Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] १३प

ते आत्मानी वात पण नथी. अहीं तो सर्वज्ञ परमेश्वरे जे प्रत्यक्ष जोयो, जाण्यो अने दिव्यध्वनिमां कह्यो ए त्रिकाळी सत् चैतन्यस्वरूप परमब्रह्मस्वरूप आनंदकंद आत्मा भूतार्थ छे. अने तेनो आश्रय करतां जे निर्विकल्प अनुभव थाय ते धर्मनुं पहेलुं पगथियुं सम्यग्दर्शन छे. कोईने एम लागे के पर्याय स्वतंत्र छे अने वळी ज्ञायकनो आश्रय करे ते शुं छे? तो कहे छे के वर्तमान पर्याय स्वतंत्रपणे कर्ता थईने रागनुं लक्ष छोडी अंतरमां स्वभाव-सन्मुख थईने, ज्ञायक पूर्णानंद तरफ वळे, ढळे तेने आश्रय करे छे एम कहेवामां आवे छे. द्रव्यनी प्राप्ति थाय छे ते पर्यायमां थाय छे. अनादिथी पर्याय रागनी प्राप्तिमां पडी छे, ए मिथ्यात्व छे. त्यां जे ज्ञाननी पर्याय अंतर वळीने अंदर ज्ञायकनी सन्मुख थाय, सत् पूर्णानंदनी तरफ ढळे ते आत्मानी प्राप्ति छे, ते सम्यग्दर्शन छे. अहा! जिनेश्वरदेवनो मार्ग ए ज दिगंबर जैनधर्म छे. एमां आवी सत्य न्याययुक्त वात छे, अन्यत्र कयांय नथी. भाई, कोईने रुचे न रुचे ए जुदी वात छे. त्रिलोकनाथ सर्वज्ञ परमेश्वरना मुखथी जे दिव्यध्वनि छूटी एमां एम आव्युं के-अखंड एक अभेद सामान्य ध्रुव जे वस्तु, वर्तमान पर्यायने बाद करतां जे रहे ते अभेद वस्तु-ते भूतार्थ छे, सत्यार्थ छे. ते ज द्रष्टिनो विषय छे. अने एनो आश्रय करवाथी एटले एनी सन्मुख ढळवाथी जीव सम्यग्द्रष्टि थाय छे. भूतार्थनो आश्रय पर्याय ले छे एटले पर्याय भूतार्थ तरफ ढळे छे एम अर्थ छे. आश्रय कहो, आलंबन कहो बधुं एकार्थ छे. केटलाकने एम थाय के जैन धर्मनो मार्ग आवो हशे? दया पाळवी, भक्ति करवी, व्रत करवां ए बधुं शुं धर्म नहीं? भाई, परनी दया कोण पाळी शके छे? पर द्रव्य तो स्वतंत्र छे. पर द्रव्यनी अवस्था तेना पोताना कारणे जे थवानी होय छे ते थाय छे. ते शुं तुं करी दे छे? परनी अवस्था तुं करे एम छे ज नहीं. ‘दया धर्मनुं मूळ छे, पाप मूळ अभिमान-’ एम आवे छे ने? पण कोनी दया? भाई! भगवाने कहेली वीतरागी दयानुं स्वरूप जुदुं छे. परनुं लक्ष छोडी वर्तमान पर्याय त्रिकाळी भूतार्थ सत् निज ज्ञायकना आश्रये जे वीतराग दशा प्रगट करे तेने भगवान अहिंसा कहे छे. ते साची दया छे. धर्मनुं स्वरूप बहु सूक्ष्म छे. लोकोने सत्य वात सांभळवा ज मळी नथी. ध्रुव त्रिकाळी सत् सामान्य ज्ञायक वस्तु ते परमार्थ छे. तेनो अनादर करीने वर्तमान पर्यायनो के रागनो आदर करवो ए ज जीवनी हिंसा छे. पोते हयात छे तेनो नकार करवो ए ज हिंसा छे, अने तेनो अंतरमां स्वीकार करवो तेनुं नाम अहिंसा छे, दया छे, धर्म छे.