Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] ११३

धर्मोना नामरूप भेदने उत्पन्न करी उपदेश करवामां आवे छे के ज्ञानीने दर्शन छे, ज्ञान छे, चरित्र छे.

वस्तुमां अस्तित्व, वस्तुतत्व, द्रव्यत्व, इत्यादि साधारण धर्मो छे. दर्शन, ज्ञान, चारित्र, आदि आत्माना असाधारण धर्मो छे. अभेद वस्तुमां परमार्थे भेद न होवा छतां, आ असाधारण धर्मो द्वारा कथनमात्र भेद उत्पन्न करी आचार्यो उपदेश आपे छे के आत्माने दर्शन छे, ज्ञान छे, चारित्र छे. जे ज्ञानी नथी एने संतो नाममात्रथी भेद पाडी समजावे छे. आम अभेदमां भेद करवामां आवे छे तेथी ते व्यवहार छे, व्यवहार छे तेथी अभूतार्थ छे, असत्यार्थ छे. आगळ आठमी गाथामां कहेशे के व्यवहारनय स्थापन करवा योग्य छे, पण अनुसरवा योग्य नथी. एटले के व्यवहार छे खरो, भेदथी समजाववानी शैली छे खरी, पण भेद अनुसरवा लायक नथी. भेदना लक्षे अशुद्धता आवे छे, निर्विकल्पता थती नथी.

परमार्थथी विचारवामां आवे तो अनंत पर्यायोने एक द्रव्य अभेदरूपे पीने बेठुं छे तेथी तेमां भेद नथी. द्रव्य बधा भेदोने पीने बेठुं छे. वस्तु अंदर एकाकार अभेदरूपे स्थित छे, तेथी तेमां भेद नथी. भेदथी समजाववामां आवे छे ते कथनमात्र छे. आवो धर्म झीणो छे भाई! लोको बिचारा आ समजे नहीं अने सामायिक, प्रौषध, जात्रा, भक्ति आदि बाह्य क्रिया करे. पण सत्य हाथ आव्या विना चोराशीना अवतारमां रखडवानुं छे. ज्यारे अभेदद्रष्टिथी आत्माने जुए त्यारे सत्य हाथ आवे तेम छे.

त्यारे अहीं शिष्यने प्रश्न थाय छे के-पर्याय पण द्रव्यना ज भेद छे, अवस्तु तो नथी; तो तेने व्यवहार केम कही शकाय? प्रथम शिष्यनो प्रश्न बराबर समजवो जोईए. भेद जे पर्याय छे ते द्रव्यनो ज पोतानो अंश छे, अवस्तु एटले के परवस्तु तो नथी. जेम शरीर पर छे, कर्म पर छे एम पर्याय पर छे एम नथी. पर्याय तो स्वद्रव्यनो अंश छे तेथी स्ववस्तु छे, पोतानी छे, पोतामां छे, निश्चय छे. तो तेने व्यवहार केम कहेवाय? भाषा तो सादी छे, पण भाव घणो ऊंडो छे, भाई! अहो! पंडित जयचंद्रजीए केवो सरस खुलासो कर्यो छे!

तेनुं समाधानः– ए तो खरुं छे. पर्याय वस्तुनो ज भेद छे पण अहीं द्रव्यद्रष्टिथी अभेदने प्रधान करी उपदेश छे!

द्रव्य अने पर्याय बन्ने आत्मानी चीज छे. पर्याय छे ते पण वस्तु छे, अवस्तु नथी. परंतु अहीं पर्यायद्रष्टि छोडावी द्रव्यद्रष्टि कराववानुं प्रयोजन छे. तेथी अभेदने मुख्य