Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] १११

हवे कहे छे-अनंत धर्मोवाळा एक धर्मीमां जे निष्णात नथी एवा निकटवर्ती शिष्यजनने, जो के धर्म अने धर्मीनो स्वभावथी अभेद छे तोपण नामथी भेद उपजावी-व्यवहारमात्रथी ज एवो उपदेश छे के ज्ञानीने दर्शन छे, ज्ञान छे, चारित्र छे.

आत्मा एक ज्ञायक वस्तु छे. एमां ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अस्तित्व, वस्तुत्व आदि अनंत धर्मो छे. आवा अनंतधर्मोवाळा एक धर्मीमां जे निष्णात नथी, एटले के अनंतधर्मो होवा छतां अभेद एकत्वरूप धर्मीनुं जेने ज्ञान नथी, अनुभव नथी एवा निकटवर्ती शिष्यने भेद पाडी समजाववामां आवे छे. अहीं निकटवर्ती शिष्य लीधो छे. शिष्य बे प्रकारे निकट छे-क्षेत्रथी अने भावथी. एटले के पात्र थईने मुमुक्षुता प्रगट करीने जिज्ञासाथी तत्त्व समजवा समीपमां आव्यो छे. एवा शिष्यने भेद पाडी व्यवहारथी समजाववामां आवे छे. अनंतधर्मोवाळो धर्मी आत्मा एक छे, स्वभावथी अभेदरूप छे, तोपण तेने ओळखाववा माटे शिष्यने भेद पाडी समजाववुं पडे छे, केमके बीजो कोई उपाय नथी. तेथी अनंत धर्मोमांथी धर्मीने ओळखावनारा केटलाक धर्मो वडे शिष्यने उपदेश आपवामां आवे छे के ज्ञानीने ज्ञान छे, दर्शन छे, चारित्र छे. नाममात्रथी ज भेद उपजावी आचार्योए व्यवहारथी ज आवो उपदेश आप्यो छे.

जेमके सुखडना लाकडामां सुगंध छे. सुंवाळप छे, वजन छे इत्यादि नाममात्र भेद पाडी (सुखड) समजाववामां आवे छे. खरेखर तेमां एवा भेद नथी. तेम आ भगवान आत्मामां भेद नथी. ते तो अभेद एक वस्तु छे. परंतु जेने ते अभेद एक शुद्ध द्रव्यनुं ज्ञान नथी एवा पात्र शिष्यने उपदेश करनार आचार्यो कथनमात्र भेद पाडी वस्तुतत्त्व समजावे छे-के आत्मामां ज्ञान छे, दर्शन छे, चारित्र छे.

संसारमां बधा भणे छे. कोई मेट्रिक, बी. ए., एल एल.बी., एम. डी. वगेरे थाय छे ने? ए तो बधी पापनी विद्या छे. एवी विद्या तो अनंतवार प्राप्त करी छे, पण आ विद्या एकवार पण प्राप्त करी नथी. भगवान आत्मा जे अखंड एकरूप ज्ञायक छे तेने जाणवा-अनुभववानी विद्या अनंतकाळमां एकवार पण प्राप्त करी नथी. (एक वार पण ज्ञायकमां डोकियुं करे तो भवोभवनां दुःख मटी जाय).

अहाहा! आचार्योए नामथी भेद उपजावी व्यवहारथी शिष्यने उपदेश आप्यो के आत्मा दर्शन छे, ज्ञान छे, चारित्र छे. परंतु परमार्थथी जोवामां आवे तो अनंत पर्यायोने एक द्रव्य पी गयुं होवाथी एकरूप, किंचित् एकमेक मळी गयेला आस्वादरूप, अभेद एकस्वभाव वस्तुनो अनुभव करनार पंडित पुरुषने दर्शन पण नथी, ज्ञान पण नथी अने चारित्र पण नथी, ते तो एक शुद्ध ज्ञायक ज छे.