Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] १३९

छे-तेथी मुख्य छे. बाकी बधुं कर्म एटले रागादि छे, ते व्यवहार छे, अभूतार्थ छे तेथी गौण छे, असत्यार्थ छे. अहीं मुख्यनुं प्रयोजन सिद्ध करवा व्यवहारने गौण करीने ते नथी एम कहेवामां आव्युं छे. हवे शुद्धनयनी वात करे छे.

शुद्धनय एक ज भूतार्थ होवाथी विद्यमान, सत्य, भूत अर्थने प्रगट करे छे. शुद्धनय एटले त्रिकाळी चीज पोते शुद्धनय छे. तेमां ज्ञान ते आत्मा, पर्याय ते आत्मा, ए बधा भेद अभूतार्थ छे, अविद्यमान छे. भाषा जुओ. शुद्धनय एक ज भूतार्थ एटले साचो छे. शुद्धनय ए एक वात, अने एक ज भूतार्थ छे ए बीजी वात. आशय एम छे के शुद्धनय एक ज छे, तेना बे भेद नथी. निश्चयनयना बे भेद छे एम जयसेनाचार्यनी टीकामां आवे छे. ए तो परथी भिन्ननुं ज्ञान कराववा माटे राग जीवनी पर्यायमां थाय छे तेने निश्चयनयनो विषय कह्यो छे. ए तो जाणवा माटे वात करी छे. अपेक्षा समजवी जोईए. खरेखर तो (आश्रय करवानी अपेक्षाए तो) शुद्धनय एक ज छे. तेना बे भेद छे ज नहीं.

पंचाध्यायी जे न्यायनो ग्रंथ छे एमां तो एम कह्युं छे के जे निश्चयना बे भेद पाडे ते सर्वज्ञनी आज्ञाथी बहार छे ते ज वात अहीं कहे छे के त्रिकाळी भगवान आत्मा ध्रुव-ध्रुव-ध्रुव, अखंड, एकरूप, भूतार्थ, छती वस्तु, ते पोते शुद्धनय अथवा तेने जाणनार जे शुद्धनय, ते एक ज छे. तेना बे भेद नथी. पर्याय सहित के राग सहित आत्माने जाणवो ते निश्चय, ते वात अहीं नथी. (ए अशुद्ध-निश्चय तो व्यवहार छे) अहीं तो त्रिकाळी एकरूप शुद्ध ज्ञायकभाव, चैतन्यघन द्रव्य जे अनाकुळ समाधि अने आनंदनुं धाम भगवान पूर्ण छे, ए ज एक सत्यार्थ छे. राग विनानो तो खरो पण जे एक समयनी पर्याय विनानो, त्रिकाळी, ध्रुव ज्ञायकभाव छे ते एक ज सत्यार्थ छे अने तेने जाणनारो शुद्धनय ते पण एक ज छे, तेना बे भेद नथी.

गाथामां बीजुं पद छे- भूयत्थो देसिदो दु सुद्धणओ. तेमां कहे छे के जे त्रिकाळी चीज छे भूतार्थ ए ज शुद्धनय छे. मूळ गाथामां एम कह्युं छे के त्रिकाळी सत्यार्थ प्रभु पूर्णानंद ध्रुव चीज छे ते शुद्धनय छे. शुद्धनयनो विषय छे एम भेद पाडीने न कह्युं; त्रिकाळी शुद्ध ध्रुव सामान्य छे तो शुद्धनयनो विषय, पण शुद्धनयनो विषय अने तेने विषय करनार एवो भेद काढी नाखीने त्रिकाळी चीज, अभेद, अखंड, सामान्य वस्तु ते शुद्धनय छे एम कह्युं छे.

वस्तुनी द्रष्टि अने एनो विषय जे शुद्ध वस्तु-ए शुं छे ते जाण्या विना सम्यग्दर्शन न थाय. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र एम शुद्धपणे पर्यायमां परिणमे. ते पर्याय पण