Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] १३१

दया, दान, व्रत, भक्ति आदि परिणाम ते शुभराग छे, ते धर्म नथी, धर्मनुं कारण पण नथी. वळी आ दया पाळे ते आत्मा, भक्ति करे ते आत्मा एम पण नथी. ए तो रागनी क्रिया छे, ते आत्मा नहीं, अहीं कहे छे के ‘ज्ञान ते आत्मा’ एम जाणवुं ए व्यवहार छे. ते व्यवहारनुं लक्ष छोडी दई त्रिकाळी अखंडनी द्रष्टि करवी ते परमार्थ छे, सत्य छे. सर्व श्रुतज्ञानने जाणे ते श्रुतकेवळी छे एवो व्यवहार परमार्थना प्रतिपादकपणाने लीधे द्रढपणे स्थापित छे. ए रीते व्यवहार छे खरो, पण व्यवहारथी निश्चय थाय एम नथी. व्यवहार जे परमार्थ वस्तुने बतावे ते परमार्थ एक ज आदरणीय छे एम जाणी, व्यवहारनो आश्रय छोडी एक परमार्थनो ज अनुभव करवो. * भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

जे शास्त्रज्ञानथी अभेदरूप ज्ञायकमात्र शुद्ध आत्माने जाणे छे ते श्रुतकेवळी छे

ए तो परमार्थ छे, निश्चय छे. अहीं शास्त्रज्ञानथी कह्युं त्यां भावश्रुतज्ञान जाणवुं. वळी जे सर्व शास्त्रज्ञानने जाणे छे तेणे पण ज्ञानने जाणवाथी आत्माने ज जाण्यो, केमके ज्ञान छे ते आत्मा ज छे; तेथी ज्ञान-ज्ञानीनो भेद कहेनारो जे व्यवहार तेणे पण परमार्थ ज कह्यो, अन्य कांइ न कह्युं. आत्मा ज्ञायकस्वरूप प्रभु छे. व्यवहारे पण ते ज्ञायकने ज जाणवानुं कह्युं, परमार्थने जाणवानुं कह्युं. त्रिकाळीने पर्यायथी जाणवो. जाणनार पोते पर्याय छे, केमके कार्य तो पर्यायमां थाय छे. आ रीते व्यवहारे पण एक ध्रुवस्वभावने जाणवानुं कह्युं छे, बीजुं कांई कह्युं नथी. अहा! वीतराग जैन परमेश्वरे कहेला मार्गनी कथनशैली तो जुओ! जगत पासे आ धर्मनी वात बीजी रीते मूकाई छे. अन्य मार्ग जैनमार्ग तरीके मूकायो छे. पण ए जैनमार्ग नथी. दिगंबर संतोए जे बताव्यो ते ज साचो जैन वीतराग मार्ग छे. अहो! दिगंबर संतोए मार्गने न्याय अने युक्तिथी अति स्पष्ट समजाव्यो छे. परमार्थनो विषय तो कथंचित् वचनगोचर पण नथी तेथी व्यवहारनय ज आत्माने प्रगटपणे कहे छे एम जाणवुं. पूर्णानंदनो नाथ, अखंड, एक, अभेद वस्तु ते अनुभवनी चीज छे, तेने वचन द्वारा केवी रीते कहेवी? तेथी व्यवहारनय ज आत्माने प्रगटपणे स्पष्ट कहे छे. ‘ज्ञान ते आत्मा’ एवो भेद पाडी व्यवहारनय ज आत्माने जणावे छे. आवो मार्ग यथार्थ जाणे नहीं तेनुं मनुष्यपणुं एकडा विनानां मींडांनी जेम निरर्थक छे, निष्फळ छे. माटे आवुं वस्तुस्वरूप यथार्थ समजी परमार्थनो विषय जे अभेद, एक, शुद्ध आत्मा तेने द्रष्टिमां लेवो ते सम्यग्दर्शन छे, मोक्षमहेलनुं प्रथम पगथियुं छे.