अशुद्धनयनो विषय छे. ए अशुद्धनय व्यवहारमां जाय छे. अशुद्धनय अने शुद्धनय एवा बे भेद वस्तुमां नथी. अशुद्धनय कहो, व्यवहार कहो के उपचार कहो, ए बधुं एकार्थ छे. शुद्धनय एक ज भूतार्थ होवाथी विद्यमान, सत्य, भूत अर्थने प्रगट करे छे. अहीं वस्तु त्रिकाळ सिद्ध करवी छे. ज्ञान ते आत्मा एवा भेदने व्यवहार एटले जूठो कही त्रिकाळी वस्तुमांथी काढी नाख्यो. पर्याय छे ते एक समयनुं सत् छे, ए त्रिकाळी ध्रुव सत् नथी. एनो आश्रय लेवाथी धर्म प्रगट थतो नथी. माटे एक त्रिकाळी भावने ज विद्यमान, भूतार्थ, सत्यार्थ कहेलो छे. आत्मामां बे प्रकार-एक पर्याय अने बीजो ध्रुव. तत्त्वार्थसूत्रमां कह्युं छे ने के उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तम् सत्– एमां पर्याय उत्पाद-व्ययरूप छे. एक समयमां उत्पन्न थई, बीजे समये व्यय थाय, ते पर्याय छे. अने त्रिकाळ एकरूप रहे ते ध्रुव छे. अहीं एक समयनी उत्पाद-व्ययरूप पर्यायनुं लक्ष छोडाववा तेने व्यवहार कही, असत्यार्थ-जूठी कही. अने त्रिकाळी ध्रुव एक ज विद्यमान छतो पदार्थ छे एम कही, तेनी द्रष्टि करावी छे. अहो! समयसार ए अद्भुत शास्त्र छे. आ बे लीटीमां घणुं-घणुं रहस्य भर्युं छे. शुद्धनय एक ज साचा अर्थने प्रगट करे छे. त्रिकाळ विद्यमान तत्त्व भगवान आत्मा, एक समयनी पर्याय विनानो, अविनाशी, अविचळ, ध्रुव, चैतन्यसूर्य तेने शुद्धनय प्रगट करे छे. द्रष्टिनो विषय आ एकमात्र विद्यमान ज्ञायक तत्त्व छे. गाथामां कह्युं छे ने “भूदत्थमस्सिदो खलु सम्माइट्ठी हवइ जीवो” भूतार्थना आश्रये जीव सम्यग्द्रष्टि थाय छे. ‘खलु’ नो अर्थ निश्चय कर्यो छे. जयसेन आचार्ये प्रगट त्रिकाळी भगवाननो जे आश्रय ले तेने निश्चयथी सम्यग्दर्शन थाय छे तेम कह्युं छे. अहा! जेवुं अंदर पूर्ण सत्य स्वरूप पडयुं छे, तेनो अनुभव करीने प्रतीति करे तेने निश्चयथी सम्यग्दर्शन थाय छे. आ जैनधर्म छे. अरे! लोकोए नवा नवा वाडा बांधी, जैनधर्मनुं मूळतत्त्व आखुं पींखी नाख्युं छे. हवे, आ वात द्रष्टांतथी बतावे छे. जेम प्रबळ कादवना मळवाथी जेनो सहज एक निर्मळभाव तिरोभूत थई गयो छे एवा जळनो अनुभव करनारा पुरुषो-जळ अने कादवनो विवेक नहि करनारा घणा तो, तेने (जळने) मलिन ज अनुभवे छे. जुओ, पाणीनो तो सहज एकरूप निर्मळ स्वभाव छे. परंतु प्रबळ कादवना मळवाथी ते ढंकाई गयो छे. त्यां पाणी अने कादवनी जुदाईनो विवेक नहीं करनारा घणा लोको तो पाणीने मलिन ज अनुभवे छे एटले के तेओ मलिन (मेल-संयुक्त) पाणीने ज पीए छे. पण केटलाक पोताना हाथथी नाखेला कतकफळ-(निर्मळी औषधि)ना पडवामात्रथी उपजेला जळ-कादवना विवेकपणाथी, पोताना पुरुषार्थ द्वारा आविर्भूत करवामां आवेला सहज एक निर्मळभावपणानेलीधे तेने (जळने) निर्मळ ज अनुभवे छे.