Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ समयसार प्रवचन

समयसार कहेतां भगवान आत्मा जिनराज छे. जिनराज पर्याय जे थाय छे ते जिनराज-स्वरूपमांथी थाय छे. अहीं तो कहे छे के आत्मानुं स्वरूप ज जिनराज छे.

वस्तुना अनेकांतस्वरूपने बतावनार (द्योतक) वीतरागनी वाणी ते स्याद्वाद छे.

अने जेने अंतरमां मिथ्यात्वादि रागनी गांठ छूटी गई छे अने बाह्यमां वस्त्रादि छूटी गयां छे एवा निर्गरंथ मुद्राधारी भावलिंगी संत ते गुरु छे. आवा देव, शास्त्र, गुरुने के जे आनंदना आपनारा छे तेमने हुं नमुं छुं.

आ प्रमाणे मंगळपूर्वक प्रतिज्ञा करीने श्री कुंदकुंदाचार्यकृत गाथाबद्ध समयप्राभृत ग्रंथनी श्री अमृतचंद्र आचार्यकृत आत्मख्याति नामनी जे संस्कृत टीका छे तेनी देशभाषामां वचनिका लखीए छीए.

प्रथम संस्कृत टीकाकार श्री अमृतचंद्र आचार्यदेव ग्रंथना आरंभमां मंगळ अर्थे ईष्टदेवने नमस्कार करे छेः- कळश नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते।

चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावांतरच्छिदे।। १।।

कळश उपरनुं प्रवचनः

अहाहा...! एकलुं अस्तिथी मांगळिक कर्युं छे! अस्ति एटले छे छे छे एवो भाव. ध्रुव चिदानंद जे छे अर्थात् समय नामनो पदार्थ जे छे तेमां सार कहेतां जे द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्मथी रहित शुद्धात्मा-पवित्र आत्मा तेने मारा नमस्कार हो. अहीं ईष्टदेवने नमस्कार कर्या छे. पोतानो त्रिकाळी ध्रुव आत्मा-चैतन्यमूर्ति ते पोते ज ईष्टदेव छे. तेने नमः एटले तेने नमुं छुं, तेमां ढळुं छुं, तेनो सत्कार करुं छुं, ध्रुव आत्मानी सन्मुख थइने तेमां हुं नमुं छुं ढळुं छुं आ नमुं छुं ते (नमन करवुं) पर्याय छे. (वस्तु ध्रुव छे.)

कळश टीकामां कह्युं छे के समय शब्दथी सामान्यपणे जीवादि सकळ पदार्थो जाणवा. तेमां सार कहेतां उपादेय चीज ते पोते छे. सार एटले उपादेय. त्रिकाळी ध्रुव, शुद्ध आत्मा उपादेय छे. आ पोतानी वात छे. जीव ए सार एटले उपादेय- त्रिकाळ उपादेय छे. कोने? तो कहे छे के पर्यायने. (पर्यायमां ध्रुव आत्मा एक ज त्रिकाळ उपादेय छे) आम स्व आत्मानुं ईष्टपणुं सिद्ध करीने नमस्कार कर्या. पर्यायमां तेनो स्वीकार कर्यो ए ज तेने नमस्कार छे. आ ‘नमः समयसाराय’ मांथी काढयुं. पोतानी जे शुद्ध जीव-वस्तु के जे प्रगट छे तेने सारपणुं घटे छे.