Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 4199

 

भाग-१ ] ११

पोतानो भगवान शुद्ध चैतन्य वस्तु-एनो पर्यायमां आदर कर्यो त्यारे पर्यायमां जे अनुभूति थई ते पर्याये सिद्ध कर्युं के स्वानुभूतिनी पर्यायमां ते प्रकाशे छे. द्रव्य द्रव्यथी प्रकाशतुं नथी, द्रव्यगुणथी प्रकाशतुं नथी कारणके बन्ने ध्रुव छे. ते स्वानुभूतिनी पर्याय द्वारा प्रकाशे छे. आवो मार्ग छे, भाई! भगवाननुं आम कहेवुं छे. त्रिलोकनाथ परमात्मानां आ वचनो छे, एनां आ कहेण छे जेम कोई करोडपति अने मोटा घरनी कन्यानां कहेण आवे तो तरत पोते स्वीकारी ले छे, तेम आ तो त्रिलोकनाथनां कहेण छे, तेने झट स्वीकारी ले; ना न पाड. त्रिलोकनाथ तारी पर्यायनां लग्न ध्रुव साथे करावे छे. तारे लगनी लगाडवी होय तो द्रव्य साथे लगाड. आ सिवाय बीजे क्यांय सुख के शांति छे नहि. पैसामां रागमां, बैरां-छोकरांमां, मोटा हजीरा वगेरेमां क्यांय सुख नथी. तो कोई एम कहे के ते सुखनां निमित्तो तो छे ने? शानां निमित्त? ए तो बधां दुःखनां निमित्त छे.

अहा! आ बधा जैनकुळमां जन्म्या तेमने पण खबर नथी के जैन शुं कहेवाय? जैन कोई संप्रदाय नथी. गुणस्वरूप जे शुद्ध चैतन्यघन तेने जे पर्यायमां उपादेय करी अनुभवे तेणे राग अने अज्ञानने जीत्या, तेने जैन कहेवाय छे.

हवे (जेने नमस्कार करुं छुं) ते केवो छे? ‘भावाय’ कहेतां शुद्ध सत्तास्वरूप वस्तु छे. भगवान आत्मामां जे अनंत गुणो वस्या छे ते शुद्ध छे. आ रीते तेने शुद्ध होवापणुं घटे छे. आ विशेषणथी सर्वथा अभाववादी नास्तिकोनो मत खंडित थयो.

कथंचित् अभाव कहेता आत्मा स्वसत्ताथी छे अने परसत्ताथी नथी ए वात तो साची छे. स्वपणे भावरूप अने परपणे अभावरूप छे एम स्वथी अस्ति अने परथी नास्ति ए तो बराबर छे. सर्वथा अभावनी सामे ‘भावाय’ कहीने भगवान आत्मा शुद्ध होवापणे बिराजे छे एम कह्युं छे.

वळी ते केवो छे? ‘चित्स्वभावाय.’ पोते शुद्धात्मा-तेनो स्वभाव चेतना गुण- स्वरूप-जाणवुं-देखवुं एवा गुणस्वरूप भगवान आत्मा छे.

आ विशेषणथी सर्वथा गुण-गुणीनो भेद माननार नैयायिकोना मतनुं खंडन थयुं.

प्रदेशभेद न होवा छतां नामभेद, लक्षणभेद, संख्याभेदथी गुण-गुणी वच्चे भेद छे. गुणीने गुणी कहेवो, गुणने गुण कहेवो एम नामभेद छे. द्रव्यनुं लक्षण-के गुणने धारी राखे ते द्रव्य. एम द्रव्यनुं लक्षण द्रव्यना आश्रये अने गुणनुं लक्षण गुणना आश्रये एम लक्षणभेद छे तथा गुणी एक अने गुणो अनेक एम संख्या-भेद छे. एम होवा छतां पण प्रदेशथी अभेद छे एम न माननार-सर्वथा भेद माननारनो मत जूठो छे एम कहे छे.