अनुभूतिनी पर्यायमां त्रिकाळी आत्मा जणाय छे. अनित्य एवी अनुभूतिनी पर्याय नित्यने जाणे छे. जाणनार ज्ञाननी पर्याय छे, पण जाणे छे द्रव्यने. अनुभूतिनी पर्यायने आश्रय द्रव्यनो छे. (अनुभूतिनी पर्यायनुं वलण द्रव्य तरफ छे). पर्यायने पर्यायनो आश्रय नथी. कार्य पर्यायमां थाय छे, पण ते कार्यमां कारण त्रिकाळी वस्तु छे. कार्यमां कारणनुं ज्ञान थाय छे. भाई! आ तो बधा मंत्रो छे.
‘भावाय’ एटले सत्तास्वरूप पदार्थ-वस्तु, अने ‘चित्स्वभावाय’ कहेतां गुण एटले ज्ञान जेनो स्वभाव छे ते, अने ‘स्वानुभूत्या चकासते’ एटले अनुभूतिथी प्रकाशे छे ते. अनुभूति ते पर्याय. एम द्रव्य, गुण, पर्याय त्रणे सिद्ध थयां. अहीं अनुभूतिथी प्रकाशे छे एमां रागथी नहि, पुण्यथी नहि, निमित्तथी नहि एम सिद्ध थयुं. पोतानी अनुभवनरूप क्रियाथी प्रकाशे छे अर्थात् पोताने पोताथी जाणे छे, एटले ज्ञाननी पर्यायथी त्रिकाळ ज्ञान (ज्ञायक) जणाय छे, ज्ञाननी पर्यायथी त्रिकाळ ध्रुव जणाय छे. पोताने पोताथी प्रगट करे छे एटले अनुभूति ज्ञायकने प्रगट करे छे. संवर अधिकारमां आवे छे के -‘उपयोगमां उपयोग छे’-त्यां ‘उपयोगमां’ कहेतां जाणनक्रियामां, ‘उपयोग छे’ कहेतां ध्रुव त्रिकाळी आत्मा छे. जाणनक्रिया ते आधार अने ध्रुव वस्तु ते आधेय कही छे. उपयोगरूप जाणनक्रियामां त्रिकाळी आत्मा जणायो तेथी अहीं जाणनक्रियाने आधार कही अने तेमां जे ध्रुव आत्मा जणायो ते वस्तुने आधेय कही छे.
खरेखर ध्रुव तो अक्रिय छे. तेमां जाणवानी क्रिया क्यां छे? ध्रुवने पर्याय जाणे छे, पर्याय द्रव्यनो आश्रय ले छे. द्रव्य, द्रव्यनो तो आश्रय लई शके नहीं, द्रव्य पर्यायनो पण आश्रय लेतुं नथी; पण पर्याय द्रव्यनो आश्रय ले छे. एटले के पर्याय द्रव्यने जाणे छे तेथी पोते पोताने जाणे छे-स्वानुभूतिथी प्रकाशे छे एम कहे छे.
‘स्वानुभूत्या चकासते’ एम कहेतां आत्माने तथा ज्ञानने सर्वथा परोक्ष ज माननारा जैमिनीय प्रभाकर भेदवाळा मीमांसकोना मतनो व्यवच्छेद थयो.
जेओ आत्माने अने ज्ञानने सर्वथा परोक्ष ज माने छे, प्रत्यक्ष थई शके ज नहीं एम माने छे तेओनो अभिप्राय जूठो छे. स्वानुभूतिथी प्रत्यक्ष थई शके छे एम कहे छे. वस्तु जे छे ते ज्ञानमां प्रत्यक्ष ज छे. शास्त्रमां आत्माने स्वरूप-प्रत्यक्ष कह्यो छे. स्वरूप प्रत्यक्ष ज वस्तु छे तेथी ज ते पर्यायमां प्रत्यक्ष थाय छे. वस्तु स्वरूप प्रत्यक्ष ज ज्ञानमां छे तेथी प्रत्यक्ष पर्यायथी जणाय छे.
समयसारमां ४७ शक्तिओ कही छे, त्यां आत्मामां एक ‘प्रकाश’ नामनी शक्ति कही छे. ते वडे ते स्वसंवेदन प्रत्यक्ष थई शके छे, पोते पोताथी प्रत्यक्ष वेदाय एवो छे.