Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] १३७

अखंड वस्तु छे, तेमां भेद के राग नथी. तेने व्यवहारनय प्रगट करतो होवाथी तेने अभूतार्थ कह्यो छे.

अभूत अर्थने प्रगट करे छे एवो व्यवहारनय चार प्रकारे छे. (१) उपचरित असद्भूत व्यवहारनय (२) अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय (३) उपचरित सद्भूत व्यवहारनय (४) अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय.

आत्मानी पर्यायमां जे राग छे ते मूळ सत्रूप वस्तुमां नथी तेथी असद्भूत छे. भेद पाडयो तेथी व्यवहार छे अने ज्ञानमां स्थूळपणे जणाय छे तेथी उपचरित छे. आ रीते रागने आत्मानो कहेवो ते उपचरित असद्भूत व्यवहारनयनो विषय छे. जे सूक्ष्म रागनो अंश वर्तमान ज्ञानमां जणातो नथी, पकडातो नथी ते अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनयनो विषय छे.

आत्मा अखंड ज्ञानस्वरूप छे. तेमां आत्मानुं ज्ञान रागने जाणे, परने जाणे एम कहेतां-ते ज्ञान पोतानुं होवाथी सद्भूत, त्रिकाळीमां भेद पाडयो माटे व्यवहार अने ज्ञान पोतानुं होवा छतां परने जाणे छे एम कहेवुं ते उपचार छे. आ रीते रागनुं ज्ञान एम कहेवुं (अर्थात् ज्ञान रागने जाणे छे एम कहेवुं) ते उपचरित सद्भूत व्यवहारनय छे.

ज्ञान ते आत्मा एम भेद पाडीने कथन करवुं ते अनुपचरित सद्भूत व्यवहार छे. ‘ज्ञान ते आत्मा’ एम कहेतां भेद पडयो ते व्यवहार पण ते भेद आत्माने बतावे छे माटे ते अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय छे.

भगवान आत्मा अभेद एकरूप वस्तु छे. ते भूतार्थ छे. व्यवहारना उपरोक्त चारेय प्रकार त्रिकाळी ज्ञायकमां नहीं होवाथी असत्यार्थ छे, जूठा छे. वळी ध्रुव आत्मा अने वर्तमान पर्याय बन्नेने साथे लईए तो ते पण व्यवहारनय-अशुद्धनयनो विषय थई जाय छे. तेथी ते पण अभूतार्थ-असत्यार्थ छे. सर्वज्ञ परमेश्वर जिनेश्वरनी वाणीमां जे आव्युं ते कुंदकुंदाचार्यदेव अहीं जाहेर करे छे. कहे छे-त्रिकाळी चीज ज्ञायक जे छे ते मुख्य छे, सत्य छे, भूतार्थ छे. तेमां ‘ज्ञान ते आत्मा’ एवो जे भेद पडयो ते गौण छे, अभूतार्थ छे, असत्यार्थ छे.

अरे! आ भरतक्षेत्रमां भगवानना विरह पडया. धर्मना स्वरूपमां पाछळथी अज्ञानीओए अनेक प्रकारे फेरफार करी नाख्यो. कोई कहे छे के मूर्ति माने तो धर्म थाय, तो