Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ]

लय लय पार ग्रहे भवधार एटले के-जेम जेम शुद्धात्मामां लीनता पामतो जाय छे तेम तेम भवनो अंत आवतो जाय छे. आवा भगवान अविकारी आत्मानो जय हो, जय हो एम जयकार कर्यो छे. शब्द, अर्थ अरु ज्ञान

समय त्रय आगम गाये,
मत, सिद्धांत रुकाल–भेदत्रय नाम बताये;
ईनहिं आदि शुभ अर्थसमयवचके सुनिये
बहु,
अर्थसमयमें जीव नाम है सार, सुनहु सहु;
तातैं जु सार बिन कर्ममल शुद्ध जीव शुध नय कहे,
ईस ग्रंथ मांहि कथनी सबै, समयसार बुधजन गहै. ४

आगममां शब्दसमय जे वाचक छे, अर्थसमय जे वाच्य पदार्थ छे अने ज्ञानसमय जे पदार्थनुं ज्ञान छे -ए त्रणेने समय कह्या छे. वळी काळ मत अने सिद्धांतने पण आगममां समय नामथी कहेवामां आवे छे. ते बधामां पण शुभ अर्थसमय-जीव पदार्थ (शुद्धात्मा) तेथी कथनी प्रारंभमां ज बधा जीवो सांभळजो; कारण के कर्ममळ विनानी चीज निर्मळानंद प्रभु, त्रिकाळ ध्रुव, शुद्धजीव बधामां सारभूत छे. आ सारभूत चीजने शुद्धनय बतावे छे. आखा समयसारनो सार त्रिकाळ शुद्ध चैतन्यघन प्रभु -एने ज्ञानीजनो पर्यायमां ग्रहे छे. तेने ग्रहवो ए ज आखा समयसारनो सार छे. नामादिक छह ग्रंथमुख, तामें मंगल सार;

विघनहरन नास्तिकहरन, शिष्टाचार उचार.

मंगळ, नाम, निमित्त, प्रयोजन, परिमाण अने कर्ता-एम छ प्रकार ग्रंथनी शरूआतमां आवे छे. तेमां प्रथम मांगळिक छे. पवित्रताने पमाडे अने अपवित्रतानो नाश करे तेने मांगळिक कहे छे. ग्रंथनुं नाम ‘समयसार’ ते नाम छे; कोना निमित्ते बनाव्युं? तो जीव माटे बनावेल छे ए निमित्त छे. वीतरागदशा प्रगट करवी ए ग्रंथ बनाववानुं प्रयोजन छे. तेनुं परिमाण एटले संख्या ४१प गाथाओ छे. अने तेना कर्ता भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव छे. दरेक ग्रंथमां मांगळिक ते मुख्य छे. वळी केवुं छे मंगळ? विघ्ननो नाश करनारु छे. जेणे साधकभाव शरू कर्यो तेने विघ्न आवतुं नथी एम कहे छे. वळी नास्तिकहरण एटले के नास्तिकतानो नाश करनारुं छे. आ शिष्टाचार-एटले उत्तम पुरुषोनां आचरण-तेनो उच्चार छे एटले कथन छे. (अर्थात् मांगळिक ते ग्रंथनी शरूआतनो शिष्टाचार छे.) समयसार जिनराज है, स्याद्वाद जिनवैन, मुद्रा जिन

निरग्रंथता, नमूं करै सब चैन.