जोयो अने जाण्यो तेने लक्षमां लेतां-उपादेय करतां पर्यायमां ज्ञान सम्यक् थाय अने साथे आनंद प्रकट थाय. एने शुद्ध आत्मा जाण्यो अने मान्यो कहेवाय.
पोतानो भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्यघन द्रव्यस्वभाव ते उपादेय छे. परनो शुद्ध आत्मा भले हो, सिद्धादि भले हो, पण ते परद्रव्य होवाथी उपादेय नथी. अने अहीं तो निश्चयथी स्वानुभूतिनी पर्याय, संवर-निर्जरानी पर्याय अने मोक्षनी पर्याय पण पर्याय होवाथी हेय छे. अहाहा-! आवी अंतरनी वात छे, त्यां एने (पर) भगवान उपादेय केम होय? माटे आमांथी सार काढवानो के पोतानो शुद्ध आत्मा एक ज उपादेय छे.
पर्यायमां राग होवा छतां भगवान आत्मा तो पूर्णानंदनो नाथ छे. पर्याय तरफना वलणने-लक्षने छोडीने एक समयनी पर्यायथी पण अधिक अने रागनी पर्यायथी पण अधिक (भिन्न) एवा आत्म-भगवाननो आश्रय करवो एने उपादेय करवो ए एने नमस्कार छे. (पर) भगवानने नमस्कार करवा ए तो विकल्प छे- राग छे, ए कांई धर्म नथी. पंच परमेष्ठीने नमस्कार करवा त्यां पंच परमेष्ठी ए तो परद्रव्य छे. आकरी वात छे. भाई! ‘परदव्वाओ दुग्गई.’ परद्रव्यने नमस्कार करवा ते चैतन्यनी गति नहि; ते शुभ परिणाम छे, विभाव छे. अरे! आवो वीतरागनो मार्ग लोकोए सांभळ्यो नथी.
अहीं कोई प्रश्न करे के पहेलां स्वरूपने मेळववुं पडे ने? ए पण नहि, ए पण विकल्प छे. व्यवहारथी ए वात आवे खरी, पण ए खरी वस्तु नहि. पर्याय सीधो ज शुद्ध चैतन्यनो आधार ले (पर्याय द्रव्य तरफ ढळे) ए ज वस्तु छे.
अहीं जे शुद्धद्रव्य उपादेय कह्युं ते पर्याय सहित न मानवुं. शुद्धजीव जे उपादेय छे तेनी साथे शुद्ध पर्यायने भेळवीने जे उपादेय माने ते अशुद्धनय थयो. प्रवचनसारमां ४६ मां नयमां लीधुं छे के माटीने पर्याय सहित जाणवी. ते माटीनी उपाधि छे, व्यवहार छे, मेचकपणुं छे, मलिनता छे. अने माटीने माटीरूप एकली जाणवी ते शुद्ध छे, निश्चय छे, निरुपाधि छे. तेम भगवान आत्माने पर्यायना भेद सहित जाणवो ते उपाधि छे, अशुद्धता छे, मलिनता छे; ते व्यवहारनयनो विषय छे अने आत्माने पर्यायथी भिन्न एक शुद्धात्मस्वरूपे जाणवो ए शुद्ध छे, निश्चय छे, निरुपाधि छे.
संसारी जीव शुद्ध जीवनुं (परअर्हंतादिनुं) लक्ष करे छे माटे सम्यग्ज्ञान छे एम नथी. शुद्ध पोते त्रिकाळध्रुव छे तेने पर्यायमां स्वीकारे त्यारे साचुं ज्ञान अने सुख थाय; त्यारे तेने सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने शांति थाय.