Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२० [ समयसार प्रवचन

व्यवहारीजन ‘आत्मा’ एवो शब्द सांभळतां कांईपण समजतो नथी. केमके ‘आत्मा’ शुं पदार्थ छे एनुं एने ज्ञान नथी. तेथी आ शुं कहे छे-शुं बके छे एम अनादरथी नहीं, पण शुं कहे छे-एवी समजवानी जिज्ञासाथी मेंढानी जेम आंखो फाडीने टगटग जोई ज रहे छे. ‘आत्मा’ सत्य शुं छे? भगवाननुं कहेलुं तत्त्व शुं छे? ए सांभळवानी लायकातथी कहेनारनी सामे आंखो फाडीने टगटग जुए छे.

पण ज्यारे व्यवहार-परमार्थमार्ग पर सम्यग्ज्ञानरूपी महारथने चलावनार सारथि समान अन्य कोई आचार्य अथवा ‘आत्मा’ शब्द कहेनार पोते ज व्यवहारमार्गमां रहीने “दर्शन-ज्ञान-चारित्रने जे हंमेशां प्राप्त होय ते आत्मा छे” एवो ‘आत्मा’ शब्दनो अर्थ समजावे छे, त्यारे तुरत ज उत्पन्न थता अत्यंत आनंदथी जेना हृदयमां सुंदर बोध-तरंगो (ज्ञानतरंगो) ऊछळे छे; एवो ते व्यवहारीजन ते ‘आत्मा’ शब्दनो अर्थ सुंदर समजी जाय छे.

जुओ, अहीं सम्यग्ज्ञानरूपी महारथने चलावनार सारथि समान आचार्य व्यवहार-परमार्थमार्गमां स्थित छे. निश्चय वस्तु आत्मा स्वरूपथी जे छे ते छे ते परमार्थ छे अने तेने भेद करीने समजाववी ते व्यवहार छे. अहीं अन्य आचार्य के ‘आत्मा’ शब्द कहेनार पोते ज व्यवहारमार्गमां रहीने एटले विकल्पथी भेद पाडीने शिष्यने समजावे छे. वस्तु तो अभेद एकरूप छे पण शिष्यने समजाववुं होय त्यारे भेद पाडीने समजाववुं पडे छे, केमके बीजो तो कोई उपाय नथी. तेथी अखंड, अभेद आत्मामां नाममात्र भेद उपजावी शिष्यने समजावे छे के ‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रने हंमेशां प्राप्त होय ते आत्मा.’ अहीं दर्शन, ज्ञान, चारित्र एवा आत्माना त्रण असाधारण मुख्य धर्मोनुं लक्ष करी भेद पाडीने समजाव्युं छे. शरीर के पुण्य-पापना भावने प्राप्त होय ते आत्मा एम लीधुं नथी, पण दर्शन-ज्ञान-चारित्रने प्राप्त होय ते आत्मा एम व्यवहारथी भेद पाडीने समजावे छे.

अहाहा...! मुनिराज आचार्य दिगंबर संत छे. एमणे शिष्यने कह्युं- ‘आत्मा.’ पण शिष्य कांई समज्यो नहीं. एटले वस्तु आत्मा छे तो अंदरमां अनंतगुणने प्राप्त अभेद, परंतु एना मुख्य धर्मोने लक्ष करी ‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रने हंमेशां प्राप्त होय ते आत्मा’ एम भेद करीने शिष्यने समजावे छे. रागने प्राप्त थाय ते आत्मा के शरीरने प्राप्त थाय ते आत्मा एम छे नहीं. आटलो भेद पाडवो पडे ए कांई उपाय तो नथी; पण थाय शुं? भेद आदरणीय नथी, आदरणीय तो एक परमार्थ वस्तु अभेद आत्मा ज छे. अतति गच्छति इति आत्मा एम द्रव्यसंग्रहमां आवे छे. अहीं ‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रने प्राप्त होय ते आत्मा’ एम भेद पाडीने आचार्य परमार्थ समजावे छे.