Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 116-125.

< Previous Page   Next Page >


Combined PDF/HTML Page 64 of 210

 

PDF/HTML Page 1261 of 4199
single page version

प्रत्ययोथी भगवान आत्मा भिन्न छे. आवी द्रष्टि करवाथी सम्यग्दर्शन प्रगट थाय छे. आ सिवाय रागनो अने परनो पोताने कर्ता मानवाथी मिथ्यात्वनो भाव उत्पन्न थाय छे.

* गाथा ११३ थी ११पः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘मिथ्यात्वादि आस्रव तो जडस्वभाव छे अने जीव चेतनस्वभाव छे. जो जड अने चेतन एक थई जाय तो भिन्न द्रव्योनो लोप थई जाय ए मोटो दोष आवे. माटे आस्रवने अने आत्माने एकपणुं नथी ए निश्चयनयनो सिद्धांत छे.’

मिथ्यात्वादि चार आस्रवो जडस्वभाव छे. जे मिथ्या मान्यताओ छे ते जडस्वभाव छे केमके ते चैतन्यस्वभावथी विपरीत छे. मिथ्याश्रद्धान आदि ने अहीं जड कहेल छे. वळी परमाणु तो जड छे ज. अने जीव जाणगस्वभावनी मूर्ति प्रभु चैतन्यस्वभाव छे. अहीं कहे छे के जड अने चैतन्य जो एक थई जाय तो भिन्न द्रव्योनो लोप थवानो प्रसंग आवे. पण एम तो कदीय बनतुं नथी. माटे आत्मा अन्य छे अने जडस्वभावी आस्रवो, शरीर, मन, वाणी, कर्म, नोकर्म इत्यादि सर्व अन्य छे. तेम छतां शुभाशुभ राग, शरीर, मन, वाणी, पैसा, मकान इत्यादि जे छे ते मारां छे अने हुं तेनो कर्ता छुं एम जे माने ते जड थई जाय छे. जड थई जाय छे एटले तेनी विपरीत मान्यताने कारणे तेने मिथ्यात्व उत्पन्न थाय छे. माटे निश्चयनयनो आ जे सिद्धांत छे के आस्रव अने आत्मा एक नथी, अन्य छे, ते यथार्थ जाणी आत्मद्रष्टिवंत थवुं.

[प्रवचन नं. १७९ * दिनांक ८-९-७६]

= * = * =

PDF/HTML Page 1262 of 4199
single page version

अथ पुद्गलद्रव्यस्य परिणामस्वभावत्वं साधयति सांख्यमतानुयायिशिष्यं प्रति–

जीवे ण सयं बद्धं ण सयं परिणमदि कम्मभावेण।
जदि पोग्गलदव्वमिणं अप्परिणामी तदा होदि।। ११६ ।।

कम्मइयवग्गणासु य अपरिणमंतीसु कम्मभावेण।
संसारस्स अभावो पसज्जदे संखसमओ वा।। ११७ ।।

जीवो परिणामयदे पोग्गलदव्वाणि कम्मभावेण।
ते समयपरिणमंते कहं णु परिणामयदि चेदा।। ११८ ।।

अह सयमेव हि परिणमदि कम्मभावेण पोग्गलं दव्वं।
जीवो परिणामयदे कम्मं कम्मत्तमिदि मिच्छा।। ११९ ।।

णियमा कम्मपरिणदं कम्मं चिय होदि पोग्गलं दव्वं।
तह तं णाणावरणाइपरिणदं मुणसु तच्चेव।। १२० ।।

हवे सांख्यमतना अनुयायी शिष्य प्रति पुद्गलद्रव्यनुं परिणामस्वभावपणुं सिद्ध करे छे (अर्थात् सांख्यमती प्रकृति-पुरुषने अपरिणामी माने छे तेने समजावे छे)ः-

जीवमां स्वयं नहि बद्ध, न स्वयं कर्मभावे परिणमे,
तो एवुं पुद्गलद्रव्य आ परिणमनहीन बने अरे! ११६.

जो वर्गणा कार्मण तणी नहि कर्मभावे परिणमे,
संसारनो ज अभाव अथवा समय सांख्य तणो ठरे! ११७.

जो कर्मभावे परिणमावे जीव पुद्गलद्रव्यने,
कयम जीव तेने परिणमावे जे स्वयं नहि परिणमे? ११८.

स्वयमेव पुद्गलद्रव्य वळी जो कर्मभावे परिणमे,
जीव परिणमावे कर्मने कर्मत्वमां–मिथ्या बने. ११९.

पुद्गलदरव जे कर्मपरिणत, निश्चये कर्म ज बने;
ज्ञानावरणइत्यादिपरिणत, ते ज जाणो तेहने. १२०.

PDF/HTML Page 1263 of 4199
single page version

जीवे न स्वयं बद्धं न स्वयं परिणमते कर्मभावेन।
यदि पुद्गलद्रव्यमिदमपरिणामि तदा भवति।। ११६ ।।

कार्मणवर्गणासु चापरिणममानासु कर्मभावेन।
संसारस्याभावः प्रसजति सांख्यसमयो वा।। ११७ ।।

जीवः परिणामयति पुद्गलद्रव्याणि कर्मभावेन।
तानि स्वयमपरिणाममानानि कथं नु परिणामयति चेतयिता।। ११८ ।।

अथ स्वयमेव हि परिणमते कर्मभावेन पुद्गलं द्रव्यम्।
जीवः परिणामयति कर्म कर्मत्वमिति मिथ्या।। ११९ ।।

नयमात्कर्मपरिणतं कर्म चैव भवति पुद्गलं द्रव्यम्।
तथा तद्ज्ञानावरणादिपरिणतं जानीत तच्चैव।। १२० ।।

गाथार्थः– [इदम् पुद्गलद्रव्यम्] आ पुद्गलद्रव्य [जीवे] जीवमां [स्वयं] स्वयं [बद्धं न] बंधायुं नथी अने [कर्मभावेन] कर्मभावे [स्वयं] स्वयं [न परिणमते] परिणमतुं नथी [यदि] एम जो मानवामां आवे [तदा] तो ते [अपरिणामि] अपरिणामी [भवति] ठरे छे; [च] अने [कार्मणवर्गणासु] कार्मणवर्गणाओ [कर्मभावेन] कर्मभावे [अपरिणममानासु] नहि परिणमतां, [संसारस्य] संसारनो [अभावः] अभाव [प्रसजति] ठरे छे [वा] अथवा [सांख्यसमयः] सांख्यमतनो प्रसंग आवे छे.

वळी [जीवः] जीव [पुद्गलद्रव्याणि] पुद्गलद्रव्योने [कर्मभावेन] कर्मभावे [परिणामयति] परिणमावे छे एम मानवामां आवे तो ए प्रश्न थाय छे के [स्वयम् अपरिणममानानि] स्वयं नहि परिणमती एवी [तानि] ते वर्गणाओने [चेतयिता] चेतन आत्मा [कथं नु] केम [परिणामयति] परिणमावी शके? [अथ] अथवा जो [पुद्गलम् द्रव्यम्] पुद्गलद्रव्य [स्वयमेव हि] पोतानी मेळे ज [कर्मभावेन] कर्मभावे [परिणमते] परिणमे छे एम मानवामां आवे, तो [जीवः] जीव [कर्म] कर्मने अर्थात् पुद्गलद्रव्यने [कर्मत्वम्] कर्मपणे [परिणामयति] परिणमावे छे [इति] एम कहेवुं [मिथ्या] मिथ्या ठरे छे.

[नियमात्] माटे जेम नियमथी [कर्मपरिणतं] *कर्मरूपे परिणमेलुं [पुद्गलम् द्रव्यम्] पुद्गलद्रव्य [कर्म चैव] कर्म ज [भवति] छे [तथा] तेवी रीते [ज्ञानावरणादिपरिणतं] ज्ञानावरणादिरूपे परिणमेलुं [तत्] पुद्गलद्रव्य [तत् च एव] ज्ञानावरणादि ज [जानीत] जाणो. _________________________________________________________________ * कर्म = कर्तानुं कार्य, जेम के-माटीनुं कर्म घडो. समयसार गाथा-११६ थी १२० ] [ २०३


PDF/HTML Page 1264 of 4199
single page version

(उपजाति)
स्थितेत्यविध्ना खलु पुद्गलस्य
स्वभावभूता परिणामशक्तिः।
तस्यां स्थितायां स करोति भावं
यमात्मनस्तस्य स एव कर्ता।। ६४ ।।

टीकाः– जो पुद्गलद्रव्य जीवमां स्वयं नहि बंधायुं थकुं कर्मभावे स्वयमेव न परिणमे, तो ते अपरिणामी ज ठरे. एम थतां, संसारनो अभाव थाय. (कारण के पुद्गलद्रव्य कर्मरूपे न परिणमे तो जीव कर्मरहित ठरे; तो पछी संसार कोनो?) अहीं जो एम तर्क करवामां आवे के “जीव पुद्गलद्रव्यने कर्मभावे परिणमावे छे तेथी संसारनो अभाव थतो नथी”, तो तेनुं निराकरण बे पक्ष लईने करवामां आवे छेः-शुं जीव स्वयं अपरिणमता पुद्गलद्रव्यने कर्मभावे परिणमावे के स्वयं परिणमताने? प्रथम, स्वयं अपरिणमताने पर वडे परिणमावी शकाय नहि; कारण के (वस्तुमां) जे शक्ति स्वतः (पोताथी ज) न होय तेने अन्य कोई करी शके नहि. (माटे प्रथम पक्ष असत्य छे.) अने स्वयं परिणमताने तो पर (अन्य) परिणमावनारनी अपेक्षा न होय; कारण के वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी. (माटे बीजो पक्ष पण असत्य छे.) तेथी पुद्गलद्रव्य परिणमनस्वभाववाळुं स्वयमेव हो. एम होतां (होवाथी), जेम घडारूपे परिणमेली माटी ज पोते घडो छे तेम, जड स्वभाववाळा ज्ञानावरणादिकर्मरूपे परिणमेलुं पुद्गलद्रव्य ज पोते ज्ञानावरणादिकर्म छे. आ रीते पुद्गलद्रव्यनुं परिणामस्वभावपणुं सिद्ध थयुं.

हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः-

श्लोकार्थः– [इति] आ रीते [पुद्गलस्य] पुद्गलद्रव्यनी [स्वभावभूता परिणामशक्तिः] स्वभावभूत परिणमनशक्ति [खलु अविध्ना स्थिता] निर्विध्न सिद्ध थई. [तस्यां स्थितायां] ए सिद्ध थतां, [सः आत्मनः यम् भावं करोति] पुद्गलद्रव्य पोताना जे भावने करे छे [तस्य सः एव कर्ता] तेनो ते पुद्गलद्रव्य ज कर्ता छे.

भावार्थः– सर्व द्रव्यो परिणमनस्वभाववाळां छे तेथी पोतपोताना भावना पोते ज कर्ता छे. पुद्गलद्रव्य पण पोताना जे भावने करे छे तेनो पोते ज कर्ता छे. ६४.

* * *
समयसार गाथा ११६ थी १२० मथाळुं

हवे सांख्यमतना अनुयायी शिष्य प्रति पुद्गलद्रव्यनुं परिणामस्वभावपणुं सिद्ध करे छे (अर्थात् सांख्यमती प्रकृति-पुरुषने अपरिणामी माने छे तेने समजावे छे)ः-


PDF/HTML Page 1265 of 4199
single page version

* गाथा ११६ थी १२०ः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘जो पुद्गलद्रव्य जीवमां स्वयं नहि बंधायुं थकुं कर्मभावे स्वयमेव न परिणमे, तो ते अपरिणामी ज ठरे. एम थतां, संसारनो अभाव थाय. (कारण के पुद्गलद्रव्य कर्मरूपे न परिणमे तो जीव कर्मरहित ठरे; तो पछी संसार कोनो?)’

जुओ, अज्ञानी जेवो विकारभाव करे छे ते अनुसार त्यां कर्मबंधन थाय छे. ते कर्मबंधन पुद्गलना परिणमननी योग्यताथी थाय छे. आत्माए विकार कर्यो माटे एनाथी कर्मबंधन थयुं एम छे नहि.

वळी, जीव पोतामां पुण्य-पापना भाव रचे ते स्वतंत्रपणे रचे छे; तेमां कर्मनी अपेक्षा नथी. जीव शुभाशुभ विकारभावे परिणमे छे ते पोताना षट्कारकनी क्रियाथी परिणमे छे. विकार परिणामनो कर्ता विकार पोते, कर्म पोते, विकारनुं साधन पोते, विकार करीने पोताने आपे ते संप्रदान पोते, विकार पोतामांथी थयो ते अपादान पोते अने विकारनुं अधिकरण पण पोते-एम पोताना षट्कारकनी क्रियाथी विकार उत्पन्न थाय छे. तेवी रीते जे जड कर्मनी प्रकृति बंधाय ते पण तेना पोताना षट्कारकनी क्रियारूप परिणमनथी बंधाय छे. अहीं सांख्यमतवाळाने पुद्गलद्रव्यनुं परिणामस्वभावपणुं समजावे छे.

कहे छे-जो पुद्गलद्रव्य कर्मभावे स्वयमेव न परिणमे तो ते अपरिणामी ज ठरे. परिणमीने (पर्यायपणे) बदलवानो जो तेनो स्वभाव न होय तो ते अपरिणामी एटले कूटस्थ सिद्ध थाय. एम थवाथी संसारनो अभाव थाय, केमके संसारनुं निमित्त जे कर्मरूप पर्याय ते नहि होतां जीवने संसारनो अभाव सिद्ध थशे. जड कर्मना पुद्गलो स्वयमेव कर्मरूपे न परिणमे तो विकारना निमित्तनो अभाव थई जशे, निमित्तना अभावमां विकार पण रहेशे नहि, अने विकार न रहे तो संसारनो अभाव थई जशे. पुद्गलद्रव्य जो स्वयमेव कर्मरूपे न परिणमे तो जीव कर्मरहित थई जशे. कर्मरहित जीवने सिद्ध कहेवामां आवे छे. तो संसार तो रहेशे नहि; तो पछी संसार कोनो?

‘अहीं जो एम तर्क करवामां आवे के-‘‘जीव पुद्गलद्रव्यने कर्मभावे परिणमावे छे तेथी संसारनो अभाव थतो नथी,’’ तो तेनुं निराकरण बे पक्ष लईने करवामां आवे छेः-शुं जीव स्वयं अपरिणमता पुद्गलद्रव्यने कर्मभावे परिणमावे छे के स्वयं परिणमताने?

प्रथम, स्वयं अपरिणमताने पर वडे परिणमावी शकाय नहि; कारण के (वस्तुमां) जे शक्ति स्वतः (पोताथी ज) न होय तेने अन्य कोई करी शके नहि. (माटे प्रथम पक्ष असत्य छे.) अने स्वयं परिणमताने पर (अन्य) परिणमावनारनी अपेक्षा न


PDF/HTML Page 1266 of 4199
single page version

होय; कारण के वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी. (माटे बीजो पक्ष पण असत्य छे.) तेथी पुद्गलद्रव्य परिणमनस्वभाववाळुं स्वयमेव हो.’

जुओ, आ अज्ञानीना तर्कनुं निराकरण छे.

विकल्प थयो के आंगळीथी रोटलीना टुकडा करुं; त्यां आंगळी पोताथी स्वयं परिणमे छे के जीवना विकल्पथी? जो आंगळी स्वयं पोताथी न परिणमे तो जीव तेने केम परिणमावी शके? अने जो आंगळी स्वयं पोताथी ज परिणमे छे तो जीवे शुं कर्युं? कांई ज नहि. माटे आंगळीनुं परिणमन स्वयं आंगळीथी पोताथी थयुं छे, जीवनी इच्छाथी नहि-आ न्याय छे.

जुओ, माटीमय घडानी पर्याय थई ते माटीथी थई के कुंभारथी थई? जो माटी स्वयं घडारूपे परिणमी न होय तो कुंभार तेने परिणमावी शके नहि; अने जो स्वयं माटी घडारूपे परिणमी छे तो तेमां कुंभारे शुं कर्युं? तेमां कुंभारनी कोई अपेक्षा रही ज नहि. भाई! आ आंख ऊंची-नीची थाय ते परिणमन आंखनुं पोतानुं छे, जीवनुं तेमां कांई कर्तव्य नथी; केमके जो आंख स्वयं परिणमे नहि तो तेने बीजो परिणमावी शके नहि अने जो आंख स्वयं पोताथी परिणमे छे तो अन्यनी-जीवनी तेमां अपेक्षा न होय. आ तो न्यायथी-लोजिकथी वात छे. जो वस्तुमां परिणमनशक्ति स्वतः न होय तो तेने बीजो परिणमावी शके नहि अने जो स्वतः परिणमन शक्ति छे तो तेने परिणमवामां बीजा परिणमावनारनी अपेक्षा न होय कारण के वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी.

प्रश्नः– पर्यायमां जे विकार थाय छे तेने कर्मनी अपेक्षा छे के नहि?

उत्तरः– (जीवमां) विकारनी जे कोई पर्याय थाय छे ते पोताना षट्कारकथी स्वतंत्र थाय छे; तेमां कर्मना कारकोनी अपेक्षा त्रणकाळमां नथी. कर्म छे तो जीवने पर्यायमां विकार थाय छे ए वात तद्न जूठी छे. विकारभाव थवामां निश्चयथी कर्मनी अपेक्षा छे ज नहि. वस्तुमां परिणमननी पोतानी शक्तिथी परिणमन थाय छे त्यां परनी अपेक्षा शुं? जो पोतानी परिणमनशक्ति न होय तो बीजो केवी रीते परिणमावी शके? अन्य अन्यने परिणमावे ए वस्तुस्थिति ज नथी.

अहाहा...! प्रत्येक द्रव्यनी समयसमयनी प्रत्येक पर्याय ते ते काळे (स्वकाळे) पोताथी थाय छे, परथी नहि, ए वात अहीं सिद्ध करवी छे. कर्मरूप जे परिणमन थाय छे ते अजीवनी-पुद्गलनी पर्याय छे. पुद्गल कर्मरूप परिणमे ते पोतानी शक्तिथी परिणमे छे, परथी नहि. पुद्गलनी पोतानी परिणमननी शक्ति न होय तो बीजो तेने परिणमावी शके नहि; अने स्वयं पोतानी शक्तिथी परिणमे छे तो तेमां बीजानी-जीवनी


PDF/HTML Page 1267 of 4199
single page version

अपेक्षा न होय. जीवे रागद्वेष कर्या माटे पुद्गल कर्मरूपे बंधायुं एम छे नहि. जड कर्मनी जे पर्याय परिणमे छे ते पोताना षट्कारकथी स्वयं परिणमे छे. आवी ज वस्तुस्थिति छे.

बंध अधिकारमां आवे छे के बीजा जीवने तुं जीवाडी शक्तो नथी. तेना आयुष्यथी ते जीवे छे अने आयुष्य पूरुं थतां तेनुं मरण नीपजे छे. भाई! कोईनां जीवन-मरण कोई बीजो करी शके ए वस्तुना स्वरूपमां ज नथी.

विकारी भावरूपे अज्ञानी स्वयं-पोते परिणमे छे, अने ते काळे सामे जे कर्म-बंधन थाय ते तेनी परिणमनशक्तिथी थाय छे. अज्ञानी विकारना परिणाम करे छे माटे त्यां कर्मने बंधावुं पडे छे एम नथी. (बन्नेनां परिणमन पोतपोतामां स्वतंत्र छे).

ज्ञानीने राग थाय छे एम कहेवुं ते व्यवहार छे. खरेखर तो ज्ञानीने राग संबंधीनुं ज्ञान पोतामां पोताथी थाय छे. पोतानुं (स्वद्रव्यनुं) अने राग संबंधीनुं ज्ञान जे ज्ञानीने थाय छे ते ज्ञान पोतानी परिणमनशक्तिथी थाय छे; राग छे तो ते ज्ञान थाय छे एम नथी. पोताना परिणमननी शक्तिथी स्व-परप्रकाशक ज्ञान ज्ञानीने प्रगट थाय छे अने एमां रागनी- परनी कोई अपेक्षा नथी. जो ज्ञान स्वशक्तिथी पोताथी परिणमे नहि तो राग तेने परिणमावी शके नहि; रागमां एवी ताकात नथी के ते ज्ञानने परिणमावी दे.

जडनी परिणमनशक्तिथी जड परिणमे छे, जीवना कारणे ते परिणमे छे एम छे नहि. जीव राग, द्वेष, मोह, विषयवासनाना परिणाम करे ते काळे चारित्रमोहनीय कर्मनी प्रकृति पोताथी परिणमे छे. ए तेनो परिणमननो काळ छे माटे स्वयं पोताथी परिणमे छे. जीवना रागादि विकारभाव तेनुं परिणमन करी दे छे एम नथी. जो जड कर्म स्वयं परिणमे नहि तो तेने राग परिणमावी शके नहि, अने ते कर्मप्रकृति जो पोताथी स्वयं परिणमे छे तो तेने रागनी अपेक्षा छे नहि. भाई! प्रत्येक तत्त्व भिन्न-भिन्न छे. अजीव ते जीव नहि अने जीव ते अजीव नहि एम सामान्यपणे कहे, पण अजीवनुं परिणमन हुं करी शकुं अने मारुं परिणमन अजीवथी छे एवुं माने तेने मान्यतामां जीव-अजीवनी एकता होवाथी मिथ्यात्व छे.

आ अक्षरो लखाय छे ते परमाणुओनुं परिणमन छे. परमाणुओ (प्रत्येक) स्वयं स्वतः परिणमीने अक्षररूप थया छे. ए अक्षररूप परिणमन तारी कलमथी के ताराथी (जीवथी) थयुं छे एम नथी. मोतीना दाणा जेवा अक्षरो लखाय त्यां तुं अभिमान करे के- वाह! केवा सरस अक्षर में लख्या छे? धूळेय तें लख्या नथी, सांभळने! परमाणुओ त्यां स्वयं पोतानी शक्तिथी अक्षररूपे परिणम्या छे. आ आगम-मंदिरमां आरसमां जे आगम कोतरायां छे तेनो प्रत्येक अक्षर अनंत परमाणुनो पिंड छे. ते


PDF/HTML Page 1268 of 4199
single page version

परमाणुओ स्वयं पोतानी सहज परिणमननी शक्तिथी आगमना अक्षररूपे कोतराई गया छे. आगमना अक्षररूप परिणमननी क्रिया मशीनथी के कारीगरथी थई छे एम छे नहि. अहीं कहे छे के परमाणुमां जो अक्षररूपे परिणमवानी निज शक्ति न होय तो बीजो तेने परिणमावी शके नहि, अने जो पोतानी सहज परिणमनशक्तिथी परमाणु अक्षररूपे परिणम्या छे तो तेमां कोई अन्यनी अपेक्षा रहेती नथी. जैन परमेश्वरनो वीतराग-मार्ग बहु सूक्ष्म छे, भाई!

अज्ञानी ज्यां-त्यां कर्तापणानुं मिथ्या अभिमान करे छे. हुं केवो होशियार छुं! जगतना पदार्थोनी सरस व्यवस्था हुं करी शकुं छुं. आवुं बधुं भ्रमथी अज्ञानी माने छे. अरे भाई! जडनी अवस्था अने व्यवस्था स्वयं जडथी पोताथी थाय एवी सहज परिणमनशक्ति जडमां रहेली छे. तेनो तुं कर्ता नथी. जडनी व्यवस्थानी अवस्था जे थवा योग्य होय ते स्वयं तेनाथी थाय त्यां तुं शुं करी शके? तारा विकल्पनी एमां कयां अपेक्षा छे? तारी इच्छाने लईने जडमां परिणमन थाय एम छे ज नहि. आ आगममंदिरने जोईने कोई एम कहे के आ कोई भारे निष्णात इजनेरनुं काम छे तो ते यथार्थ नथी. अरे भाई! आ आगममंदिरनी जे रचना थई ते परमाणुनी सहज परिणमनशक्तिथी स्वतंत्र तेनाथी थई छे, इजनेरथी, कडियाथी के अन्य कोईथी थई छे एम छे नहि. गजब वात छे!

उज्जैनमां अढी करोडनो संचो (मशीन) विनोद मिलमां छे. तेमां रू नाखे तो कपडुं बनीने बहार आवे छे. ते रूमांथी जे कापड बने छे ते तेनी परिणमनशक्तिथी तेनाथी पोताथी बने छे, मशीनने लईने के कोई अन्यथी ते कार्य थाय छे एम छे नहि. अरे! जैनमां रहीने आवा तत्त्वनी खबर न होय ए तो बिचारा भ्रममां पडेला छे! जैन तो एने कहीए के जे एम माने के-जडनी अनंत परमाणुनी (प्रत्येकनी) जे पर्याय जे काळे जे थवानी होय ते एनाथी थाय, माराथी नहि; अने जे रागादि विकारी भाव थाय ते पण मारी चीज नहि; हुं तो एकमात्र ज्ञाताद्रष्टा छुं. अहाहा...! आवुं जे अंतरंगमां माने ते जैन छे बाकी बधा अजैन छे.

अहीं कहे छे-प्रथम, स्वयं अपरिणमताने पर वडे परिणमावी शकाय नहि; कारण के वस्तुमां जे शक्ति स्वतः न होय तेने अन्य कोई करी शके नहि. अने स्वयं परिणमताने पर (अन्य) परिणमावनारनी अपेक्षा न होय; कारण के वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी. (परनी अपेक्षा राखे तो वस्तु पराधीन थई जाय). आ रीते बन्ने पक्ष असत्य छे. तेथी पुद्गलद्रव्य परिणमनस्वभाववाळुं स्वयमेव हो एम सिद्धांत छे.

वस्तुमां समय-समयनी जे पर्याय थाय ते पोताथी थाय छे; तेने परनी अपेक्षा


PDF/HTML Page 1269 of 4199
single page version

नथी. आ मोटर जे चाले छे ते स्वयं पोताथी चाले छे, तेने पेट्रोलनी के पर चालकनी (चलावनारनी) अपेक्षा नथी. अहा! गजब वात छे! आ भेदज्ञाननी वात लोकोने कठण पडे छे पण आ सत्य वात छे. भाई! परनी पर्याय ताराथी न थाय, अने तारी पर्याय परथी न थाय केमके वस्तु स्वयमेव परिणमनस्वभाववाळी छे. ज्ञानावरणीय आदि कर्म जे बंधाय ते जीव रागादि भाव करे छे माटे बंधाय छे एम नथी. अहाहा...! जड अने चैतन्य बन्नेनो प्रगट स्वभाव भिन्न छे अने बंने स्वयमेव परिणमन स्वभाववाळा छे.

शास्त्रनी वाणी काने पडतां जे ज्ञाननी पर्याय उत्पन्न थई ते शास्त्रना शब्दोथी थई छे एम नथी. ज्ञाननी पर्याय ज्ञानथी स्वतः उत्पन्न थई छे, एने शब्दोनी अपेक्षा नथी. शास्त्रना शब्दोने लईने अहीं ज्ञान थयुं छे एम छे नहि. अहो! आ गाथाओ बहु ऊंची छे! कहे छे- स्वयं अपरिणमताने बीजो केम परिणमावी शके? अने स्वयं जो परिणमे छे तो तेने बीजानी अपेक्षा शी?

प्रश्नः– बीजी चीज निमित्त तो छे ने?

उत्तरः– हा, बीजी चीज निमित्त छे. पण एनो अर्थ शुं? बीजी चीज निमित्त हो, पण निमित्तथी कार्य थाय छे ए वात त्रणकाळमां नथी. निमित्तनुं कार्य निमित्तमां अने उपादाननुं कार्य उपादानमां पोताथी थाय छे. निमित्त कोई परवस्तुने बदलावी के परिणमावी देतुं नथी, केमके स्वयं परिणमनारने कोई परनी अपेक्षा नथी.

वस्तुतः कुंभार घडानो कर्ता नथी. कुंभार घडो करे तो कुंभारनो घडामां प्रवेश थई जाय. आ वात अगाउ गाथा १०४ मां आवी गई छे. माटीमय घटकर्म माटीथी थयुं छे. कुंभार तेमां पोतानां द्रव्य के पर्यायने भेळवतो नथी; पोतानां द्रव्य-पर्यायने नहि भेळवतो कुंभार घटकर्म केम करे? परमार्थे कुंभार घडानो कर्ता छे ज नहि. तेम आ जीवने जे विकार थाय छे ते पोताथी थाय छे, तेमां कर्मनी अपेक्षा नथी. कर्म निमित्त हो भले, पण कर्मने लईने जीवमां विकारना परिणाम थाय छे एम छे नहि. निमित्तथी कार्य थाय एवुं माननारनो अहीं स्पष्ट निषेध कर्यो छे.

पूजा करती वखते ‘स्वाहा’ इत्यादि पाठ जे बोले छे ते भाषानी पर्याय छे अने ते परमाणुनी परिणमनशक्तिथी स्वतः थाय छे. भाषानी पर्यायनो जीव कर्ता नथी. जीवने विकल्प थयो माटे भाषानुं परिणमन थयुं छे एम नथी. अहा! नवे तत्त्व भिन्न भिन्न छे. त्यां एक तत्त्व बीजानुं शुं करे? भगवाने तत्त्वोनी स्वतंत्रतानो ढंढेरो पीटयो छे. भाई! आ वात तने परिचय नहि एटले साधारण लागे पण आ भेदज्ञाननी असाधारण वात छे.


PDF/HTML Page 1270 of 4199
single page version

आ पुस्तक जे अहीं (घोडी उपर) रह्युं छे ते घोडीना आधारे रह्युं छे एम नथी. अधिकरण नामनी द्रव्यमां शक्ति छे; ते पोतानी शक्तिना आधारे पुस्तक रह्युं छे, घोडीना आधारे नहि. (पुस्तक पुस्तकमां अने घोडी घोडीमां छे). आ मकाननुं छापरुं छे ते केंचीना आधारे नथी अने केंची छे ते भींतना आधारे रही नथी. अहाहा...! परमाणु-परमाणुनी प्रतिसमय थती पर्याय स्वतंत्र पोताथी थाय छे, परने लईने ते पर्याय थती नथी. जड अने चेतनमां समये समये जे पर्याय प्रगट थाय ते पोताथी थाय छे, कोई अन्यनी तेमां अपेक्षा नथी, कोई अन्य तेने परिणमावतो नथी.

प्रवचनसार गाथा १०२ मां आवे छे के दरेक पर्यायनी जन्मक्षण होय छे अने ते काळे ते पर्याय स्वयं पोताथी उत्पन्न थाय छे, तेमां बीजानी अपेक्षा नथी. तेथी पुद्गलद्रव्य परिणमनस्वभाववाळुं स्वयमेव हो. हवे कहे छे-

‘एम होतां (होवाथी), जेम घडारूपे परिणमेली माटी ज पोते घडो छे तेम, जड स्वभाववाळा ज्ञानावरणादिकर्मरूपे परिणमेलुं पुद्गलद्रव्य ज पोते ज्ञानावरणादि कर्म छे. आ रीते पुद्गलद्रव्यनुं परिणामस्वभावपणुं सिद्ध थयुं.’

जुओ, आ दाखलो आप्यो के घडारूपे परिणमेली माटी ज पोते घडो छे, घडारूपे माटी परिणमी छे. घडो माटीनुं कार्य छे, कुंभारनुं नहि.

प्रश्नः– माटी लाख वर्ष पडी रहे तोपण शुं कुंभार विना घडो थाय छे?

उत्तरः– हा, अहीं कहे छे के माटीनो घडो थवानुं कारण माटीमां पोतामां रहेलुं छे. वस्तुनो सहज परिणमनस्वभाव छे ने! माटी स्वयं घडो थवाना काळे घडारूपे परिणमे छे. एमां कुंभारनुं कांई कर्तव्य नथी. कुंभार तो बाह्य निमित्तमात्र छे. अहाहा...! भाषा तो जुओ! कहे छे-घडारूपे परिणमेली माटी ज पोते घडो छे. गजब वात छे! माटीमां घडारूप पर्याय थवानो काळ-जन्मक्षण छे तो माटीथी स्वतः घडारूप परिणामनो उत्पाद थयो छे. कुंभारथी घडो उत्पन्न थाय छे एम त्रणकाळमां बनतुं नथी.

कोई स्त्रीना हाथथी रसोई सारी थती होय तो लोको कहे छे के आ बाई बहु होशियार छे अने एनो हाथ बहु हळवो छे एटले रसोई-भजीया, पुडला वगेरे-सारी थाय छे. अरे, बाईथी अने एना हाथथी धूळेय थतुं नथी, सांभळने! ए रसोईरूप परिणाम तो ते काळे ते ते पुद्गलपरमाणु स्वतः परिणमीने थया छे, स्त्री के तेनो हाथ ते परिणामनो कर्ता नथी.

आ में कर्युं, आ में कर्युं-एम करी-करीने अज्ञानी जीव अनंतकाळथी मरी रह्यो छे, चार गतिमां दुःखी-दुःखी थईने रखडी रह्यो छे. आटलां पुस्तक बनाव्यां, ने


PDF/HTML Page 1271 of 4199
single page version

आटला शिष्य बनाव्या, आटलो फाळो एकठो कर्यो इत्यादि तुं मिथ्या कर्तृत्वनुं अभिमान करे छे, पण भाई! ए बहारनां जडनां कार्य कोण करे? ए तो थवा काळे स्वयं थाय छे. ए कार्यो थवामां तारी (परनी) अपेक्षा कयां छे? प्रभो! आ मिथ्या अहंकारथी तने दुःख थशे.

प्रश्नः– आ मोरपींछी नीचे पडी छे ते शुं एनी मेळे ऊंची थशे?

उत्तरः– अरे भाई! सांभळ. पुद्गलमां जेम परिणमनशक्ति छे तेम क्रियावती-शक्ति पण छे. तेथी जे समये पींछीनो ऊंची थवानो काळ छे ते समये स्वकाळने प्राप्त थयेली पींछी पोतानी शक्तिथी ज ऊंची थवानी पर्यायने प्राप्त थाय छे, कोई अन्य तेनो कर्ता नथी. जे समये ऊंची थवानी पर्यायरूप परिणमन नथी ते समये बीजो तेने केम ऊंची करी शके? अने जे समये ऊंची थवानी पर्यायरूप परिणमन स्वतः छे तो बीजो त्यां शुं करे? कांई नहि. आ आकाश छे तेनो टुकडो लईने कोई तेने ऊंचो करी शके छे? ना. केम? एवो ज तेनो स्वभाव छे. तेम आनो-पुद्गलनो क्रियावतीशक्तिरूप स्वभाव छे जे वडे स्वकाळने प्राप्त पींछी स्वयं ऊंची थवाना परिणामरूप परिणमी जाय छे. (संयोगद्रष्टि छोडीने वस्तुना स्वभावथी जोतां एम भासे छे.)

जेनी द्रष्टि विपरीत छे तेने बधुं ऊंधुं देखाय छे. तेने आ तत्त्वनी वात बेसती नथी. अरे भगवान! मिथ्या श्रद्धाने लईने तने अनंत-अनंत भव थया छे. हवे द्रष्टि पलटी दे. अहीं कहे छे के घडारूपे परिणमेली माटी ज पोते घडो छे. घडो माटीनुं कार्य छे, कुंभारनुं कदापि नहि. अहाहा...! जे रूपे पदार्थ परिणमे ते-रूपे ज ते पदार्थ छे, पररूपे कदीय नहि. तेथी जडस्वभाववाळा ज्ञानावरणादि कर्मरूपे परिणमेलुं पुद्गलद्रव्य ज पोते ज्ञानावरणादि कर्म छे. आ रीते पुद्गलद्रव्यनुं परिणामस्वभावपणुं सिद्ध थयुं.

हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छे;-

* कळश ६४ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘इति’ आ रीते ‘पुद्गलस्य’ पुद्गलद्रव्यनी ‘स्वभावभुता परिणामशक्तिः’ स्वभावभूत परिणमनशक्ति ‘खलु अविघ्ना स्थिता’ निविघ्न सिद्ध थई. ‘तस्यां स्थितायां’ ए सिद्ध थतां, ‘सः आत्मनः यम् भावं करोति’ पुद्गलद्रव्य पोताना जे भावने करे छे ‘तस्य सः एव कर्ता’ तेनो ते पुद्गलद्रव्य ज कर्ता छे.

जुओ, जीव ज्यारे रागादि भावे परिणमे छे त्यारे ते समये पुद्गलपरमाणु पोतानी पर्यायथी कर्मरूपे परिणमे छे, केमके तेमां सहज परिणमनशक्ति छे. पोतानी परिणमनशक्तिथी परिणमन थयुं त्यां ते कर्मरूप परिणमन थवामां बाह्य कारण शुं छे? तो कहे छे के जीवना विकारना परिणाम तेमां निमित्त छे. निमित्तनो अर्थ अनुकूळ


PDF/HTML Page 1272 of 4199
single page version

थाय छे. जेम नदीमां प्राणीनो प्रवाह चाले तेमां कांठो तेने निमित्त छे. कांठाने लईने प्राणीनो प्रवाह चाले छे एम नथी; प्रवाह तो पोताथी चाले छे एमां बन्ने कांठा तेने अनुकूळ छे, अर्थात् निमित्त छे.

तेम नवां कर्म जे बंधाय ते पोताथी बंधाय छे त्यारे जीवना विकारी भाव तेमां निमित्त छे. विकारी भाव छे माटे त्यां कर्मबंधननी पर्याय थाय छे एम नथी. जीवने अनुकंपाना भाव थाय ते वखते शातावेदनीय कर्म बंधाय छे. ते कर्म स्वयं पोतानी योग्यताथी बंधाय छे त्यारे तेमां जीवना अनुकंपाना भावने निमित्त कहेवामां आवे छे. निमित्त नाम अनुकूळ अने जे प्रकृति बंधाय तेने अनुरूप कहेवाय छे. आ वात गाथा ८६मां आवी गई छे. माटीमांथी घडो बने तेमां कुंभार अनुकूळ छे अने माटी तेने अनुरूप छे. घडो थवामां कुंभार अनुकूळ छे एटले के निमित्त छे, पण घडो कुंभारथी बने छे एवुं त्रणकाळमां नथी. निमित्तने अनुकूळ अने नैमित्तिक पर्यायने अनुरूप कहेवाय छे.

आ लाकडी आम ऊंची थाय तेने आंगळी अनुकूळ छे, पण लाकडीनी ऊंची थवानी पर्यायने आंगळीए करी नथी. पोताना परिणमनस्वभावथी लाकडी ऊंची थाय छे, तेमां आंगळी अनुकूळ छे अने लाकडीनी जे नैमित्तिक पर्याय थई ते तेने अनुरूप छे. अनुरूपनी पर्यायने अनुकूळ निमित्ते बनावी नथी. बन्ने पोतपोतामां पोताथी स्वतंत्रपणे परिणमे छे.

जीवमां जे विकार थाय ते पोताथी स्वतंत्रपणे उत्पन्न थाय छे. तेमां जडकर्म निमित्त छे पण कर्मने लईने विकार थाय छे एम नथी. जीवमां जे विकार थाय ते अनुरूप छे अने जडकर्म तेने अनुकूळ छे. जीवने जे मिथ्यात्वना परिणाम थाय छे ते पोताना ऊंधा पुरुषार्थथी, पोतानी वीर्यशक्तिना ऊंधा परिणमनथी स्वतंत्रपणे थाय छे. तेमां कर्मनी अपेक्षा बिलकुल नथी. कर्म निमित्त हो, पण निमित्तथी जीवने विकार थाय छे एम त्रणकाळमां नथी.

आवी स्वतंत्रतानी वात सांभळी लोको खळभळी ऊठे छे. पण भाई! आ वात परम सत्य छे. लोकोने अनादिथी निमित्ताधीन द्रष्टि छे अने अभ्यास पण तेवो ज छे. एटले आ स्वतंत्रतानी वात समजवी कठण पडे छे. पण शुं थाय? स्वभावनी द्रष्टि करे तो सहेजे समजाय तेम छे.

अहीं कहे छे के पुद्गलद्रव्यमां निराबाध परिणमनशक्ति छे. पोताना भावे परिणमता पुद्गलद्रव्यने कोई परद्रव्य अन्यथा करी दे ए त्रणकाळमां संभवित नथी. जीवमां ज्यारे विकार थाय त्यारे पुद्गलद्रव्य स्वतः ज्ञानावरणादि कर्मरूपे परिणमी जाय छे. ते कर्मबंधननी पर्यायने विकार निमित्त छे, अनुकूळ छे पण विकारने कारणे कर्मबंधन थाय


PDF/HTML Page 1273 of 4199
single page version

छे एम नथी. ते कर्मबंधननी पर्यायनो कर्ता पुद्गल परमाणु छे, रागादि भाव तेनो कर्ता नथी. पुद्गलद्रव्य स्वतंत्रपणे पोताना परिणमननो कर्ता छे.

भावार्थः– ‘सर्व द्रव्यो परिणमनस्वभाववाळां छे तेथी पोतपोताना भावना पोते ज कर्ता छे. पुद्गलद्रव्य पण पोताना जे भावने करे छे तेनो पोते ज कर्ता छे.’

दरेक द्रव्यमां परिणमनस्वभाव छे, एक अवस्थाथी अवस्थांतरपणे बदलवानो स्वभाव छे, एटले पोताना भावनो पोते ज कर्ता छे. पुद्गलद्रव्य पण स्वतंत्रपणे पोताना भावने करे छे अने तेनो पुद्गलद्रव्य पोते ज कर्ता छे.


PDF/HTML Page 1274 of 4199
single page version

जीवस्य परिणामित्वं साधयति–

ण सयं बद्धो कम्मे ण सयं परिणमदि कोहमादीहिं।
जदि एस तुज्झ जीवो अप्परिणामी तदा होदि।। १२१ ।।

अपरिणमंतम्हि सयं जीवे कोहादिएहिं भावेहिं।
संसारस्स अभावो पसज्जदे संखसमओ वा।। १२२ ।।

पोग्गलकम्मं कोहो जीवं परिणामएदि कोहत्तं।
तं सयमपरिणमंतं कहं णु परिणामयदि कोहो।। १२३ ।।

अह सयमप्पा परिणमदि कोहभावेण एस दे बुद्धी।
कोहो परिणामयदे जीवं कोहत्तमिदि मिच्छा।। १२४ ।।

कोहुवजुत्तो कोहो माणुवजुत्तो य माणमेवादा।
माउवजुत्तो माया लोहुवजुत्तो हवदि लोहो।। १२५ ।।

हवे जीवनुं परिणामीपणुं सिद्ध करे छेः-

कर्मे स्वयं नहि बद्ध, न स्वयं क्रोधभावे परिणमे,
तो जीव आ तुज मत विषे परिणमनहीन बने अरे! १२१.

क्रोधादिभावे जो स्वयं नहि जीव पोते परिणमे,
संसारनो ज अभाव अथवा समय सांख्य तणो ठरे! १२२.

जो क्रोध–पुद्गलकर्म–जीवने परिणमावे क्रोधमां,
कयम क्रोध तेने परिणमावे जे स्वयं नहि परिणमे? १२३.

अथवा स्वयं जीव क्रोधभावे परिणमे–तुज बुद्धि छे,
तो क्रोध जीवने परिणमावे क्रोधमां–मिथ्या बने. १२४.

क्रोधोपयोगी क्रोध, जीव मानोपयोगी मान छे,
मायोपयुत माया अने लोभोपयुत लोभ ज बने. १२प.

PDF/HTML Page 1275 of 4199
single page version

न स्वयं बद्धः कर्मणि न स्वयं परिणमते क्रोधादिभिः।
यद्येषः तव जीवोऽपरिणामी तदा भवति।। १२१ ।।

अपरिणममाने स्वयं जीवे क्रोधादिभिः भावैः।
संसारस्याभावः प्रसजति सांख्यसमयो वा।। १२२ ।।

पुद्गलकर्म क्रोधो जीवं परिणामयति क्रोधत्वम्।
तं स्वयमपरिणममानं कथं नु परिणामयति क्रोधः।। १२३ ।।

अथ स्वयमात्मा परिणमते क्रोधभावेन एषा ते बुद्धिः।
क्रोधः परिणामयति जीवं क्रोधत्वमिति मिथ्या।। १२४ ।।

क्रोधोपयुक्तः क्रोधो मानोपयुक्तश्च मान एवात्मा।
मायोपयुक्तो माया लोभोपयुक्तो भवति लोभः।। १२५ ।।

गाथार्थः– सांख्यमतना अनुयायी शिष्य प्रति आचार्य कहे छे के हे भाई! [एषः] [जीवः] जीव [कर्मणि] कर्ममां [स्वयं] स्वयं [बद्धः न] बंधायो नथी अने [क्रोधादिभिः] क्रोधादिभावे [स्वयं] स्वयं [न परिणमते] परिणमतो नथी [यदि तव] एम जो तारो मत होय [तदा] तो ते (जीव) [अपरिणामी] अपरिणामी [भवति] ठरे छे; अने [जीवे] जीव [स्वयं] पोते [क्रोधादिभिः भावैः] क्रोधादिभावे [अपरिणममाने] नहि परिणमतां, [संसारस्य] संसारनो [अभावः] अभाव [प्रसजति] ठरे छे [वा] अथवा [सांख्यसमयः] सांख्यमतनो प्रसंग आवे छे.

[पुद्गलकर्म क्रोधः] वळी पुद्गलकर्म जे क्रोध ते [जीवं] जीवने [क्रोधत्वम्] क्रोधपणे [परिणामयति] परिणमावे छे एम तुं माने तो ए प्रश्न थाय छे के [स्वयम् अपरिणममानं] स्वयं नहि परिणमता एवा [तं] जीवने [क्रोधः] क्रोध [कथं नु] केम [परिणामयति] परिणमावी शके? [अथ] अथवा जो [आत्मा] आत्मा [स्वयम्] पोतानी मेळे [क्रोधभावेन] क्रोधभावे [परिणमते] परिणमे छे [एषा ते बुद्धिः] एम तारी बुद्धि होय, तो [क्रोधः] क्रोध [जीवं] जीवने [क्रोधत्वम्] क्रोधपणे [परिणामयति] परिणमावे छे [इति] एम कहेवुं [मिथ्या] मिथ्या ठरे छे.

माटे ए सिद्धांत छे के [क्रोधोपयुक्तः] क्रोधमां उपयुक्त (अर्थात् जेनो उपयोग क्रोधाकारे परिणम्यो छे एवो) [आत्मा] आत्मा [क्रोधः] क्रोध ज छे, [मानोपयुक्तः] मानमां उपयुक्त आत्मा [मानः एव] मान ज छे, [मायोपयुक्तः] मायामां उपयुक्त आत्मा [माया] माया छे [च] अने [लोभोपयुक्तः] लोभमां उपयुक्त आत्मा [लोभः] लोभ [भवति] छे.


PDF/HTML Page 1276 of 4199
single page version

(उपजाति)
स्थितेति जीवस्य निरन्तराया
स्वभावभूता परिणामशक्तिः।
तस्यां स्थितायां स करोति भावं
यं स्वस्य तस्यैव भवेत्स कर्ता।। ६५ ।।

टीकाः– जो जीव कर्ममां स्वयं नहि बंधायो थको क्रोधादिभावे स्वयमेव न परिणमे तो ते खरेखर अपरिणामी ज ठरे. एम थतां संसारनो अभाव थाय. अहीं जो एम तर्क करवामां आवे के “पुद्गलकर्म जे क्रोधादिक ते जीवने क्रोधादिभावे परिणमावे छे तेथी संसारनो अभाव थतो नथी ”, तो तेनुं निराकरण बे पक्ष लईने करवामां आवे छेः-पुद्गलकर्म क्रोधादिक छे ते स्वयं अपरिणमता जीवने क्रोधादिभावे परिणमावे के स्वयं परिणमताने? प्रथम, स्वयं अपरिणमताने पर वडे परिणमावी शकाय नहि; कारण के (वस्तुमां) जे शक्ति स्वतः न होय तेने अन्य कोई करी शके नहि. अने स्वयं परिणमताने तो पर (अन्य) परिणमावनारनी अपेक्षा न होय; कारण के वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी. (आ रीते बन्ने पक्ष असत्य छे.) तेथी जीव परिणमनस्वभाववाळो स्वयमेव हो. एम होतां (होवाथी), जेम गरुडना ध्यानरूपे परिणमेलो मंत्रसाधक पोते गरुड छे तेम, अज्ञानस्वभाववाळा क्रोधादिरूपे जेनो उपयोग परिणम्यो छे एवो जीव ज पोते क्रोधादि छे. आ रीते जीवनुं परिणामस्वभावपणुं सिद्ध थयुं.

भावार्थः– जीव परिणामस्वभाव छे. ज्यारे पोतानो उपयोग क्रोधादिरूपे परिणमे छे त्यारे पोते क्रोधादिरूप ज थाय छे एम जाणवुं.

हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः-

श्लोकार्थः– [इति] आ रीते [जीवस्य] जीवनी [स्वभावभूता परिणामशक्तिः] स्वभावभूत परिणमनशक्ति [निरन्तराया स्थिता] निर्विध्न सिद्ध थई. [तस्यां स्थितायां] सिद्ध थतां, [सः स्वस्य यं भावं करोति] जीव पोताना जे भावने करे छे [तस्य एव सः कर्ता भवेत्] तेनो ते कर्ता थाय छे.

भावार्थः– जीव पण परिणामी छे; तेथी पोते जे भावरूपे परिणमे छे तेनो कर्ता थाय छे. ६प.

* * *

PDF/HTML Page 1277 of 4199
single page version

समयसार गाथा १२१ थी १२पः मथाळुं

हवे जीवनुं परिणामीपणुं सिद्ध करे छेः-

* गाथा १२१ थी १२पः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘जो जीव कर्ममां स्वयं नहि बंधायो थको क्रोधादिभावे स्वयमेव न परिणमे तो ते खरेखर अपरिणामी ज ठरे. एम थतां संसारनो अभाव थाय.’

जुओ, आ गाथाओ बहु ऊंची छे. अहीं क्रोध शब्दथी विकारी भाव समजवुं. दया, दान, व्रत, तप, भक्तिना विकल्प ए जीवनुं कर्म-कार्य छे. ते विकारना भावे जीव स्वयमेव जो न परिणमे तो ते खरेखर अपरिणामी-नहि बदलनारो कूटस्थ ज ठरे.

जीवमां विकार थाय छे ते पोताथी थाय छे; कर्मने लईने विकार थाय छे एम नथी. पोताना (ऊंधा) पुरुषार्थथी विकार थाय छे अने पोताना (सम्यक्) पुरुषार्थथी विकार टळे छे. विकार निश्चयथी पोताना षट्कारकथी थाय छे, तेमां पर कारकोनी अपेक्षा नथी. पंचास्तिकायनी गाथा ६२ मां आवे छे के विकार पोताना षट्कारकथी थाय छे, कर्मथी नहि. कर्म निमित्त हो, अनुकूळ हो; परंतु कर्मथी विकार थतो नथी.

अहीं कहे छे के जीव स्वयं विकाररूपे न परिणमतो होय तो ते अपरिणामी सिद्ध थशे अने अपरिणामी सिद्ध थतां संसारनो अभाव थशे. संसार एटले आ बैरां-छोकरां नहि. पण मिथ्यात्व अने राग-द्वेषना परिणामने संसार कहेवामां आवे छे. जीव पोते स्वयं मिथ्यात्व अने राग-द्वेषना परिणामरूपे न परिणमे तो संसारनो अभाव थई जशे.

‘अहीं जो एम तर्क करवामां आवे के ‘‘पुद्गलकर्म जे क्रोधादिक ते जीवने क्रोधादिभावे परिणमावे छे तेथी संसारनो अभाव थतो नथी,’’ तो तेनुं निराकरण बे पक्ष लईने करवामां आवे छेः-

पुद्गलकर्म क्रोधादिक छे ते स्वयं अपरिणमता जीवने क्रोधादिभावे परिणमावे के स्वयं परिणमताने? प्रथम, स्वयं अपरिणमताने पर वडे परिणमावी शकाय नहि; कारण के (वस्तुमां) जे शक्ति स्वतः न होय तेने अन्य कोई करी शके नहि. अने स्वयं परिणमताने तो पर (अन्य) परिणमावनारनी अपेक्षा न होय; कारण के वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी. (आ रीते बन्ने पक्ष असत्य छे.) तेथी जीव परिणमनस्वभाववाळो स्वयमेव हो.’

आ बधुं तारे समजवुं पडशे, भाई! आ मकान, बाग-बंगला, धन, कुटुंब इत्यादि तारां नहि रहे भाई! बधुं क्षणवारमां ज छूटी जशे. तुं आ परने पोतानां


PDF/HTML Page 1278 of 4199
single page version

माने छे ए तारुं पागलपणुं छे, मूढता छे. मोक्षमार्ग प्रकाशकमां द्रष्टांत आवे छे के-एक पागल (बहावरो) बेठो हतो. त्यां राजाए सैन्य सहित आवीने पडाव नाख्यो. हाथी, घोडा, राजकुमार, दास, दासी ए बधाने जोईने ते पागल आ बधां मारां छे एम समजवा लाग्यो. भोजन करीने सैन्य सहित ज्यारे राजाए प्रयाण कर्युं तो ते पागल विचारवा लाग्यो-अरे! आ बधां कयां चाल्यां? एवा विचारथी ते अत्यंत खेदखिन्न थयो. तेम अज्ञानी जीव, कय ांयथी पुत्र, धन आदिनो वर्तमानमां संयोग थतां ए बधां मारां छे एम माने छे ते मूर्ख पागल जेवो छे. भाई! ए बधां तारां नथी, तारा कारणे आव्यां नथी, तारां कारणे रह्यां नथी. पोतपोताना कारणे सौ आव्यां छे, पोतपोतानी योग्यताथी रह्यां छे अने पोतपोताना कारणे सौ चाल्यां जशे. कोईना कारणे कोई छे एम छे नहि. अहीं कहे छे के जीवमां जे विकार थाय छे ते पोताथी थाय छे, कर्मना कारणे नहि.

जीव जो स्वयं पोते विकाररूपे न परिणमे तो ते कूटस्थ सिद्ध थशे अने एम थतां संसारनो अभाव थई जशे.

त्यारे आ तर्क करवामां आवे छे के-जीव पोते विकाररूपे परिणमतो नथी पण जड कर्म तेने विकाररूपे परिणमावे छे, तेथी संसारनो अभाव थतो नथी. आ तर्कनुं अहीं निराकरण करवामां आवे छे.

कहे छे के स्वयं अपरिणमता जीवने क्रोधरूपे-विकाररूपे परिणमावी शकाय नहि कारण के वस्तुमां जे शक्ति स्वतः न होय तेने कोई अन्य करी शके नहि. पोते ज स्वयं परिणमतो नथी तेने अन्य केम परिणमावी शके? त्रणकाळमां न परिणमावी शके. वस्तुमां परिणमवानी शक्ति न होय तो बीजो तेने परिणमावी शके ए त्रणकाळमां संभवित नथी. अहो! दिगंबर संतोए गजब वात करी छे! अहाहा...! दिगंबर मुनिवरो जाणे चालता सिद्ध! धन्य ए अवतार! धन्य ए मुनिदशा! अहाहा...! अमृतचंद्रस्वामीए शुं अद्भुत टीका रची छे!

स्फटिकमां फूलना निमित्ते जे लाल-लीली झांय पडे छे ते झांयरूपे स्फटिक पोतानी योग्यताथी स्वयं परिणमे छे; फूलना कारणे ते लाल-लीली झांय पडे छे एम नथी. लाकडानी नजीक जो लाल-लीली फूल राखे तो त्यां झांय पडती नथी केमके लाकडामां ते जातनुं परिणमन थवानी योग्यता नथी.

निश्चय, व्यवहार, निमित्त, उपादान अने क्रमबद्धपर्याय आ पांच महत्त्वनी वात पर अत्यारे मुख्यपणे चर्चा छे. जेने समजाय नहि ते वांधा उठावे छे, परंतु दिगंबर संतोए सत्यने खुल्लुं मूकयुं छे. ते समज्ये ज जीवनुं कल्याण छे.


PDF/HTML Page 1279 of 4199
single page version

समयसारना सर्वविशुद्धज्ञान अधिकारमां गाथा ३०८ थी ३१२ नी टीकामां ‘क्रमनियमित’ शब्द पडयो छे. त्यां कह्युं छे के-‘प्रथम तो जीव क्रमबद्ध एवा पोताना परिणामोथी ऊपजतो थको जीव ज छे, अजीव नथी; एवी रीते अजीव पण क्रमबद्ध पोताना परिणामोथी ऊपजतुं थकुं अजीव ज छे, जीव नथी.’ जुओ, एकलो क्रम-एम नहि पण क्रमनियमित छे एम स्पष्ट कह्युं छे. तेनो अर्थ ए थाय छे के जीव अने अजीवनी जे काळे जे पर्याय थवानी होय ते क्रमबद्ध पोताथी थाय छे. कोई पण पर्याय आघी-पाछी के आडी-अवळी न थाय. भाई! क्रमबद्धनी आ वात आम शास्त्रना आधारथी छे, कांई अद्धरथी कल्पनानी वात नथी. जेम मोतीना हारमां जे मोती ज्यां छे त्यां ज ते छे, आगळ-पाछळ नथी. तेम प्रत्येक द्रव्यमां दरेक पर्याय जे समये थवानी छे ते ज समये ते पर्याय नियतपणे थाय छे, आघी-पाछी के आडी-अवळी थती नथी.

जीव पोतामां विकारना परिणाम स्वतंत्रपणे करे छे अने त्यारे कर्मने तेमां अनुकूळ निमित्त कहेवामां आवे छे. जीवमां विकार थाय त्यारे कर्मनो उदय अनुकूळ छे पण त्यां कर्म निमित्त छे तो अहीं जीवमां विकार थाय छे एम नथी. अहाहा...! स्वयं अपरिणमताने अन्य कोई परिणमावी शके नहि. जीव स्वयं विकाररूपे न परिणमे तो कर्मनो उदय जीवने विकाररूपे परिणमावे ए त्रणकाळमां बनी शके नहि, केमके वस्तुमां जे शक्ति स्वतः न होय तेने अन्य कोई करी शके नहि. आ एक वात.

हवे बीजी वातः-स्वयं परिणमताने पर परिणमावनारनी अपेक्षा न होय, केमके वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी. जीवमां स्वयं विकार पोतानी योग्यताथी थाय छे तो निमित्तथी-परथी विकार थाय ए वात कयां रही? स्वयं परिणमनारने परनी शुं अपेक्षा? जीव विकाररूपे परिणमे छे ते काळे कर्म निमित्त छे, कर्म तेमां अनुकूळ छे पण कर्म छे तो जीव विकाररूपे परिणमे छे वा कर्मने लईने जीव विकाररूपे परिणमे छे एम बिलकुल नथी.

जीवने सम्यग्दर्शन थाय त्यां व्यवहार होय छे; ते व्यवहार जाणवा लायक छे. पण व्यवहारथी निश्चय प्रगटे एम छे नहि. व्यवहार छे खरो पण एनाथी निश्चय-सम्यग्दर्शन थतुं नथी. जेम निमित्तथी परनुं कार्य थतुं नथी तेम व्यवहारथी निश्चय थतो नथी.

सर्वज्ञ भगवाने एक समयमां त्रणकाळ-त्रणलोक देख्या छे. तो जे पर्याय जे समये थवानी होय ते ज समये ते पर्याय थाय. तेने आघी-पाछी करवा कोई समर्थ नथी. स्वामी कार्तिकेय अनुप्रेक्षामां आवे छे के सर्वज्ञ भगवाने जे प्रमाणे जोयुं ते प्रमाणे ते ते काळे ते ते पर्याय त्यां थशे. तेने फेरववा कोई इन्द्र, नरेन्द्र के जिनेन्द्र समर्थ


PDF/HTML Page 1280 of 4199
single page version

नथी. जेने पर्यायनी स्वतंत्रतानो साचो निर्णय नथी तेने द्रव्यद्रष्टि प्रगट थती नथी. अहाहा...! समये समये थती प्रत्येक द्रव्यनी प्रत्येक पर्याय स्वतंत्रपणे थाय छे एवी जेने श्रद्धा नथी तेने पर्यायरहित त्रिकाळी शुद्ध द्रव्य तरफ द्रष्टि जती नथी.

अहीं कहे छे-स्वयं परिणमनारने बीजानी अपेक्षा नथी. वस्तुनी जे शक्तिओ छे तेने परनी अपेक्षा न होय. गजब वात छे! आ महासिद्धांत कह्यो छे के प्रत्येक द्रव्यनी प्रतिसमय जे जे पर्याय थाय ते स्वयं पोताथी थाय छे; तेमां सामे बीजी चीज निमित्त हो, अनुकूळ हो; अने ते काळे जे पोतामां पर्याय थई ते निमित्तने अनुरूप हो; पण निमित्तथी नैमित्तिक पर्याय थाय छे एम कदीय नथी. निमित्तथी (उपादाननी) पर्याय थाय तो निमित्त उपादान थई जाय. (पण एम छे नहि).

अन्यमतवाळा ईश्वरने कर्ता माने छे. तेम जैनमां रहीने जो कोई कर्मने कर्ता माने तो ते अन्यमती जेवो छे. कर्म हेरान करे छे एम माने एनी द्रष्टि विपरीत छे; ते मिथ्याद्रष्टि छे. कर्म तो जड छे, ते शुं करे? पूजामां जयमालामां आवे छे के-

कर्म बिचारे कौन, भूल मेरी अधिकाई,
अग्नि सहै घनघात, लोहकी संगति पाई.

जुओ! अग्नि लोढानो संग करे तो तेने घणना घा खावा पडे छे. तेम जीव स्वयं विकारनो संग करे तो दुःखी थवुं पडे छे. कर्म के नोकर्म तेने राग करावे छे एम नथी. कर्मथी राग थाय छे एम नथी. जीव स्वयं रागरूपे परिणमे छे त्यां तेने परनी अपेक्षा नथी, केमके वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी. आ रीते बन्ने पक्षथी अज्ञानीनी वात जूठी सिद्ध थाय छे.

तेथी जीव परिणमनस्वभाववाळो स्वयमेव हो.

हवे कहे छे-‘एम होतां (होवाथी), जेम गरुडना ध्यानरूपे परिणमेलो मंत्र-साधक पोते गरुड छे तेम, अज्ञानस्वभाववाळा क्रोधादिरूपे जेनो उपयोग परिणम्यो छे एवो जीव ज पोते क्रोधादि छे. आ रीते जीवनुं परिणामस्वभावपणुं सिद्ध थयुं.

क्रोध-मान-माया-लोभरूप भाव छे ते अज्ञानस्वभाववाळा छे. ते क्रोधादि भाव जडकर्मथी थया छे एम नथी. वळी ते क्रोधादि भाव ज्ञानीना छे एम पण नथी. ए बधा भावो अज्ञानस्वभाववाळा छे. एवा स्वभावे जेनो उपयोग परिणम्यो छे एवो (अज्ञानी) जीव ज पोते क्रोधादि छे. आ रीते जीवनुं परिणामस्वभावपणुं सिद्ध थयुं.

* गाथा १२१ थी १२पः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘जीव परिणामस्वभाव छे. ज्यारे पोतानो उपयोग क्रोधादिरूपे परिणमे छे त्यारे पोते क्रोधादिरूप ज थाय छे एम जाणवुं.’