अरिहंतनी वाणीने जाणे, पण ए ज्ञाननी पर्याय देव-गुरु-शास्त्रनी के अरिहंतनी वाणीनी नथी. ए ज्ञाननी पर्याय तो आत्माथी तादात्म्य संबंधे छे तेथी आत्मानी छे. ज्ञाननी पर्याय सर्व परने जाणे छतां ते सर्व परनी छे ज नहीं केमके पर साथे तेने तादात्म्य संबंध नथी. सर्वज्ञेयने जाणे छतां ज्ञान ज्ञेयनुं नथी, ज्ञान आत्मानुं ज छे.
दिगंबर मुनिवरो अंतरमां निर्लेप हता, तेओ तो मुख्यपणे अतीन्द्रिय आनंदना वेदनमां लीन रहेता हता. तेमनी आ टीका अने उपदेश छे. कोई कहे आवो उपदेश! दया पाळो, जीवोने बचावो, अभयदान दो, एम कहो ने! बापु दान कोण दे, कोने दे? तने खबर नथी. आत्मामां कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, अधिकरण एम षट्कारक गुण छे. एमां एक संप्रदान नामनो गुण छे. ए संप्रदान गुणनुं कार्य शुं? निर्मळ वीतरागी पर्याय पोते पोताने दे अने पोते ज ले. आने निश्चयदान कहेवामां आवे छे. पूर्णानंदनो नाथ जे अखंड अभेद एक आत्मा तेने स्वसंवेदनज्ञान वडे जाणतां अने तेमां एकाग्र थतां जे अतीन्द्रिय आनंद प्रगटे ते आनंदनुं दान देनार पोते अने लेनार पण पोते एने निश्चयदान कहे छे, ते धर्म छे. बाकी दया पाळवानो भाव के मुनिराजने आहारदान देवानो भाव के अभयदाननो विकल्प ए शुभराग छे, धर्म नथी. अने हुं दया पाळी शकुं, दान दई शकुं एवी मान्यता ए मिथ्यात्व छे.
अहीं बे वात करी छे. एक तो भावश्रुत एटले स्वसंवेदनज्ञान वडे जे प्रत्यक्ष सीधो आत्माने जाणे ते श्रुतकेवळी छे ते परमार्थ छे, निश्चय छे. बीजी वात एम करी के जे सर्व श्रुतज्ञानने जाणे ते श्रुतकेवळी छे ते व्यवहार छे.
अरीसामां सामे कोलसा, नाळियेर वगेरे जे चीज होय ते बराबर देखाय. जे देखाय छे ते कोलसा वगेरे नथी पण ए तो अरीसानी अवस्था छे. एम आत्माना ज्ञाननी अवस्थामां पर ज्ञेयपदार्थो जणाय, पण जे जणाय छे ते पर ज्ञेयो नथी पण ए तो आत्माना ज्ञाननी अवस्था छे. तेथी जे ज्ञेयोने जाणती ज्ञाननी पर्याय ते ज्ञेयोनी नथी पण आत्मानी छे. ते पर्याय एम जणावे छे के ‘आ ज्ञान ते आत्मा छे,’ आ जाणे छे ते आत्मा छे. आवो जे भेद पडयो ते व्यवहार छे अने परमार्थनो प्रतिपादक छे एटले के ते व्यवहार निश्चयने बतावे छे.
नानी उंमरमां वांचवामां एम आवतुं के ‘केवळी आगळ रही गयो कोरो.’ एटले के आ आत्मा केवळी भगवान पासे समोसरणमां अनंतवार गयो, पण एवो ने एवो कोरो रही गयो. पोतानुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते अनंतकाळमां पण जाण्युं नहीं.