Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२ [ समयसार प्रवचन

वळी ते केवो छे? ‘स्वानुभूत्या चकासते’ -चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा पोतानी अनुभवनरूप क्रियाथी -स्वने अनुसरीने थती परिणतिथी- शुद्धचैतन्यनी निर्मळ अनुभूतिथी जणाय एवो छे. रागथी प्रकाशे एवो आत्मा नथी. तेने रागनी के निमित्तनी अपेक्षा छे ज नहि. अहीं अनुभवनरूप क्रिया ते व्यवहार छे, तेमां निश्चय ध्रुव आत्मा जणाय छे. अनुभूति-ते अनित्य पर्याय, नित्यने जाणे छे. नित्य नित्यने शुं जाणे? (नित्य अक्रिय होवाथी तेमां क्रियारूप जाणवुं केम थाय?)पर्यायने द्रव्य जे ध्येय छे ते पर्यायमां जणाय छे. आवी सुंदर वात मांगळिकमां प्रथम कही छे. अहाहा...! शैली तो जुओ! व्यवहार समकित होय तो निश्चय समकित थाय एम नथी. व्यवहार समकित ए समकित ज नथी. व्यवहार समकित ए तो रागनी पर्याय छे. निश्चय सम्यक्स्वरूपना अनुभवसहित प्रतीति थवी ते निश्चय समकित छे. एनी साथे देव-शास्त्र-गुरुनी श्रद्धानो जे राग आवे तेने व्यवहार समकित कहेवामां आवे छे. पण ए छे तो राग; कांई समकितनी पर्याय नथी. भाई! झीणी वात छे. नियमसारनी बीजी गाथामां (टीकामां) कह्युं छे के भगवान आत्मानी सम्यक्दर्शननी पर्याय स्व-द्रव्यना आश्रये उत्पन्न थाय छे, तेने व्यवहारनी अपेक्षा नथी. निरपेक्षपणे स्वना आश्रये थाय छे. सम्यक्दर्शननी पर्यायने, वस्तु जे उपादेय छे एनो आश्रय छे एम कहेवुं ए तो एनी तरफ पर्याय ढळी छे ए अपेक्षाए कहेवामां आवे छे; नहींतर ए सम्यक्दर्शननी पर्यायना षट्कारकना परिणमनमां परनी तो अपेक्षा नथी पण द्रव्य-गुणनी पण अपेक्षा नथी. एक समयनी विकारी पर्याय पण पोताना षट्कारकथी परिणमीने विकारपणे थाय छे. तेने पण द्रव्य के गुणना कारणनी अपेक्षा नथी; कारण के द्रव्य-गुणमां विकार छे जे नहि. विकारी पर्यायने पर कारकोनी पण अपेक्षा नथी. ते एक समयनी स्वतंत्र पर्याय पोताना कर्ता-कर्मआदिथी थाय छे. ते पर्यायनो कर्ता पर्याय पोते, करण पोते वगेरे छये कारको पोते छे. लोकोने लागे छे के आ शुं? नवुं नथी, भाई? अनादिथी सत् वस्तु ज आवी छे. भगवान! मानवुं कठण पडे पण मानवुं पडशे. वस्तुनी स्थिति ज आवी छे. (समयसारना) बंध अधिकारमां आवे छे के द्रव्य अहेतुक, गुण अहेतुक, पर्याय अहेतुक. पर्याय जे सत्स्वभाव छे ते स्वतंत्र अने निरपेक्ष छे. अपेक्षाथी कथन करवामां आवे छे के पर्यायने द्रव्य उपादेय छे. फक्त पर्याय द्रव्य बाजु ढळी एटले आश्रय लीधो, अभेद थई एम कहेवामां आवे छे. आवुं स्वतंत्र स्वरूप छे, भगवान! एने ओछुं, अधिक के विपरीत करवा जशे तो मिथ्यात्वनुं शल्य थशे. जगतने बेसे, न बेसे एमां जगत स्वतंत्र छे.