Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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११४ [ समयसार प्रवचन

करी उपदेश छे. अभेदद्रष्टिमां भेदने गौण कहेवाथी ज अभेद सारी रीते मालूम पडी शके छे. तेथी भेदने गौण करीने तेने व्यवहार कह्यो छे. अहीं भेदने गौण करीने एटले अभाव करीने एम नहीं, पण भेदने अमुख्य राखीने एटले के भेदनुं लक्ष छोडीने तेने व्यवहार कह्यो छे. व्यवहार कहो के असत्यार्थ कहो; पर्यायने गौण करीने असत्यार्थ कही छे, अभाव करीने नहीं.

अहीं एवो अभिप्राय छे के भेदद्रष्टिमां निर्विकल्प दशा थती नथी. अनंत गुणोनो धरनार धर्मी एवो जे अभेद आत्मा तेमां ज्ञान, दर्शन, चारित्र, प्रभुता, स्वच्छता एवा अनंत गुणोना भेद जो लक्षमां लेवा जशे तो राग उत्पन्न थशे, सम्यग्दर्शन नहीं थाय. नव तत्त्वना भेद पाडवा ए वात तो दूर रही पण गुण अने गुणीनो भेद पाडवा जाय त्यां पण निर्विकल्प दशा थती नथी. वस्तु अने एनी शक्तिओ एवो ज भेद ते द्रष्टिनो विषय नथी. द्रष्टिनो विषय तो अभेद, अखंड, एक ज्ञायक छे. द्रष्टि पोते पर्याय छे पण पर्याय ते द्रष्टिनुं ध्येय नथी.

प्रश्नः– वर्तमान पर्याय तेमां (द्रष्टिना विषयमां) भेळववी के नहीं?

उत्तरः– वर्तमान पर्याय भिन्न रहीने द्रव्यनी प्रतीति करे छे. ते एमां भळे कयांथी? पर्याय भिन्न रहे छे, ते द्रव्यमां भळती नथी, एक थती नथी.

अने सरागीने विकल्प रह्या करे छे. भेदने जाणवुं ए कांई रागनुं कारण नथी. केवळी भगवान भेद-अभेद सर्वने जाणे छे. अरिहंत परमात्मा द्रव्य-गुण-पर्याय, भेद-अभेद, लोक-अलोक सर्वने जाणे छे. माटे भेदने जाणवो ए रागनुं कारण नथी. पण सरागीने भेद जाणतां विकल्प उत्पन्न थाय छे. रागी जीवने भेद जाणतां राग उत्पन्न थाय छे. तेथी अनंत गुणोनो अभेद पिंड भगवान आत्मा अने अनंतगुण एम भेद पाडी द्रष्टि करतां राग थाय तेथी पुण्यबंध थाय पण सम्यग्दर्शननी अबंध पर्याय न थाय. सरागीने भेदनुं लक्ष करतां विकल्प थाय पण निर्विकल्प दशा न थाय. केवळी भगवान तो भेदाभेदरूप समग्र लोकालोकने जाणे पण तेमने राग थतो नथी, केमके तेओ वीतराग छे. परंतु रागी प्राणीने भेदनी द्रष्टि थतां राग थया विना रहेतो नथी.

आत्मा वस्तु अरूपी चिद्घन छे, तेमां आ भाव अने आ भाववान एम बे भाग पाडीने वस्तुने जोवा जाय तो रागी जीव छे तेथी तेने राग थशे. माटे ज्यां सुधी रागादिक मटे नहीं त्यां सुधी भेदने गौण करी अभेदरूप निर्विकल्प अनुभव कराववामां आव्यो छे. गुणीमां गुण नथी एम नथी, पण भेदने गौण करी अभेदनुं लक्ष करवानुं प्रयोजन छे.