Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 137 of 4199

 

१३० [ समयसार प्रवचन

तेने अहीं समजावे छे के-भाई, आ मार्ग जुदो छे. जेने आवो मार्ग द्रष्टिमां बेसी जाय तेनुं कल्याण थई जाय एवी वात छे. अहीं कहे छे के जे ज्ञाननी पर्यायमां बार अंग जणाय, द्रव्य-गुण-पर्याय जणाय, बधा पर जणाय, ए ज्ञान ज्ञेयरूप नथी पण आत्मरूप छे. ए ज्ञान अनात्मरूप ज्ञेयनुं नथी पण आत्मानुं ज छे. तेथी अन्यपक्षनो अभाव होवाथी ज्ञान आत्मा ज छे ए वात सिद्ध थाय छे. ‘ज्ञाननी पर्याय ते आत्मा’ ए व्यवहार छे अने ते व्यवहार परमार्थ आत्माने बतावे छे.

दया, दान आदि कषायमंदताना परिणामने ज्ञान जाणे छे, त्यां कषायमंदता छे माटे ज्ञान तेने जाणे छे एम नथी. कषायमंदतानुं ज्ञान थयुं त्यां ज्ञाननी पर्यायने एनी साथे संबंध नथी. कषाय तो अचेतन छे अने ज्ञान चेतन छे. माटे ज्ञाननी पर्यायने कषायमंदता साथे संबंध नथी. कषायमंदता कर्ता अने ज्ञान तेनुं कर्म, एम नथी. ज्ञाननी पर्याय ए आत्मानुं कर्म छे अने ते आत्माने बतावे छे. तेथी आ ‘ज्ञान ते आत्मा’ एटलो जे व्यवहार करवामां आवे छे ते परमार्थने ज बतावे छे.

माटे श्रुतज्ञान पण आत्मा ज छे. आम थवाथी ‘जे आत्माने जाणे छे ते श्रुतकेवळी छे’ एम ज आवे छे; अने ते तो परमार्थ ज छे. आ रीते ज्ञान अने ज्ञानीना भेदथी कहेनारो जे व्यवहार तेनाथी पण परमार्थमात्र ज कहेवामां आवे छे. ‘ज्ञान ते आत्मा छे’ आम भेदथी कहेनारो व्यवहार परमार्थमात्र आत्मा ज बतावे छे, तेनाथी भिन्न अधिक कांई बतावतो नथी.

हवे कहे छे-वळी “जे श्रुतथी केवळ शुद्धात्माने जाणे छे ते श्रुतकेवळी छे” एवा परमार्थनुं प्रतिपादन करवुं अशकय छे. अनंतशक्तिनो पिंड ज्ञानानंदस्वरूप भगवान आत्मा अखंड एकरूप परमार्थ वस्तु छे. ते अनुभवगम्य छे. तेनुं कथन करवुं शी रीते? तेने भावश्रुतज्ञानथी पकडी अनुभवे ए पण परमार्थ छे, सत्य छे. ए तो निश्चय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान छे. परंतु ए परमार्थ अनुभवनुं कथन करवुं केवी रीते? एवा परमार्थनुं कथन करवुं अशकय छे तेथी “जे सर्व श्रुतज्ञानने जाणे छे ते श्रुतकेवळी छे” एवो भेदरूप व्यवहार करवामां आवे छे अने ते व्यवहार परमार्थनो प्रतिपादक छे माटे पोताने द्रढपणे स्थापित करे छे.

जे ज्ञाननी पर्याय सर्वश्रुतने जाणे ते आत्मा छे. ते ज्ञान त्रिकाळी ज्ञायकने जणावे छे. परमार्थनुं कथन करवुं अशकय छे तेथी द्रव्यश्रुतनुं ज्ञान जे छे-ते ज्ञान द्वारा आत्माने जाणे ते श्रुतकेवळी छे एम भेद पाडी समजाववामां आवे ए व्यवहार छे. आम परमार्थने कहेनारो व्यवहार छे खरो, पण व्यवहार अनुसरवा योग्य नथी. त्रिकाळी ज्ञायक एकनुं ज अनुसरण करवुं ते परमार्थ छे.