जेम अनार्य (म्लेच्छ) जनने अनार्यभाषा विना कांई पण वस्तुनुं स्वरूप ग्रहण कराववा कोई समर्थ नथी तेम व्यवहार विना परमार्थनो उपदेश करवा कोई समर्थ नथी.
अनार्यने समजाववुं होय त्यारे एनी भाषामां समजावाय. अनार्यभाषा विना एने वस्तुनुं स्वरूप न समजावी शकाय. तेम अज्ञानीने समजाववो होय त्यारे भेद पाडया विना परमार्थ वस्तुने समजावी शकाय नहीं. आत्मा, आत्मा, आत्मा एम कहीए, पण भेद पाडीने व्यवहारथी समजावीए नहीं के ‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रने प्राप्त छे ते आत्मा’ त्यां लगी अज्ञानी कांई समजी शके नहीं. तेथी भेद पाडीने परमार्थ वस्तु समजाववामां व्यवहार आवे खरो, पण ते आदरणीय नथी.
जेम कोई म्लेच्छने कोई ब्राह्मण ‘स्वस्ति’ एवो शब्द कहे छे त्यारे ते म्लेच्छ ए शब्दना वाच्य-वाचक संबंधना ज्ञानथी रहित होवाथी कांईपण समजतो नथी. वाच्य पदार्थ अने तेना वाचक शब्दो ए बन्नेना संबंधनुं ज्ञान न होवाथी म्लेच्छ कांईपण समजतो नथी. जेम ‘साकर’ पदार्थ वाच्य छे अने ‘साकर’ शब्द तेनो वाचक छे. तेम ‘स्वस्ति’ एटले ‘तारुं अविनाशी कल्याण थाओ’ ए वाच्य छे अने ‘स्वस्ति’ शब्द एनुं वाचक छे. पण आ वाच्य-वाचक संबंधनुं ज्ञान न होवाथी कांईपण न समजतां आ शुं कहे छे?-एम ते म्लेच्छ ब्राह्मण सामे मेंढानी जेम आंखो फाडीने टगटग जोई ज रहे छे.
पण ज्यारे ब्राह्मणनी भाषा अने म्लेच्छनी भाषा बन्नेनो अर्थ जाणनार अन्य कोई पुरुष अथवा ते ज ब्राह्मण म्लेच्छभाषा बोली तेने समजावे छे के ‘स्वस्ति’ शब्दनो अर्थ “तारुं अविनाशी कल्याण थाओ”-एवो छे त्यारे तुरत ज उत्पन्न थतां अत्यंत आनंदमय आंसुओथी जेनां नेत्रो भराई जाय छे एवो ते म्लेच्छ ए ‘स्वस्ति’ शब्दनो अर्थ समजी जाय छे. अहा! आवो आ ब्राह्मणनो आशीर्वाद छे एम ‘स्वस्ति’ शब्दनो अर्थ बराबर समजवाथी तेनी आंखो हर्षनां आंसुओथी भराई जाय छे. आ द्रष्टांत थयुं, हवे सिद्धांत कहे छे.
एवी रीते व्यवहारीजन पण ‘आत्मा’ एवो शब्द कहेवामां आवतां जेवो ‘आत्मा’ शब्दनो अर्थ छे ते अर्थना ज्ञानथी रहित होवाथी कांईपण न समजतां मेंढानी जेम आंखो फाडीने टगटग जोई ज रहे छे. अहीं म्लेच्छना स्थाने व्यवहारीजन लीधो छे.