सामे असंख्यात नरकना भव. भाई! भूली गयो तुं, पण अहीं तो भगवानना ज्ञानमां आवेली, शास्त्रमां कहेली वात कहेवाय छे. नरकना भवथी असंख्यातगुणा अनंत देवना भव कर्या. अहीं कहेवानो आशय एम छे के अनंतकाळमां आवा जे अनंत देवना भव कर्या ते कांई पापथी थोडा कर्या छे? व्रत, तप, आदि पुण्य अनंतवार कर्यां, पण शुद्धनय अने तेनो विषय जे त्रिकाळ, एकरूप, ध्रुव आत्मा तेने जाण्यो नहीं तेथी सम्यग्दर्शनादि धर्म थयो नहीं. तेथी आवुं भवभ्रमणनुं दुःख ऊभुं रह्युं छे. भवभ्रमणमां देवना भव करतां अनंतगुणा निगोदसहित तिर्यंचना भव थया छे. एक सम्यग्दर्शन विना जीवने संसारमां अनंत भव-परिभ्रमणनी अकथ्य वेदना भोगववी पडी छे. अहो! आ तो सर्वज्ञ परमात्माए एक समयमां जे आत्मा जोयो अने कह्यो ते केवो छे अने तेनो अनुभव केम थाय एनी वात चाले छे. अज्ञानीओ समज्या विना जे आत्मा, आत्मा कहे छे तेनी वात नथी. वेदांतवाळा सर्वव्यापी जे आत्मा माने छे तेनी पण वात नथी. अहीं तो अभेद एकरूपसत् वस्तु जे अनंतगुणोनो पिंड, नित्य ध्रुव सामान्य वस्तु छे ते आत्मा छे. तेने लोको जाणता नथी. आवा अभेद आत्मामां भेद नहीं होवा छतां ‘आ जाणे ते आत्मा, आ देखे ते आत्मा’ एवो भेद पाडी आत्मानुं परमार्थस्वरूप समजाववुं ते अशुद्धनय छे, व्यवहारनय छे. अनादिथी लोको अशुद्धनयने ज जाणे छे, भेदरूप वस्तुने ज जाणे छे. तेथी अभेद एकरूप वस्तुमां भेद उपजावीने एने समजाववामां आवे त्यारे ज परमार्थने समजी शके छे. शुद्धनयनो विषय अभेद एकरूप वस्तु छे, ज्यारे अशुद्धनयनो विषय भेदरूप अनेक प्रकार छे. अभेद एकरूप वस्तुमां व्यवहार द्वारा भेद पाडीने समजाववाथी तेओ परमार्थने समजी शके छे. आ कारणे व्यवहारनयने परमार्थनो कहेनार जाणी तेनो उपदेश करवामां आवे छे. व्यवहार द्वारा भेदनुं कथन ए निश्चयवस्तुने जाणवा माटे छे. ‘आ जाणे-देखे ते आत्मा’ एम भेद द्वारा परमार्थवस्तु अभेदनो अनुभव कराववानुं ज प्रयोजन छे. अहीं एम न समजवुं के व्यवहारनुं आलंबन करावे छे. भेद पाडीने अभेद समजाव्युं छे. पण भेदनुं आलंबन न लेवुं. ‘आ ज्ञान ते आत्मा’ एम भेद पाडीने अभेदनी द्रष्टि करावी छे. त्यां गुण-गुणीना भेदरूप व्यवहारनो आश्रय न करवो. आत्मामां परवस्तु नथी, दया, दाननो राग नथी, पण ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवा अनंतगुणो तेमां अभेदपणे छे. त्यां परमार्थवस्तु समजाववा माटे भेद पाडीने उपदेश छे. अभेदमां भेद कहेवो ते व्यवहारनय छे. माटे ते आश्रय करवा योग्य नथी. तेनुं आलंबन न लेवुं. भेद छोडीने द्रव्यस्वभाव एक त्रिकाळी ध्रुवनो आश्रय करवो ए सम्यग्दर्शन छे.