Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१३४ [ समयसार प्रवचन

पहेलां एम कह्युं हतुं के व्यवहारने अंगीकार न करवो. पण जो ते परमार्थनो कहेनार छे तो एवा व्यवहारने केम अंगीकार न करवो? ज्ञान ते आत्मा एवो भेद करनार व्यवहार परमार्थरूप आत्मानुं प्रतिपादन करे छे तो पछी तेने केम अंगीकार न करवो? आवो शिष्यनो प्रश्न छे. तेना उत्तररूप गाथासूत्र कहे छेः-

प्रवचन नंबर २४–२९, तारीख २४–१२–७प थी २९–१२–७प

* गाथार्थ उपरनुं प्रवचन *

आ गाथा बहु ऊंची छे. माल, माल भर्यो छे. वीतराग परमेश्वरनो मार्ग जे जैन दर्शन तेनो आ अगियारमी गाथा प्राण छे. बहु शांति अने धीरजथी समजवा जेवी आ गाथा छे. अनंतकाळमां सत्य शुं छे ते सांभळवा मळ्‌युं नथी अने कदाच सांभळवा मळ्‌युं तो ते समजवानो प्रयत्न कर्यो नहीं तेथी तेनी श्रद्धा थई नथी. आ सत्यनुं स्वरूप अहीं बताव्युं छे. भगवाननी वाणीमां जे वात आवी तेनो सार आ गाथामां भर्यो छे.

व्यवहारनय अभूतार्थ छे, अने शुद्धनय भूतार्थ छे एम ऋषीश्वरोए दर्शाव्युं छे. त्रिलोकीनाथ तीर्थंकरदेव अने साधुओना अग्रेसर गौतम आदि गणधरोए एम कह्युं छे के व्यवहारनय अभूतार्थ एटले असत्य छे, जूठो छे अने निश्चयनय भूतार्थ एटले सत्य, साचो छे.

जे जीव भूतार्थनो आश्रय करे छे ते जीव निश्चयथी सम्यग्द्रष्टि छे. त्रिकाळी पूर्ण आनंदस्वरूप जे ज्ञायकभाव, छतो पदार्थ, शाश्वत चीज आत्मा छे ते भूतार्थ छे. जे जीव तेनो आश्रय करे एटले के तेनी सन्मुख थाय ते निश्चयथी सम्यग्द्रष्टि छे. कर्म, राग, गुण-गुणीना भेद ए सघळो व्यवहार छे. ते असत्यार्थ छे, जूठो छे केमके कर्म, राग अने गुणभेद ए त्रिकाळी वस्तुमां नथी. ध्रुव वस्तु जे अनादि-अनंत असंयोगी, शाश्वत, भूतार्थ वस्तु-जेमां संयोग, राग, पर्याय के गुणभेद नथी.-एवा अभेदनी द्रष्टि करवी, आश्रय करवो ए सम्यग्दर्शन छे.

आ तो प्रथम दरज्जानो धर्म, जे सम्यग्दर्शन ते कोने कहेवाय तेनी वात चाले छे. अंदर आत्मा त्रिकाळी एकरूप अभेद ज्ञायक छे तेनो द्रष्टिमां ज्यां सुधी स्वीकार आवे नहीं त्यां सुधी सम्यग्दर्शन नथी. जैन कुळमां जन्म्यो माटे जैन एवी अहीं वात नथी. अनंतगुणोनो अभेद पिंड एक ध्रुव आत्मानो आश्रय लई एनी प्रतीति करे ते सम्यग्दर्शन छे. ते जैनधर्म छे. जैनधर्म कोई वाडानी चीज नथी, ए तो वस्तुनुं स्वरूप छे.

आत्माने तेनी सन्मुख थईने जाणवो तेनुं नाम सम्यग्दर्शन छे. अज्ञानीओए जेवो आत्मा कल्प्यो होय तेनी अहीं वात नथी. वेदांतीओए जेवो सर्वव्यापक मान्यो