी.
जडकर्मनो बंध थाय तेना चार प्रकार छे; परमाणुनी संख्या तेनुं नाम प्रदेशबंध, तेनो स्वभाव ते प्रकृति बंध, अमुक काळनी मुदत पडे ते स्थितिबंध, अने फळदानशक्ति ते अनुभागबंध. आ चारेय अवस्थाना ते ते परमाणु कर्ता छे, आत्मा तेनो कर्ता नथी. चारेय प्रकारे जे कर्मबंधननी अवस्था थाय ते परमाणुनुं प्राप्य कर्म छे. ते कर्मबंधनी अवस्थाने ते समये परमाणु पहोंची वळे छे, तेने बीजो (जीव) पहोंचतो नथी. माटे ते परमाणुनुं प्राप्य कर्म छे.
आ रोटली थई ते कार्य छे. ते परमाणुनुं प्राप्य कर्म छे. रोटलीना परमाणु ते नियत पर्यायने पहोंचीने प्राप्त करे छे, रसोई करनारी बाई तेने पहोंचीने प्राप्त करती नथी. बाईए रोटली करी ए तो बोलवामात्र कथन छे, वस्तुस्वरूप नथी. तेम जडकर्म जे समये बंधाय ते बंधनी अवस्था ते कर्मना परमाणुनुं प्राप्य कर्म छे. तेने ते परमाणु प्राप्त करे छे, आत्मा तेने प्राप्त करतो नथी.
आ परमागम मंदिरनी रचना थई ते कार्य छे. ते पुद्गल परमाणुनुं प्राप्य कर्म छे. मंदिर स्थित पुद्गलद्रव्यना परमाणुओए ते नियत पर्यायने पहोंचीने प्राप्त करी छे. कारीगर के अन्य कोईए ते अवस्थाने पहोंचीने प्राप्त करी नथी. तेथी मंदिरनी रचना ते पुद्गलपरमाणुनुं कार्य छे, अन्य कोईनुं ते कार्य नथी. आ लादीना पथरा ऊंचा, नीचा थया अने गोठवाई गया ए बधुं जडनुं पुद्गलनुं कार्य छे. पुद्गलद्रव्य तेने पहोंची वळ्युं छे माटे ते पुद्गलनुं प्राप्य कर्म छे; ते आत्मानुं कार्य नथी. गजब वात छे!
प्राप्य, विकार्य अने निर्वर्त्य कर्मनी वात समयसारनी गाथा ७६, ७७, ७८ अने ७९ मां आवी गई छे. ते वात अहीं आ १०७ मी गाथामां करी छे. प्रवचनसार गाथा पर मां पण आ शब्द आवे छे.
आ अक्षर ‘ॐ वीतरागाय नमः’ लखाय ते कार्य छे. ते परमाणुनुं प्राप्य कर्म छे. परमाणुमां ते समये ते अक्षरो लखवारूप कार्य थवा योग्य छे ते थाय छे अने तेने ते ते परमाणु प्राप्त करे छे तेथी तेने प्राप्य कर्म कहे छे. वळी परमाणुनी पूर्वनी
PDF/HTML Page 1234 of 4199
single page version
अवस्था बदलीने ते कार्य थाय छे माटे तेने विकार्य कर्म कहे छे. अने नवीन पर्यायरूपे ऊपजे छे माटे तेने निर्वर्त्य कर्म कहे छे. द्रव्यमां जे ध्रुवपणे (स्वकाळ नियत) पर्याय छे तेने प्राप्त करी माटे ते प्राप्य, पूर्व अवस्था बदलीने थई माटे विकार्य अने नवी ऊपजी माटे निर्वर्त्य-एम त्रणे एक ज समयनी पर्यायना भेद छे. तेनो कर्ता ते ते पुद्गलपरमाणु छे; जीव तेनो कर्ता नथी.
जुओ, सामा जीवनुं आयु अने तेना शरीरनी जे अवस्था छे ते परमाणुनुं प्राप्य छे, तेनो कर्ता ते परमाणु छे. त्यां बीजो कोई कहे के में एनी दया पाळी तो ते मिथ्याद्रष्टि छे. वीतराग जिनेश्वरदेवनो मार्ग बहु जुदी जातनो छे भाई! आवी वात जगतमां बीजे कयांय नथी.
प्राप्य, विकार्य अने निर्वर्त्य-ए त्रणेय एक समयनी पर्यायना भेद छे. ते वस्तुनी परिपूर्ण स्वतंत्रता जाहेर करे छे. पुद्गलद्रव्यात्मक कर्म जे बंधाय तेने आत्मा ग्रहतो नथी. जोगने लईने कर्मपरमाणुने ग्रहे छे एम कहेवुं ए तो निमित्तनुं कथन छे, उपचार छे. ते वास्तविक कथन नथी. मोहनीय कर्ममां उत्कृष्ट ७० कोडाकोडी सागरो-पमनी स्थिति पडे छे अने जघन्य अंतर्मुहूर्तनी स्थिति पडे छे ते ते पर्यायनी पोतानी योग्यताथी छे. ते पर्यायनो कर्ता कर्मना परमाणु छे. अहीं जीवने कषाय थयो माटे त्यां स्थितिबंध थयो एम छे नहि. तेवी रीते कर्मनो अनुभाग बंध थाय, फळदानशक्तिनो बंध पडे ते तेनी योग्यताथी थाय छे. ते पुद्गलद्रव्यनुं प्राप्य कर्म छे. कर्मबंधनी अवस्थाने पुद्गलद्रव्य ग्रहे छे, आत्मा ग्रहतो नथी. अरे भाई! कर्मनी साथे तद्न नजीकनो निमित्तनैमित्तिक संबंध छे छतां तेनो आत्मा कर्ता नथी तो पछी बीजां बहारनां हालवुं, चालवुं, खावुं, पीवुं, बोलवुं इत्यादि कार्य थाय तेनो आत्मा कर्ता थाय एम केम बने? त्रणकाळमां न बने.
आ आंगळी हले ते आंगळीना परमाणुनुं प्राप्य, विकार्य अने निर्वर्त्य कर्म छे. आत्मा आंगळीने हलावी शके नहि. अहीं कहे छे के जड कर्मबंधननी अवस्था थाय ते पुद्गलद्रव्यनुं प्राप्य, विकार्य अने निर्वर्त्य कर्म छे, जीव तेनो कर्ता नथी. जड अने आत्माने व्याप्यव्यापकभावनो अभाव होवाथी आत्मा जड कर्मने ग्रहतो नथी, परिणमावतो नथी, ऊपजावतो नथी, करतो नथी, बांधतो नथी. हवे कहे छे के-
‘अने व्याप्यव्यापकभावनो अभाव होवा छतां पण, ‘‘प्राप्य, विकार्य अने निर्वर्त्य - एवा पुद्गलद्रव्यात्मक कर्मने आत्मा ग्रहे छे, परिणमावे छे, उपजावे छे, करे छे अने बांधे छे’’ एवो जे विकल्प ते खरेखर उपचार छे.’
PDF/HTML Page 1235 of 4199
single page version
आ माटीमय घडो छे ते कार्य छे. ते माटीनुं कार्य छे. माटी तेमां व्यापक थईने रहेली छे तेथी माटी तेनो कर्ता छे. घडो ते कुंभारनुं व्याप्य कर्म नथी. कुंभार घडामां व्यापक थईने, प्रसरीने रहेलो नथी. घडानी अवस्थाने अने कुंभारने व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे. माटे घडारूप कार्यनो कुंभार कर्ता नथी. घडो माटीमांथी पोतानी अवस्थारूपे थाय छे अने कुंभार तेमां निमित्तमात्र छे. तेथी कुंभारे घडो कर्यो एम उपचारथी कहेवाय छे. वास्तवमां कुंभारे घडो कर्यो नथी.
पर पदार्थनां जे कार्य थाय ते तेनाथी थाय छे. छतां निमित्त देखीने बीजाए ते कार्य कर्युं एम कहेवुं ते व्यवहारनुं कथन छे, उपचारकथन छे; ते वास्तविक कथन नथी. अज्ञानी जीवनो जे विकल्प छे के परनां काम हुं करुं छुं ते विकल्प उपचार छे. ज्ञानीने तो पोताना ज्ञाताद्रष्टा स्वभावनुं भान छे. तेथी तेना परिणाम बंधमां निमित्त नथी. खरेखर तो ज्ञानीने बंध नथी. धर्मीने वीतराग परिणाम होय छे. तेथी तेने कर्मनुं बंधन थाय अने तेमां तेना परिणाम निमित्त थाय एवुं बनतुं नथी.
धर्मी जीवने पोताना शुद्ध ज्ञायकस्वरूपनुं भान थयेलुं छे. ते जाणे छे के हुं तो शुद्ध चैतन्यमय अखंड अभेद एकरूप आत्मा छुं. ते काळे जे राग थाय अने जड कर्मनी प्रकृति बंधाय ते तेना ज्ञानमां निमित्त छे. ज्ञान तो स्वपरने जाणतुं थकुं पोताना उपादानथी थयुं छे तेमां राग अने कर्मनी अवस्था निमित्त कहेवामां आवे छे. कर्मना प्रकृति अने प्रदेशबंधमां ज्ञानी निमित्त छे एम छे नहि.
अज्ञानी जोग अने रागनो कर्ता छे. ते अज्ञानीना जोग अने राग जे कर्मबंध थाय एमां निमित्त छे. छतां जो एम कह्युं होय के जोग अने रागथी कर्मबंध थाय छे तो ते व्यवहारनुं उपचारकथन छे; ते परमार्थकथन नथी. उपचारनो अर्थ व्यवहार कल्पना छे. परनो कर्ता नथी छतां कहेवुं ते उपचार छे.
विश्वनो प्रत्येक पदार्थ स्वतंत्र छे. प्रतिसमय पदार्थनी जे अवस्था थाय ते तेना काळे तेनाथी थाय छे. ते कार्य थवानी ते जन्मक्षण छे. पदार्थनी ते पर्यायने कोई अन्य करे ते वात तद्न खोटी छे. पुद्गलद्रव्यस्वरूप कर्मबंधनी जे समये जे पर्याय थाय ते तेनाथी पोताथी थाय छे अने ते तेनी जन्मक्षण छे. परमाणुमां ते पर्याय उत्पन्न थवानो स्वकाळ छे तेथी त्यां ते कर्मबंधनी पर्याय उत्पन्न थाय छे. आत्मा ते कर्मबंधनी पर्यायने ग्रहतो के उपजावतो नथी. जीवे राग कर्यो माटे ते कर्मबंधरूप कार्य थयुं छे एम नथी. राग तो निमित्तमात्र छे. रागथी कर्मबंधन थयुं वा आत्माए कर्मबंधन कर्युं एम कहेवुं ते उपचार छे.
PDF/HTML Page 1236 of 4199
single page version
‘व्याप्यव्यापकभाव विना कर्ताकर्मपणुं कहेवुं ते उपचार छे; माटे आत्मा पुद्गल-द्रव्यने ग्रहे छे, परिणमावे छे, उपजावे छे, इत्यादि कहेवुं ते उपचार छे.’
व्याप्यव्यापकभाव विना कर्ताकर्मभाव होतो नथी. छतां त्यां कर्ताकर्म कहेवामां आवे ते उपचार छे. आत्मा जडने ग्रहे, परिणमावे, उपजावे-एम कहेवुं ते उपचारकथन छे, वास्तविक नथी.
PDF/HTML Page 1237 of 4199
single page version
कथमिति चेत्–
तह जीवो ववहारा दव्वगुणुप्पादगो भणिदो।। १०८ ।।
तथा जीवो व्यवहारत् द्रव्यगुणोत्पादको भणितः।। १०८ ।।
हवे पूछे छे के ए उपचार कई रीते छे? तेनो उत्तर द्रष्टांतथी कहे छेः-
त्यम द्रव्यगुणउत्पन्नकर्ता जीव कह्यो व्यवहारथी. १०८.
गाथार्थः– [यथा] जेम [राजा] राजाने [दोषगुणोत्पादकः इति] प्रजाना दोष अने गुणनो उत्पन्न करनार [व्यवहारात्] व्यवहारथी [आलपितः] कह्यो छे, [तथा] तेम [जीवः] जीवने [द्रव्यगुणोत्पादकः] पुद्गलद्रव्यना द्रव्य-गुणनो उत्पन्न करनार [व्यवहारात्] व्यवहारथी [भणितः] कह्यो छे.
टीकाः– जेम प्रजाना गुणदोषोने अने प्रजाने व्याप्यव्यापकभाव होवाने लीधे स्व- भावथी ज (प्रजाना पोताना भावथी ज) ते गुणदोषोनी उत्पत्ति थतां-जोके ते गुणदोषोने अने राजाने व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे तोपण-‘तेमनो उत्पादक राजा छे’ एवो उपचार करवामां आवे छे; तेवी रीते पुद्गलद्रव्यना गुणदोषोने अने पुद्गलद्रव्यने व्याप्यव्यापकभाव होवाने लीधे स्व-भावथी ज (पुद्गलद्रव्यना पोताना भावथी ज) ते गुणदोषोनी उत्पत्ति थतां-जोके ते गुणदोषोने अने जीवने व्याप्य- व्यापकभावनो अभाव छे तोपण-‘तेमनो उत्पादक जीव छे’ एवो उपचार करवामां आवे छे.
भावार्थः– जगतमां कहेवाय छे के जेवो राजा तेवी प्रजा. आम कहीने प्रजाना गुणदोषनो उत्पन्न करनार राजाने कहेवामां आवे छे. एवी ज रीते पुद्गलद्रव्यना गुणदोषनो उत्पन्न करनार जीवने कहेवामां आवे छे. परमार्थद्रष्टिए जोतां ए सत्य नथी, उपचार छे.
‘हवे पूछे छे के ए उपचार कई रीते छे? तेनो उत्तर द्रष्टांतथी कहे छेः-
PDF/HTML Page 1238 of 4199
single page version
‘जेम प्रजाना गुणदोषोने अने प्रजाने व्याप्यव्यापकभाव होवाने लीधे स्वभावथी ज (प्रजाना पोताना भावथी ज) ते गुणदोषोनी उत्पत्ति थतां-जोके ते गुणदोषोने अने राजाने व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे तोपण-‘‘तेमनो उत्पादक राजा छे’’ एवो उपचार करवामां आवे छे;....’
लोकमां कहेवाय छे के ‘जेवो राजा तेवी प्रजा.’ आ तो कथनमात्र छे, निमित्तनुं कथन छे. बाकी राजानी पर्याय राजामां अने प्रजानी पर्याय प्रजामां छे. प्रजाना गुणदोष अने प्रजाने व्याप्यव्यापकभाव छे. परंतु प्रजाना गुणदोष अने राजाने व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे. राजाना कारणे कांई प्रजा गुण के दोष करती नथी. राजा पोताना दुष्ट परिणामथी नरकगतिमां जाय, अने प्रजा पोताना गुणथी मोक्षपद पामे. भाई! दरेक द्रव्य स्वतंत्र छे. राजा तेवी प्रजा ए तो व्यवहार कर्यो छे, बाकी ए कांई वास्तविकता नथी.
प्रजाना पोताना भावथी पोताना गुणदोषनी उत्पत्ति थाय छे. प्रजाना गुणदोषने राजा उत्पन्न करे छे वा राजाना कारणे प्रजामां गुणदोष उत्पन्न थाय छे एम नथी, केमके प्रजाना गुणदोष व्याप्य अने एनो राजा व्यापक-एवो व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे. आम छे छतां प्रजाना गुणदोषनो उत्पादक राजा छे एवो उपचार करवामां आवे छे. ‘बाप एवा बेटा’ ए पण निमित्तनुं उपचारकथन छे. बाप होय ते नर्के जाय अने दीकरो मोक्ष जाय. तीव्र मानादि कषाय करीने बाप ढोरगतिमां जाय अने मंदरागना परिणामथी युक्त दीकरो मरीने स्वर्गे जाय, वा मनुष्य थाय. ‘बाप एवा बेटा’ ए कयां नियम रह्यो? ए तो मात्र उपचारकथन छे.
आ स्त्रीने लोकमां अर्धांगना नथी कहेता? एम के मारुं अडधुं अंग अने स्त्रीनुं अडधुं अंग एम बे मळीने एक छीए. धूळेय एक नथी, सांभळने. स्त्री मरीने स्वर्गे जाय अने पति दुष्टभावथी मरीने नर्के जाय; कयां एकपणुं रह्युं? अरे! जीव परने पोतानुं मानी मानीने अनंतकाळथी मरी रह्यो छे-रझळी रह्यो छे! वास्तवमां कोई कोईनुं कांई करतुं नथी. परद्रव्यनी पर्यायने जीव करे छे एम कहेवुं ते उपचारकथन छे.
हवे कहे छे-‘तेवी रीते पुद्गलद्रव्यना गुणदोषोने अने पुद्गलद्रव्यने व्याप्य-व्यापकभाव होवाने लीधे स्व-भावथी ज (पुद्गलद्रव्यना पोताना भावथी ज) ते गुणदोषोनी उत्पत्ति थतां-जोके ते गुणदोषोने अने जीवने व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे तोपण-‘‘तेमनो उत्पादक जीव छे’’ एवो उपचार करवामां आवे छे.’
स्व-भावथी ज एटले के पुद्गलद्रव्यना पोताना भावथी ज जड कर्म बंधाय छे. कर्मनी प्रकृतिना गुणदोषने अने आत्माना विकारी भावने निमित्तनैमित्तिकसंबंध छे, पण
PDF/HTML Page 1239 of 4199
single page version
आत्मा तेनो कर्ता नथी. अज्ञानी जोग अने रागनो कर्ता छे. तेना ते परिणाम जड कर्मनी पर्यायने निमित्त कहेवामां आवे छे, पण ते परिणाम जड कर्मना कर्ता नथी.
कोई समकिती वेपारी होय अने दुकानना थडे बेठो होय. त्यां मालनी जे लेवड-देवडनी क्रिया थती होय तेनो ते ज्ञाता-जाणनार छे, कर्ता नथी. ज्ञानीना ज्ञानमां ते पदार्थनी क्रिया निमित्त थाय छे, ज्ञानी तेने निमित्त नथी. ज्ञानी तो ज्ञाननी स्वपरप्रकाशक पर्यायमां व्यापक थईने ज्ञाननी पर्यायने प्राप्त करे छे. ते काळे जे राग आव्यो अने प्रकृति बंधाई तेनुं अहीं ज्ञान थयुं पण ते जड प्रकृतिनी पर्याय अने जोग अने रागनी पर्यायनो ज्ञानी कर्ता नथी.
पुद्गलमां शाता बंधाय, अशाता बंधाय ए बधा पुद्गलना गुणदोष कहेवामां आवे छे. पुद्गलना गुणदोषने पुद्गल करे छे, आत्मा तेने करतो नथी. पुद्गलना गुणदोषने अने जीवने व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे. पुद्गलनी पर्याय ते कार्य अने आत्मा तेनो कर्ता एवा भावनो अभाव छे, तोपण ‘तेमनो उत्पादक जीव छे’ एम उपचार करवामां आवे छे. निमित्तनुं ज्ञान कराववा माटे उपचार करवामां आवे छे.
भावार्थः– जगतमां कहेवाय छे के जेवो राजा तेवी प्रजा. आम कहीने प्रजाना गुणदोषनो उत्पन्न करनार राजाने कहेवामां आवे छे. एवी ज रीते पुद्गलद्रव्यना गुणदोषनो उत्पन्न करनार जीवने कहेवामां आवे छे. परमार्थद्रष्टिए जोतां ए सत्य नथी, उपचार छे.
PDF/HTML Page 1240 of 4199
single page version
कस्तर्हि तत्कुरुत इत्यभिशङ्कयैव।
एतर्हि तीव्ररयमोहनिवर्हणाय
सङ्कीर्त्यते शृणुत पुद्गलकर्मकर्तृ।। ६३ ।।
मिच्छत्तं अविरमणं कसायजोगा य बोद्धव्वा।। १०९ ।।
मिच्छादिट्ठीआदी जाव सजोगिस्स चरमंतं।। ११० ।।
ते जदि करेंति कम्मं ण वि तेसिं वेदगो आदा।। १११ ।।
हवे आगळनी गाथानी सूचनिकारूप काव्य कहे छेः-
श्लोकार्थः– ‘[यदि पुद्गलकर्म जीवः न एव करोति] जो पुद्गलकर्मने जीव करतो नथी [तर्हि] तो [तत् कः कुरुते] तेने कोण करे छे?’ [इति अभिशङ्कया एव] एवी आशंका करीने, [एतर्हि] हवे [तीव्र–रय–मोह–निवर्हणाय] तीव्र वेगवाळा मोहनो (कर्ताकर्मपणाना अज्ञाननो) नाश करवा माटे, [पुद्गलकर्मकतृं सङ्कीर्त्यते] ‘पुद्गलकर्मनो कर्ता कोण छे’ ते कहीए छीए; [शृणुत] ते (हे ज्ञानना इच्छक पुरुषो!) तमे सांभळो. ६३.
पुद्गलकर्मनो कर्ता कोण छे ते हवे कहे छेः-
–मिथ्यात्व ने अविरमण तेम कषाययोगो जाणवा. १०९.
–मिथ्यात्वथी आदि करीने चरम भेद सयोगीनो. ११०.
ते जो करे कर्मो भले, भोक्ताय तेनो जीव ना. १११.